चिन्तन में कांग्रेस

संगठन को सक्रिय करने के लिए चिन्तन शिविर के फ़ैसलों पर बनी अमल की रणनीति

इसे कांग्रेस की त्रासदी ही कहेंगे कि जब उसके नेता चिन्तन शिविर में पार्टी को फिर से खड़ा करने और भविष्य की योजना बनाने की क़वायद कर रहे थे, उसके तीन बड़े नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया।
ऐसे मौक़े पर वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, पंजाब में पार्टी के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ और गुजरात के हार्दिक पटेल के पार्टी छोडऩे से निश्चित ही कांग्रेस की फ़ज़ीहत हुई है। इसके बावजूद कांग्रेस ने आने वाले समय के लिए देशव्यापी पद यात्रा और सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ आन्दोलन की जो रूप रेखा गढ़ी है, उससे कम-से-कम यह तो होगा कि पार्टी के नेता घरों से निकलकर लोगों के बीच जाएँगे और सरकार के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाने की शुरुआत होगी, जिसकी ज़रूरत सारा विपक्ष महसूस कर रहा है। इसके अलावा पार्टी की योजना राष्ट्रीय चिन्तन शिविर की तर्ज पर राज्य स्तरीय नेताओं के लिए भी शिविर आयोजित करने की, ताकि कार्यकर्ताओं को देशव्यापी कार्यक्रम के लिए तैयार किया जा सके। राहुल गाँधी ने अपने भाषण में जब यह कहा कि जनता से हमारा सम्पर्क टूट गया है, तो नेताओं के चेहरे पर चिन्ता के भाव पढ़े जा सकते थे। इसमें कोई दो-राय नहीं कि राहुल ने साफ़ तरीक़े से बात की और पार्टी की प्रमुख कमज़ोरियों को बेझिझक सामने रखा।

हाल के वर्षों में कांग्रेस ने सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ जो भी कार्यक्रम किये हैं, वह छिटपुट ही रहे हैं। कोई देशव्यापी आन्दोलन उसने नहीं किया, जबकि वह विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है। ऐसा नहीं कि विपक्ष के अन्य दल किसी आन्दोलन के लिए कांग्रेस पर निर्भर रहे हैं; लेकिन कांग्रेस ने लगातार विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद ख़ुद के लिए भी इस तरह की ज़हमत नहीं की। विपक्ष की बड़ी पार्टियों टीएमसी आदि को देखें, तो कांग्रेस के साथ भाजपा विरोधी मज़बूत फ्रंट बनाने में उसकी दिलचस्पी नहीं रही है।

ग़ैर-कांग्रेस विपक्षी दलों को यह भी लगता है कि कांग्रेस के मज़बूत होने से उनकी सत्ता वाले राज्यों में क्षेत्रीय दलों का ही नुक़सान होगा। भाजपा जहाँ मज़बूत है, वहाँ कांग्रेस मुख्य विपक्ष है या फिर क्षेत्रीय दल हैं। क्षेत्रीय दल अपना यह स्पेस किसी सूरत में कांग्रेस को नहीं देना चाहते। या फिर उसे कुछ सीटें देकर देकर अपने साथ जोडऩा चाहते हैं, ताकि वह उनके लिए ख़तरा न बने। यही कारण है कांग्रेस के थिंक टैंक को लगता है कि क्षेत्रीय दलों के पिछलग्गू बनने से ज़्यादा बेहतर है कि पार्टी को ज़मीन पर फिर से खड़ा किया जाए भले इसमें कुछ समय लग जाए।

यह इस बात से ज़ाहिर होता है कि पार्टी के नेता राहुल गाँधी ने चिन्तन शिविर के अपने भाषण में क्षेत्रीय दलों को विचारधारा-विहीन दल कहा। राहुल का कहना था कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही भाजपा का मुक़ाबला कर सकती है और वहीं उसका विकल्प है। कांग्रेस राज्यों में कमज़ोर हो चुकी है, पार्टी यह समझ रही है। चिन्तन शिविर में वरिष्ठ पार्टी नेताओं के भाषणों से यह साफ़ ज़ाहिर होता है। लेकिन अभी भी कांग्रेस इस स्थिति से बाहर आने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बुन पायी है। उसके वरिष्ठ नेता, असन्तुष्ट नेता और कार्यकर्ता भी, नेता कौन हो? इसमें ही उलझे हुए हैं। भाजपा ने अपने सोशल मीडिया अभियानों से कांग्रेस के छोटे-से-छोटे कार्यकर्ता तक के मन में यह भर दिया है कि राहुल गाँधी उसकी नैया पार नहीं लगा सकते या कांग्रेस के पास नेतृत्व का अकाल है।

भाजपा का अभियान इतना आक्रामक और सधा हुआ रहा कि उसने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार को प्रियंका गाँधी की नाकामी से जोड़ दिया था, जिन्होंने पार्टी के विधानसभा चुनाव अभियान को एक तरह अपने बूते चलाया था। वास्तव में यह सही नहीं है। कांग्रेस के पास नेतृत्व से ज़्यादा आज की तारीख़ में राजनीति और हौसले की कमी है। वह उस दिशा में चल रही है, जहाँ भाजपा उसे ले जाना चाहती है। कांग्रेस के कुछ नेता यह समझते हैं; लेकिन वह इस पर काम नहीं कर पा रहे।

ख़ुद राहुल गाँधी, जो मोदी सरकार के ख़िलाफ़ कांग्रेस में सबसे ज़्यादा मुखर नेता हैं; अपने तौर पर पार्टी का नेतृत्व सँभालकर भाजपा और एनडीए सरकार के ख़िलाफ़ आक्रामक अभियान शुरू नहीं कर पाये। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की हार और कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं की टिप्पणियों से वो आहत हुए थे, लिहाज़ा उन्होंने अपने पाँव पीछे खींच लिये।

कांग्रेस के एक सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘एक नेता को भावनात्मक नहीं होना चाहिए। पार्टी को उन पर भरोसा था। लेकिन हार के बाद उनके इस्तीफ़े से यह सन्देश गया कि राहुल गाँधी ने हार मान ली। सच्चाई यह नहीं थी। सच यह था कि कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के असहयोग वाले रवैये और चुनाव में पार्टी की हार पर टिप्पणियों से राहुल नाराज़ थे। हम आज भी मानते हैं कि नरेंद्र मोदी के बाद राहुल गाँधी ही सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उन्हें पार्टी का नेतृत्व सँभालकर भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ बड़ा अभियान शुरू करना चाहिए। पार्टी के चिन्तन शिविर में नेताओं के भाषणों से यह तो ज़ाहिर होता है कि कांग्रेस की दुर्दशा से वे चिन्तित हैं।’

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, शिविर में राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के साथ भीतरी बैठकों में विभिन्न मुद्दों को लेकर बनाये गये ग्रुप्स के नेताओं ने पार्टी के रोडमैप को लेकर बातचीत की है। संगठन को मज़बूत करने पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया गया है। इसमें कहा गया कि राज्यों में पार्टी का आधार बढ़ाना बहुत ज़रूरी है। यूपीए के अपने घटक जिन राज्यों में सत्ता में हैं, वहाँ भी पार्टी संगठन का नेतृत्व ऐसे नेताओं को देने पर ज़ोर दिया गया है, जो आक्रमक हों और पार्टी की नीतियों से गहरे से जुड़े हों।

कांग्रेस ने राज्यों में हाल में कुछ परिवर्तन किये हैं और नये अध्यक्षों की नियुक्ति की है। हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर बड़े फेरबदल का इंतज़ार है। सँभावना है कि नया पार्टी अध्यक्ष ही यह करेगा। तामिलनाडु / झारखण्ड जैसे जिन राज्यों में कांग्रेस सहयोगियों के साथ सरकार में है, वहाँ भी पार्टी मज़बूत नेतृत्व लाना चाहती है।

पार्टी के कुछ नेताओं को लगता है कि ऐसे राज्य जहाँ यूपीए के सहयोगी दलों की सरकारें हैं, उन्हें नहीं छेडऩा चाहिए। लेकिन पार्टी के एक बड़े धड़े का कहना है कि सभी राज्यों में अपने अस्तित्व को मज़बूत करना ज़रूरी है। यहाँ तक कि राहुल गाँधी भी मानते हैं कि यूपीए वाले राज्यों में सहयोगियों को नाराज़ किये बिना उनमें भी कांग्रेस को मज़बूत किया जाना ज़रूरी है।

चिन्तन शिविर के फ़ैसले

उदयपुर के चिन्तन शिविर में इस साल और अगले साल होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति पर चर्चा की गयी। कुछ बड़े फ़ैसले भी पार्टी ने किये। कांग्रेस अध्यक्ष के लिए ‘सलाहकार समिति’, पार्टी में आंतरिक सुधार के लिए ‘टास्क फोर्स’ का गठन, गाँधी जयंती से ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा इनमें शामिल हैं। इसके अलावा पार्टी 15 जून से ज़िला स्तर के जन जागरण अभियान का दूसरा चरण शुरू करेगी। इसमें देश के आर्थिक मुद्दों को जनता के सामने लाया जाएगा। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा भी कि ‘हमारी यह प्रतिबद्धता है। कांग्रेस का नया उदय होगा। यह हमारा नवसंकल्प है।’

पार्टी ने जो एक और बड़ा फ़ैसला किया वह है ‘एक परिवार-एक टिकट’ का फॉर्मूला। पार्टी ने यह भी शर्त रखी है कि चुनाव लडऩे के इच्छुक परिवार के किसी अन्य सदस्य को टिकट तब मिलेगा, जब उसने कम-से-कम पाँच साल पार्टी के लिए काफ़ी काम किया हो। निश्चित ही इस फ़ैसले से गाँधी परिवार, जिसमें सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी पहले ही लोकसभा सदस्य हैं; के अलावा प्रियंका गाँधी का चुनाव लडऩे का रास्ता खुल जाएगा। प्रियंका सक्रिय राजनीति में सन् 2019 से हैं और 2024 तक उन्हें पाँच साल हो जाएँगे।
यह माना जाता है कि यदि सोनिया गाँधी अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती हैं, तो प्रियंका उनकी रायबरेली सीट से लड़ेंगी। वैसे हाल के दिनों में प्रियंका को राज्यसभा भेजने की बात भी होती रही है। कोई भी नेता किसी एक पद पर पाँच वर्ष से अधिक समय तक नहीं रहेगा। कार्यकाल समाप्त होने के बाद पदाधिकारियों को अपने पद से ख़ुद इस्तीफ़ा देना होगा।

इस निर्णय के पीछे यह सन्देश देने की कोशिश है कि पार्टी के नेता पद का लालच नहीं करते। कांग्रेस ने चिन्तन शिविर में समाज के कमज़ोर और उत्पीडि़त वर्गों का विश्वास जीतने के सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लेने का भी फ़ैसला किया है। इसके तहत संगठन के सभी स्तरों पर एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यकों को 50 फ़ीसदी प्रतिनिधित्व मिलेगा। साथ ही 50 वर्ष से कम आयु वालों के लिए पार्टी समितियों में 50 फ़ीसदी पद आरक्षित होंगे। ज़ाहिर है कांग्रेस भविष्य का नेतृत्व तैयार करने की तैयारी कर रही है। यह फार्मूला टिकट बँटवारे में भी लागू होगा। किसान आन्दोलन हाल तक भाजपा के लिए मुसीबत का कारण रहा है। यही कारण है कि भाजपा सरकार ने पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले ही योजनावद्ध तरीक़े से यह आन्दोलन ख़त्म करवा दिया था। यह अलग बात है कि किसानों की कुछ बड़ी माँगें फिर भी पूरी नहीं हुईं। अब कांग्रेस ने चिन्तन शिविर में यह फ़ैसला किया है कि जब वह सत्ता में वापस आएगी, तो किसानों के लिए एमएसपी को क़ानूनी गारंटी देगी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कांग्रेस और राहुल गाँधी दोनों किसानों की बात मज़बूती से करते रहे हैं। रोज़गार भी राहुल गाँधी का प्रिय विषय रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस ने अगले चुनावों में बेरोज़गारी को एक प्रमुख मुद्दा बनाने का फ़ैसला किया है।

मज़बूत होगा संगठन

शिविर में संगठनात्मक स्तर पर कांग्रेस की निर्णायक भूमिका तैयार करने के लिए जो मंथन हुआ, उसके बाद निश्चित ही जी-23 जैसे पार्टी के असन्तुष्ट भी ख़ामोश हो गये हैं। पार्टी अब अगले 90 से 180 दिन में देश भर में ब्लॉक, ज़िला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर सभी ख़ाली नियुक्तियों को भरकर जवाबदेही सुनिश्चित करेगी। सोनिया गाँधी से लेकर राहुल तक ने कहा कि संगठन और कांग्रेस के ज़मीनी कार्यकर्ता ही पार्टी की असली ताक़त हैं। संगठन मज़बूत करने के लिए ब्लॉक कांग्रेस के साथ-साथ मंडल कांग्रेस कमेटियों का भी गठन होगा। कांग्रेस में अभी तक मंडल समितियाँ नहीं होती थीं।

कांग्रेस संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर तीन नये विभागों का भी गठन करने जा रही है। इनमें पब्लिक इनसाइट डिपार्टमेंट अलग-अलग विषयों पर जनता के विचार जानने और नीति निर्धारण के लिए पार्टी नेतृत्व को फीडबैक देगा। दूसरा राष्ट्रीय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट है, जो पार्टी की नीतियों, विचारधारा, दृष्टि, सरकार की नीतियों और मौज़ूदा ज्वलंत मुद्दों पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के व्यापक प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगा। केरल स्थित राजीव गाँधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज से इस राष्ट्रीय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की शुरुआत होगी। तीसरा एआईसीसी स्तर पर इलेक्शन मैनेजमेंट डिपार्टमेंट होगा, जो हर चुनाव की तैयारी प्रभावशाली तरीक़े से कराने और अपेक्षित नतीजे दिला सकने की ज़िम्मेदारी लेगा।

कांग्रेस सभी पदाधिकारियों के प्रदर्शन की निगरानी के लिए एक मूल्यांकन विंग गठित करेगी। अब एआईसीसी के महासचिव (संगठन) के तहत अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी, ज़िला कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों के कार्य का मूल्यांकन होगा, ताकि बेहतर काम करने वाले पदाधिकारियों को आगे बढऩे का मौक़ा मिले और निष्क्रिय पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके। कांग्रेस का मुख्य राजनीतिक आक्रमण भाजपा-आरएसएस की विचारधारा पर रहेगा। साथ ही पार्टी भाजपा के छद्म राष्ट्रवाद और भारतीय राष्ट्रवाद का अन्तर जनता को समझाएगी।
कांग्रेस उत्तर-पूर्व राज्यों पर ख़ास ध्यान देगी, जो एक दशक पहले तक कांग्रेस के मज़बूत समर्थक रहे हैं। इसके लिए वहाँ के सात राज्यों के लिए ‘नॉर्थ ईस्ट को-ऑर्डिनेशन कमेटी’ के अध्यक्ष को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) का स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया जाए। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों में से कांग्रेस अध्यक्ष एक समूह का गठन करेंगी, जो समय-समय पर ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण राजनीतिक विषयों पर निर्णय लेने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को सुझाव देंगे और उपरोक्त निर्णयों के क्रियान्वयन में मदद करेगा।

कांग्रेस ने भले संसदीय बोर्ड के सुझाव को नहीं माना; लेकिन हरेक राज्य में विभिन्न विषयों पर चर्चा के लिए पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी के गठन का फ़ैसला उसने ज़रूर किया है। इसके अलावा कांग्रेस अब एआईसीसी और पीसीसी के सत्र साल में एक बार ज़रूर करेगी। ज़िला, ब्लॉक और मंडल समितियों की बैठक नियमित रूप से होगी और आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर ज़िला स्तर पर 9 अगस्त से 75 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्यों, त्याग और बलिदान की भावना प्रदर्शित होगी।

भाजपा से अब तक पिट रहे मीडिया और संचार विभाग को भी कांग्रेस मज़बूत करेगी। बदलते भारत में कांग्रेस के मीडिया और संचार विभाग के अधिकार क्षेत्र, कार्यक्षेत्र और ढाँचे में बदलाव कर व्यापक विस्तार किया जाएगा और मीडिया, सोशल मीडिया, डाटा, रिसर्च, विचार विभाग आदि को संचार विभाग से जोडक़र विषय विशेषज्ञों की मदद से और प्रभावी बनाया जाएगा।

अब क्या होगा?

पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर कुछ नेताओं को बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दे सकती है। सचिन पॉयलट जैसे युवा नेता पार्टी में बेहतर पोजीशन में आ सकते हैं। राहुल गाँधी कह चुके हैं कि युवाओं और वरिष्ठ नेताओं को बराबर तरजीह दी जाएगी; लेकिन युवा बेहतर के हक़दार हैं। राहुल गाँधी ने शिविर में भारत जोड़ो के नये नारे के साथ पार्टी को कायाकल्प का मंत्र दिया। उन्होंने साफ़ कहा कि हम फिर जनता के बीच जाएँगे, उससे अपने रिश्ते मज़बूत करेंगे और ये काम शॉर्टकट से नहीं होगा। ये पसीना बहाने से होगा।
राहुल ने वरिष्ठ नेताओं से कहा कि वे डिप्रेशन में न जाएँ, क्योंकि लड़ाई लम्बी है। राहुल गाँधी ने कहा कि कांग्रेस में कौन-सी पोस्ट किसे मिल रही है? इस पर इंटरनल फोकस रहता है। अब इससे काम नहीं चलेगा। इससे बाहर भी फोकस करना होगा। राहुल ने कहा- ‘हमें बिना सोचे जनता के बीच जाना चाहिए। इससे पहले जनता से कनेक्शन (तारतम्य) टूट गया था, हमें उसे जोडऩा होगा। जनता समझती है। कांग्रेस पार्टी देश को आगे ले जा सकती है, देश में विकास कर सकती है।’
चिन्तन शिविर से साफ़ ज़ाहिर हो गया है कि पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में अब शायद ज़्यादा उठापटक न हो। राहुल गाँधी का दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनना लगभग तय है। प्रियंका गाँधी संगठन में कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ सलाहकार जैसी भूमिका में आ सकती हैं, जबकि बाक़ी राज्यों में नये अध्यक्ष बनाने की तैयारी है।

नेतृत्व ने साध लिये असन्तुष्ट

चिन्तन शिविर में कांग्रेस ने सिर्फ़ भविष्य की रणनीति ही नहीं बुनी, पार्टी नेतृत्व ने असन्तुष्ट धड़े जी-23 के नेताओं को भी साध लिया है। कांग्रेस में असन्तुष्टों का जो धड़ा राज्य सभा में न जा सकने की सम्भावना के कारण छटपटा रहा था, उसे पार्टी नेतृत्व ने राज्यसभा के ज़रिये ही सँभाल लिया। शिविर के बाद अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने पार्टी की तीन अहम कमेटियों में असन्तुष्ट धड़े के कुछ बड़े नेताओं को जगह दी, जिससे यह साबित हो गया कि यह नेता अब ख़ामोश हो गये हैं। इनमें से कुछ को राज्य सभा भेजने की तैयारी पार्टी ने कर ली है। पार्टी को चिन्तन शिविर से पहले सबसे बड़ी चिन्ता असन्तुष्टों को लेकर थी कि कहीं वो विरोध के स्वर न बुलंद करें।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पार्टी के कुछ बड़े नेताओं से सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने को बैठकें की थीं, उनमें इस मसले पर उनसे विचार विमर्श किया गया। यह रास्ता निकाला गया कि कुछ महत्त्वपूर्ण नेताओं को पार्टी से बाहर जाने से रोका जाए और उन्हें राज्यसभा में या संगठन में जगह दी जाए।

चिन्तन शिविर के बाद सोनिया गाँधी ने जब पार्टी की तीन बड़ी समितियों की घोषणा की, तो असन्तुष्टों के सबसे बड़े दो नेताओं ग़ुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा को सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली ‘राजनीतिक मामलों की समिति’ में जगह देकर अहमियत दे दी और साथ ही असन्तुष्ट धड़े को भी कमज़ोर कर दिया। यह वह समिति है, जिसमें राहुल गाँधी, मल्लिकार्जुन खडग़े, अम्बिका सोनी, दिग्विजय सिंह, के.सी. वेणुगोपाल, जितेंद्र सिंह जैसे नेता शामिल किये गये हैं।

आज़ाद को जी-23 का नेता माना जाता था। इस धड़े के तीसरे बड़े नेता कपिल सिब्बल को उनके बयानों के कारण पार्टी ने ज़्यादा भाव नहीं दिया, जिसके चलते वह ख़ुद ही 16 मई को इस्तीफ़ा देकर पार्टी से बाहर हो गये। अब वह सपा के सहयोग से राज्य सभा जा रहे हैं।
एक और बड़े असन्तुष्ट नेता मुकुल वासनिक को ‘टास्क फोर्स 2024 समिति’ में जगह दी गयी। टास्क फोर्स में पी. चिदंबरम, मुकुल वासनिक, जयराम रमेश, के.सी. वेणुगोपाल, अजय माकन, प्रियंका गाँधी, रणदीप सिंह सुरजेवाला और सुनील कानूगोलु जैसे नेता शामिल हैं। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी साध लिया गया था, जब उनके क़रीबी उदय भान को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया।

पूर्व केंद्रीय मंत्री शशी थरूर को ‘भारत जोड़ो यात्रा के लिए केंद्रीय योजना समिति’ में जगह दे दी गयी। भारत जोड़ो यात्रा के लिए केंद्रीय योजना समिति में दिग्विजय सिंह, सचिन पायलट, रवनीत सिंह बिट्टू, के.जे. जॉर्ज, जोथी मणी, प्रद्युत बोरदोलोई, जीतू पटवारी, सलीम अहमद जैसे नेता शामिल हैं। ज़ाहिर है असन्तुष्टों में अब कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं बचा, जो इन नेताओं के बग़ैर गतिविधि चला सके। सुनील कानूगोलु जैसे राहुल गाँधी के क़रीबी को टास्क फोर्स में लेकर संकेत मिलता है कि राहुल गाँधी की टीम बनायी जा रही है। प्रशांत किशोर से बात नहीं बनने के बाद सुनील कानूगोलु का पार्टी की महत्त्वपूर्व समिति में आना इसलिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि वह भी चुनाव रणनीतिकार हैं। प्रशांत के विपरीत कानूगोलु ख़ामोशी से काम करने के लिए जाने जाते हैं। निश्चित ही आने वाले चुनावों में कांग्रेस के बीच उनकी भूमिका अहम रहेगी।

राज्यसभा की जंग

अगले महीने राज्यसभा की जिन 57 सीटों के लिए चुनाव होना है, उनमें से 11 सीटें कांग्रेस के हिस्से आ सकती हैं। हालाँकि इसके लिए सहयोगियों की मदद की ज़रूरत रहेगी। वैसे पार्टी ने 30 मई को 10 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, जिसमें पी. चिदंबरम, मुकुल वासनिक, राजीव शुक्ला, रंजीत रंजन, अजय माकन, जयराम रमेश, विवेक तन्खा, इमरान प्रतापगढ़ी, रणदीप सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी शामिल हैं। यह सभी जीत जाते हैं, तो उच्च सदन में उसके सदस्यों की संख्या 29 से बढक़र 33 हो जाएगी। पार्टी में ग़ुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता भी राज्यसभा सीट पर आँखें गड़ाये बैठे थे। पार्टी में पी. चिदंबरम (महाराष्ट्र), जयराम रमेश (कर्नाटक), अंबिका सोनी (पंजाब), विवेक तन्खा (मध्य प्रदेश), प्रदीप टम्टा (उत्तराखण्ड), कपिल सिब्बल (उत्तर प्रदेश) और छाया वर्मा (छत्तीसगढ़) का राज्यसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। यदि राज्यों में कांग्रेस की सीटों का वर्तमान गणित देखा जाए, तो उसे राजस्थान से तीन, छत्तीसगढ़ से दो, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा और मध्य प्रदेश से राज्यसभा की एक-एक सीट मिल सकती है। तमिलनाडु में सहयोगी डी.एम.के. और झारखण्ड में झामुमो उसे एक-एक सीट दे सकते हैं।

चिदंबरम गृह राज्य तमिलनाडु से राज्यसभा जाना चाहते हैं और हाल में उन्होंने द्रमुक नेता मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मुलाक़ात की थी। हालाँकि यहाँ पेच यह था कि राहुल गाँधी पार्टी के डाटा विश्लेषण विभाग प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती को तमिलनाडु से राज्यसभा भेजना चाहते थे। कर्नाटक से जयराम रमेश कतार में थे ही। वैसे रणदीप सुरजेवाला भी कर्नाटक की सीट पर नज़र रखे थे।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी ग़ुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा को अब क्या पद देती है। हो सकता है उन्हें संगठन में महत्त्वपूर्ण ओहदे दिये जाएँ। मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र से भी कांग्रेस एक-एक सीट जीत सकती है। छत्तीसगढ़ से कांग्रेस दो सीटें जीतने की स्थिति है, जहाँ उसका विधानसभा में बम्पर बहुमत है।

जी-23 के निपटने से एक तरह से गाँधी परिवार के लिए पार्टी के भीतर चुनौती ख़त्म हो गयी है। सिब्बल, जिन्होंने गाँधी परिवार से बाहर का कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की वकालत की थी; को पार्टी नेतृत्व ने तरजीह दी ही नहीं। सोनिया गाँधी जिस तरह से सक्रिय हुई हैं, उससे ज़ाहिर होता है कि नया अध्यक्ष बनने तक पार्टी में वही होगा, जो नेतृत्व चाहता है। सिब्बल के ज़रिये अन्य को भी सन्देश दे दिया गया है। सोनिया ने ऐसा 1998-99 में भी किया था, जब विदेश मूल को लेकर शरद पवार, पी.ए. संगमा और तारिक अनवर की बग़ावत को इतनी चतुराई से निपटाया कि उन्हें पार्टी से बाहर जाकर फिर सोनिया गाँधी से हाथ मिलाना पड़ा।

नेतृत्व ने सबसे पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को साधा। $िफलहाल 10 जनपथ के लम्बे समय तक वफ़ादार रहे ग़ुलाम नबी आज़ाद की नाराज़गी अभी दूर नहीं हो पायी है। उदयपुर के चिन्तन शिविर में आज़ाद और आनंद शर्मा जैसे नेताओं से सोनिया ने ख़ुद मुलाक़ात करके उन्हें पार्टी की समितियों में शामिल होने और राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव दिया था। दोनों उसे ठुकरा नहीं सके। हालाँकि राज्यसभा में जाने की उनकी तमन्ना अधूरी रह गयी।

आक्रामक हो रही कांग्रेस

‘आठ साल, आठ छल’ नाम से पुस्तिका जारी करके कांग्रेस की सक्रियता का संकेत दिया है। इसमें महँगाई, बेरोज़गारी, अर्थ-व्यवस्था, आमदनी, सेना के हितों पर चोट, विकास बनाम नफ़रत, एससी, एसटी, ओबीसी के मसले और राष्ट्रीय सुरक्षा पर आँच जैसे अहम मुद्दों को लेकर मोदी सरकार पर हमला किया गया है। यह साफ़ है कि चिन्तन शिविर के बाद कांग्रेस काफ़ी बदली-बदली सी नज़र आ रही है और वह मोदी सरकार के प्रति अपना रुख़ आक्रामक कर रही है।


“संगठन में ढाँचागत बदलावों की ज़रूरत है। अभूतपूर्व परिस्थितियों का सामना अभूतपूर्व क़दम उठाकर ही किया जा सकता है। हम यही करने जा रहे हैं। हमें मिली नाकामयाबियों से हम बेख़बर नहीं है। न ही हम बेख़बर हैं कठिनाइयों के संघर्ष से, जिसका हमें सामना करना है। हम देश की राजनीति में पार्टी को फिर उस भूमिका में ले जाएँगे, जो पार्टी ने हमेशा निभायी है। इन बिगड़ते हालात में देश की जनता हमसे उम्मीद करती है। हम एक नये आत्मविश्वास, नयी ऊर्जा और प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर सामने आएँगे।’’
सोनिया गाँधी
कांग्रेस अध्यक्ष


“मुझे कोई डर नहीं है। मैंने ज़िन्दगी में एक रुपया किसी से नहीं लिया। कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। मैं सच बोलने से नहीं डरता हूँ। मैं लड़ूँगा और आप सब के साथ मिलकर लड़ूँगा। भाजपा से लड़ाई क्षेत्रीय पार्टियाँ नहीं लड़ सकतीं। यह लड़ाई केवल कांग्रेस ही लड़ सकती है। रीजनल पार्टियाँ भाजपा को नहीं हरा सकतीं, क्योंकि उनके पास विचारधारा नहीं है। वे अलग-अलग हैं। शॉर्टकट से कुछ नहीं होगा। पसीना बहाना होगा, तभी वापस जनता से जुड़ेंगे। हम पैदा ही जनता से हुए हैं, यह हमारा डीएनए है, यह संगठन जनता से बना है। हम फिर जनता के बीच जाएँगे। अक्टूबर में पूरी कांग्रेस पार्टी जनता के बीच जाएगी, यात्रा करेगी। जो जनता के साथ रिश्ता है, वह फिर से मज़बूत करेंगे। यही एक रास्ता है।’’
राहुल गाँधी
पूर्व अध्यक्ष