सुप्रीम कोर्ट के सोमवार (29 अक्तूबर) के फैसले से भाजपा, आरएसएस और संघ परिवार के सदस्यों में खासी निराशा है। उत्तरप्रदेश सरकार ने चाहा था कि टाइटिल सूट पर जल्दी ही सुनवाई हो जाए। लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद टाइटिल मुकदमे जनवरी के पहले सप्ताह में उपयुक्त बेंच के सिपुर्द करने की बात अपने आदेश में कही।
उत्तरप्रदेश के सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायाधीश एसएम कौल और न्यायाधीश केएम जोसेफ की बेंच के सामने अपनी दलील रखी। उन्होंने कहा कि सौ साल से इस मुद्दे पर विवाद चल रहा है और इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत दीवाली की छुट्टियों के तुरंत बाद इस मामले को प्राथमिकता दे। मेहता ने आज ही सुनवाई की तारीख तय करने की जब अपील की तो मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा, हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं। सुनवाई जनवरी में या फरवरी में हो इसका फैसला एक उपयुक्त बेंच करेगी।
सुप्रीम कोर्ट राम जन्मभूमि – बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के बारे में इलाहावाद हाईकोर्ट के आदेश पर दायर याचिकाओं पर सोमवार (29 अक्तूबर 2018) को सुनवाई कर रही थी। वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन रामलला वज्रमान, अयोध्या स्थल में शिशु राम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने भी अनुरोध किया कि नवंबर में ही इस मामले की सुनवाई की जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने 2010 के फैसले में अयोध्या के विवादित 2.77 एकड़ की भूमि को तीन हिस्सों में विभाजित करते हुए इस भूमि का एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़ा, और उत्तरप्रदेश के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और रामलला वज्रमान को देने की बात कही थी।
इस साल 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जिसमें तब के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर ने अपने दो-एक के फैसले में मांगों को रद्द कर दिया था। पूरे मामले को एक बड़ी बेंच के हवाले कर दिया था। साथ ही आदेश दिया कि भूमि विवाद संबंधी अपीलों पर सुनवाई 29 अक्तूबर को की जाए।
अपील करने वालों में कुछ ने यह मुद्दा उठाया था कि अदालत 1994 के आदेश पर भी गौर करे। यह मामला डा. एम इस्माइल फारूकी व अन्य बनाम भारत सरकार था। इसमें संवैधानिक बेंच ने कहा था कि ‘इस्लाम धर्म के प्रचार और नमाज़ (प्रार्थना) अता करने की ज़रूरी जगह नहीं है। यह कहीं भी, यहां तक खुले में भी अता की जा सकती है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि अयोध्या मामले में आए पिछले फैसले पर इस्माइल फारूकी फैसले का प्रभाव है जिसमें अयोध्या कानून 1994 में संवैधानिक वैधता को चुनौती देने की याचिका दायर की गई थी। इसके तहत राम जन्म भूमि -बाबरी मस्जिद कांप्लेक्स के लिए 67.703 एकड़ ज़मीन ली गई थी।
इस तर्क को खारिज करते हुए और मामले को बड़ी बेंच के हवाले करते हुए मुख्य न्यायाधीश मिश्र और न्यायाधीश भूषण ने अपने फैसले में कहा था, इन टिप्पणियों की ज़रूरत नहीं है यह बताने के लिए कि इस्लाम धर्म के प्रचार का ज़रूरी हिस्सा मस्जिद नहीं है ।