चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इच्छामृत्यु को सही ठहराते हुए कहा है कि क़ानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति आत्महत्या नहीं कर सकता मगर हर किसी को सम्मान से मरने का अधिकार है।
पुणे में बैलैंसिंग ऑफ कॉन्स्टिट्यूशनल राइट्स के विषय पर आयोजित एक व्याख्यान को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने यह बात कही।
जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि अगर कोई इंसान कभी न ठीक होने वाली किसी बीमारी से पीड़ित है और वह इच्छामृत्यु चाहता है तो वह इसके लिए अपनी ‘लिविंग विल’ बना सकता है।
दीपक मिश्रा ने कहा कि यह हर व्यक्ति का अपना अधिकार है कि वह अंतिम सांस कब ले और इसके लिए उस पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
चीफ जस्टिस ने कहा, “कई पश्चिमी देश अभी भी यूथेनेशिया (इच्छा मृत्यु) के मुद्दे संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन भारत में सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से इस समस्या से निपटा जा चुका है। हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है, लेकिन उसी वक्त उसके पास यह भी अधिकार है कि वह सम्मान से अंतिम सांस कब ले।”
मुख्य न्यायधीश ने कहा कि अगर हमें समाज में समानता, स्वतंत्रता और हर इंसान को सम्मान से जीने का अधिकार देना है तो इसके लिए युवा पीढ़ी के लिए अच्छी शैक्षिक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करनी होंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मार्च में इच्छामृत्यु पर एक अहम फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा था कि कोमा में जा चुके या मौत की कगार पर पहुंच चुके लोगों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु और इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत कानूनी रूप से मान्य होगी। व्यक्ति अपनी वसीयत में लिख सकता है कि लाइलाज बीमारी होने पर उसे जीवन रक्षक उपकरणों पर न रखा जाए और मृत्यु दे दी जाए।