शारदीय नवरात्रि की चतुर्थी में संगीत की तपोपूत एकाकी साधिका और मैहर घराने के संस्थापक बाबा अलाउद्दीन खान साहिब की इकलौती पुत्री अन्नपूर्णा देवी का मुंबई में एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 93 वर्ष की थीं।
कम ही लोग जानते हैं कि वे मशहूर सितारवाद की (स्वं)पंडित रविशंकर की पत्नी (पहली) और जाने माने स्वं उस्ताद अली अकबर खां साहिब की बहन थीं। इन दोनों संगीतकारों का अवदान आज सारी दुनिया जानती है। लेकिन इनसे भी अधिक प्रतिभा की धनी अन्नपूर्णा ने कभी संगीत के भौतिक जगत से प्रतिदान की इच्छा नहीं पाली। और न ही अपने शिष्यत्व का मोल ही लगाया। यह धुनी संगीतकार स्वेच्छा से महफिल, रिकार्डिंग या रेडियो गायन से हमेशा दूर एक तपस्विनी का जीवन बिताती रहीं। उनकी इक्का-दुक्का रिकार्डिंग ही उपलब्ध हैं वह भी यू ट्यूब पर। उनका बजाया कांसी कान्हड़ा और माझ खम्साज खराब रिकार्डिंग के बावजूद उनकी गहन संगीतिक क्षमता की झलकी पर दे पाता है।
बाबा नाम से जाने जाने वाले अलाउद्दीन खां साहिब का परिवार त्रिपुरा का रहने वाला था। आठ बरस की आयु में घर छोड़ कर सही गुरू की खोज करते वे रामपुर जा पहुंचे। वहां उन्हें उस्ताद वजीर खां से तालीम मिली। फिर वे कोलकाता लौटे जहां संगीतप्रेमी ज़मींदारों के आश्रम में कुछ दिन रहे। वे मैहर महाराज के दरबार में जब आए और उनके राजकीय गायक और महाराज के गुरू बने तब शारदा माता के मंदिर से ऐसी लौ लगी कि बस वहीं के हो गए। उनकी प्रसिद्ध शिष्यों में उनकी दो संतानें अली अकबर और अन्नपूर्णा देवी पं. रविशंकर, पन्ना लाल घोष, निखिल बनर्जी, शरण रामी माथुर जैसे होनहार कलाकार थे।
अन्नपूर्णा मैहर में 1927 की पूर्णिमा में जन्मी। बाबा तब प्रख्यात नर्तक उदयशंकर की पार्टी के साथ विदेश में थे। महाराज ने ही गुरू पुत्री का नाम अन्नपूर्णा रखा। मैहर की कुलदेवी मां अन्नपूर्णा और शारदा मां के लिए सुबह-सुबह रियाज करने वाला बाबा के लिए मजहब की दीवारें बेमानी थी। साधनीय के साधाना और कठोर अनुशासन की बाबा शिष्यों से अपेक्षा करते थे। एक बार गलत तान लेने पर उन्होंने हाथ पर हथौड़ा मार कर उसे तोड़ दिया था। गुरू की ताडऩा ही शिष्य को निखारती है। बाबा शुरू में पुत्र को सिखाते थे। बाहर इक्कड़-दुक्कड़ खेल रही अन्नपूर्णा ने चिला कर कर भैया, यह सुर गलत लगा है। बाबा इस तरह बजाते हैं फिर पिता का पाठ उन्होंने हूबहू दोहराया। भीतर कमरे में बाबा थे। उन्होंने तब उनकी मेधा के दर्शन पाए। फिर संगीत की उनकी भी तालीम शुरू हुई। सितार और सुर बहार दोनों ही वाद्ययंत्रों में उनका हाथ सधने लगा। भाई तो सरोद में डूबे थे। पारंपरिक पद्धति की शिक्षा की ऐसी ही व्यवस्था थी। स्त्री और पुरूष की तालीम में कोई अंतर रहीं होता था। बाबा ने एक बार तो कहा भी था कि अन्नपूर्णा किसी भी मायने में दो अन्य होनहार शिष्यों रविशंकर और अलीअकबर से कमतर नहीं है। मैंने ध्रपदअंग की शिक्षा उसे खास तौर पर दी है। अपनी लंबी और कठोर तालीम के साथ बाबा ने यह सीख भी दी कि संगीत का आनंद भगवान को अर्पण करना होता है। तुममें धैर्य है इसलिए वह संगीत दूंगा जिससे आतंरिक शांति मिले।
गुणों के आधार पर अपनी प्रतिभाशाली बेटी का विवाह उन्होंने अपने शिष्य रविशंकर से कर दिया। रविशंकर के बड़े भाई उदयशंकर काफी ख्यातनाम थे। लेकिन रविशंकर संगीत जगत के लिए तब लगभग अपरिचित थे। इस विवाह से एक पुत्र का जन्म हुआ। फिर ख्याति बढ़ी पर दूरियां भी। आखिर वह शादी टूट गई। तलबी बढ़ती गई। अन्नपूर्णा बेटे को पालती और तालीम देती। लेकिन रविशंकर ने बेटे को अपने पास विदेश बुला लिया। संगीत कार्यक्रमों में उसे पास बिठा कर उसकी सराहना से खुश भी होते।
अन्नपूर्णा अब संन्यासी की तरह जीवन जीने लगी थीं। लेकिन वे अनवात साधना करती रही और शिष्यों को तालीम देती रहीं। उन्होंने अंतर्मुखी हो कर खुद को अलग-थलग सा कर लिया। वे शुरू से ही पिता की तरह वैराग्य तबियत की रहीं। उनकी सांगीतिक विरासत को बढ़ाने वालों में बांसुरीवादक हरिप्रसाद चौरसिया, सितारवादक निखिल बनर्जी, बहादुर खां, आशीष खां, गायक विनय राम, सरोदिया वसंत काबरा, प्रदीम बारोट, और गौतम चटर्जी आदि हैं।
जिनको अन्नपूर्णा देवी को सुनने का सौभाग्य मिला है। उनका कहना है कि सृष्टि की लय जैसी आनंदमय है वैसा ही लयदार और आनंदमय उनका बादन भी था। अपने गुरू व पिता की प्रतिमा का बडुा अंश उनमें था। बाहर गाने में उन्होंने रु चि नहीं ली। वे अपने संगीत में ही डूबी रहीं। प्रतिभाशाली महिला कलाकारों की तरह चुपचाप दुनिया छोड़ दी।
मृणाल पांडे
साभार: जानकी पुल डॉट काम