चाँद पर भारत की ऐतिहासिक जीत

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

खगोलीय इतिहास में 23 अगस्त की तारीख़ स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गयी। यह इतिहास भारत ने रचा है। 23 अगस्त की शाम के 6 बजकर 4 मिनट पर विक्रम नामक चंद्रयान-3 का लैंडर चाँद पर जैसे ही उतरा सभी भारतवासियों के हर्ष का ठिकाना न रहा। अभी तक यह उपलब्धि किसी देश को नहीं मिल सकी है। चाँद पर पहुँचे ही लैंडर से मैसेज आया- ‘मैं अपनी मंज़िल पर पहुँच गया हूँ। अब रोवर रैंप से बाहर निकलेगा तथा अपने परीक्षण शुरू करेगा।’

विदित हो कि इसरो के लॉन्चिंग केंद्र श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई की शाम को चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया था। इसरो में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों की लगन तथा मेहनत पर खरा उतरते हुए चंद्रयान-3 सभी भारतीयों की प्रार्थनाओं से 41वें दिन चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा। यह सफलता भारत से पहले चाँद पर पहुँचे देशों को भी नहीं मिल सकी है। चंद्रयान-3 मिशन के सफल होने पर साउथ अफ्रीका से वर्चुअली जुडक़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताली बजाकर वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ाया। उन्होंने इसरो के सभी वैज्ञानिकों तथा देशवासियों को इस सफलता के लिए बधाई दी। इसरो के निदेशक एस. सोमनाथ ने भी अपने सभी वैज्ञानिक सहयोगियों, इसरो के कर्मचारियों, सुरक्षा गार्डों तथा देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि अगले 14 दिन हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रज्ञान हमें चाँद के वातावरण के बारे में जानकारी देगा। हमारे कई मिशन कतार में हैं। वास्तव में चंद्रयान-3 को चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर भारत ने स्वर्णिम इतिहास रचा है। चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला भारत पहला देश है। इसे पूरी दुनिया ने देखा। दुनिया को इससे यह मैसेज गया है कि भारत के पास प्रतिभाओं का धनी है। भारत की शक्तियों को चुनौती देना आसान नहीं होगा। चाँद पर उतरने के बाद चंद्रयान-3 ने चाँद की तस्वीरें भेजनी शुरू की। चाँद से धरती तक की तस्वीरें सामने आ रही हैं। चंद्रयान-3 के चाँद पर उतरने के कुछ घंटे बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने रोवर प्रज्ञान को बाहर निकाला। जब चंद्रयान-3 चाँद पर लैंडिंग करने वाला था तब पूरा देश प्रार्थना कर रहा था। चंद्रयान को धीरे-धीरे उतारा गया, जिसमें 20 मिनट लगे।

अपनी खोज तथा परीक्षण में लगे चंद्रयान-3 का विक्रम संचार कार्य करने लगा। इसके बाद रैंप खुला तथा प्रज्ञान रोवर रैंप से चाँद की सतह पर पहुँचा। चंद्रयान-3 के लैंटर विक्रम के पहियों ने चाँद की मिट्‌टी पर अशोक स्तंभ तथा इसरो के लोगो (प्रतीक चिह्न) के निशान छोडऩे शुरू कर दिये। इसके साथ ही लैंडर विक्रम ने रोवर प्रज्ञान की तस्वीरें खींचनी शुरू कीं और रोवर प्रज्ञान ने लैंडर विक्रम की तस्वीरें खींचनी शुरू कीं। लैंडिग वाले दिन से पहली रात इसरो 50 वैज्ञानिकों तथा उनके कई मददगारों, सेवाकर्मियों, सुरक्षाकर्मियों ने जागकर काटी। दिन-रात की मेहनत के उपरांत उत्साह-बेचैनी भरा समय आख़िर 23 अगस्त की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर ख़ुशी में बदल गया। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो प्रमुख प्रार्थना करने निकल गये। इसरो के बेंगलूरु स्थित टेलीमेट्री एंड कमांड सेंटर (इस्ट्रैक) के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स (मॉक्स) में हर्ष तथा उल्लास के चलते ढोल-नगाड़े बजे। सफलता मिलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो प्रमुख को फोन लगाकर कहा-‘आपका नाम सोमनाथ है। आपके नाम में ही चाँद (सोम) है। आपके पूरे परिवार को सफलता की बधाई।’

विदित हो कि भारत से पहले रूस ने अपने लूना-25 नाम के चंद्रयान को चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने का प्रयास किया था। अगर रूस का चंद्रयान लूना-25 रास्ता नहीं भटका होता, तो वह भारत के चंद्रयान-3 से दो दिन पहले ही 21 अगस्त लैंडिंग कर चुका होता।

भारत की अंतरिक्ष में इस सफलता से दुनिया का भरोसा भारत तथा भारतीय वैज्ञानिकों पर बढ़ेगा। इससे भारत का विज्ञान क्षेत्र का व्यापार बढ़ेगा। भारतीय प्रतिभाओं की माँग भी दुनिया में बढ़ेगी। चाँद की नयी खोजें भारत को हासिल होंगी। अन्य देशों को भी चाँद पर सफलतापूर्वक पहुँचने में मदद मिलेगी। अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार, चाँद के कई हिस्सों पर सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुँचती है, जिससे वहाँ का तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे स्थानों पर वैज्ञानिक विशेष खोज कर रहे हैं। अनुमान है कि इतनी ठंडी जगहों पर बर्फ जमी हो सकती है, जिसे पानी में बदला जा सकता है। सम्भव है कि पृथ्वी पर चाँद की ठंकक महसूस किये जाने का एक यह भी कारण हो कि चाँद तपता नहीं है। चाँद का एक बड़ा भाग शीतल है। इससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि पृथ्वी के निकट की चाँद की कक्षा अत्यधिक ठंडी हो सकती है।

विदित हो कि भारत ने 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान-1 भेजा था, जिसने चाँद की सतह पर पानी होने के संकेत दिये थे। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक चक्कर लगाये; परन्तु 29 अगस्त को अंतरिक्ष यान के साथ संचार अंतरिक्ष में गुम हो गया। दोबारा इसरो ने सन् 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया। यह चाँद के क़रीब पहुँचा; परन्तु लैंड नहीं कर पाया। आख़िर तीसरे प्रयास में कड़ी मेहनत तथा उन्नत तकनीकके चलते चंद्रयान-3 सफल हुआ। चंद्रयान-3 के चारों ओर सुनहरी परत मल्टीलेयर इंसुलेशन है, जिसे एमएलआई भी कहते हैं। यह बहुत हल्की फिल्म है, जिसकी कई परतें लगाने से यान के आवश्यक अंग अंतरिक्ष की विकिरणों से क्षतिग्रस्त होने से बचते हैं। सोने जैसी दिखने वाली यह परत ऊपर से सुनहरी तथा अन्दर से चाँदी के रंग की होती है। इस परत का मुख्य काम सूरज के प्रकाश को परिवर्तित करना भी है। चाँद तथा अंतरिक्ष में ठंडक होने के चलते यह परत चंद्रयान के उपकरणों से उत्पन्न गर्मी को बाहर निकलने से रोकती है। इसके अतिरिक्त यह परत सौर विकिरणों तथा पराबैंगनी किरणों को अंतरिक्ष में मोड़ देती है, जिससे यान सुरक्षित रहता है। यह परत उपकरणों द्वारा की जा रही निगरानी तथा रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया पर विपरीत प्रभाव डालने वाले प्रभावों को कम करती है।

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो ने इसे भविष्य के लिए एक अहम बताया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत के वैज्ञानिकों ने तीसरे प्रयास में ही वह कर दिखाया है, जो अभी तक कोई नहीं कर सका है। इससे इसरो का नाम नासा की तरह ऊँचा होगा। नासा को भी इसरो का लोहा मानना पड़ेगा।

अब चंद्रयान-3 की गतिविधियों की निगरानी कर रहे इसरो के वैज्ञानिक चाँद की मौलिक संरचना की जानकारी हासिल करने में लगे हैं। इसके अतिरिक्त वे चाँद की सतह के प्लाज्मा घनत्व, तापीय गुणों, सतह के नीचे की हलचल, मिट्टी की परतों, हवा-पानी की उपलब्धता एवं जीवन की सम्भावनाओं की खोज करने का प्रयास करेंगे। इन सब खोजों के पीछे का मक़सद जीवन के स्रोत तलाशना है।

इन सब खोजों के लिए प्रज्ञान रोवर के इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप तथा अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर नाम के दो प्रमुख उपकरण कार्य कर रहे हैं। एलआईबीएस चाँद की सतह पर मैग्नीशियम, पोटेशियम, कैल्शियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, टाइटेनियम तथा आयरन जैसे रासायनिक तत्त्वों की खोज करेगा। वहीं एपीएक्सएस की मदद से चाँद पर मिट्टी, पत्थरों तथा उनमें पाये जाने वाले रासायनिक यौगिकों का पता लगाएगा। चंद्रयान-3 से निकला 26 किलोग्राम वजनी छ: पहियों वाला प्रज्ञान रोवर चाँद की सतह पर घूम रहा है। इसरो के वैज्ञानिक रोवर प्रज्ञान तथा लैंडर विक्रम की गतिविधियों की निगरानी हर क्षण कर रहे हैं। प्रार्थना है कि यह मिशन सफल हो तथा भारत अंतरिक्ष में भी तिरंगा फहराने में कामयाब हो। चाँद के बाद अब 02 सितंबर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का पहला अंतरिक्ष यान सूर्य का सर्वेक्षण करेगा। उम्मीद है कि इसरो का यह मिशन भी सफल होगा।

यह क्षण भारत के सामथ्र्य का है। यह क्षण भारत में नयी ऊर्जा, नये विश्वास, नयी चेतना का है। अमृतकाल में अमृतवर्षा हुई है। हमने धरती पर संकल्प लिया और चाँद पर उसे साकार किया। हम अंतरिक्ष में नये भारत की नयी उड़ान के साक्षी बने हैं। अब चंदा मामा दूर के नहीं हैं। अब चंदा मामा एक टूर के रह गये हैं।’’

नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री