अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बने पांच महीने हो चुके हैं. इस दौरान वे जनता या सरकार पर अपनी छाप छोड़ पाने में असफल रहे हैं. सरकार में कई समानांतर सत्ता केंद्रों की आहट है. इन मुद्दों पर तहलका संवाददाता वीरेंद्रनाथ भट्ट ने सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री और अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव से बातचीत की.
अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बने पांच महीने हो रहे हैं, लेकिन यह आम धारणा है कि अब भी सत्ता की कमान मुलायम सिंह यादव ही संभाल रहे हैं क्योंकि ज्यादातर लोग अखिलेश की सुन ही नहीं रहे?
मुझे ऐसा नहीं लगता. नेताजी ने तो अखिलेश को पूरा अधिकार दे रखा है और वे कभी भी सरकार के कामकाज में दखल नहीं देते हैं. जब नेताजी खुद मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने अपने सभी मंत्रियों को काम करने की पूरी छूट दे रखी थी. क्या आपने किसी सरकारी कार्यक्रम में नेताजी को अखिलेश के साथ देखा है? लेकिन नेताजी परिवार के और पार्टी के मुखिया हैं और सरकार के कामकाज पर नजर रखने और समय-समय पर निर्देश देने का उनको पूरा अधिकार है.
आपके बारे में कहा जाता है कि आप अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे.
लेकिन हम अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने के विरोध में भी नहीं थे. हमारी इच्छा थी कि नेताजी छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बनें, उसके बाद अखिलेश बनें. लेकिन नेताजी का निर्णय अंतिम है. वे परिवार के और पार्टी के मुखिया हंै. उनका निर्णय सबको स्वीकार है. अब यह कोई मुद्दा नहीं है.
पांच माह के अखिलेश के कार्यकाल को आप किस तरह देखते हैं? वे खुद को एक सक्षम प्रशासक साबित कर पाने में असफल रहे हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं कि अखिलेश अब सपा के सर्वमान्य नेता हैं और अगला लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाएगा. अखिलेश ने अच्छी शुरुआत की है. वे विनम्र हैं और आम जनता को सहजता से उपलब्ध हैं.
ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार में सत्ता के कई समानांतर केंद्र बन गए हैं. आप समेत कई मंत्री अपनी-अपनी सरकार चला रहे हैं.
यह सब बकवास है. विरोधियों का दुष्प्रचार है. इसका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. मुख्यमंत्री ही सरकार के मुखिया हैं और सभी मंत्री उनको विश्वास में लेकर ही निर्णय लेते हैं. मैं भी कोई अपवाद नहीं हूं.
कानून-व्यवस्था पर सरकार की पकड़ ढीली हो रही है. सरकार मथुरा, प्रतापगढ़ और बरेली में सांप्रदायिक दंगा रोक पाने में असफल रही. क्या आपको लगता है कि अखिलेश सरकार नौकरशाही और सरकारी तंत्र पर अपनी छाप छोड़ सकी है?
अखिलेश मेहनत से काम कर रहे हैं. अभी सरकार बने चार-पांच महीने ही हुए हैं, इस समय सरकार का मूल्यांकन करना थोड़ी जल्दबाजी होगी. मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार जनता की हर आकांक्षा को पूरा करेगी.
30 जुलाई को मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर पार्टी के विधायकों और मंत्रियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाया. उसके अगले दिन उन्होंने सपा की राज्य कार्यकारिणी बैठक की अध्यक्षता की जबकि सपा की राज्य इकाई के प्रमुख अखिलेश यादव हैं. बार-बार नेताजी को आगे क्यों आना पड़ रहा है?
यह कहना सही नहीं है कि नेताजी को अखिलेश की मदद में बार-बार उतरना पड़ रहा है. यह सब तो संगठन का काम है जो पहले भी चलता था. हमारी पार्टी लोकतांत्रिक है. किसी एक व्यक्ति की तानाशाही नहीं है. जनता ने हमको भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए वोट दिया है, इसलिए नेताजी ने मंत्रियों को ईमानदारी से काम करने का आदेश दिया. पार्टी के संविधान के अनुसार राज्य कार्यकारिणी की बैठक हर दो माह में होनी चाहिए और विधानसभा चुनाव के बाद यह पहली बैठक थी.
चर्चा है कि अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने से आपके परिवार में जबरदस्त सत्ता संघर्ष छिड़ गया है.
ऐसा कुछ नहीं है. सभी सदस्य अपनी-अपनी जिम्मेदारी के अनुसार कार्य कर रहे हैं.
अभी हाल में हुए नगर निकाय चुनावों में आपके भाई राजपाल सिंह और राम गोपाल यादव ने इटावा नगर पालिका में अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए.
निजी तौर पर किसी को भी समर्थन देने की खुली छूट थी. पार्टी अधिकृत रूप से चुनाव लड़ ही नहीं रही थी. जो हारा वह सपा का और जो जीता वह भी सपा का.
आपके पुत्र आदित्य राजनीति में उतरने की तैयारी कर रहे हैं?
नहीं, नहीं… आदित्य राजनीति में नहीं उतरेगा. उसको राजनीति में उतरने से मैंने रोका है. मेरी पत्नी भी इसके खिलाफ है. यह दूर से तो बहुत अच्छी लगती है लेकिन यहां संघर्ष बहुत ज्यादा है, जीवन बहुत अनिश्चित है.