सम्प्रभुता, पड़ोसी देशों की मदद और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों पर भारत से अग्रणी देश कोई नहीं है। हमेशा देखा गया है कि भारत ने हर आपदा में पड़ोसी देशों की मदद की है। कोरोना-काल में कई देशों को कोरोना-टीका और दूसरी दवाएँ देने से लेकर नेपाल और श्रीलंका की बुरे समय में मदद करने से भारत पीछे नहीं हटा। लेकिन इससे इतर एक बात यह भी है कि भारत के पड़ोसी देश उससे हमेशा शत्रुता रखते रहे हैं। अकारण ही भारत से शत्रुता करने वाले देशों की अगर लिस्ट तैयार करें, तो भारत का चीन से बड़ा शत्रु कोई दूसरा नहीं निकलेगा।
हालाँकि पाकिस्तान भी भारत का बहुत बड़ा और बँटवारे के समय का ही शत्रु है; लेकिन शत्रुता की हदें पार करते हुए कई मामलों में चीन ने पाकिस्तान को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि चीन कभी नहीं चाहता कि भारत उससे कभी आगे निकल सके। दरअसल चीन जानता है कि अगर एशिया में कोई देश उसे हर क्षेत्र में चुनौती दे सकता है, तो वो इकलौता भारत है। बस यही बात चीन को अखरती है और वो कई दशक से भारत को दबाने की और तबाह करने की हर सम्भव कोशिश कर रहा है। इसके लिए न केवल चीन स्वयं दबंगई पर उतरा हुआ है, बल्कि उसने भारत के मित्र पड़ोसी देशों को भी साम, दाम, दण्ड और भेद की नीति से अपने पक्ष में किया हुआ है।
आज की तारीख़ में भारत से ही अलग होकर बने सभी देशों ने भारत को आँखें दिखानी शुरू कर दी हैं। चीन की मुख्य योजना है- पड़ोसी देशों की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करना। इसी पॉलिसी के तहत उसने न केवल भारत की बहुत सारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है, बल्कि पाकिस्तान, अफ़ग़निस्तान, म्यांमार, नेपाल, भूटान, क़ज़ाख़िस्तान, किर्ग़िस्तान, लाओस, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, रूस, तजाकिस्तान और वियतनाम को भी नहीं बख़्शा है। ताइवान पर भी उसने पिछले दिनों क़ब्ज़ा करने की रणनीति बना ली थी; लेकिन ताइवान की हिम्मत और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चीन ताइवान पर हमला नहीं कर सका। तिब्बत पर तो चीन 23 मई, 1951 से ही अवैध क़ब्ज़ा किये बैठा है।
दरअसल चीन की सीमा से दुनिया के 14 देशों की सीमा लगती है और इन सभी देशों के साथ चीन का सीमा विवाद है। इसकी प्रमुख वजह है चीन की नीयत ख़राब होना। वास्तव में चीन को दुनिया का सबसे ताक़तवर देश बनने का फोबिया है, जिसके लिए वह सबसे पहले अपने पड़ोसी देशों पर दबदबा बनाना चाहता है। जैसा कि पिछले समय में कई रिपोट्र्स आयी हैं कि चीन ने भारत की क़रीब 38,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है। फरवरी, 2022 को संसद में सरकार ने ख़ुद स्वीकार किया कि चीन ने भारत की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया है। हालाँकि अब तक की तमाम बयानों में प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृह मंत्री शाह तक इस बात को नकारते आये हैं; लेकिन इसी साल फरवरी में एक सवाल के जवाब में विदेश राज्यमंत्री वी. मुरलीधरन ने लोकसभा में यह बात स्वीकार की कि चीन ने भारत के लद्दाख़ की क़रीब 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है। उन्होंने बताया कि चीन लद्दाख़ में पिछले क़रीब छ: दशक से क़ब्ज़ा कर रहा है।
भारत की ज़मीन पर चीन के अवैध क़ब्ज़े को लेकर अब तक प्रकाशित विभिन्न रिपोर्ट बताती हैं कि चीन का भारत की क़रीब 43,180 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा हो चुका है। ऐसे में सरकार के हाथ पर हाथ धरे रहने को लेकर सवाल उठने ही चाहिए। क्योंकि अगर इसी तरह से चीन भारत की ज़मीनें क़ब्ज़ाता रहा, तो हिमालय की सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है, जिसे हड़पने के लिए चीन कई दशक से चालें चल रहा है। चीन ने भारत को कमज़ोर करने के लिए उसके सात पड़ोसी देशों की ज़मीनों पर न केवल काफ़ी हद तक क़ब्ज़ा किया है, बल्कि उन्हें किसी-न-किसी तरह से अपने पक्ष में किया है। इन सात देशों में तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान और अफ़ग़निस्तान हैं। इसके साथ ही चीन हिमालय पर क़ब्ज़े के लिए भारत की पाँच उँगलियों पर पूरी तरह क़ब्ज़ा करना चाहता है, जिन्हें फाइव फिंगर कहा जाता है। इन फाइव फिंगर में दो भारत के पड़ोसी देश नेपाल और भूटान हैं, जबकि तीन भारत के प्रदेश अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख़ और सिक्किम है। चीन जानता है कि अगर ये पाँचों उसके क़ब्ज़े में आ गये, तो उसे हिमालय पर क़ब्ज़ा करने से कोई नहीं रोक सकेगा। पिछले कुछ वर्षों से चीन ने इन फाइव फिंगर पर क़ब्ज़े के प्रयास तेज़ कर दिये हैं।
पिछले ही साल अप्रैल, 2021 में तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख लोबसांग सांग्ये ने एक सनसनीख़ेज़ ख़ुलासा करते हुए चीन की इस चाल का ख़ुलासा किया था। लोबसांग सांग्ये ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि तिब्बत तो बस एक ज़रिया है, चीन का असली मक़सद हिमालय और हिमालयी क्षेत्र में फाइव फिंगर कहे जाने वाले हिस्सों पर क़ब्ज़ा करना है, ताकि वह भारत को अपने पंजे में फँसा सके।
विदित हो कि तिब्बत पर क़ब्ज़े के बाद से ही चीन की नज़र भारत की ओर टिकी हुई है, जिसके लिए वह लगातार अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने में लगा हुआ है। ऐसे में भारत को अपनी सैन्य शक्ति को कमज़ोर नहीं करना चाहिए, जिसके कि आरोप भारत सरकार पर लगते रहे हैं। अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीरों की भर्तियाँ निकालने से तो यह आशंका ही बढ़ गयी है कि भारत सरकार अपनी सेनाओं को कमज़ोर कर रही है, जबकि चीन अपनी सेनाओं को लगातार ताक़तवर बना रहा है। दोनों देशों के रक्षा बजट की तुलना ही नहीं है। सन् 2021 में चीन का कुल रक्षा बजट 17,03,559 करोड़ भारतीय रुपये था, जबकि भारत का कुल रक्षा बजट वित्त वर्ष 2022-23 में मात्र 5,25,166.15 करोड़ रुपये ही आवंटित किया गया। यानी की चीन का रक्षा बजट भारत से तीन गुने से भी ज़्यादा है।
भारत के ख़िलाफ़ चीन के हौसले सन् 1962 की लड़ाई के बाद बढ़े हैं। लेकिन सन् 2014 के बाद चीन के हमलों में बहुत ही तेज़ी आयी है। इन आठ वर्षों में चीन ने न केवल भारत पर चहुँतरफ़ा दबाव बनाया है, बल्कि भारतीय सैनिकों और भारत के सीमावर्ती राज्यों के लोगों पर हमले भी तेज़ किये हैं। गलवान घाटी में 16-17 जून, 2020 की रात के भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों के हमले को कौन भूल सकता है, जो चीनी सैनिकों ने बॉर्डर कमांडर की बैठक हुए पीपी 14-15-17 के उस समझौते को दरकिनार करते हुए किया था, जिसमें साफ़ तय हुआ था कि चीन और भारत के सैनिक एलएसी को क्रास नहीं करेंगे। भारतीय सैनिकों ने तो इस समझौते का पालन किया; लेकिन चीनी सैनिकों ने बिलकुल नहीं किया। सैटेलाइट से समय-समय पर मिली तस्वीरें बताती हैं कि चीन लद्दाख़, अरुणाचल, उत्तराखण्ड की भारतीय सीमा में लगातार घुसपैठ करके अपने हेलीपैड, सैन्य बंकर बनाने के अलावा गाँव-के-गाँव बसाने में लगा है।
एक समय था, जब नेपाल का सबसे बड़ा दुश्मन चीन था। लेकिन आज उसी चीन के दबाव में या फिर उसकी शय पर नेपाल भारत को आँखें दिखाने तक से गुरेज़ नहीं करता है। यह तब है, जब नेपाल के एक बड़े भू-भाग पर चीन ने क़ब्ज़ा कर रखा है। दरअसल यह सब नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार बनने के बाद हुआ है। इसलिए चीन का कम्युनिज्म नेपाल को गुमराह करके वो सब करा रहा है, जो किसी भी हाल में ख़ुद नेपाल के हित में नहीं है। नेपाल को यह नहीं भूलना चाहिए कि हर परिस्थिति में भारत ने उसका साथ दिया है। एक समय था, जब चीन से प्रताडि़त नेपाल ने भारत से मदद माँगी थी।
नेपाल को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज भी बड़ी संख्या में भारत में रोज़गार पा रहे हैं और हर रोज़ बड़ी संख्या में उसके नागरिक रोज़गार की तलाश में भारत आते है। अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों को कैसे निभाना चाहिए? यह नेपाल को तिब्बत से सीखना चाहिए, जिसने चीन के तमाम दबावों और ज़ुल्मों के बाद भी भारत से अपने सम्बन्धों को मज़बूती से बरक़रार रखा हुआ है। तिब्बत यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर कभी चीन ने अति की, तो उससे निपटने की सामथ्र्य केवल भारत में है।
हालाँकि काफ़ी विरोध के बावजूद चीन पड़ोसी देशों की सीमाओं में घुसकर धीरे-धीरे अवैध क़ब्ज़ा करने से बाज नहीं आ रहा है। हाल ही में उसने पाकिस्तान के साथ मिलकर अफ़ग़निस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का विस्तार करने की 60 अरब अमेरिकी डॉलर की परियोजना पर आगे बढऩे का फ़ैसला किया है। यह परियोजना बलूचिस्तान में पाकिस्तान के दक्षिणी ग्वादर बंदरगाह को चीन के पश्चिमी शिनजियांग से जोड़ती है और पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर से होकर गुज़रती है। आज निरंकुश चीन पर अंकुश लगाने की दरकार है। भारत ने लगातार इस परियोजना का विरोध किया है। लेकिन अकेले भारत के विरोध से कुछ नहीं होगा, बल्कि हर उस देश को चीन का विरोध करना होगा, जो उसकी अतिक्रमणकारी नीति से परेशान है। ऐसा नहीं कि ये देश चीन से निपटना नहीं चाहते, लेकिन इनमें एकजुटता की बेहद कमी है।