क्या कालिख सफ़ाई अभियान मस्तक देखकर टीका लगाने के मानिंद होती है? अथवा मछलियाँ ही इतनी बड़ी होती हैं कि सरकार के जाल छोटे पड़ जाते हैं? सियासी गणिताई में इन सवालों के जवाब मुश्किल हैं। लेकिन भ्रष्टाचार के इस गटर को खँगालें, तो चौंकाने वाले ऐसे चमकते चेहरों पर कई अलग-अलग मुखौटे नज़र आएँगे, जो अपने धतकर्मों को छिपाने के लिए उन मुखौटों पर शराफ़त का एक बड़ा मुखौटा लगाये मिलेंगे; या फिर लोगों का दुलार पाने के लिए क़िस्म-क़िस्म की नोटंकियाँ करते नज़र आएँगे।
इस फ़ेहरिश्त में नेताओं तो हैं ही, लेकिन अफ़सर भी उनसे कम नहीं हैं। अगर राजस्थान के अफ़सरान की बात रें, तो इस क़तार में पहला नाम प्रशासनिक टाइगर नीरज पवन का है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मान-सम्मान और पुरस्कार पा चुके नीरज लोगों की नज़र में कितने पवित्र थे, इसे समझने के लिए पाली के लोगों का उनके प्रति वह प्यार था, जिसे वह उनकी ईमानदारी देखकर करते थे। दरअसल ज़िला कलेक्टर रहते हुए उनके तबादले के विरोध में पूरा शहर उमड़ पड़ा था। उनके प्रति लोगों के दुलार की वजह की तह में ढेरों मिसालें गिनायी जा सकती हैं। उन्होंने शिकायतों के निस्तारण के लिए ‘हेल्पलाइन 1040’ का गठन किया। कृषि आयुक्त रहे हुए पवन ने ‘कोबरा टीम’का गठन किया; ताकि नक़ली खाद, बीज के कारोबार पर नकेल कसी जा सके। ऐसा पहली बार हुआ, नतीजतन पवन किसानों के चहेते बन गये।
गुर्जर समस्या के समाधान के मामले में नीरज पवन न सिर्फ़ अशोक गहलोत, बल्कि वसुंधरा राजे के भी दुलारे बन गये थे। लोगों का यहाँ तक कहना है कि आईएएस लॉबी में सबसे ज़्यादा रुतबा नीरज पवन का था। नीरज पवन पहले ऐसे अधिकारी थे, जो गाँवों में रात्रि में चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएँ सुनते थे। ऐसे प्यारे, दुलारे नौकरशाह जब भ्रष्टाचार की काई पर फिसले, तो लोग सन्न रह गये। इसके बाद तो उनके धत्कर्मों की खिड़कियाँ खुलती चली गयीं। लोगों को हैरत थी कि गंगाजल की तरह पवित्र अफ़सर का कोई बदरंग मुखौटा कैसे हो सकता है? बहरहाल पवन जाँच एजेंसी के दरपेश हैं। लेकिन सवाल है कि मुखौटे पर मुखौटा लगाकर चैन की बंसी बजाने वाले प्रशासनिक अफ़सरों की क़तार आख़िर क्यों ख़त्म होने का नाम नहीं लेती?
इसमें कोई शंका नहीं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भ्रष्टाचार के प्रति कठोर रवैया रखते हैं, तभी तो भ्रष्टाचारी असरों की एक-एक करके पोल खुलती जा रही है। पिछले ढाई साल इस दृष्टि से सचमुच बेमिसाल रहे कि सरकार के सर्वोच्च स्तरों पर हर महीने भ्रष्टाचार के नये मामले उजागर हुए। लेकिन इसके बावजूद एक साल पहले चार लाख की घूस लेते रंगे हाथों पकड़े गये खनन विभाग के संयुक्त सचिव बी.डी. कुमावत रिहा हो गये।
ऐसे एक नहीं, अनेक प्रकरण हैं; जिनमें एसीबी ने भ्रष्टाचार के आरोपी अफ़सरों को दबोचा; लेकिन उनमें कई बच गये। अगस्त, 2018 में एसीबी ने सार्वजनिक निर्माण विभाग के दो बड़े अफ़सरों डी.पी. सैनी और गुलाब चंद गुप्ता को रिश्वत लेते पकड़ा था। लेकिन इनके ख़िलाफ़ भी कोई ख़ास क़ानूनी कार्रवाई नहीं हो सकी। क्या ये दोनों अफ़सर अपने काले मुखौटों पर शराफ़त का कोई ऐसा मुखौटा लगाये थे, जिसके नीचे दबे धत्कर्म दिखायी नहीं दिये?
अफ़सरों के भ्रष्टाचार और जालसाज़ी को संरक्षण देने का करोड़ी मामला तो बुरी तरह अचंभित करता है। जयपुर से महाराष्ट्र तक रची गयी इस जालसाज़ी में तीन आरएएस स्तर के अफ़सर और चार कनिष्ठ अधिकारी लिप्त थे। लेकिन पता नहीं ऐसा कौन-सा दबाव पड़ा कि राज्य सरकार इन अफ़सरों पर मुक़दमा तक नहीं चला पायी।
दरअसल इन अफ़सरों ने पहले तो 671 एकड़ ज़मीन के लिए निजी क्षेत्र की हस्तियों से मिलकर नियमों के पुर्जे़ उड़ाते हुए ज़मीन के टुकड़े कर डाले फिर उनके नाम से खाताधारकों ने मुम्बई से और फिर करोड़ों का क़र्ज़ ले लिया। घोटाले का बवंडर उठा तो उड़ते तिनकों ने कई कहानियाँ बाँच दीं। जब घोटाले का ख़ुलासा हुआ तो नीयत, बदनीयत के कई खेल भी चल पड़े।
दरअसल महाराष्ट्र सरकार तो चाहती थी कि इस ज़मीन की नीलामी की जाए, जबकि एसीबी के अफ़सर चाहते थे कि भ्रष्टाचार की धाराएँ लगाकर आरोपी अफ़सरों पर मुक़दमा चल भ्रष्टाचार की धाराएँ लगाकर। पर इन अफ़सरों पर भी कोई कार्रवाई न हो सकी। जालसाज़ी के इस खेल की कोडिय़ाँ कैसे चली गयी? इसके केंद्र में भी बीकानेर के चक्रगर्वी गाँव की 671 एकड़ भूमि, जो सिर्फ़ एक ही व्यक्ति के नाम पर थी; जबकि उस व्यक्ति के नाम निर्धारित बीघा से अधिक रक़बा नहीं होना चाहिए। नतीजतन ज़मीन सीलिंग एक्ट में आ गयी। इसे सीलिंग से बचाने के लिए तत्कालीन उप पंजीयन से गठजोड़ कर पक्षों के नाम से ज़मीन की रजिस्ट्री करा दी गयी।
सन् 2014 में मुम्बई में एनएसईएल घोटाला हुआ था, जिसमें यह ज़मीन भी शामिल थी। मुम्बई की इकोनॉमी ऑफिस विंग ने इस ज़मीन को अटैच करके नीलामी की तैयारी कर ली। इसमें भी एक नया खेल चला। खेल की कौडिय़ाँ चलते हुए आरोपी पक्ष ने बीकानेर नगर विकास न्यास में गोल्फ रिसोर्ट के नाम पर ज़मीन 90-ए के तहत करने का प्रस्ताव रख दिया।
दिलचस्प बात है कि मामला सीलिंग एक्ट में लम्बित होने के बावजूद न्यास के सचिव अरुण प्रकाश ने आवेदन स्वीकार कर लिया। अरुण के तबादले के बाद तत्कालीन एडीएम दुर्गेश बिस्सा को न्यास सचिव का चार्ज सौंपा गया। लेकिन उन्होंने अनाधिकृत रूप से 90-ए का आदेश जारी कर दिया। जबकि ऐसा आदेश केवल संभागीय आयुक्त ही जारी कर सकते थे।
इस खेल में जो अफ़सर शामिल थे, वे सरकारी महकमों में अहम पदों पर तैनात थे। इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने सन् 2015 में एफआईआर दर्ज की थी। जाँच अधिकारी सी.पी. शर्मा ने पड़ताल में दाग़ी अफ़सरों पर सारे मामले सही पाये। नतीजतन उन्होंने जुलाई, 2018 में आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश करने के लिए अभियोजन की इजाज़त माँगी; लेकिन पता नहीं क्या हुआ? लेकिन आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। इस मामले के जानकार बताते हैं कि सरकार से इजाज़त मिलने पर इस मामले में आदेश जारी किये जाएँगे। लेकिन एक बात यह भी सामने आयी कि फाइल तो अफ़सरों के बीच ही घूम रही है। इस बात की पुष्टि तत्कालीन जाँच अधिकारी सी.पी. शर्मा के बयान से होती है, जिन्होंने कहा था कि अभियोजन के लिए फाइल भेज दी थी। अब आगे की जानकारी अजमेर चौकी के अफ़सर ही दे सकते हैं। इंतज़ार तो इंतज़ार ही होता है।
महीना वसूली
राज्य में पैसों के लालची घूसख़ोरों की ताक़त और हिम्मत के आगे अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोध दिवस भी बौना ही रहा। इस दिन भी नोकरशाह घूसख़ोरी का खेल खेलने से बाज़ नहीं आये। इन पर नज़र गड़ाने में भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के अधिकारी भी पीछे नहीं रहे। यह बात दिलचस्पी से परे नहीं कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने अपने ही एक अफ़सर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भैरूलाल मीणा को बँधी हुई माहवार वसूली करते रंगे हाथों पकड़ा। भ्रष्टाचार निरोधक दिवस पर मीणा सुबह अपने दफ़्तर में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भाषण दे रहे थे। इसके दो घंटे बाद ही वह ख़ुद रिश्वत लेते पकड़ गये। दोसा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल ने पहले ख़ुद रिश्वत माँगी और बाद में दलाल को आगे कर दिया। मनीष अग्रवाल पर हाईवे बनाने वाली एक कम्पनी से 31 लाख और दूसरी कम्पनी सेे 38 लाख वसूलने का आरोप है। मनीष ने पीडि़त को यह कहते हुए धमकाया कि ज़िले का एसपी हूँ। मेरी मर्ज़ी के बग़ैर तेरा काम नहीं चल सकता। दौसा के एसडीएम पुष्कर मित्तल और बांदीकुई एसडीएम पिंकी मीणा भी पाँच लाख रुपये की रिश्वत लेते धरे गये। पेट्रोल पम्प लीज के नवीनीकरण के मामले में एक लाख की रिश्वत लेते पकड़े गये बारां के ज़िला कलेक्टर इंद्रसिंह राव का अब तक का सेवाकाल पूरी तरह दाग़दार रहा है। 31 साल के अपने कार्यकाल में इंद्रसिंह अब तक छ: अलग-अलग कारणों से पदच्युत किये जा चुके हैं। चार साल पहले इन्हें पदोन्नत कर राजस्व मंडल में लगा दिया गया था। लेकिन सन् 2014 में राव बारां कलेक्टर पद पर नियुक्त हो गये। सूत्र इस तैनाती में सियासी मुश्क का हवाला देते हुए कहते हैं कि बारां में राव की तैनाती ऐसे ही तो नहीं हो गयी। इंद्रसिंह अधीक्षक सींखचों के बाहर नहीं आये।