दिलीप कुमार के निधन पर देश भर में दुःख की लहर
दर्जनों किरदारों को जीवंत करने वाले दिलीप साहब चले गए। फिल्म इंडस्ट्री में अपने अभिनय की गहरी लकीर बांधकर। आने वाले दशकों में कई कलाकार होंगे, लेकिन दिलीप कुमार इकलौते ही थे। उनके हर दुःख-सुख में छाया बनकर उनके साथ रहीं सायरा बानो दिलीप के जाने से अकेली रह गईं। दिलीप पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे लेकिन कई बार लगता था वे 100 पार कर लेंगे। लेकिन आज सुबह करीब 7.30 बजे उनके अंतिम सांस लेते ही देश भर में सन्नाटा सा छा गया।
दिग्गज दिलीप कुमार, जिनका असली नाम युसूफ खान था, 98 साल के थे। दिलीप नाम उन्हें देविका कुमारी ने दिया था। सांस लेने में दिक्कत के चलते उन्हें 29 जून को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। करीब 20 साल से स्वास्थ्य कारणों से ही दिलीप कुमार फिल्मों से दूर थे लेकिन सायरा बानो से हर जानकारी लेते रहते थे।
दिलीप कुमार के पारिवारिक मित्र फैजल फारुखी ने आज एक्टर के ट्विटर से उनके निधन की जानकारी दी। उन्होंने लिखा – ‘बहुत भारी दिल से ये कहना पड़ रहा है कि अब दिलीप साब हमारे बीच नहीं रहे’।
उनके निधन से इंडस्ट्री में शोक की लहर है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर तमाम फ़िल्मी सितारों और अन्य लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया है।
दिलीप का पूरा नाम मोहम्मद युसूफ खान और उनका जन्म 11 दिसंबर, 1922 को हुआ। उन्हें हिंदी सिनेमा में ‘मेथड एक्टिंग’ के जनक माने जाने वाले दिलीप -ट्रेजेडी किंग’ माने गए। हालांकि, ट्रेजगेड़ी फ़िल्में करतेकरते अवसाद से घिरने के बाद उन्होंने चिकित्सक की सलाह पर विविध रोल निभाए।
दिलीप कुमार की एक्टिंग की शुरुआत 1944 में फिल्म ज्वार भाटा से हुई। बॉम्बे टॉकी ने इसे प्रोड्यूस किया। करीब पांच दशक के एक्टिंग करियर में 65 से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने काम किया। दिलीप कुमार की कुछ मशहूर फिल्मों में अंदाज (1949), आन (1952), दाग (1952), देवदास (1955), आजाद (1955),
मुग़ल-ए-आज़म (1960), गंग जमना (1961), राम और श्याम (1967) ख़ास हैं। साल
1976 में दिलीप कुमार ने काम से पांच साल का ब्रेक लिया। उसके बाद 1981 में उन्होंने ‘क्रांति’ से वापसी की। इसके बाद शक्ति (1982), मशाल (1984), करमा (1986), सौदागर (1991) में दिलीप ने अपनी अदाकारी का झंडे गाड़े। उनकी आखिरी फिल्म किला थी जो 1998 में रिलीज हुई।
दिलीप कुमार लगातार कई फिल्में हिट दी हैं। उनकी फिल्म मुगल-ए-आजम ने उस वक्त की सबसे कमाई करने वाली फिल्म बनी। अगस्त 1960 में रिलीज हुई यह फिल्म उस वक्त की सबसे महंगी लागत में बनने वाली फिल्म थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फिल्म की उस वक्त की कमाई का 2011 के हिसाब से 1000 करोड़ की कमाई का अनुमान लगाया गया था। फिल्म को दो नेशनल, फिल्मफेयर समेत कई फिल्म अवॉर्ड मिले थे।
पाकिस्तान सरकार ने साल 1998 में दिलीप कुमार को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से नवाजा जिससे जाहिर होता है कि उनकी अदाकारी के दीवाने पाकिस्तान में भी कम न थे। दिलीप कुमार पर साल 2014 में उदयात्रा नैयर ने एक किताब ‘दिलीप कुमार: द सब्सटांस एंड द शैडो’ लिखी थी।
दिलीप कुमार ने अपने अभिनय से कई अवार्ड्स अपने नाम किये। साल 1991 में ‘पद्मा भूषण’ अवार्ड से सम्मानित किया गया था। साल 1994 में ‘दादासाहेब फाल्के’ अवार्ड्स से सम्मानित किया गया था। साल 1998 में पाकिस्तान सरकार की तरफ से उन्हें ‘निशान-ए-इम्तिआज़’ अवार्ड से सम्मानित किया गया था। साल 2015 में ‘पद्मा विभूषण’ अवार्ड से सम्मानित किया गया था।