चैनलों पर ‘अगस्त क्रांति’

ऐसा लग रहा था जैसे देश दिल्ली के रामलीला मैदान में सिमट गया हो. यह न्यूज चैनलों पर अन्ना हजारे की ‘अगस्त क्रांति’ की नॉन स्टॉप 24×7 लाइव कवरेज थी. बिना किसी अपवाद के सभी चैनलों पर सिर्फ अन्ना और अन्ना छाए हुए थे. चैनलों का स्टूडियो रामलीला मैदान पहुंच गया था, एंकर और रिपोर्टर धूप-उमस-बारिश और शोर के बीच पल-पल की खबर देते नजर आए और हर शाम प्राइम टाइम चर्चाओं में भावनाएं, भावनाओं से टकराती दिखीं. पूरे समाचार मीडिया खासकर न्यूज चैनलों पर जन लोकपाल की मांग को लेकर अन्ना हजारे के अनिश्चितकालीन अनशन को जिस तरह का सकारात्मक, सहानुभूतिपूर्ण और व्यापक कवरेज मिला, उससे न सिर्फ इस आंदोलन के पक्ष में देशव्यापी माहौल बना बल्कि उसने कांग्रेस और मनमोहन सिंह सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. सरकार, राजनीतिक दलों, सिविल सोसायटी के कुछ समूहों से लेकर वाम-धर्मनिरपेक्ष-दलित और अल्पसंख्यक बुद्धिजीवियों और कई मीडिया आलोचकों ने इस कवरेज की आलोचना की है.

चैनलों पर अन्ना आंदोलन की ‘एकतरफा, अत्यधिक, असंतुलित, पक्षपातपूर्ण’ कवरेज और इसमें चैनलों और उनके पत्रकारों के ‘सीधे भागीदार, भोंपू और चीयरलीडर’ बन जाने के आरोप लगे हैं. यह भी कि यह आंदोलन टीआरपी के लिए रचा गया ‘रियलिटी शो’ या कुछ के मुताबिक ‘कारपोरेट मीडिया द्वारा प्रायोजित और निर्देशित षड्यंत्र’ था. यहां तक कहा गया कि अगर अन्ना हजारे को चैनलों पर 24×7 और एकतरफा कवरेज नहीं मिली होती तो यह आंदोलन न खड़ा होता और न ही इतनी दूर चल पाता. इन आलोचनाओं में आंशिक सच्चाई है. यह सच है कि इस आंदोलन को चैनलों पर अत्यधिक और असंतुलित कवरेज मिली है. लेकिन यह शिकायत करने वाले भूल जाते हैं कि यह चैनलों का स्वभाव बन चुका है. बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है. पिछले दिनों राहुल गांधी की भट्टा-पारसौल पदयात्रा को तीन-चार दिनों तक ऐसी ही एकतरफा कवरेज मिली थी. हालांकि उनकी अलीगढ़ किसान रैली में रामलीला मैदान की तुलना में एक चौथाई लोग भी नहीं आए थे. ऐसे और उदाहरणों की कमी नहीं है. अधिकांश मौकों पर चैनलों की इस प्रवृत्ति का इस्तेमाल सरकार, नेताओं, बड़ी पार्टियों और कॉरपोरेट ने किया है. पहली बार एक जनांदोलन और उसके नेताओं ने मीडिया का सफलता के साथ ऐसा इस्तेमाल किया. यह कहना अतिरेकपूर्ण है कि अगर चैनलों का खुला समर्थन न होता तो यह आंदोलन खड़ा नहीं हो पाता या इतने बड़े पैमाने पर फैल नहीं पाता. ऐसा मानने वाले लोग मीडिया खासकर चैनलों के प्रभाव और शक्ति को कुछ ज्यादा ही आंक रहे हैं.

लोगों की बेचैनी और गुस्से को आवाज देना चैनलों की मजबूरी थी, वे इसे चाहकर भी अनदेखा नहीं कर सकते थेयह सही है कि कई चैनलों खासकर टाइम्स नाउ के अर्नब गोस्वामी को यह मुगालता है कि वे ही देश चला रहे हैं लेकिन इससे बड़ा भ्रम कुछ और नहीं हो सकता है. यह भ्रम खुद इस देश की जनता ने कई बार तोड़ा है. याद कीजिए, ‘इंडिया शाइनिंग’ का मीडिया कैंपेन जो मुंह के बल गिरा था. माफ कीजिए, मीडिया और न्यूज चैनल आंदोलन खड़ा नहीं कर सकते. किसी आंदोलन के पीछे कई राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक कारक और परिस्थितियां होती हैं. अलबत्ता वे किसी आंदोलन को समर्थन और कवरेज देकर एक प्रतिध्वनि प्रभाव (इको इफेक्ट) जरूर पैदा कर सकते हैं. यह हुआ भी. चैनलों ने रामलीला मैदान की आवाजों को देश के करोड़ों घरों में गुंजाने में मदद की. लेकिन उसके लिए भी अनुकूल परिस्थितियां होनी चाहिए. अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए अनुकूल राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां मौजूद थीं. भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लोगों में एक बेचैनी, गुस्सा और हताशा थी जो अन्ना हजारे के जरिए फूट पड़ी. सच पूछिए तो लोगों की इस बेचैनी और गुस्से को आवाज देना चैनलों की मजबूरी थी. वे इसे चाहकर भी अनदेखा नहीं कर सकते थे. यह एक अच्छा बिजनेस सेंस और रणनीति भी थी. असल में, इस आंदोलन में चैनलों के मध्यवर्गीय दर्शक भी बड़े पैमाने पर शामिल थे या उनकी खुली सहानुभूति थी. दूसरे, चैनलों के गेट-कीपरों में भी मध्यवर्ग का बहुमत है. नतीजा, वे पहले भी पब्लिक मूड के साथ बहते रहे हैं और एक बार फिर बहते नजर आए. तीसरी बात यह है कि यह 2011 का आंदोलन था जब इस सच्चाई को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि देश में 150  से ज्यादा छोटे-बड़े न्यूज चैनल और लाखों सदस्यों वाले सोशल नेटवर्किंग साइटें हैं.

याद रखिए अमिताभ बच्चन को सर्दी लगने की ‘खबर’ ब्रेकिंग न्यूज बन सकती है तो राजधानी और देश के और शहरों में हजारों लोगों के सड़कों पर उतर आने की खबर कैसे छिप सकती थी? इसके साथ यह भी सच है कि मीडिया के इस्तेमाल के खेल में अन्ना की टीम ने सरकार को लगातार दूसरी बार मात दे दी है. लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ है. यह सिर्फ ब्रेक है. ब्रेक के बाद एक बार फिर खेल जल्दी ही शुरू होगा. देखते रहिए.

(आत्म-स्वीकृति : मैं खुद भी आंदोलन के समर्थन में हूं.)