यह घड़ी की उस सुई जैसा था जिसे जुए में इस्तेमाल किया जाता है। जिस नंबर पर रुकी, उसी को इनाम। दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी के बारे में यही कहा जा सकता है। अंबिका सोनी, सुनील जाखड़ और नवजोत सिद्धू के नामों के आगे से निकलते हुए सुई चन्नी के नाम के आगे जा रुकी। साल 2015 में विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे चन्नी अब पंजाब के नए मुख्यमंत्री होंगे, भले कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव तक। उधर पंजाब के विधायकों के फैसले के बाद राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले हैं। राहुल पंजाब में विधायकों से बातचीत की लगातार अपडेट ले रहे थे।
चन्नी भी अमरिंदर सिंह विरोधी माने जाते हैं। चन्नी ने जल्द ही राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए समय माँगा है। चन्नी के मुख्यमंत्री के रूप में चुनाव की खुशी में लड्डू बंटने की तस्वीरें शायद अमरिंदर को अब और निराश करेंगी !
दो अप्रैल, 1973 में जन्मे चन्नी वरिष्ठ नेता हैं और कांग्रेस के विधायकों ने आज शाम उनका नाम सर्वसम्मति से तय कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अंतिम फैसले के लिए भेजा था। पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत और महासचिव अजय माकन ने एक-एक विधायक से बात की और जिस नाम पर सर्वसम्मति बनी वे चन्नी थे। रावत ने ट्ववीट करके इसकी जानकारी दी है।
दो उप मुख्यमंत्री भी पंजाब में होंगे। इसके लिए नाम की घोषणा अभी नहीं की गयी है। चन्नी किसान आंदोलन के दौरान किसानों के संगठनों से सरकार की तरफ से बातचीत करते रहे हैं। खुद भी किसान हैं और खेती की खासी समझ रखते हैं। कांग्रेस आलाकमान के वफादार चन्नी के ऊपर चुनाव तक के इन कुछ महीनों में पार्टी के बीच चली जंग से बिगड़ी छवि को संवारने और चुनाव के बचे वादों को पूरा करने की बड़ी चुनौती है। सीमा की बेल्ट से निकलकर इस पद तक पहुंचे चन्नी को अच्छा प्रशासक माना जाता है।
चन्नी ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना नाम सामने आने के बाद कहा – ‘ पंजाब की खुशहाली, शान्ति और तरक्की के लिए काम करना है। पार्टी एकजुट है। चार महीने तो बहुत होते हैं, काम करने वाला हो तो चार दिन भी बहुत होते हैं। हम (कांग्रेस) मजबूत है।’ एक दलित सिख को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने मास्टर स्ट्रोक चला है और इस से भाजपा सहित अकाली दल के लिए भी। ‘आप’ भी इस मामले में कांग्रेस से मार खा बैठी है।
कल रात से मुख्यमंत्री पद के लिए वरिष्ठ नेता अम्बिका सोनी का नाम लगभग तय कर लिया गया था लेकिन खुद सोनी ने राहुल गांधी के साथ बैठक में नम्रता से पद की दौड़ से खुद को अलग करते हुए किसी सिख को मुख्यमंत्री बनाने पर जोर दिया। सिद्धू का नाम तो दौड़ में था लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों का मानना था कि सिद्धू को चुनाव के बाद ही जिम्मेदारी देना बेहतर होगा, क्योंकि यदि अगला चुनाव नतीजा पक्ष में न रहा तो सिद्धू के करियर को धक्का लग सकता है।
चन्नी भले सिद्धू के कट्टर समर्थक न हों, लेकिन उन्हें भी बादल परिवार का विरोधी माना जाता है। चन्नी बेअदबी मामले में भी बहुत मुखर रहे हैं। ऐसे में चन्नी का मुख्यमंत्री बनना बादलों के लिए भी अच्छा नहीं कहा जा सकता, हालांकि, उनका मुख्य विरोध अमरिंदर सिंह तरह सिद्धू के प्रति था। चन्नी सीएम हो जाएंगे, यह शायद बादलों को भी आभास नहीं रहा होगा।
पिछले करीब 35 घंटे के पंजाब कांग्रेस के इस घटनाक्रम में यदि किसी नेता ने सबसे ज्यादा खोया है, वह पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह हैं। इतने वरिष्ठ और अनुभवी नेता कैप्टेन ने नवजोत सिंह सिद्धू को ‘देश का दुश्मन’ तक कह दिया, और हवाला दिया इमरान खान के पीएम पद ग्रहण का जिसमें सिद्धू अपने पुराने क्रिकेटर साथी इमरान खान और पाक सेना के प्रमुख कमर जावेद बाजवा से गले मिलने का। भाजपा के अलावा देश भर में शायद ही कोई और अमरिंदर के इस बेतुके आरोप का समर्थन करेगा। आम लोगों ने भी अमरिंदर के इस ब्यान को ‘मुख्यमंत्री का पद छिनने की निराशा’ माना है। खुद अमरिंदर पर पाकिस्तान की पत्रकार अरुषा से रिश्तों को लेकर ढेरों आरोप लगते रहे हैं। एक दलित सिख को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने मास्टर स्ट्रोक चला है और इस से भाजपा सहित अकाली दल के लिए भी। ‘आप’ भी इस मामले में कांग्रेस से मार खा बैठी है।
इसके अलावा आलाकमान ने जिन चन्नी को अब मुख्यमंत्री बनाया है, वे अब सिद्धू के समर्थक हुए हैं। शनिवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में पार्टी के 80 में से 78 विधायक उपस्थित थे। कैप्टेन के लिए बहुत मुश्किल होगा कि वे इनमें से कुछ विधायकों को साथ जोड़े रखें। एक बार सरकार बनने के बाद अमरिंदर पंजाब की राजनीति में अकेले पड़ सकते हैं। वैसे भी पंजाब में अभी भी कांग्रेस के लिए चुनाव के बाद दोबारा सत्ता में लौटने की अन्य दलों के मुकाबले सबसे संभावनाएं हैं, यह बात विधायक भी अच्छी तरह समझते हैं।
अमरिंदर सिंह ने पिछले 26 घंटे में जो ब्यान दिए हैं, उससे उन्होंने सोनिया गांधी जैसी अपनी मजबूत समर्थक की सहानुभूति भी खोने का रिस्क ले लिया है। जब उनपर भाजपा में जाने की बातें मीडिया में आ रही थीं, उन्होंने एक बार भी इनका खंडन नहीं किया। उलटे जलियांवाला बाग़ के नवीकरण पर जब राहुल गांधी ने मोदी सरकार के खिलाफ बोला तो कैप्टेन ने एक तरह से पीएम मोदी का पक्ष लिया जो इसका उद्घाटन करने आये थे, जबकि पंजाब में जलियांवाला बाग़ के नवीकरण के खिलाफ माहौल था।
अमरिंदर के साथ यदि विधायक नहीं रहते हैं तो उन्हें कांग्रेस से बाहर जाना भी मुश्किल होगा। बिना विधायकों के भाजपा या कोई और पार्टी 80 साल की उम्र में उन्हें क्यों साथ लेगी। क्या सिर्फ नेतृत्व देने के लिए ?
कैप्टेन अमरिंदर के हटने से यह बात साबित हो गयी है कांग्रेस आलाकमान अब मजबूत फैसले लेने लगी है। पंजाब से निपटने के बाद वह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी की जंग को लेकर फैसले कर सकती है।