कश्मीर घाटी में ढेरों आतंकवादी संगठन हैं जो भारतीय सुरक्षा सेनाओं पर हमले करते हैं। इनमें कइयों के एक जैसे या मिलते-जुलते नाम हैं। ऐसे ही संगठनों में एक संगठन है जैश-ए-मोहम्मद। इसे मसूद अज़हर के संगठन के तौर पर जाना जाता है। यह संगठन खासा सक्रिय संगठन है। इस पर घाटी में एक दर्जन से ज़्यादा हमले करने का आरोप है। इसकी हिंसक वारदातों के कारण संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में आतंकवादी संगठनों में इसका भी प्रमुख नाम है।
भारत लगातार यह मांग करता रहा है कि मसूद अज़हर के जैश-ए-मोहम्मद संगठन को काली सूची में डाला जाए। लेकिन भारत और अमेरिका के प्रयासों के बाद भी इसे काली सूची में नहीं डाला जा सका। जानकारों के अनुसार अज़हर ने पिछले तीन साल में अपने संगठन की सक्रियता और बढ़ा दी है। इसी सिलसिले में अज़हर ने अपने दो भतीजों को घाटी में भेजकर आंदोलन तेज भी किया। उसके भतीजों में एक था तलहा रशीद जिसकी अक्तूबर 2017 में हत्या हुई और दूसरा था उस्मान हैदर जिसकी हत्या 2018 में हुई। लेकिन जैश-ए-मोहम्मद का मनोबल नहीं टूटा।
पहली बार जैश-ए-मोहम्मद ने 2007 में भारतीय संसद पर हमला किया। इसमें खासा नुकसान हुआ। भारत और पाकिस्तान में युद्ध होने का अंदेशा भी बढ़ा। लेकिन उसे संभाल लिया गया। फिर जनवरी 2016 में पठानकोट में वायुसेना अड्डे पर हमला हुआ। इसमें सात सुरक्षा सैनिक मारे गए। इसके बाद ही इसी साल सितंबर में उरी हमला हुआ। इसमें बीस सिपाही मारे गए। इसके बाद ज़रूर भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके भारत- पाक सीमा पर स्थित आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया।
जैश के लिए कार से ध्वंस करने की कार्रवाई भी नई नहीं रही। सन 2000 में स्कूल में पढऩे वाले 17 साल के एक किशोर ने श्रीनगर में 15 कोर आर्मी मुख्यालय से विस्फोटकों से भरी मारूति की टक्कर मार दी थी। इसके बाद ही यह शोर हुआ कि जैश घाटी में अब भी सक्रिय है। मौलाना मसूद अज़हर की घाटी में सक्रियता का सबूत यह धमाका था। इसके बाद ही विस्फोटकों से लदी मारूति के साथ 24 साल के ब्रिटिश नागरिक को 15 कोर मुख्यालय पर उड़ा दिया गया था। मौलाना मसूद अजहर को 1999 में अटल बिहारी सरकार ने कंधार में अपहृत भारतीय विमान आईसी 814 में सवार यात्रियों और विमान चलाने वाले दस्ते की रिहाई के एवज में छोड़ा था। सन 2005 में जैश की एक आत्मघाती महिला ने अंवतिपुरा में खुद को राख कर लिया था।
जानकारों के अनुसार पाकिस्तान में बहावलपुर में जैश का अड्डा है। तालिबान से इसका रिश्ता नाभि और नाल का है। नौ बटा ग्यारह की घटना के बाद जब पाकिस्तान और अमेरिका में नज़दीकियां बढ़ी तो जैश आर्थिक तौर पर और समृद्ध हुआ। इसने श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के बाहर ही आत्मघाती हमला किया। इसमें 23 जानें गई। इस हमले की पाकिस्तान ने भी निंदा की थी। पाकिस्तान और जैश में थोड़ा मन-मुटाव तब बढ़ा जब 2013 में इसने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हत्या कराने की दोबारा कोशिश की।
इसके बाद कश्मीर घाटी में कुछ समय शांति का रहा। इसकी दो वजहें थीं एक तो पाकिस्तान से इसका संपर्क टूटा और खुफिया एजेंसियों में घुसे इसके लोगों से भी इसका संपर्क अब नहीं था। 2004 में कश्मीर में रह रहे जैश के तमाम बड़े सिपहासालार लोलाब में हो रही एक बैठक में मारे गए। खुफिया जानकारी के अनुसार साजिद जो जैश कश्मीर का अगुआ था वह मार्च 2011 में मारा गया। इसी तरह एक स्थानीय कमांडर नूर मोहम्मद तांत्रे उर्फ नूर त्राली 25 सितंबर 2017 को पुलवामा में मारा गया।
त्राली की मौत के बाद पाक नागरिक मुफ्ती वकास के पास कश्मीर में नेतृत्व आया। सीआरपीएफ के प्रशिक्षण शिविर में 31 दिसंबर 2017 को दो आत्मघाती लोगों ने खुद को उड़ाया इसमें पांच सुरक्षा कर्मी मारे गए। जिन आत्मघाती लोगों ने यह काम किया वे दोनों ही स्थानीय थे। एक तो एक सिपाही का बच्चा था तो दसवीं में पढ़ता था और दूसरा पुलवामा में टैक्सी चलाता था। मार्च 2018 में वकास अवंतीपुरा में मारा गया।
फिर वहीं लेटपुरा में ही सीआरपीएफ को फिर निशाना बनाया गया। जैश की कोशिश है कि भारत और पाकिस्तान मे कभी दोस्ती के संबंध ने बनें।