हीरा कारोबार को मुश्किलों से निजात दिलाने का असली दारोमदार सरकार पर है
जब भी जयपुर के जेम्स एंड ज्वेलरी उद्योग का ज़िक्र होता है, तो ज़ेहन में अभिभूत कर देने वाले अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी दिवंगत राजमहिषी महारानी गायत्री देवी का जेम्स एंड ज्वेलरी प्रेम सिनेमाई तस्वीरों की तरह आँखों में तैरने लगता है। उनके पास डायमंड और रत्नाभूषणों का दुर्लभ संग्रह था। यह अनुपम संग्रह आज लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में देखा जा सकता है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि महारानी के पसंदीदा डिजाइन के रत्नाभूषण उनके निजी हुनरमंदों द्वारा उन्हीं की निगहबानी में ही तैयार होते थे। अमूमन ये हुनरमंद विदेशी ही होते थे।
ग़ौरतलब है कि नगीनों और रत्नाभूषणों का यह महँगा शौक़ बेशक शाही परिवारों ने अपना वैभव दर्शाने का अचूक तरीक़ा माना जाता रहा है। लेकिन दक्षिण भारत में हीरे और अन्य रत्नों के आभूषण ‘मन्दिर ज्वेलरी’ के रूप में देवताओं को ही समर्पित रहे।
आज जेम्स एंड ज्वेलरी का आकर्षण मध्यमवर्ग को लुभा रहा है, तो यह कहने में भी गुरेज़ नहीं करना चाहिए कि इसके और भी रंग हैं। मसलन- प्यार, प्रतिकार, सौन्दर्य और रोमांस की मुश्क में रचे-बसे हीरे कब किसे रास आएँ या न आएँ, कुछ नहीं कहा जा सकता।
क़ीमती हीरों का संग्रह
हीरे की पहचान कट, कलर और क्लियरिटी (छँटाई, रंग और शुद्धता) से भले ही होती है। लेकिन अनगढ़ से कोहिनूर तक पहुँचने की कथा बेहद लम्बी और थकाऊ है। डायमंड की बादशाहत की बात करें, तो यह दर्जा आज भी ‘कोहिनूर’ को हासिल है? ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा कोहिनूर आज की तारीख़ में लंदन के संग्रहालय में अमूल्य निधि के रूप में दर्शकों को लुभा रहा है। ईरान, इंग्लैंड और फ्रांस के शाही परिवारों के मुकुटों में जड़े डायमंड भी भारत की देन है। मुगल शासकों का डायमंड अनुराग तो विश्वप्रसिद्ध रहा है। उनके दुर्लभ रत्न संग्रह विदेशों में कैसे पहुँचे? यह एक लम्बी कहानी है। हॉलीवुड की प्रख्यात अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर की तो पहचान ही दुर्लभ रत्नाभूषणों का संग्रह रखने की वजह से थी। हीरों का ऐसा दुर्लभ संग्रह तो शायद ही किसी के पास होगा।
कोई पाँच साल पहले जयपुर की जेम्स एंड ज्वेलरी इंडस्ट्री की थाह नापने के लिए जीआईए संगठन ने हालात को पूरी तरह खँगाला था। उन्होंने इस उद्योग के उत्पादन तथा कारोबारी हलक़ों की व्यापक पड़ताल की थी। उनका मानना था कि जयपुर का ज्वेलरी उद्योग परम्परागत तरीक़ों, अनुभव और नवीनतम तकनीक के समन्वय के साथ बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। जीआईए के अध्ययन दल का मानना था कि जयपुर ने जेम्स ज्वेलरी डिजाइन, कलर स्टोन कटिंग तथा कारोबार पर अपनी जबरदस्त पकड़ बना ली है। अध्ययन दल का तो यहाँ तक मानना है कि जयपुर अत्याधुनिक रत्नाभूषण तैयार करने तथा कलर स्टोन कटिंग केंद्र की दृष्टि से पॉवर हाउस का दर्जा ले चुका है। जेम्स एंड ज्वेलरी के क्षेत्र में शिखर पर पहुँचे जयपुर का नज़ारा आज भी वैसा है। जबकि कारोबार को अफ़सरी, नोटबंदी और मंदी ने बदहाली की तरफ़ धकेल दिया है। हालाँकि बावजूद इसके हीरे में जितनी चमक है, उसके अपने बूते है।
संकट की दस्तक
जयपुर के डायमंड उद्योग पर संकट की कितनी दस्तक पड़ चुकी है। इसकी हर कहानी झकझोर देने वाली है। कभी डायमंड के कारोबार में वैश्विक हैसियत रखने वाला गुलाबी नगर अपने शिखर से दरक चुका है।
संकटों की फ़ेहरिस्त तैयार करें, तो एक अन्तहीन शृंखला तैयार हो जाएगी। मुश्किलों से निजात दिलाने का असली दारोमदार सरकार पर है; लेकिन सरकार तो पहले ही शुतुरमुर्ग़ की तरह रेत में मुँह घुसाये बैठी है। ऐसी मुर्झायी फ़िज़ाँ में उम्मीदों की अगुवाई कैसे होगी? उम्मीदों की सीढिय़ाँ चढऩे के लिए इस उद्योग को चाहिए पर्याप्त आधारभूत संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर)। डायमंड तराशने, पॉलिश करने आदि से लेकर कोई 25 हज़ार औद्योगिक इकाइयाँ यहाँ सक्रिय है। सालाना 12,000 करोड़ के टर्न ओवर वाले इस उद्योग में दो लाख से ज़्यादा लोग रोज़गारयाफ़्ता है। भारतीय बाज़ार के अलावा इस उद्योग की वैश्विक पकड़ भी चौंकाने वाली है।
ज्वेलरी उद्योग से जुड़े राजीव अधलक्खा कहते हैं- ‘इतना बड़ा उद्योग होने के बावजूद आर्थिक संसाधन के मामले में पूरी तरह बदहाल है और यही कमज़ोरी इस उद्योग को सकारात्मकता पर रीझने नहीं देती। सरकार की बेरूख़ी के कारण आर्थिक संकेतक भी नरम-नरम ही रहे। रही सही कमी कोरोना ने पूरी कर दी। इससे माँग ही नदारद नहीं हुई, संक्रमण की हवाओं ने निवेश और मंदी से भी कारोबारियों को बेज़ार कर दिया। मंदी की चुभन को हर क़दम पर महसूस किया जा रहा है। जीएसटी ने भी इसी उद्योग को तबाही का इलाक़ा बना दिया। जयपुर के जौहरी बाज़ार में कभी शाम की रोनकें देखने क़ाबिल होती थीं, जब अथाह भीड़ में कागज़ की पुडिय़ाँ में रत्नों की आभा बिखेरते हुए कारोबारी पारखियों से घंटों रू-ब-रू हुआ करते थे। रत्नों की घिसाई की भी अनेक छोटी-मोटी घरेलू नज़र आने वाली इकाइयाँ कभी दिन-दोपहर में मिल जाया करती थी। अब इनकी तादाद भी उँगलियों पर रह गयी है। उद्योग से जुड़े कारोबारियों ने नये हुनरमंद तैयार करने की कभी कोशिश ही नहीं की। अन्यथा सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण केंद्र बनाये जाते, तो उद्योग का सफ़र सुहाना हो सकता था।’
ज्वेलर राजेन्द्र सोनी कहते हैं- ‘अगर उद्योग को पर्याप्त आर्थिक रुझान और तकनीक को समुन्नत करने के अवसर मिले होते, तो क्योंकर सिर पर मुसीबत लेने की नौबत आती। ताज़ूब है कि जिस उद्योग का वैश्विक अर्थ-व्यवस्था से जुड़ाव है, उसके ढाँचागत सुधार और आर्थिक सम्बल की तरफ़ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।’
विशेषज्ञों का कहना है कि इस उद्योग की ढाँचागत सुविधाओं को ही बहाल नहीं करना घरेलू खपत तथा निर्यात की रफ़्तार बढ़ाने की शक्ति भी प्रबल करनी होगी। एक विहंगम दृष्टि डाली जाए, तो कहना ग़लत नहीं होगा कि जयपुर में डायमंड तराशने और रत्नाभूषण बनाने के मामले में एक बड़े कुटीर उद्योग की शक्ल अख़्तियार कर चुका है।
जयपुर से निर्यात
रत्नों के लिए विश्व विख्यात शहर जयपुर क्या वाक़र्इ इन दिनों इस उद्योग की चमक लौटाने की चुनौती झेल रहा है? इसके दो पहलू हैं। जेम्स एंड ज्वेलरी यानी रत्नाभूषण के कारोबार की बात करें, तो सख़्त लॉकडाउन के दरमियान भी हमारे रत्नों की चमक बरक़रार रही। आँकड़ों पर नज़र दोड़ाएँ, तो कोरोना के संक्रमण-काल के बावजूद जयपुर से 1,396 करोड़ का निर्यात हुआ। बीते साल 372.95 करोड़ ही निर्यात हुआ, जबकि इस बार निर्यात 1023.75 करोड़ ज़्यादा का हुआ। ऐसा क्यों कर हुआ?
जयपुर ज्वेलरी कारोबारी संगठन के निदेशक सव्यसाची राय का कहना है- ‘दरअसल देशव्यापी लोकडाउन नहीं होने से औद्योगिक इकाइयाँ चलती रही। उधर विदेशों में भी बाज़ार खुले रहने से रत्न आभूषणों की माँग में इज़ाफ़ा होता रहा। हालाँकि कारोबार की अंदरूनी ख़बरों की सुनगुन सुने, तो निर्यात के इन आँकड़ों में सोने-चाँदी और प्लेटिनम के आभूषण तथा स्टोन शामिल है, तो इतराने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।’ (…जारी)