देश और परिवार को आगे बढ़ाने के लिए पूरी ज़िन्दगी खपा देने वाले बुज़ुर्गों की सुध लेने में आख़िर क्यों पीछे हैं बच्चे? बुज़ुर्गों के हालात और उनकी देखभाल को लेकर तैयार किये गये सूचकांक पर आधारित श्वेता मिश्रा की रिपोर्ट :-
देश में पहली बार ‘बुज़ुर्गों के जीवन का गुणवत्ता सूचकांक’ जारी किया गया, जिसमें उनके सामने की चुनौतियों का आकलन किया गया है। इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस ने यह रिपोर्ट हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजी एंड कॉम्पिटिटिवनेस के वैश्विक नेटवर्क के साथ मिलकर तैयार की है। इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजी एंड कॉम्पिटिटिवनेस के प्रोफेसर माइकल पोर्टर पिछले 25 वर्षों से इस पर कार्य कर रहे हैं। प्रधानमंत्री (ईएसी-पीएम) की आर्थिक सलाहकार परिषद् के समक्ष पेश इस रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान का बुर्ज़ुर्ग वर्ग में 54.61 के स्कोर (गणना) के साथ रैंकिंग में सबसे आगे है। हिमाचल (61.04) स्कोर के साथ अपेक्षाकृत बुर्ज़ुर्गवार श्रेणी में शीर्ष स्थान पर है। सूचकांक में उत्तराखण्ड दूसरे, हरियाणा तीसरे और पंजाब आठवें स्थान पर हैं।
केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ 61.81 के स्कोर के साथ शिखर पर है। यह केवल 33.03 के राष्ट्रीय औसत के मुक़ाबले 61.54 के उच्चतम स्कोर के साथ बुर्ज़ुर्ग स्तम्भ के लिए आय-सुरक्षा पर भारत का नेतृत्व करता है। हिमाचल 55.70 और हरियाणा 49.56 के स्कोर के साथ आय सुरक्षा के मामले में बेहतर राज्य हैं। बाक़ी राज्य राष्ट्रीय औसत से नीचे हैं। सामाजिक भलाई के मामले में हिमाचल, मेघालय, दादरा और नगर हवेली एवं मिजोरम प्रदर्शन करने वाले शीर्ष चार राज्य हैं।
रैंकिंग को चार श्रेणियों- बुर्ज़ुर्ग राज्य (50 लाख से अधिक बुर्ज़ुर्ग आबादी), अपेक्षाकृत बुर्ज़ुर्ग राज्य (50 लाख से कम बुर्ज़ुर्ग आबादी), केंद्र शासित प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्य में विभाजित किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य प्रणाली स्तम्भ का उच्चतम स्कोर 66.97 है, इसके बाद सामाजिक कल्याण श्रेणी में 62.34 है। बुज़ुर्गों के लिए अत्यधिक महत्त्व के रूप में गुणवत्ता पर सूचकांक 2021 में चार प्रमुख डोमेन में 45 विभिन्न संकेतक दर्शाये गये हैं; ये हैं- वित्तीय कल्याण, सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य प्रणाली और आय सुरक्षा। स्कोरकार्ड और रैंकिंग प्रणाली प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की प्रगति के लिए एक संख्यात्मक मूल्य प्रदान करती है, जो उन्हें और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित कर सकती है।
इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस की ओर से बनाये गये प्रधानमंत्री के लिए आर्थिक सलाहकार परिषद् (ईएसी-पीएम) के अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय ने बुज़ुर्गों के लिए जीवन की गुणवत्ता सूचकांक जारी किया। उन्होंने बताया कि इसमें राज्यों में उम्र बढऩे के साथ बदलावों पर मूल्यांकन किया गया है और देश के कुल बुज़ुर्गों का भी आकलन किया गया है। सूचकांक में आर्थिक अधिकारिता, शैक्षिक प्राप्ति और रोज़गार, सामाजिक स्थिति, शारीरिक सुरक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक भलाई, सामाजिक सुरक्षा और पर्यावरण को भी शामिल किया गया है। इस सूचकांक से भारत में बुर्ज़ुर्ग आबादी की ज़रूरतों और अवसरों को विस्तृत तरीक़े से समझा जा सकता है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ
स्वास्थ्य प्रणाली के तौर पर उच्चतम राष्ट्रीय औसत 66.97, सामाजिक कल्याण में 62.34 है। वित्तीय कल्याण के लिए स्कोर 44.7 है, जिसमें शिक्षा प्राप्ति और रोज़गार के मामले में 21 राज्यों का प्रदर्शन सही नहीं है यानी उनमें सुधार की गुंजाइश है। राज्यों का आय सुरक्षा स्तम्भ में विशेष रूप से ख़राब प्रदर्शन है; क्योंकि आधे से अधिक राज्यों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से नीचे है। यानी आय सुरक्षा में 33.03 स्कोर है, जो सभी स्तम्भों में सबसे कम है। राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की स्थिति बाक़ी राज्यों की अपेक्षा बेहतर है। इससे पहले जून, 2011 में भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। हालाँकि यह महज़ 7.4 फ़ीसदी थी। भारत जैसे विकासशील देश के लिए पेंशन परिव्यय, स्वास्थ्य देखभाल व्यय, वित्तीय अनुशासन, बचत स्तर, स्वास्थ्य आदि सहित विभिन्न सामाजिक आर्थिक मोर्चों के स्तर पर यह आबादी दबाव का कारण बन सकती है। इन मुद्दों पर अधिक ध्यान देने और वृद्ध समाज से निपटने के लिए समग्र नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देना समय की ज़रूरत है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के महानिदेशक एस.के. दास ने बताया कि बुर्ज़ुर्ग कुल आबादी का 7.4 फ़ीसदी हैं, जो समय के साथ बढ़ रहे हैं। अनुमान है कि सन् 2026 तक ये आबादी 12.4 फ़ीसदी तक हो सकती, जो कि सन् 1961 में 5.6 फ़ीसदी थी। सन् 2002-06 के दौरान जन्म के समय जीवन प्रत्याशा पुरुषों की उम्र 62.6 वर्ष की तुलना में महिलाओं की 64.2 वर्ष थी। 60 वर्ष की आयु के बाद जीवन की औसत शेष लम्बाई लगभग 18 वर्ष (पुरुषों के लिए 16.7, महिलाओं के लिए 18.9) पायी गयी और 70 वर्ष की आयु में 12 वर्ष (पुरुषों के लिए 10.9 और महिलाओं के लिए 12.4) से कम रही। 60-64 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए आयु-विशिष्ट मृत्यु दर में 20 (प्रति हज़ार) से 75-79 वर्ष की आयु के लोगों में 80 और 85 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए 200 की तीव्र वृद्धि हुई है। देश में वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात 1961 में 10.9 फ़ीसदी से बढक़र 2001 में 13.1 फ़ीसदी हो गया। 2001 में महिलाओं और पुरुषों के लिए अनुपात का मूल्य 13.8 फ़ीसदी और 12.5 फ़ीसदी था। लगभग 65 प्रतिशत बुज़ुर्गों को अपने दैनिक रखरखाव के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था। 20 फ़ीसदी से कम बुर्ज़ुर्ग महिलाएँ, लेकिन अधिकांश बुर्ज़ुर्ग पुरुष आर्थिक रूप से स्वतंत्र थे। आर्थिक रूप से आश्रित बुर्ज़ुर्ग पुरुषों में से 6-7 फ़ीसदी को उनके जीवनसाथी द्वारा, लगभग 85 फ़ीसदी को उनके अपने बच्चों द्वारा, 2 फ़ीसदी पोते-पोतियों द्वारा और छ: फ़ीसदी को अन्य लोग आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान कर रहे थे। बुर्ज़ुर्ग महिलाओं में से 20 फ़ीसदी से कम अपने जीवनसाथी पर, 70 फ़ीसदी से अधिक अपने बच्चों पर, तीन फ़ीसदी पोते पर और छ: फ़ीसदी या इससे अधिक ग़ैर-रिश्तेदारों पर निर्भर थे। आर्थिक रूप से निर्भर पुरुषों में से 65 फ़ीसदी की तुलना में 90 फ़ीसदी से अधिक महिलाओं के एक या अधिक आश्रित थे। ग्रामीण बुज़ुर्गों में लगभग 50 फ़ीसदी की मासिक प्रति व्यक्ति ख़र्च महज़ 420 से 775 रुपये रहा और शहरी बुज़ुर्गों में लगभग आधे का मासिक ख़र्च 2002 में 665 रुपये लेकर 1500 रुपये तक रहा। 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लगभग 40 फ़ीसदी (60 फ़ीसदी पुरुष और 19 फ़ीसदी महिलाएँ) काम कर रहे थे। ग्रामीण क्षेत्रों में 66 फ़ीसदी बुर्ज़ुर्ग पुरुष और 23 फ़ीसदी से अधिक महिलाएँ भी आर्थिक गतिविधियों में भाग ले रही थीं, जबकि शहरी क्षेत्रों में महज़ 39 फ़ीसदी बुर्ज़ुर्ग पुरुष और लगभग सात फ़ीसदी बुर्ज़ुर्ग महिलाएँ आर्थिक रूप से सक्रिय थीं। ग्रामीण क्षेत्रों में बीमारी से पीडि़त 55 फ़ीसदी और बिना बीमारी वाले 77 फ़ीसदी लोगों ने महसूस किया कि वे स्वास्थ्य की बेहतर स्थिति में हैं। शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात 63 फ़ीसदी और 78 फ़ीसदी रहा।
चल फिर लेने वाले बुर्ज़ुर्ग पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 60-64 वर्ष के आयु वर्ग में लगभग 94 फ़ीसदी से घटकर पुरुषों के लिए क़रीब 72 फ़ीसदी रह गया, जबकि महिलाओं में इसकी स्थिति 63 फ़ीसदी से बढक़र 65 फ़ीसदी हो गयी। बुर्ज़ुर्ग आबादी में हृदय रोगों की व्यापकता ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज़्यादा देखी गयी। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति हज़ार 64 बुर्ज़ुर्ग और शहरी क्षेत्रों में प्रति हज़ार 55 बुर्ज़ुर्ग इसकी गिरफ़्त में था। बुर्ज़ुर्ग व्यक्तियों में सबसे आम विकलांगता लोको मोटर की थी; क्योंकि उनमें से तीन फ़ीसदी इससे पीडि़त हैं। बुर्ज़ुर्ग पुरुष 20 फ़ीसदी से कम और लगभग आधी महिलाएँ अपने बच्चों के साथ रहती हैं। बुज़ुर्गों पर राष्ट्रीय नीति (एनपीओपी) बुज़ुर्गों की भलाई सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। नीति का उद्देश्य वित्तीय व खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आश्रय और बुज़ुर्गों की अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के साथ विकास में समान हिस्सेदारी, दुव्र्यवहार और शोषण से सुरक्षा, जीवन-गुणवत्ता में सुधार के लिए सेवाएँ सुनिश्चित करने हेतु सरकार की ओर से पहल की परिकल्पना है।
बुज़ुर्गों के लिए जीवन की गुणवत्ता की श्रेणी-वार रैंकिंग
50 लाख से अधिक आबादी वाले राज्य स्कोर रैंकिंग
राजस्थान 54.61 1
महाराष्ट्र 53.31 2
बिहार 51.82 3
तमिलनाडु 47.93 4
मध्य प्रदेश 47.11 5
कर्नाटक 46.92 6
उत्तर प्रदेश 46.80 7
आंध्र प्रदेश 44.37 8
पश्चिम बंगाल 41.01 9
तेलंगाना 38.19 10
अपेक्षाकृत बुर्ज़ुर्ग
50 लाख से कम आबादी वाले राज्य स्कोर रैंकिंग
हिमाचल प्रदेश 61.04 1
उत्तराखण्ड 59.47 2
हरियाणा 58.16 3
ओडिशा 53.95 4
झारखण्ड 53.40 5
गोवा 52.56 6
केरल 51.49 7
पंजाब 50.87 8
छत्तीसगढ़ 49.78 9
गुजरात 49.00 10
केंद्र शासित प्रदेश
राज्य स्कोर रैंकिंग
चंडीगढ़ 63.78 1
दादरा और नगर हवेली 58.58 2
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 55.54 3
दिल्ली 54.39 4
लक्षद्वीप 53.79 5
दमन और दीव 53.28 6
पुडुचेरी 53.03 7
जम्मू और कश्मीर 46.16 8
पूर्वोत्तर राज्य
राज्य स्कोर रैंकिंग
मिजोरम 59.79 1
मेघालय 56.00 2
मणिपुर 55.71 3
असम 53.13 4
सिक्किम 50.82 5
नगालैंड 50.77 6
त्रिपुरा 49.18 7
अरुणाचल प्रदेश 39.28 8