उत्तराखंड का टिहरी लोकसभा उपचुनाव राजनीतिक विरासत बचाए रखने की लड़ाई तो है ही, नई-नवेली कांग्रेस सरकार के भविष्य के लिए भी बेहद अहम है. मनोज रावत की रिपोर्ट.
आपदा से हुई तबाही के बीच हो रहे टिहरी उपचुनाव में उत्तराखंड के दो राजनीतिक परिवारों की तीसरी पीढ़ी अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार के हालिया कठोर कदमों के बाद होने वाला यह उपचुनाव एक मायने में इन अलोकप्रिय निर्णयों पर जनता का फैसला भी होगा. साथ ही इसके नतीजे छह महीने से अंतर्विरोधों और अनिर्णयों के साथ डगमगा कर चल रही राज्य की कांग्रेस सरकार के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे. भाजपा ने टिहरी राजपरिवार की बहू माला राज्यलक्ष्मी शाह पर दांव खेला है. कांग्रेस ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के 38 वर्षीय पुत्र साकेत बहुगुणा को उतारा है. 60 वर्षीया ‘महारानी’ से पहले उनकी दो पीढ़ियां नौ बार टिहरी से सांसद रह चुकी हैं. ‘हिमालय पुत्र’ के नाम से प्रसिद्ध साकेत के दादा हेमवती नंदन बहुगुणा 1980 में कांग्रेस और 1983 में दलित मजदूर किसान पार्टी के टिकट पर पौड़ी गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद रहे. ‘गढ़वाल चुनाव’ में बहुगुणा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से सीधी टक्कर ली थी. उस समय इंदिरा गांधी द्वारा पूरी सत्ता झोंकने के बाद भी बहुगुणा ने चुनाव जीता था. उधर, पहला लोकसभा चुनाव पौड़ी लोकसभा से लड़कर हारने वाले विजय बहुगुणा दो बार टिहरी लोकसभा से भी संसद में पहुंचने में असफल रहे. 2007 में सांसद मानवेंद्र शाह की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में वे पहली बार लोकसभा पहुंचे.
टिहरी लोकसभा सीट तीन जिलों उत्तरकाशी, टिहरी तथा देहरादून जिलों में फैली है. पूरी तरह से पहाड़ी दो जिलों उत्तरकाशी और टिहरी में पांच लाख मतदाता हैं और देहरादून जिले में लगभग सात लाख. भाजपा की तरफ से पहले पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन एक तो खंडूड़ी भाजपा की गुटबंदी और वर्तमान पार्टी संगठन के रहते हुए नई सीट पर चुनाव लड़ने के अनिच्छुक थे. फिर बहुगुणा परिवार से नजदीकी रिश्तेदारी भी उनके टिहरी से चुनाव न लड़ने का अघोषित कारण थी. खंडूड़ी के अलावा कोई अन्य दमदार नाम न होने के चलते भाजपा ने चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही आठ सितंबर को राज्यलक्ष्मी को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था. पार्टी के किसी गुट में न होने के कारण उनकी उम्मीदवारी पर किसी तरह का विरोध नहीं हुआ.
उधर कांग्रेस ने उम्मीदवार तय करने में ही कई दिन लगा दिए. मुख्यमंत्री बहुगुणा अपने परिवार के किसी सदस्य को टिहरी से चुनाव लड़ा कर टिहरी लोकसभा सीट पर अपना दावा बनाए रखना चाहते थे तो केंद्रीय मंत्री हरीश रावत इसका विरोध कर रहे थे. वैसे इसी साल हुए विधानसभा चुनावों से पहले हुए टिकट वितरण में बहुगुणा ने कांग्रेस में परिवारवाद की परंपरा का विरोध किया था. इससे बेटे-बेटियों के लिए पार्टी टिकट की आशा पाले कई नेताओं को धक्का लगा था. इस समय हरीश के ‘परिवारवाद विरोधी’ विचार का समर्थन कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी चौधरी बीरेंद्र सिंह भी कर रहे थे. हरीश खेमे की ओर से मंत्री प्रीतम सिंह, कठिन मौकों पर पार्टी से सांसद का चुनाव लड़ चुके पूर्व मंत्री हीरा सिंह बिष्ट, पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय जैसे नाम सुझाए गए थे. सूत्रों के मुताबिक आलाकमान मंत्री प्रीतम सिंह के नाम पर सहमत थी, परंतु वे लोकसभा उपचुनाव लड़ने से हो सकने वाले राजनैतिक घाटे के लिए सहमत नहीं दिखाई दिए.
इसके अलावा जिस उत्तरकाशी जिले में टिहरी लोकसभा की 14 सीटों में से तीन पड़ती हैं वहां राज्य सरकार के खिलाफ असंतोष था. जुलाई में ही वहां आई एक प्राकृतिक आपदा में दर्जनों जानें जा चुकी थीं और लोग आपदा राहत व पुनर्वास से संतुष्ट नहीं थे. इसके चलते भी कोई नेता मन से चुनाव लड़ने को राजी नहीं था. प्रीतम के इनकार के बाद हरीश रावत ने मिजोरम के राज्यपाल एमएम लखेड़ा का नाम आगे किया, लेकिन इस पर भी बात नहीं बनी. लोकसभा चुनाव लड़ाने के वादे के साथ विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल कराए गए निशानेबाज जसपाल राणा का नाम तो किसी ने भी नहीं लिया. राणा ने पिछला लोकसभा चुनाव बहुगुणा के खिलाफ भाजपा के टिकट पर लड़ा था.
एक मायने में देखा जाए तो केंद्र सरकार के हालिया कठोर कदमों के बाद होने वाला यह उपचुनाव इन निर्णयों पर जनता का फैसला भी होगा
14 सितंबर की शाम केंद्र सरकार ने डीजल के दाम पांच रु बढ़ाए और सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों की संख्या छह तक सीमित कर दी. उसी रात रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ कस्बे में रात को बादल फटने से आए मलबे के कारण पांच गांवों के 62 लोग सोते हुए दफन हो गए. इन बडी आपदाओं के अलावा प्रदेश के और इलाकों में भी उस रात आधा दर्जन मौतें हुईं. पिछले एक महीने में आपदा से प्रदेश में 140 से अधिक लोगों की जान गई, सैकड़ों परिवार बेघर हुए और अरबों रुपये का नुकसान हुआ. इन सबके बीच मुख्यमंत्री बहुगुणा ने 16 सितंबर को अपने बेटे साकेत के नाम पर हरी झंडी लगवा दी. उसी दिन वे ऊखीमठ का दौरा भी कर आए.
चुनाव में भाजपा को भ्रष्टाचार और महंगाई के रूप में पके-पकाए राष्ट्रीय मुद्दे मिले हैं. टिहरी और उत्तरकाशी में स्थानीय मुद्दे हावी हैं. वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड जनमंच के संयोजक राजेन टोडरिया टिहरी लोकसभा के रिटर्निंग अधिकारी कार्यालय टिहरी से देहरादून ले जाने सहित कई निर्णयों को पहाड़ विरोधी मानसिकता का प्रतीक मानते हैं. बहुसंख्यक उत्तरकाशी और टिहरी के मतदाताओं व देहरादून में बसे पहाड़ी लोगों पर अब भी टिहरी महाराज की ‘बोलांदा बदरी’ यानी बोलते हुए बदरीनाथ की छवि हावी है.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल कांग्रेस सरकार के छह महीने के कार्यकाल को असफलताओं से भरा मानते हैं. वे कहते हैं, ‘राजधानी देहरादून की सड़कों का बुरा हाल देखकर आप राज्य के दूरस्थ इलाकों की दुर्दशा को समझ सकते हैं.’ इस पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य कहते हैं, ‘पिछले पांच साल तक प्रदेश पर शासन करने वाली भाजपा हमसे छह महीने में ही विकास कार्यों का हिसाब मांग कर नकारात्मक राजनीति कर रही है.’ मुख्यमंत्री बहुगुणा साकेत का परिचय कराते हुए हर जनसभा में जनता को बताते हैं कि उनका बेटा कंपनी की अच्छी नौकरी छोड़ कर जनता की सेवा करने आया है. साकेत बेहतर प्रबंधन के जरिए क्षेत्र का विकास करने का दावा करते हैं. कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन भाजपा के मुकाबले बेहतर दिखता है. संसाधनविहीन भाजपा कार्यकर्ता उदासीन-से दिखते हैं. हालांकि पार्टी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कोश्यारी इस पर कहते हैं, ‘लोकतंत्र में आखिरकार जनभावना ही प्रबंधन पर भारी पड़ती है.’
मुख्यमंत्री बहुगुणा विपक्षी उम्मीदवार राज्यलक्ष्मी पर ताना कसते हुए कहते हैं कि संसद में श्रोता नहीं वक्ता चाहिए. जवाब में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट कहते हैं कि संसद में वास्तव में वक्ता चाहिए, बड़बोले नहीं. वे सवाल करते हैं, ‘उत्तराखंड के औद्योगिक पैकेज को बंद किए जाने पर यहां से चुने गए कांग्रेस के पांचों कुशल वक्ता सांसदों को क्यों सांप सूंघ गया था?’ विदेशों में जाकर अपनी कंपनी के लिए कानूनी पैरवी करने वाले वकील साकेत द्वारा महारानी को मुद्दों पर खुली बहस की चुनौती के जवाब में भट्ट कहते हैं, ‘पहाड़ की समस्याएं भी पहाड़ जितनी पेचीदा होती हैं, इसलिए पहली बार नौकरी छोड़कर पहाड़ आए साकेत को पहाड़ की भाषा, संस्कृति और समस्याओं को समझना चाहिए.’
मुख्यमंत्री बहुगुणा अपने छूटे हुए कामों को बेटे द्वारा पूरा करने का वादा कर रहे हैं तो राज्यलक्ष्मी के पति मनुज्येंद्र शाह अपने खानदान के सदियों पुराने रिश्तों की दुहाई देते हुए वोट मांग रहे हैं. मुकाबले में बसपा और सपा नहीं हैं. प्रभावहीन हो चुकी क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल (पी) के मंत्री प्रीतम पंवार सरकार में शामिल हैं, पर उनके अध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार रस्म अदायगी के लिए लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
चुनाव नहीं लड़ रही तीन कम्युनिस्ट पार्टियों ने 16 सितंबर को राज्यपाल को ज्ञापन देकर टिहरी उपचुनाव को स्थगित करने की मांग की. सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य समर भंडारी कहते हैं, ‘टिहरी लोकसभा की छह विधानसभाएं बरसात में आई आपदा की मार झेल रही हैं. अभी चुनाव करने की संवैधानिक समय सीमा के लिए भी काफी महीने बचे हैं. ऐसे में आपदा में आसरा खोज रही जनता पर चुनाव नहीं लादा जाना चाहिए था.’ टोडरिया भी आपदा के बाद स्कूलों और पंचायत घर में रह रहे आपदा पीडि़तों से वोट मांगने को अमानवीय बताते हुए चुनाव बहिष्कार की बात कर रहे हैं. कुल मिलाकर इस चुनाव में मुकाबला जन और प्रबंधन के बीच है.