भारतीय जनता को चुनाव की दिशा और एजेंडा तय करना है। जनता तय करेगी कि उसकी आकांक्षाओं के साथ गठबंधन है या भाजपा। जनता का प्रेम और आशीर्वाद आज मोदी के साथ है।
पांच राज्यों में भाजपा की हार को खारिज करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तेलंगाना और मिजोरम में भाजपा थी ही नहीं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद सत्ता विरोधी लहर थी। छत्तीसगढ़ में तो नतीजा बहुत साफ था – भाजपा हारी। लेकिन राजस्थान और मध्यपद्रेश में 15 साल की एंटी-इंकेबैंसी ने अपना असर दिखाया। लेकिन हरियाणा में सभी नियमों में हम जीते। त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर में भाजपा की 74 फीसद जीत हुई। जीत या हार कोई पैमाना नहीं होता। एनडीए के सहयोगी घटक दलों में लोकप्रियता घटी को नकारते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भाजपा को नए-नए साथी मिल रहे हैं। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से आत्मविश्वास में कमी की कोई वजह ही नहीं है। पार्टी आत्मविश्वास के साथ बढ़ रही है।
अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत से कम सीटों के मिलने के अंदेशे को उन्होंने महज अटकल बताया। उन्होंने कहा 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भी ऐसी ही खबरें आ रही थीं। तब जो लोग ऐसा कह रहे थे वे इस समय भी कह रहे है। भाजपा के जनाधार को सीमित बताने की मानसिकता तीन दशक पुरानी है। आज तो यह पूरे देश और समाज के तमाम वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है।
जो चुनावी पंडित यह आकलन करके बताते है कि भाजपा को 543 सीटों में 180 से ज्य़ादा सीटें नहीं मिलेंगी ये वही ही हैं जो 2014 में भी ऐसा अनुमान लगाते थे। मुझे लगता है इस बार के चुनाव में जनता को फैसला करना है, उन्हें तय करना है कि जो सपनों को हकीकत में बदल देते हैं, वह उनके साथ है या फिर जो सपनों को कुचल डालते है उनके साथ।
जनता यह जानती है कि पहले भ्रष्टाचार विकेंद्रित था। जो राज्यों में बैठे थे वे वहां लूट रहे थे। जो केंद्र में बैठे थे वहां लूट मचाए हुए थे। अब जनता ही यह तय करेगी कि वह भ्रष्टाचार करने वाली ताकतों को समर्थन देगी या उन्हें जो उसे रोकने के लिए एकजुट हो रहे हैं। भाजपा विरोधी पार्टियों पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, इनमें न तो एका है और न सम्मिलित सोच जिसके तहत वे देश की भलाई कर सकें।
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम के नेता एन चंद्रबाबू नायडू के आरोपों से उन्होंने इंकार किया। उन्होंने इस बात से भी अपनी असहमति जताई कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव उनके आशीर्वाद के साथ कोई ‘फेडरल फ्रंट’ बना रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोप ‘चौकीदार चोर है’ को दुहराते हुए उनकी निंदा की है तो उन्होंने कहा, ऐसा कभी-कभी होता है जब कुछ उम्मीदें पूरी नहीं होतीं और तो कुछ सहयोगी यह सोचने लगते हैं कि वे भाजपा पर इस तरह से दबाव बना कर कामयाब होंगे।
यह पूछने पर कि क्या वे राजनीति में उतरे फिल्म अभिनेता मसलन रजनीकांत और कमल हसन को राजग में लेकर दक्षिण भारत में अपने पांव मजबूती से रखेंगे। तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, हम हर किसी को साथ लेने के लिए तैयार हैं जो हमारे साथ आए। यह हमारे क्षेत्रीय फैलाव के लिए उपयुक्त भी है।
मुझ पर आरोप लगा कर मनोबल तोड़ते हैं सुरक्षा सेनाओं का
‘राफेल सौदों पर मुझ पर जो लोग आरोप लगा रहे हैं वे दरअसल ऐसा करके सुरक्षा सेनाआं के मनोबल को तोड़ रहे हैं। लेकिन रक्षा मंत्रालय में जो भी चीजें ज़रूरी हैं, खरीदनी हैं उन्हें मैं खरीदता रहूंगा।’ यह पूछने पर कि कांगे्रस उन पर आरोप लगाती है कि वे अनिल अंबानी के पक्ष मेें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, मेरे ऊपर यह कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं है। यह आरोप मेरी सरकार पर है। अगर मेरे ऊपर व्यक्तिगत तौर पर कोई आरोप है तो वे पता करते रहें किसने किसको क्या दिया, कब और कहां दिया।
सैनिक तैयारियों के मामले में देश को वे कतई पीछे नहीं रहने देंगे। रक्षा तैयारी के लिए जो भी चीजें ज़रूरी होंगी उनके लिए सरकार जल्द फैसले लेती रहेगी। राफेल सौदे में कहीं कोई गड़बड़ नहीं है। ये संसद में इस संबंध में एक बार विस्तार से बता चुका हूं। यहां तक कि सार्वजनिक मंचों पर भी मैं यह सब बता चुका हूं। फ्रांस के राष्ट्रपति तक बोल चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट भी सब कुछ बहुत साफ कह चुका है। पिछले 70 साल में देश में जितने भी रक्षा सौदे हुए लगभग सभी में दलाली खाने के आरोप क्यों लगते रहे हैं। हम चाहते हैं कि बाहर से हमें कुछ लेना ही न पड़े।
‘कजऱ् माफी है लॉली पॉप सा’
जब सरकारें (राज्य सरकारें) किसानों की कजऱ् माफी की घोषणा करती हैं। वे लॉलीपॉप जैसी हैं देखने-सुनने में आकर्षित लेकिन इस का लाभ किसान को नहीं होता। इसकी वजह यह है कि किसानों का बहुत छोटा सा वर्ग बैंकों से कजऱ् लेता है। ज़्यादातर साहूकारों से कर्ज लेते हैं। ऐसे में सरकार की ओर से घोषित कजऱ् माफी का लाभ उन किसानों को नहीं मिल पाता जो जान गंवा रहे हैं।
ज़रूरत इस बात की है कि ऐसी योजनाओं की बजाए ऐसा सोचा जाए कि किसान आर्थिक तौर पर मजबूत हों। बीज से बाजार तक उन्हें सारी सुविधाएं मिलें। हमारे पास सिंचाई के साधन पर्याप्त हैं। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि किसान कजऱ् ही न लें। हम किसानों की समस्या से जूझने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
‘नोटबंदी (नोटों का विमुद्रीकरण)’
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत में समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है। मुद्रा के विमुद्रीकरण से जो सबसे बड़े लाभ हुए हैं, वे हैं कि जो करंसी बैंकों में होनी चाहिए थी वह कहीं और थी। दूसरे कर देने वालों का दायरा और बढ़ा। जीडीपी का अनुपात गिर रहा था।
यह सब एक झटके में नहीं हुआ। रातों-रात भी नहीं हुआ। साल भर पहले हमने सबको चेतावनी दी थी कि अपने पास जो संपत्ति (कालाधन) है वह जमा कर दो। उन्हें लगा कि दूसरे नेताओं की ही तरह मोदी भी बोल रहा है। जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे और उन्होंने 1991 में आर्थिक सुधार किए। जीडीपी गिरी ज़रूर लेकिन संभल गई।
‘आर्थिक सुधार होने पर गिरावट जीडीपी में’
यह कहना गलत है कि नोटबंदी एक झटका थी। जब भी ट्रेन पटरी बदलती है तो स्पीड कुछ कम हो जाती है। मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री रहने के दौर में जीडीपी दो फीसद से भी नीचे गई। लेकिन संभल भी गई।
हमारे देश में 30-40 फीसद टैक्स की प्रथा थी। जीएसटी लागू होने से कर प्रणाली में सुधार हुआ । 500 से ज़्यादा वस्तुएं सस्ती हुई। उन पर कोई टैक्स नहीं लगा। सरकार अकेले में फैसले नहीं लेती। हर राज्य में जीएसटी कौंसिल है। उसमें केंद्र शासित राज्य भी हैं वे सदस्य होत हैं। कौंसिल फैसला लेती है। राजनीतिक तौर पर हो-हल्ले का कोई मतलब नहीं है। कांग्रेसी सरकारें भी इस कौंसिल की सदस्य है। हम जीएसटी की सिफारिशों को लाभप्रद बनाने की कोशिश में जुटे हैं। इतने बड़े देश में यह सब कम समय में संभव भी नहीं है। मैं मानता हूं कि कुछ मुद्दे हैं। हम लगातार उन पर विचार कर रहे हैं उनमें सुधार के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं। जीएसटी से छूट की सीमा को सरकार 20 लाख से बढ़ा कर 75 लाख करना चाहती थीं लेकिन इस पर आम राय नहीं बनी। इस पर राय-मश्विरे के लिए एक समिति गठित कर दी गई है।