जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटने के बाद वहाँ से पलायन कर चुके कश्मीरी-पंडितों की घर वापसी का रास्ता खुलने का सवाल अब उठने लगा है। क्या कश्मीरी-पंडित जम्मू-कश्मीर वापस जाएँगे? इस सवाल का जवाब देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि दुनिया की कोई भी ताकत कश्मीरी-पंडितों को जम्मू-कश्मीर लौटने से नहीं रोक सकती। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से हटायी गयी धारा-370 का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह राज्य केंद्र्र शासित प्रदेश है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पहले की तरह ही राज्य सरकार के साथ कोई समझौता किये बगैर कश्मीरी-पंडितों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई कर सकती है। बता दें कि उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पहले ही कहा था कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ-साथ यह सभी देशवासियों का यह कर्तव्य है कि वे अपने देश के वीर जवानों की आतंकी हमले कराने और हत्या की साज़िश रचने वाले पड़ोसी देशों से रक्षा करने में सहयोग प्रदान करें।
यदि हम सरकार के इन बयानों पर गौर करें, तो पाएँगे कि सरकार ने कश्मीरी-पंडितों में घर वापसी की उम्मीद जगायी है। इसको लेकर आजकल ट्विटर पर हैजटैग (प्त) के साथ एक ट्वीट वायरल हो रहा है कि हम वापस आएँगे। हालाँकि इस कथन पर लम्बी बहस शुरू हो चुकी है, जो कि दिन-ब-दिन विवादास्पद होती जा रही है। यही नहीं इस मुद्दे ने मीडिया का भी ध्यान आकॢषत किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बहस से वर्षों पहले घाटी से पलायन कर चुके कश्मीरी-पंडितों के लिए इसका कोई फायदा होगा? क्या अब वे घर वापसी कर पाएँगे? सवाल सबके मन में उठ रहे हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि किसी एक व्यक्ति के लिए भी इन सवालों का जवाब प्रस्तुत करना कठिन है; चाहे वह व्यक्ति सामान्य हो या विशेष।
बता दें कि सन् 2015 में सरकारी सूत्रों ने कश्मीरी-पंडितों के लिए अलग बस्ती बसाने की योजना की बात कही थी। मीडिया में जब यह बात उठी, तो केंद्र सरकार ने भी इसे अस्वीकार नहीं किया। उस समय केंद्र सरकार ने तत्कालीन राज्य सरकार से उन जगहों की पहचान करने को कहा था, जिसमें 16,800 एकड़ ज़मीन को घाटी के तीन ज़िलो के रूप में बाँटा गया था। इन ज़मीन अनंतनाग, बारामुल्लाह और श्रीनगर में है; जहाँ पलायन कर चुके या बचे हुए पंडित परिवारों को बसाया जा सकता है।
प्रस्ताव के अनुसार, प्रत्येक बस्ती में 75 हज़ार से एक लाख तक लोगों को बसाया जा सकता है। जहाँ सरकार मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित करने के साथ-साथ अन्य सुविधाओं का बंदोबस्त करेेगी। इस योजना के तहत 12 पुलिस स्टेशनों का भी निर्माण किया जाएगा, ताकि इन बस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इस योजना में पुनॢवस्थापित पीडि़तों को केंद्र सरकार द्वारा दो साल के लिए आवास सहायता, परागमन आवास, नकद राहत, छात्रों को छात्रवृत्ति के अलावा राज्य सरकार में रोज़गार दिया जाएगा। इसके साथ-साथ किसानों को मदद दी जाएगी और 1990 से पहले पलायन कर चुके कर्ज़दार किसानों का ब्याज माफ किया जाएगा।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इन वादों पर अमल करेगी? लेकिन यह देखते हुए कि केंद्र सरकार ने इस प्रदेश में अलग-अलग कॉलोनियाँ स्थापित करने की दिशा में अपना पक्ष रखा है। अंत: यह भी माना जा सकता है कि कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की योजना पर अमल किया जा सकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि केंद्र सरकार का यह वादा केवल एक योजना ही नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक स्वार्थ भी छिपा हुआ है। बता दें कि अलगाववादियों और अन्य कश्मीरी लोगों ने कश्मीरी-पंडितों की अलग से बस्तियाँ बसाने का हमेशा से विरोध किया है। ये लोग चाहते हैं कि कश्मीरी-पंडित सभी के साथ मिलकर रहें। लेकिन घाटी में स्थिति बदलने के चलते उनकी इस बात पर अमल किया जाना सम्भव नहीं लग रहा। बता दें कि हाल ही में सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 और धारा-35 (ए) को समाप्त कर दिया, इसके चलते अब वहाँ बाहरी लोग ज़मीन खरीदने के साथ-साथ स्थायी घर भी बना सकते हैं। पहले बाहरी लोगों को यह अनुमति नहीं थी। अब बाहरी लोगों को यहाँ रहने अधिकार और नौकरी पाने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। पहले केवल राज्य के लोगों को ही ये अधिकार प्राप्त थे।
इसलिए, पंडितों को घाटी में वापसी पर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि यह मुद्दा जितना आसान दिखता है, उससे कहीं अधिक जटिल है। यह बात अलग है कि पंडितों की घर-वापसी का वहाँ कभी कोई विरोध नहीं हुआ है, लेकिन उनके पुनर्वास का तरीके और इस पर की जा रही राजनीति का विरोध भी हो सकता है। ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए कि वह घाटी में पंडितों को फिर से संगठित करने की कोशिश करे और अनुच्छेद-370 को रद्द करने के फायदे लोगों को बताये।