रणक्षेत्र में खास कर नम सीमा में मुकाबले के लिए भारतीय वायुसेना अब और ताकतवर हो रही है। अभी हाल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस रक्षा समझौते पर दस्तख्त किए हैं उससे भारत के पड़ोसी देश खासे परेशान हैं।
रूस के साथ 400 मिसाइल पर सहमति बनी है। इस रु पए 40 हजार करोड़ मात्र (5.43 बिलियन डालर) कीमत की इस विशाल रक्षात्मक कवच की विशेषता है कि दुश्मन के घातक वमवर्षकों, विमानों, खुफिया प्लेन, मिसाइल और ड्रोन आदि को 380 किलोमीटर की दूरी में नष्ट कर सकता है। अमेरिकी पाबंदियों के खतरे को दरकिनार करके भारत सरकार ने वायुसेना को देश की सीमाओं की रक्षा के लिए यह सौदा किया है।
दरअसल चीन ने छह एस 400 मिसाइल बैटरीज सिस्टम जनवरी 2014 में रूस से खरीदे थे। भारत ने जो एस 400 ट्रिफ लिए हैं वे एडवांस बताए जाते हैं। इनमें पांच सरफेस टू एअर मिसाइल स्क्वैड्रन के अलावा और भी बहुत कुछ है। भारत को एक एस 400 पाने में दो साल लग जाएंगे।
एस 400 की क्षमता यह है कि यह 380 किलोमीटर के दायरे में मौजूद दुश्मन के विमान भेदिए, विमानों, बमवर्षकों, मिसाइलों और ड्रोन को नष्ट करने सक्षम है। इसके राडार इतने जबर्दस्त हैं कि छह सौ किलोमीटर के दायरे में एक साथ कई लक्ष्यों का पता कर उन्हें सूचित कर नष्ट करने में समर्थ हैं। इसमें चार तरह की मिसाइलें हैं जो अलग-अलग रेंज से हैं। यह ,,,, मिसाइल को भी इंटरनेट मिसाइल सिस्टम की खासीयत भी है कि यह अमेरिकी एफ-35 जेट की तरह राडार लॉक एंड शूट डाउन प्रणाली को यह ,, स्टीत्थ लडमू निशान काफी हद तक प्रयोग कर लेते है।
भारतीय वायुसेना की योजना है कि वह अपने सेंसर्स और हथियारों के बेडे में इसे शामिल कर अपनी ताकत में कई गुना इजाफा करेगा। इसके जो रक्षा कवच है जिससे अंदर कवच मुद्रिका की शक्ल में है। इसका बाहरी हिस्सा दो टियर में वैज्ञास्टिक मिसाइल रक्षा कवच है जो डेढ हजार किलोमीटर रेंज की मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है। दुनिया के दूसरे देश भी एस 400 चाहते हैं। सऊदी अरब और कतर बातचीत कर रहे हैं जबकि तुर्की को 2019 में एस 400 का एक नमूना 2.5 बिलियन डालर की लागत का मिल जाएगा।