अब आखिरी दौर बचा है देश में आम चुनाव का। बदलाव का शोर है। देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग पार्टियों के नेता इस तैयारी में हैं कि चुनावी नतीजे के आने के बाद ही वे आम राय से नेता चुन लें। देश के अगले पांच साल जनता के लिए फिर प्रयोग के ही होंगे। गठबंधन में शामिल दलों का एक नया दिलचस्प खेल। इस बार के चुनावों में ईवीएम के जरिए मतदान पर बार-बार संदेह उठे। चुनाव आचारसंहिता का खूब पक्ष-विपक्ष ने हनन।
भाजपा ने 2014 में बहुमत पाने के बाद अपने सहयोगी दलों के साथ गठबंधन राज चलाया। अपने दम पर उसकी 282 सीटें थीं। सहयोगी दलों की मजबूरी थी उससे जुड़कर खुद को समसामर्थक बनाए रखना। लेकिन अब 2019 का आम चुनाव भाजपा के लिए बहुत सहज नहीं जान पड़ता।
जनता में बीते पांच साल की स्मृतियां काफी बेचैनी भरी रही हैं। उस बेचैनी के चलते तमाम लोकतंत्रिक संस्थानों में भय, अविश्वास और अनिश्चय बढ़ता गया। भूखे किसान, बेरोज़गार युवा, बंद उद्योग-धंधे, भ्रष्टाचार, असहिष्णुता इतनी ज्य़ादा बढ़ी कि जनता ने इस चुनाव में न केवल अपना नया विकल्प सोचा बल्कि यह बताने की तैयारी भी कर ली कि देश में आम आदमी की जिंदगी का कितना महत्व है क्योंकि वह खेतों में मेहनत करता है। बेरोज़गार युवा कितनी मेहनत से अपनी डिग्री पाता है, उसे रोज़गार चाहिए। समाज और शासन में फैला भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए सिर्फ प्रस्ताव पर्याप्त नहीं। समाज में हर आदमी का सम्मान है। उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास की मूलभूत ज़रूरतें मसलन बिजली, पानी, सड़क, सीवेज आदि की व्यवस्था उस सरकार की जिम्मेदारी है जिसे उसने चुना है।
फिलहाल जो तस्वीर बनती दिख रही है उसमें आम आदमी समाज में शांति और सद्भाव के पक्ष में है। वह शांति से एक बेहतर जि़ंदगी जीना चाहता है। हालांकि पद, अहंकार और ताकत का मद केंद्र में सत्ता संभाल रही भाजपा संघ परिवार और सहयोगी दलों पर हावी है। भाजपा अध्यक्ष कहते हैं कि उनकी पार्टी को तीन सौ सीटें मिलेंगी क्योंकि देश की जनता न सुशासन देखा है।
इस बार चुनावों में भाजपा ने बतौर मुख्य मुद्द देश हित, संप्रदाय, जातिवाद और पांच साल के कुछ कामों का खूब जि़क्र किया। इस बार पूरा चुनाव भाजपा के नाम पर कम, पार्टी नेता नरेंद्र मोदी के नाम रहा। पार्टी से भी बड़े नेता के रूप में मोदी उभरे। चुनावी रैलियों में उन्होंने अपने भाषणों में नए प्रतिमान स्थापित किए। उनके भाषणों में जम्मू धमाका, बालाकोट और नेहरू गांधी खानदान चुनाव में बोफोर्स घोटाला और उसकी मौजूदगी पर अपनी टिप्पणियां कीं। अपने पांच साल के दौर में लगभग हर रोज़ वे कहते भी थे, हम ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत बनाएंगे।
अब आम चुनाव 2019 का नतीजा 23 मई को आना शुरू होगा उसमें यह जाहिर होगा कि भारत वाकई कितना कांग्रेस मुक्त या कांग्रेसमय हुआ है। इस चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल के साथ ही उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने जो खासा प्रचार किया। खुद को हमलों से जोड़ा। भाजपा को पिछले आम चुनाव में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में 71 सीटें हासिल हुई थीं। तब भाजपा ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर और देश के भ्रष्टाचार मुक्त करने, बेरोज़गारी खत्म करने और कांग्रेसमुक्त भारत बनाने के वादे किए थे। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वक्तृता से पूरे देश की जनता को मोहित कर लिया था।
लेकिन अब कुहासा छंट रहा है। देश की जनता ने अपने तरीके से नए भारत का सपना देखा है। उसे वह किस तरह बनाने को है। यह जाहिर होगा 23 मई को।
फिलहाल देश में चार बड़े गठबंधन सक्रिय हैं। भाजपा व सहयोगी दलों का गठबंधन, कांग्रेस समाॢभत युनाइटेड इंडिया, माकपा व वामदलों का गठबंधन और भाजपा का फेहरल फ्रंट से सभी हवा का रु ख देख रहे हैं।
आम चुनाव 2019 के पांचवें चरण के खत्म होते ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव ने कांग्रेस-भाजपा से अलग ‘फेडरल फ्रंट’ बनाने की बात पर फिर ज़ोर देने के लिए अपनी गतिविधि तेज की। एक साल पहले उन्होंने यह पेशकश रखी थी जिसमें तब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ओडीसा के मुख्य नवीन पटनायक ने खासी दिलचस्पी ली थी। लेकिन तभी यह शोर हुआ कि शायद भाजपा के लिए राव एक मोर्चा बना रहे हैं। इसके बाद राव कुछ ठिठक से गए। ममता अलग हो गई।
पिछले साल ममता बनर्जी ने कोलकाता परेड ग्राउंड में एक बड़ी रैली आयोजित की। इसमें आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी पूर्व प्रधानमंत्री एचके देवगौड़ा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तमिलनाडु से द्रमुक नेता स्टालिन, कांग्रेस नेता पल्लिकार्जुन खडग़े, गुजरात से पहुंचे जिग्नेश मेवाणी आदि शामिल दिखे। यह विशाल रैली ‘युनाइटेड इंडिया’ नाम से हुई।
इसके समा तांतर उसी दिन कोलकाता परेड ग्राउंड में ही माकपा के नेतृत्व में सभी वामपंथी दलों की विशाल रैली हुई यह भी काफी बड़ी रैली थी। इसमें विभिन्न वामपंथी रूझानों के लोग शामिल हुए। इस वामपंथी समागम से भी जनता में उम्मीदें जगीं। कुछ समय बाद ‘युनाइटेड इंडिया’ की एक और बैठक बंगलूरू और फिर दिल्ली में हुई। इसमें वामपंथी नेता सीताराम येचुरी और भारतीय पार्टी के नेता डी.राजा ने भी भाग लिया और आंदोलन में भागीदारी की।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव की दिलचस्पी वामपंथियों को भी साथ लेने की लगती है। उन्होंने इसी कारण केरल में मुख्यमंत्री ने पिनारााई विजयन से भी मुलाकात की। चेन्नई में द्रमुक नेता स्टालिन से 15 मई को परस्पर सहयोग के लिए बात की। यह बातचीत करीब एक घंटे भर चली। लेकिन इस बैठक के जो संकेत सामने आए हैं उनके अनुसार स्टालिन ने इस फ्रंट को अपनी पार्टी का सहयोग देने से इंकार कर दिया है। इसके पहले राव की बैठक आंध्र प्रदेश की वाईएसआर के नेता जीवन से बातचीत हो चुकी है। ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी उनकी सद्रभावनापूर्ण बातचीत हो चुकी है।
जानकारों का अनुमान है कि राव चाहते हैं कि राज्य तेलंगाना में उनकी बेटी कमान संभाले और वे देश के प्रधानमंत्री बनें। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों से उनका तालमेल हमेशा बढिय़ा रहा है। ज्योतिष और शास्त्रों में उनकी आस्था इतनी ज्य़ादा है कि अभी तेलंगाना विधानसभा चुनावों में जीत हासिल हो जाने के बाद भी शुभ मुहूर्त के इंतजार में राज्य मंत्रिमंडल का शपथग्रहण और विभाग वितरण समारोह महीनों वे टालते रहे ।
देश में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन को ही महत्व देने वाले भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे गठबंधनों को चुनावी रैलियों में महामिलावटी कहते हैं। लेकिन अब समय ही बताएगा कि केंद्र की सत्ता पर कौन सा गठबंधन हावी होता है। हाल फिलहाल सत्ता के गलियारों में सभी दलों और विभिन्न गठबंधनों के पैरोकर खूब ताज़गी के साथ अपना जनसंपर्क बढ़ा रहे हैं।
पिछले आम चुनाव में 282 सीटें लानी वाली भाजपा के प्रवक्ता इस बार तीन सौ सीटों को लाने का दावा भले कर रहे हों लेंकिन राह आसान नहीं हैं। दैनिक ”नया इंडिया’ के संपादक हरिशंकर व्यास के अनुसार इस बार यह 165 से 180 के बीच अटकेगी। इसके सहयोगी दल निश्चय ही फिर इससे दूर हो जाएंगे। वे तभी साथी रहेंगे यदि भाजपा अकेले अपने बल पर 225 सीटें ले पाए। हालंाकि 300 सीटें लाने का मोदी-शाह का यह प्रचार भरोसा नहीं देता क्योंकि जब 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा की सुपर भाजपा सुनामी में भी सपा-बसपा-रालोद के वोट (दलित, मुस्लिम, यादव) यूपी में भाजपा से आगे थे। आज यही गठबंधन भाजपा को परेशान किए हुए है। हां, यदि ईवीएम मशीनों की धांधली हुई तो भाजपा 72 ही नहीं 74 सीटों पर जीत हासिल कर लेगी। आज तो गठबंधन है इसलिए भाजपा को 15 सीट भीमुश्किल लगती है। फिर भी भाजपा को उत्तरप्रदेश में 20 से 25 सीटें हासिल हो सकती हैं।
ध्यान रहे कि 2014 में नरेंद्र मोदी की आंधी उत्तर भारत की बदौलत ही थी। इसमें तीन राज्यों की 134 सीट में से उत्तरप्रदेश(71), बिहार (22), और झारखंड (12) में भाजपा को 105 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार विपक्षी गठबंधन ने भाजपा को सांसत में रखा है।
भाजपा की सीटों का दूसरा ब्लाक 91 सीटों का है। जो राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में है। भाजपा को तब 88 सीटें मिली थीं। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने या तो बराबरी की टक्कर दी या तीन राज्यों में भाजपा को हरा कर अपनी सरकार बनाई। इस ब्लाक में भाजपा को कम से कम 27 सीटों पर नुकसान है। तीसरा ब्लाक महाराष्ट्र, कर्नाटक का है। यहां की 76 सीटों में से भाजपा को 2014 में 44 सीटें मिली थी। यहां इसे कम से कम 15 सीटों को नुकसान होगा।
अब देखिए पर्वोत्तर यानी छोटे प्रदेशो और शासित 17 प्रदेशों की 49 सीटें। भाजपा अध्यक्ष कहते थे यदि उत्तरपद्रेश में सीटैं कम हुई तो इस ब्लाक से पश्चिम बगाल और ओडिसा से वे भरपाई कर लेंगे। इस ब्लॉक मे पश्चिम बंगाल, ओडिसा और दक्षिण भारत के राज्य भी जोड़े ंतो ब्लॉक की कुल सीटें 242 बनती हैं। इसी ब्लाक से भाजपा तीस सीटों की ‘जंप’ का ख्याल बनाए हुए है। अपना आकलन है कि इस ब्लाक की अपनी मौजूदा 49 सीटों में से जो सीटें (असम, गोवा, चंडीगढ़, लक्षद्वीप, हरियाणा, दिल्ली आदि में एक-एक, दो-दो का जो नुकसान ओगा) गंवाएगी उसकी भरपाई बंगाल, ओडिसा से हो जाए तो भी गनीमत है।
चुनावी गणित को मेरे विश्लेषण में भाजपा का कुल आंकड़ा 165 सीट या मोटे तौर पर 160-180 सीटों के बीच कहीं अटकेगा।
दरअसल यह भी सोचा जाना चाहिए कि उत्सुकता के चलते 2014 में भाजपा के नरेंद्र मोदी को 2014 में वोट मिले थे। लेकिन आज वह स्थिति नहीं है। उस समय दलितों, जाटव, यादव, मुसलमान तक ने मोदी को अपना पोट दिया । लेकिन आज पांच साल बाद ऐसा संभव नहीं दिख रहा है। यूपी में लड़ाई का फैसला इस बात पर है कि 2014, फिर 2017 के विधानसभा चुनाव, फिर 2018 के गोरखपुर, फूलपुर, कैराना, उपचुनाव में जितना वोट सपा, बसपा, रालोद का था वह क्या विपक्षी गठबंधन को मिल रहा है। यानी यदि उलटी गंगा बही तो भाजपा साफ है।
बंगाल की बात करें तो वहां से अमित शाह कहते हैं भाजपा को 23 या ज़्यादा सीट मिल सकती हैं। इसी तरह वे ओडिसा मे 15 से 12 सीट जीतने की बात कह रहे हैं। ममता बनर्जी कभी अमित शाह का हेलिकॉप्टर रोककर या मोदी का हेलिकॉप्टर रोककर, उनके भाषणों पर अपनी प्रतिक्रिया देकर बांग्ला जनता में जो उभार पैदा कर रही है उसका लाभ लेकर भाजपा 23 से ज़्यादा सीट जीतने का सपना देख रही है।
लेकिन ममता ने जिस साहस, ताकत और दूरदृष्टि से बंगाल में सारी लोकसभा सीटों पर अपनी धमक बढ़ाई है। उसमें नरेंद्र मोदी-अमित शाह पांचवे चरण में ही थक चुके थे। फिर चुनावी बूथों पर नाटक भाजपा नेताओं ने अति उत्साह में किए। मसलन आसनसोन में इसके उम्मीदवार की पोलिंग बूथ में दादागिरी, बंगाल भाजपा अध्यक्ष का जबरन पोलिंग बूथ में जाना। इन सबके बावजूद वहां भारी मतदान यह संकेत नहीं दे रहा है कि ये वोट भाजपा को ही आ रहे हैं या तृणमूल को। बंगाल में केंद्र से आए सुरक्षा दस्तों और राज्य के सुरक्षा बलों के जवानों ने हिंसा पर काबू पाने की बजाए उसे और हवा सी दी। इतनी लंबी चुनावी प्रक्रिया रखने के पीछे मुख्य चुनाव आयुक्त का तर्क था हर जगह आसानी से केंद्रीय बलों को पहुंचा सकें। लेकिन यहां तो हालात और भी बिगड़े दिखे।
बारह महीने में तेहर पूजा ही तो बंगाल की परंपरा है। बंगाल में कई सौ साल से हर हिंदू उत्सव चाहे वह दुर्गा पूजा हो, काली पूजा हो, सरस्वती पूजा हो सब बड़े स्नेह से मनाने का अद्भूत रिवाज है। इसमें समाज के सभी वर्ग शिरकत करते हैं। भाजपा के केंद्रीय नेता यहां रैलियों में जिस तरह इन पूजाओं के न होने की बात कहते थे उससे उनकी अज्ञानता पर स्थानीय हिंदु समुदाय सिर्फ खुश होता था।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के नेता और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राममाधव को यकीन है कि भाजपा अपने दम पर 272 सीटें हासिल कर लेगी। इसके बाद सहयोगी दलों के कारण भाजपा की सरकार वैसे ही चलेगी जैसी 2014 से चली।
एक साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे तो प्रचारक रहे हैं। अचानक सन दो हजार में उन्हें गुजरात भेजा गया। वहां उन्होंने केशु भाई के साथगठबंधन सरकार चलाई। दिल्ली में भी वे गठबंधन सरकार ही चलाते रहे हैं। अपने को गठबंधन सरकार चलाने का महारथी बताने वाले प्रधानमंत्री को अब ऐसा कहना ही क्यों पड़ रहा है। जबकि 2014 में उनके ही नेतृत्व में भाजपा को उत्तर भारत में बहुमत से ज़्यादा मत मिले। ऐसा पहले कभी हुआ ही नहीं था।
एक सोच यह भी है कि क्यों न भाजपा की नई गठबंधन सरकार की जिम्मेदारी ऐसे व्यक्ति को सौंपी जाए जो सबको साथ लेकर चले सके। ऐसे नेताओं में नितिन गडकरी और राजनाथ सिहं हैं। दोनों ही संघ के अपने भरोसे के हैं और राजकाज में निपुण भी हो सकता है कि नरेंद्र मोदी को इस बदलाव का अंदेशा हो इसलिए उन्होंने साक्षात्कार में उन्हें यह कहना पड़ा कि वे भी गठबंधन सरकारे चलाने की कला में पटु रहे हैं।
ल्ेकिन यह बात साफ है कि भाजपा और आरएसएस में नए गठबंधन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। ओडिसा में अभी आए फैनी तूफान में 34 लोग मारे गए और कम से कम दो हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री ने तूफान से निपटने मेें मुख्यमंत्री की खासी तारीफ की। इसे संबंध बेहतर बनाने की पहल तो मानना ही चाहिए।
बहरहाल देश पिछले पांच साल में नोटबंदी, जीएसटी, के चलते भंयकर बेरोजग़ारी, छोटे कल-कारखानों, हस्तशिल्प वगैरह के बंद होने से खासी परेशानी में पहुंच गया था। देखना है कि बेहतरी के लिए देश की जनता क्या फैसला बताती है।