अजब-गजब शारीरिक भाव-भंगिमाओं के साथ कांग्रेस पर गंभीर घात करने वाली जुबानी तीरंदाजी पर गर्व करने और कांग्रेस मुक्त भारत का दंभ भरने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या अब अपने निकटतम प्रतिद्वन्दी राहुल गांधी पर उनसे ज्यादा तीखे तेवरों के साथ पलटवार की पटकथा लिखना चाहेंगे? इस बार चुनाव अजीबो-गरीब दौर से गुजर रहा है, ‘वार-पलटवार’ की प्रचलित कहानी से जातीय राजनीति और विकास का एजेंडा गायब है और एक जुदा नज़ारा देखने को मिल रहा है जिसमें अपने आपको देश का चौकीदार’ कह कर गर्वित होने वाले नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ‘चोर’ शब्द से लांछित करते हुए जमकर तंज कस रहे हैं कि, ‘एक आदमी ने देश के सभी चौकीदारों को बदनाम कर दिया और अब वही चौकीदार जनता से आंखे नहीं मिला पा रहा है। राहुल गांधी के धारदार तंज शुक्रवार 26 अक्टूबर को उस समय देश की राजधानी में जमकर बरसे जब उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को गुपचुप हटाने और इस मंशा के पीछे, ‘राफेल विमान सौदे में कथित भ्रष्टाचार उजागर होने के अंदेशों का गुबार छोड़ते हुए बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया। इससे पहले राजस्थान के दौरे से लौटने के फौरन बाद गुरूवार 25 अक्टूबर की शाम को राहुल गांधी ने प्रेस कांफे्रंस में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने पर राफेल सौदे को सीधे-सीधे भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोला। राहुल ने आरोप लगाया कि, ‘वर्मा पर कार्रवाई इसलिए हुई क्योंकि वे राफेल से जुड़े मामले की जांच करने वाले थे। राहुल ने बड़ी बेबाकी से आरोप लगाया कि, ‘राफेल से जुड़े सुबूतों को मिटाने के लिए यह काम रात को दो बजे किया गया। देश नरेन्द्र मोदी को छोड़ेगा नहीं, विपक्ष भी उन्हें नहीं छोड़ेगा। राहुल गांधी ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री को अंदेशा था कि जिस दिन राफेल पर सीबीआई जांच शुरू होगी, उस दिन वे खत्म हो जाएंगे। देश को पता चल जाएगा कि , प्रधानमंत्री ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया। राहुल के आरोपों पर पलटवार करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने कहा, ‘राहुल सिर्फ और सिर्फ झूठ फैलाते हैं। उधर सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि, ‘आलोक वर्मा के पास राफेल सौदे से जुड़ी कोई फाइल ही नहीं थी, लेकिन सूत्र इस बात की सफाई नहीं दे पाए …..’तो फिर वर्मा की जासूसी क्यों की जा रही थी और क्यों कर ऐसा करते हुए आईबी के अफसरों को पकड़ा गया?
उधर वरिष्ठ पत्रकार रमण स्वामी की मानें तो, ‘सीबीआई संकट की पैदाइश के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अतिविश्वसनीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल दोषी है, जो रातों रात ‘सीबीआई तख्ता पलट में इतने आगे बढ़ गए गए कि उन्हें कानूनी औपचारिकताओं का भी ध्यान नहीं रहा। रमण स्वामी कहते हैं कि, ‘ऐसा पहली बार हुआ है,जब भाजपा में अजीत डोभाल के खिलाफ सुगबुगाहट सुनी जा रही है। मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री और भाजपा समर्थक भी सवाल कर रहे हैं कि क्या वह डोभाल ही थे, जिन्होंने 23-24 अक्टूबर की रात अपनी जिद और अकड़ से संकटग्रस्त हालातों को और बदतर बना दिया? रमण स्वामी कहते हैं, ‘अब डोभाल की गैर परम्परागत सोच मोदी के गले की घंटी बन गई है, सीबीआई निदेशक को हटाने का विवादास्पद मामला इसकी मिसाल है।
उधर लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कड़े शब्दों में पत्र लिखा है। वरिष्ठ पत्रकार जाल खंबाता ने पत्र के खास मुद्दों का ब्यौरा देते हुए बताया है कि अगर सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर संगीन आरोप थे तो चयन समिति की बैठक क्यों नहीं बुलाई गई? प्रधानमंत्री ने खुद ही फैसला क्यों कर लिया? सरकार यह मानती है कि वो सीबीआई निदेशक की न तो नियुक्ति कर सकती है और न ही हटा सकती है और न ही ट्रांसफर कर सकती है तो उन्हें लंबी छुट्टी पर भेजने और दूसरे अधिकारी को तैनात करने का अजीबो-गरीब फैसला कैसे ले लिया? खडग़े ने पूछा है कि प्रधानमंत्री, ‘इसका कारण बताए कि उन्होंने आईबी अधिकारियों को वर्मा के घर पर उन पर निगाह रखने और जासूसी करने के लिए क्यों भेजा? खडग़े ने मोदी से यह सवाल भी किया कि, ‘वर्मा और अस्थाना को हटाने के बाद तीसरे नंबर के ए.के. शर्मा को नियुक्त क्यों नहीं किया? इसके विपरीत उनसे जूनियर, संयुक्त सचिव को क्यों निदेशक पद की जिम्मेदारी सौंपी गई? इस संदर्भ में प्रशांत भूषण का सवाल भी खासा मायने रखता है कि, ‘क्या विवादास्पद नागेश्वर राव को इसीलिए नियुक्त किया गया, क्योंकि उन पर नियंत्रण रखा जा सकता है? अब देखना यह है कि सत्ताधारी दल विपक्ष के आरोपों से कैसे निपटता है?
इस पूरे मसले से जुदा राजस्थान के चुनावी मंजर की बात करें तो चुनावी राजनीति की अधिकांश कवायद राजनैतिक दलों के लिए अपना परम्परागत ‘कोर वोट बैंक’ को बनाए रखने की होती है। सियासत और उम्मीदों के बीच फंसा यह एक ऐसा ‘तुरूप का पत्ता’ है जिसे पार्टियां हरसंभव अपने साथ बनाए रखने की जुगत में रहती हैं। मसलन मुस्लिमों का हाथ परम्परागत रूप से कांग्रेस के साथ रहता आया है तो प्रदेश में राजपूत भाजपा के पाले में ही बने रहे हैं। लेकिन इस बार के चुनावों में दोनों ही दल अपने ‘तुरूप के पत्तों’ के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। हर पल एक आशंका पार्टी नेताओं के धैर्य के पीछे थर्राती नजर आती है। मुस्लिम बहुल सीटों पर निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवारो को लेकर कांगे्रस के पाले में हताशा के अवशेष बिखरे हुए हैं, जो बेजा उम्मीदों से ज्यादा नुमायां हो रहे हैं।ं इस लिहाज से कांग्रेस की ताजा कोशिशों की सुन-गुन समझे ंतो पार्टी नेतृत्व मुस्लिम बहुल 15-20 सीटों पर पूरी तरह अपना फोकस बनाए हुए है, जिन्हें पिछले चुनावों में अतिविश्वास के कारण गंवा दिया था। पिछले चुनाव में अश्क अली टॉक तथा ब्रज किशोर शर्मा सरीखे दिग्गज निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवारों की वजह से ही चुनावी रण में खेत रहे थे, लगता है पार्टी ने इस बार खासा सबक ले लिया है और मुस्लिमों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए पूरी तरह जद्दोजहद कर रही है। कांग्रेस अब इन्हें थामकर आगे बढ़ऩे की रणनीति गढ़ रही है। भाजपा राजपूतों के मुद्दों पर एक बार फिर टूटे पंखों से उडऩे की उम्मीद कर रही है, लेकिन मानवेन्द्र सिंह के पाला बदलने से हालात सुधरने की बजाय टेढ़े हो गए हैं।
इस बीच इसी हफ्ते भाजपा के गढ़ और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्वाचन क्षेत्र झालावाड़ में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘संकल्प महारैली’ कर सेंध लगा दी है। रैली के बाद झालावाड़ के भाजपा हल्कों में जिस तरह सन्नाटा खिंच गया और लोग कांग्रेस का कीर्तन करते नजर आए उसने नई राजनीतिक फंतासियों को हवा दे दी कि वसुंधरा राजे अपने सुरक्षित माने जाने वाले गढ़ झालरापाटन को छोड़कर किसी दीगर सीट से चुनाव लडऩे का विकल्प तलाश रही है। पिछले तीन दशकों से लगातार इस क्षेत्र से चुनाव जीतती आ रही राजे की सकपकाहट चौंकाती है। सूत्रों का कहना है कि, ‘झालरापाटन में भाजपा के परम्परागत मतदाता रहे, सवर्णों और राजपूतों में वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्सा खौल रहा है, लिहाजा वे श्री गंगानगर अथवा राजाखेड़ा से चुनाव लड़ सकती है। सूत्रों का कहना है कि, ‘वसुंधरा राजे अगर अपनी जीत का ‘एपीसोड’निर्विध्न बनाए रखने के लिए दूसरा विधानसभा क्षेत्र तलाश रही है तो इससे भाजपा के हालात का अनुमान लगाया जा सकता है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि, ‘कांग्रेस की चुनावी रणनीति के मुताबिक जंग के दौरान वसुंधरा को उनकी परम्परागत सीट पर समेट देना है ताकि वो भाजपा केे चुनावी अभियान में शिरकत नहीं कर पाए? असल में प्रदेश में वसुंधरा भाजपा का इकलौता चेहरा है जो भीड़ जुटा सकती है, ऐसे में कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति के तहत उन्हें उनकी सीट तक महदूद कर देना चाहती है। बहरहाल एक बात तो हर जुबान पर है कि ‘राहुल गांधी की झालावाड़ रैली ने वसुंधरा राजे का तिलस्म तोड़ दिया है। कोटा में आयोजित ‘रोड शो’ में भी राहुल गांधी ने मोदी और वसुंधरा राजे को जमकर निशाने पर लिया। उधर जानकार सूत्रों का कहना है कि अगर वसुंधरा राजे झालावाड़ से ही चुनाव लड़ती है तो निर्दलीय के तौर पर आईपीएस पंकज चौधरी की पत्नी मुकुल भी उनको चुनौती दे सकती है। मुकल का कहना है, ‘यहां भाजपा ने झूठ की फसल बो रखी है, मैं उसकी जड़ें काटने आई हूं।
उधर आने वाले दिन प्रदेश में ‘तीसरे मोर्चे’ के लिए खास अहमियत दर्ज करने वाले हैं। इसकी वजह है, अगले सप्ताह राजनीतिक दल ‘आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और निर्दलीय कद्दावर नेता हनुमान बेनीवाल विराट
रैली आयोजित कर सकते हैं। जयपुर में आयोजित होने वाली इन रैलियों के बारे में राजनीतिक रणनीतिकारों का कहना है कि, ‘इससे तीसरे मोर्चे की ताकत का पता चल जाएगा वहीं भाजपा-कांग्रेस छोड़कर आने वाले दलों के नेताओं का रुख भी सामने आ जाएगा। बेनीवाल की
रैली में भारत वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी के जाने की बात चर्चा में है। लेकिन फिलहाल तिवाड़ी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इसी तरह ‘आप’ की रैली में ‘जमीदारा पार्टी के कुछ नेता शामिल हो सकतेे हैं। इस मामले में घनश्याम तिवाड़ी से बात करने पर उनका कहना था, ‘यह बात तो पार्टी की चुनाव समिति की बैठक में तय की जाएगी। जहां तक तीसरे मोर्चे का सवाल है वो तो बनेगा और जो लोग हमारे साथ आना चाहेंगे,उनका स्वागत है। उधर ‘आप’ पार्टी के समन्वयक देवेन्द्र शास्त्री का कहना है कि, ‘तीसरे मोर्चे पर हमारा दल गंभीरता से विचार कर रहा है। तीसरे मोर्चे के गिर्द बनती-बिगड़ती उम्मीदों को लेकर नागोर जिले के खींवसर से निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल का कहना है, ‘हम छत्तीस कौम के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बनाएंगे। हम चाहते हैं इस बार जाट कौम का शख्स मुख्यमंत्री बने। इस समुदाय का आज तक प्रदेश में मुख्यमंत्री नहीं बना। तिवाड़ी से बातचीत के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था, ‘इस मामले में उनसे बातचीत होती रहती है।
बेनीवाल ने इस सवाल को खारिज किया कि, ‘तीसरे मोर्चे के कर्णधार आगे चलकर भाजपा-कांग्रेस का दामन थाम लेते हैं? तीसरा मोर्चा धरातल पर उतरने की बजाय धरा का धरा रह जाता है? उनका कहना था, ‘इस बार ऐसा नहीं होगा। हम हर चुनौती का डटकर मुकाबला करेंगे। उन्होंने दावा किया कि, ‘गठबंधन हो जाने के बाद सब साथ बैठेंगे। सीटों को लेकर कोई विवाद नहीं होगा। उधर राजनीतिक वनवास की संभावनाओं का सामना कर रहे एनडीए के पूर्व अध्यक्ष और युनाइटेड जनता दल के निष्कासित नेता शरद यादव भी इन दिनों राजस्थान में एक सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की तलाश में है। लेकिन अजीब बात है कि उन्होंने ‘तीसरे मोर्चे’ से दूरी बना रखी है और ‘एकला चलो’ की रणनीति पर चलना चाह रहे हैं।
फिलहाल चल रही टिकट वितरण की कवायद में समझा जाता है कि भाजपा मौजूदा 150 विधायकों के टिकट काट सकती है। उधर यह सवाल कांग्रेस हल्कों में भी मुखर है कि, ‘क्या कांग्रेस सभी मौज्ूादा विधायकों को टिकट देगी। कांग्रेस के फिलहाल विधानसभा में 25 विधायक है। हालांकि चर्चा यह भी सरगर्म है कि, ‘राजस्थान में विपरीत माहौल के बावजूद पहले 21 फिर उपचुनावों में चार विधायक जीत कर आए। ऐसे में इन्हें फिर मौका दिया जाए। लेकिन कई जगह की सर्वे रिपोर्ट तो चिंतन की तरफ इशारा करती है। उधर बीकानेर से सांसद चुने जाकर केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री बने अर्जुनराम मेघवाल का दावा है कि, ‘भाजपा को गुड गवर्नेंस और डवलपमेंट पर वोट मिलेंगे। मेधववाल एंटी इंकबेंसी से साफ इन्कार करते हैं। उनका कहना है, ‘कोई नाराजगी है तो उसे दूर कर दिया जाएगा, लेकिन अब समय कितना बचा है फिर भाजपा नेतृत्व ने कितनों की नाराजगी दूर की है? इस सवाल पर उन्होंने संत कबीर का भजन दोहराया, ‘चदरिया मैली है तो उसे ज्यों की त्यों धर दो….जीवन मैला है तो उसे साफ करो।’’