भारत के नए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बुधवार को कार्यालय की शपथ लेते ही काम शुरू कर दिया। उनका कहना था कि काम ज़्यादा है और समय कम।
पदभार ग्रहण करते ही गोगोई ने विभिन्न बेंचों के लिए मुकदमों के आबंटन का नया रोस्टर बनाने के साथ ही फैसला किया कि जनहित याचिकाओं की सुनवाई वह खुद और दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ यह पीठ पहले से ही भूमि अधिग्रहण और सेवा संबंधी मामलों की सुनवाई कर रही है।
उन्होंने कहा कि मामलों के तत्काल उल्लेख और सुनवाई के लिए ‘मानदंड’ तय किए जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर किसी को कल फांसी दी जा रही हो तब हम (अत्यावश्यकता को) समझ सकते हैं।
शीर्ष न्यायालय की वेबसाइट पर 3 अक्तूबर से अगले आदेश तक के लिए मुख्य न्यायाधीश के आदेश से अधिसूचित नए मामलों के लिए रोस्टर में काम को दर्शाया गया है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने बुधवार को भारत के 46वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 63 वर्षीय न्यायमूर्ति गोगोई को राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में एक संक्षिप्त समारोह में उन्हें शपथ दिलायी।
न्यायमूर्ति गोगोई ने ईश्वर को साक्षी मानकर अंग्रेजी में पद की शपथ ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल 13 माह से थोड़ा अधिक होगा और वह 17 नवंबर 2019 को सेवानिवृत्त होंगे।
वह न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की जगह देश के प्रधान न्यायाधीश बने हैं। 65 वर्ष की आयु पूरा करने पर मिश्रा मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए।
समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं एच. डी. देवगौड़ा सहित कई नेता मौजूद थे।
लोकसभा में कांग्रेस के विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय और डेरेक ओब्रायन जैसे विपक्ष के नेता भी कार्यक्रम में मौजूद थे।
न्यायमूर्ति गोगोई न्यायपालिका में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले पूर्वोत्तर से पहले व्यक्ति हैं। उन्हें 13 सितंबर को भारत का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस पद के लिये सीजेआई के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को नामित करने की स्थापित परंपरा के अनुसार इस महीने के शुरू में प्रधान न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गोगोई के नाम की सिफारिश की थी।
न्यायमूर्ति गोगोई सहित कुछ वरिष्ठ न्यायमूर्तियों ने जनवरी में एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर विभिन्न मुद्दों खासकर कुछ निश्चित पीठों को मामले भेजने के तरीकों की आलोचना की थी, जिसके बाद न्यायमूर्ति गोगोई की सीजेआई के तौर पर नियुक्ति की अटकलें बढ़ गयी थीं।