भाजपा के ही बड़े नेता सुब्रमण्यम स्वामी के एक ब्यान ने भाजपा के भीतर उस भाजपा की चिंता और गहरा दी है कि जिसे यह ”आशंका” है कि लोकसभा चुनाव में पार्टी की सीटें २०१४ के मुकाबले बहुत ज्यादा घट सकती हैं। स्वामी ने कहा था कि बालाकोट न होता तो भाजपा १६० सीटों पर सिमट जाती और अब भी भाजपा की अपनी सीटें २३० से ज्यादा नहीं आएंगी। एक दूसरी भाजपा भी भाजपा के भीतर है जो आँख मूंदकर यह मानती है कि कुछ भी हो, मोदी भाजपा को ”बम्पर जीत” दिलाएंगे।
दरअसल भाजपा के भीतर दो भाजपा बन गयी हैं। चुनाव के बीच चल रहे घमासान और उम्मीदों-नाउम्मीदों ने भाजपा के बीच यह दो भाजपा बनाई हैं। एक को लगता है भाजपा का मामला ”अटक” सकता है जबकि दूसरी भाजपा को पक्का भरोसा है कि पार्टी की मोदी के रहते ”बम्पर” जीत होगी।
कांग्रेस और अन्य विपक्षियों से ज्यादा ”कैलकुलेशंस” भाजपा के भीतर हो रहे हैं चुनाव के नतीजों को लेकर। राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूर कोलकाता तक। हर रोज। कई एंगल से गुना-भाग। हर बार घटते-बढ़ते नंबर। पहले के चार चरणों में वोट प्रतिशत पर भी घंटों बहस। ”सर्जिकल स्ट्राइक” और ”राष्ट्रवाद” का भी हिसाब-किताब और ”न्याय” (कांग्रेस की योजना) का भी नाप-तोल। सट्टा बाज़ार के कयास पर चर्चा । सोशल मीडिया के चुनाव ”सर्वे” पर मंथन। सीट-दर-सीट चिंतन।
इसके बाद भाजपा के भीतर एक वर्ग की आशंका – मामला अटक रहा है भाई। दूसरे का भरोसा – बम्पर जीत हो रही है। दिसंबर २०१८ के तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले आँख मूंदकर पीएम मोदी के करिश्मे पर भरोसा करने वालों का भरोसा डिगा है। अभी तक डिगा हुआ है। उनका आकलन है, भाजपा को १९० से २२० के बीच सीटें।
लेकिन भाजपा के भीतर दूसरा खेमा मोदी का पक्का भक्त है और उनके ”करिश्मे” का भी। उसका आकलन है कि देश में मोदी की २०१४ से भी बड़ी लहर (अंडर करंट) है और भाजपा की खुद की सीटें ३०० से ३२५ के बीच आने वाली हैं।
भाजपा की सीटों के इस कयास में बड़े नेता भी शामिल हैं। सार्वजानिक तौर पर जो ”मोदी लहर” की बात करते हैं वे भी आशंका वाले खेमे में शामिल हैं। निजी बातचीत में स्वीकार करते हैं कि २०१४ में जो मिला था वो शिखर था, अब उसे छूना मुमकिन नहीं। सीटें घटेंगी ही। उन्हें लगता है कि सीटें २०० से कम रहीं तो भाजपा सरकार नहीं बना पाएगी। ऐसा नहीं कि इस खेमे में मोदी के प्रशंसक नहीं। हैं, बस उनके प्रति भरोसा डिगा हुआ है उनका।
इस खेमे का आकलन है कि बेरोजगारी का मुद्दा भाजपा पर भारी पड़ सकता है। किसानों का भी। चुनाव में विकास के मुद्दे से हट जाने से उनका कयास है कि पार्टी इसे लेकर ”डिफेंसिव” है जिसका नुक्सान होगा। यह नेता मानते हैं कि मोदी के प्रति अविश्वास करने वालों की संख्या देश में बढ़ी है। इनका यह भी आकलन है कि पीएम मोदी की ”बॉडी लैंग्वेज” इस चुनाव प्रचार में कई बार ”असहज नेता” की दिख रही है जो आज से एक साल पहले तक बिलकुल नहीं होता था।
उनका यह भी मानना है कि २०१४ के चुनाव वादों पर चुप्पी साध लेने से भाजपा को बहुत नुक्सान होगा क्योंकि जनता, खासकर युवा बेरोजगारों ने, बहुत ऊंची उम्मीदें मोदी से पाली हुई थीं। दिलचस्प यह भी है कि यह नेता यह भी मानते हैं कि एयर स्ट्राइक की सफलता और मंत्रियों के २००-३०० आतंकी मारने के दावे की देशी-विदेशी मीडिया में पक्की पुष्टि न होने से इस मुद्दे पर मोदी को समर्थन देने वाला जनमत बंट गया है। चुनाव नतीजों को लेकर भाजपा के इस खेमे में ”निराशा” जैसी स्थिति है। इस खेमे का डर भरा अनुमान है – भाजपा २१० के आसपास अटक जाएगी।
इसके विपरीत दूसरा खेमा दो मुद्दों पर पक्का मान कर चल रहा है कि भाजपा ३०० से पार चली जाएगी। भाजपा के इस वर्ग का मानना है कि ”एयर स्ट्राइक” का मुद्दा बेरोजगारी पर भारी पड़ेगा और वोट मोदी के ”बोल्ड लीडर” वाली छवि के लिए भाजपा को पड़ेंगे। इस ग्रुप को पूरी उम्मीद है कि मोदी की लीडरशिप के आगे कोइ नहीं टिकता और जनता अब भी मोदी पर फ़िदा है जो भाजपा को ”बम्पर” सीटें दिलाएगी।
भाजपा के भीतर सबसे बड़ी चिंता यूपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे हिंदी भाषी सूबों को लेकर है। हालांकि, पार्टी में यह भरोसा बन रहा है कि पश्चिम बंगाल में पार्टी बेहतर करेगी। दक्षिण भी भाजपा में बड़ी चिंता का सबब बना दिखता है।
बंगाल की चुनाव सभा में जिस तरह मोदी ने ४४ टीएमसी विधायकों के उनके (पीएम) ”संपर्क” में होने का दावा किया, उसे भाजपा के ही कई नेताओं ने सही नहीं माना। उनका कहना है कि जब कोइ विधायक किसी दूसरी पार्टी के संपर्क में होता है तो वो उसे ”सीक्रेट” रखता है, लिहाजा पीएम के बात पर लोग कैसे भरोसा करेंगे। उनका यह भी कहना है कि पीएम लेवल पर ऐसे दावे करने ही नहीं चाहिएं क्योंकि बहुत लोग इसे ”फ्रस्ट्रेशन”के रूप में देखने लगते हैं।
भाजपा के एक वर्ग में यह भी महसूस किया जा रहा है कि एयर स्ट्राइक का ”असर” पहले चरण तक तो थोड़ा-बहुत था, उसके बाद घटता चला गया है और दूसरे मुद्दे जनता पर हावी होने लगे हैं। भाजपा में ही बहुत से नेता यह मानते हैं कि भाषणों के दौरान कई बार मोदी बहुत ज्यादा ”नाटकीय” हो जाते हैं जिससे उनके गंभीर नेता होने की छवि को नुक्सान होता है।
हालांकि, उनमें अटूट श्रद्धा रखने वाले भाजपा नेता/कार्यकर्ता मानते हैं कि मोदी का यह नाटकीय अंदाज जनता को ”भाता” है, क्योंकि, यह अंदाज उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करता है।
यह चुनाव जिस तरह ”गुमसुम” दिखता है उससे भी कोइ कयास लगाना मुश्किल हुआ है। इसने ही भाजपा के एक खेमे में ”आशंका” पैदा की है तो दूसरे खेमे में अति उत्साह।
आशंका वाले मानते हैं कि २००४ के चुनाव में भी भाजपा के भीतर वाजपेयी जी का डंका बज रहा था, जैसे आज मोदी जी का बज रहा है। लोक सभा चुनाव २०१९ की तरह ही २००४ में भी भाजपा सरकार के कामों को ”इण्डिया शाइनिंग” जैसा ही जनता के सामने परोसा जा रहा है। कहा जा रहा है कि ”दुनिया में आज भारत का डंका बज रहा है”। लेकिन २००४ में जनता ने भाजपा को वाजपेयी जैसे कद्दावर नेता के होते धूल चटाकर विपक्ष में पहुंचा दिया था। तब भी ”कारगिल की विजय” का तमगा सरकार के पास था जैसा आज ”बालाकोट” का बताया जा रहा है।
गुमसुम चुनाव को एक खेमा भाजपा के खिलाफ मनाता है तो दूसरा ”अंडर करंट” के रूप में देखता है। दिल्ली में भाजपा के चुनाव प्रचार में जुटे मंडल स्तर के एक नेता ने इस संवाददाता से बातचीत में कहा – ”आप देखना आंधी है मोदी की भाईजी। बता रहा हूँ, मामला ३०० के पार पहुंचेगा। २००४ में वाजपेयी भुना नहीं पाए थे अब कमान मोदी के पास है”।
लेकिन मंडल स्तर के एक अन्य भाजपा नेता का आकलन कुछ दूसरा है – ”बड़ी चुप्पी वाला चुनाव है जनाब। कुछ भी हो सकता है। बहुत चीजें हैं जो हमारे खिलाफ जाती हैं। २०१४ जैसा नतीजा आया तो यह करिश्मे वाली बात होगी।” भाजपा के भीतर किस खेमे का आकलन सही निकलता है, यह २३ मई को ही जाहिर होगा जब चुनाव नतीजे आएंगे।