छ: साल से कोई उपसभापति नहीं

मोदी सरकार ने लोकसभा में एक तरह का रिकॉर्ड बना दिया है। 17वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने कोई उपसभापति नहीं बनाया और 18वीं लोकसभा में भी किसी के इस पद पर आसीन होने का कोई संकेत नहीं है। परंपरागत रूप से उपसभापति का पद मुख्य विपक्षी दल को दिया जाता है।

चूँकि संख्या की कमी के कारण कांग्रेस के पास विपक्ष का नेता (एलओपी) पद नहीं था, इसलिए यह पद ख़ाली रहा; हालाँकि कोई कारण नहीं बताया गया। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि उपसभापति का पद ख़ाली रहने का एकमात्र कारण यह है कि इसे विपक्ष को दिया जाना है। इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू ने की थी, जिन्होंने सन् 1956 में शिरोमणि अकाली दल के सरदार हुकुम सिंह को उपसभापति चुना था। इसके बाद उपसभापति सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही होते रहे, जब तक कि आपातकाल के वर्षों के दौरान एक स्वतंत्र सदस्य जी.जी. स्वेल को इस पद पर नियुक्त नहीं किया गया। इसके बाद विपक्ष के सदस्यों ने इस पद पर क़ब्ज़ा किया। यह परंपरा 16वीं लोकसभा तक जारी रही, जब एआईएडीएमके के एम. थंबीदुरई उपसभापति थे। 17वीं लोकसभा में मोदी सरकार ने उपसभापति नहीं रखने का फ़ैसला किया और यह पद ख़ाली रहा। इसी से सत्तारूढ़ दल को यह नियुक्ति अनिश्चितकाल तक टालने का बहाना मिल गया। हालाँकि संविधान के अनुच्छेद-93 में कहा गया है कि लोकसभा को जितनी जल्दी हो सके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों को चुनना होगा।