कश्मीर में रिपोर्ट को लेकर नाराज़गी और विरोध, जम्मू में ख़ुशी
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच दक्षिण एशिया में उभरते तनावों और पाकिस्तान में शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व में नयी सरकार बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा सीटों के परिसीमन वाली अन्तिम रिपोर्ट प्रकाशित हो गयी है। घाटी के राजनीतिक दलों ने इस रिपोर्ट की सिफ़ारिशों पर गहरा ऐतराज़ जताया है। यहाँ सवाल यह है कि क्या भारतीय लोकतंत्र जम्मू-कश्मीर को लेकर सामने खड़ी चुनौतियों को परिसीमन के इस तरीक़े से और मुश्किल नहीं कर रहा? घाटी के राजनीतिक दलों ने परिसीमन रिपोर्ट को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है और इसे लोगों से धोखा बताया है।
जून, 2018 में पीडीपी-भाजपा सरकार टूटने के बाद राज्य के लोग अपने मताधिकार का उपयोग नहीं कर पाये हैं। हालाँकि इस बीच 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विभाजन करके दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिये गये थे। केंद्र सरकार अब इस साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव करवा सकती है। आरम्भ से चुनावी राजनीति में पले-बड़े जम्मू कश्मीर के लोग बहुत शिद्दत से महसूस कर रहे हैं कि जनता के चुने प्रतिनिधि सत्ता सँभालें। लोगों का कहना है कि केंद्र के नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर और अफ़सरशाही से जनता वैसा सीधा संवाद नहीं कर सकती, जैसा चुने प्रतिनिधियों के साथ हो सकता है। लिहाज़ा उनकी समस्यायों के निदान के लिए चुनाव होने ज़रूरी हैं। वैसे परिसीमन की रिपोर्ट में विधानसभा और लोकसभा हलक़ो को लेकर जो बदलाव किये गये हैं, उन्हें लेकर कश्मीर की राजनीतिक दलों में नाराज़गी है।
जम्मू-कश्मीर में पाँच लोकसभा सीटों बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-राजौरी, उधमपुर और जम्मू को बरक़रार रखते हुए इनकी सीमाओं को पुनर्निर्धारित किया गया है। जम्मू के पीर पंजाल क्षेत्र को अब कश्मीर की अनंतनाग सीट में डाला गया है। पीर पंजाल में पुंछ और राजौरी ज़िले आते हैं, जो पहले जम्मू संसदीय सीट का हिस्सा थे। श्रीनगर संसदीय क्षेत्र के एक शिया बहुल क्षेत्र को बारामूला संसदीय सीट में जोड़ दिया गया है।
घाटी में नाराज़गी
धारा-370 हटाते समय जिस तरह जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसे में नहीं लिया गया था, उससे उनमें नाराज़गी थी। अब परिसीमन में विधानसभा हलक़ो के बँटवारे पर भी ख़ासकर कश्मीर में नाराज़गी है और उनका आरोप है कि परिसीमन एकतरफ़ा है और इसमें राजनीति की गयी है।
‘तहल$का’ से फोन पर बातचीत में फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा- ‘ऐसी चालबाज़ियाँ सूबे में ज़मीनी हक़ीक़त को नहीं बदल सकतीं। परिसीमन आयोग के सहारे तो बिलकुल भी नहीं। मरहम लगाने की जगह ज़ख़्म दिये जा रहे हैं। हम सब (कश्मीर के राजनीतिक दल) मिलकर बैठेंगे और इस मसले पर चर्चा करेंगे।’
कांग्रेस ने भी सवाल उठाया है कि जब पूरे देश के बाक़ी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर साल 2026 तक रोक लगी है, तो फिर जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से परिसीमन क्यों हो रहा है? देखा जाए, तो जम्मू-कश्मीर का परिसीमन और इसका विरोध दोनों ही राजनीतिक हैं। विरोध जनसंख्या के लिहाज़ से ज़्यादा आबादी वाले मुस्लिम बहुल कश्मीर में कम सीटें बढ़ाने और कम आबादी वाले हिन्दू बहुल जम्मू में ज़्यादा सीटें बढ़ाने का हो रहा है। पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने इस मसले पर कहा- ‘यह बहुत फ़िक्र की बात है कि परिसीमन में जनसंख्या की पूरी तरह अनदेखी की और आयोग ने मनमर्ज़ी का फ़ैसला किया। हमें इस रिपोर्ट पर बिलकुल भरोसा नहीं। रिपोर्ट का मक़सद जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करना है। दिल्ली ने एक बार फिर हमारे संविधान की अनदेखी की है और चुनावी बहुमत को अल्पमत में बदल दिया।’
घाटी के राजनीतिक दलों का आरोप है कि परिसीमन के बहाने भाजपा हिन्दू बहुल जम्मू में अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना चाहती है। जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम बहुल कश्मीर में परिसीमन के बाद एक सीट बढ़कर 47 सीटें हुई हैं, जबकि हिन्दू बहुल जम्मू में छ: बढ़कर अब 43 हो गयी हैं। कुल 90 विधानसभा सीटों में बहुमत के लिए 46 सीटें चाहिए। यदि कश्मीरी पंडितों के दो नामित सदस्यों को पुडुचेरी की तर्ज पर वोट का अधिकार मिल जाता है, तो यह दो वोट अतिरिक्त हो जाएँगे।
उधर तीन साल पहले तक सत्ता में भाजपा की सहयोगी रही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के नेता सज्जाद लोन ने कहा- ‘अतीत से कोई सबक़ नहीं सीखते हुए उसे दोहराया गया है। कश्मीर के साथ भेदभाव हुआ है। आबादी के लिहाज़ से बदलाव नहीं हुए और यहाँ के आवाम को निराशा हुई है। भाजपा और उसके सहयोगी राजनीतिक फ़ायदे से ऊपर नहीं सोच रहे।’ इन बदलावों के बाद जम्मू की 44 फ़ीसदी आबादी 48 फ़ीसदी सीटों के लिए वोट डालेगी, जबकि कश्मीर की 56 फ़ीसदी आबादी 52 फ़ीसदी सीटों के लिए। परिसीमन से पहले कश्मीर के 56 फ़ीसदी लोग 55.4 फ़ीसदी सीटों के लिए, जबकि जम्मू के 43.8 फ़ीसदी लोग 44.5 फ़ीसदी सीटों के लिए वोट डालते थे। अविभाजित जम्मू-कश्मीर में लेह और कारगिल की सीटें भी शामिल थीं। कश्मीर के राजनीतिक दलों का आरोप है कि भाजपा जम्मू में परिसीमन के ज़रिये सीटें बढ़ाकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना चाहती है।
इस साल कश्मीर में पर्यटकों की शानदार आमद रही है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव हों, तो उन्हें अपने कामों के लिए सरकारी दफ़्तरों में भटकना नहीं पड़ेगा। हालाँकि परिसीमन की इस सारी क़वायद में कई जानकार भविष्य के ख़तरे भी देखते हैं। उन्हें लगता है कि परिसीमन के बहाने कश्मीर की जनता में यह बात घर कर गयी है कि नई दिल्ली उनके साथ न्याय नहीं कर रही। धारा-370 से लेकर परिसीमन तक घाटी में यह निराशा और गहरी हुई है। फ़िलहाल अब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का इंतज़ार सभी को है। वहाँ राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने की माँग तमाम राजनीतिक दल कर रहे हैं। भले परिसीमन रिपोर्ट का कश्मीर में जबरदस्त विरोध है, जम्मू में भी लोग चुनाव चाहते हैं। कारण यह है कि राज्यपाल शासन में उनकी समस्याएँ बढ़ी हैं। बिजली की जितनी ख़राब हालत लोगों को जम्मू में अब झेलनी पड़ी है, उतनी पिछले वर्षों में नहीं रही। शायद जम्मू-कश्मीर में अक्टूबर तक चुनाव हों।
परिसीमन रिपोर्ट में क्या है?
जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग के अन्तिम आदेश में कश्मीरी प्रवासियों (केपी) और पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए अतिरिक्त सीटों की सिफ़ारिश है। इसके लिए गजट अधिसूचना भी प्रकाशित कर दी गयी है और यह आदेश केंद्र सरकार द्वारा घोषित तारीख़ से प्रभावी होगा। केंद्र शासित प्रदेश की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 43 जम्मू क्षेत्र और 47 कश्मीर क्षेत्र में होंगी। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए पहली बार नौ सीटें आरक्षित की गयी हैं, जिनमें जम्मू में छ: और कश्मीर में तीन सीटें होंगी। सात सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गयी हैं। तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के संविधान में विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान नहीं था। सभी पाँच लोकसभा सीटों में पहली बार समान संख्या में विधानसभा सीटें होंगी। परिसीमन के उद्देश्य से जम्मू और कश्मीर को एक इकाई के रूप में माना गया है।
एक संसदीय क्षेत्र कश्मीर के अनंतनाग और जम्मू के राजौरी और पुंछ को मिलाकर बनाया गया है। इस पुनर्गठन से प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में 18 विधानसभा क्षेत्रों की समान संख्या होगी। माँग को देखते हुए कुछ विधानसभा हलक़ो के नाम बदले गये हैं। पटवार सर्कल में कोई फेरबदल नहीं किया गया है। सभी विधानसभा सीटें सम्बन्धित ज़िले की सीमा में रहेंगी। आयोग ने विधानसभा में कश्मीरी प्रवासियों (केपी समुदाय) के कम-से-कम दो सदस्यों (एक महिला) की सिफ़ारिश की है। ऐसे सदस्यों को केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की विधानसभा के मनोनीत सदस्यों की तरह शक्ति देने की सिफ़ारिश की गयी है। आयोग ने कहा कि केंद्र सरकार पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर से विस्थापित लोगों को मनोनयन के ज़रिये जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने पर विचार कर सकती है।