दुनिया के जाने-माने अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के फेसबुक की निष्पक्षता पर सवाल उठाने और भारत की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के नेताओं और कुछ समूहों की हेट स्पीच (नफरतों) वाली पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई करने में जान-बूझकर कोताही बरतने के आरोपों के बाद देश की राजनीति में तूफान उठ खड़ा हुआ है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में लगाये गये आरोपों को भले भाजपा ने नकार दिया है और फेसबुक ने भी किसी पार्टी विशेष के पक्ष में होने से साफ मना किया है, लेकिन सवाल तो निश्चित रूप से उठेंगे ही, क्योंकि यह एक बड़ा मुद्दा है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि सोशल मीडिया पर देश को धार्मिक आधार पर बाँटने वाले संदेशों की भरमार दिखती है और इसका विपरीत असर कई बार देखने को मिला है। भारत में चुनाव या अन्य कुछ खास अवसरों पर तो इस तरह के संदेशों की बाढ़-सी आ जाती है। इसे देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि इस तरह के संदेश खास मकसद से चलाये जाते हैं। फेसबुक की निष्पक्षता पर द वॉल स्ट्रीट जर्नल द्वारा सवाल उठाते ही फेसबुक ने भाजपा नेताओं टी. राजा सिंह और आनंद हेगड़े की कुछ पोस्ट हटा दीं। इसके बाद सवाल उठने लगे कि यदि ये पोस्ट विवादित थीं, तो इन्हें हटाने में इतनी देरी क्यों की गयी? निश्चित ही वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट से सोशल मीडिया कम्पनियों का स्याह पक्ष उजागर हुआ है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में कुछ संदेशों का हवाला देते हुए यहाँ तक आरोप लगाया गया है कि एक रणनीति के तहत इन पोस्ट को जल्द नहीं हटाया गया। अखबार ने भाजपा पर भी निशाना साधा है, जिसके बाद से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल उसे घेरने लगे हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी ने सीधे मोदी सरकार पर हमला किया है। उन्होंने कहा है कि पक्षपात, झूठी खबरों और नफरतों के ज़रिये हम किसी को कठिन संघर्ष से हासिल हुए लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में फेसबुक और व्हाट्स एप पर भाजपा और आरएसएस का नियंत्रण है। वहीं कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने फेसबुक के सीईओ मार्क एलिअॅट जुकरबर्ग को ईमेल लिखकर उनसे इस पूरे विवाद की उच्चस्तरीय जाँच की माँग की।
इसके जवाब में भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने तीन साल पुराने कैंब्रिज एनालिटिका डेटा स्कैंडल का ज़िक्र करते हुए ट्वीट कर कहा- कांग्रेस फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका के साथ डेटा का इस्तेमाल करते हुए रंगे हाथों पकड़ी गयी थी। अब हमारे ऊपर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। हारे हुए जो लोग खुद अपनी पार्टी में लोगों को प्रभावित नहीं कर सकते हैं, वे शिकायत करते रहते हैं कि पूरा विश्व भाजपा और आरएसएस ने नियंत्रित कर रखा है। सच यह है कि आज सूचनाओं तक पहुँच और अभिव्यक्ति की आज़ादी का लोकतांत्रिकरण हुआ है। अब यह आपके परिवार (राहुल गाँधी) के सेवकों से नियंत्रित नहीं होता है। यही कारण है कि आपको दर्द होता है।
वैसे एक सच यह है कि शायद कोई भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि भारत में घृणा फैलाने वाला एक बड़ा सोशल मीडिया नेटवर्क काम कर रहा है। इसके पीछे कौन है? यह जाँच का विषय है।
दरअसल भाजपा पर गाहे-बगाहे यह आरोप लगते रहे हैं कि उसके समर्थक ऐसे संदेश फैलाने में सबसे आगे हैं। निश्चित ही अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट से भाजपा की छवि को धक्का लगा है। इससे फेसबुक की निष्पक्षता पर भी सवाल उठे हैं; भले उसने सफाई दी है कि हम किसी की भी राजनीतिक हस्ती / पार्टी की सम्बद्धता के बिना नफरत फैलाने वाले भाषणों और संदेशों को प्रतिबन्धित करते हैं। इसके लिए नियमित ऑडिट किये जाते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संदेशों का अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो साफ हो जाता है कि व्हाट्स एप या अन्य जगह इस तरह के संदेश बहुत ही सुनियोजित तरीके से फैलाये जाते हैं। इनकी भाषा तो बहुत ही कटु और घृणा फैलाने वाली होती है, ये समाज को बाँटने में भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दिया जाए, तो जिस पैमाने पर ये संदेश भारत में सोशल मीडिया प्लैटफॉम्र्स पर फैलाये जाते हैं, उससे तो यही लगता है कि इन्हें भेजने वालों को कानून का डर और देश की फिक्र नहीं है।
यहाँ यह गौरतलब है कि भारत के लिए फेसबुक पॉलिसी डायरेक्टर अंखी दास ने दिल्ली पुलिस में पाँच लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी है। इस शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया है कि अपने राजनीतिक झुकावों की वजह से इन लोगों (शिकायत में आरोपियों) ने उन्हें धमकाया है। बता दें कि वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारत में फेसबुक की पॉलिसी डायरेक्टर अंखी दास ने भाजपा नेता टी. राजा सिंह के खिलाफ फेसबुक के नफरती बयानों पर नियमों को लागू करने का विरोध किया था। उन्हें डर था कि इससे कम्पनी के सम्बन्ध भाजपा से बिगड़ सकते हैं और इससे भारत में फेसबुक के बिजनेस पर असर पड़ सकता है। याद रहे टी. राजा तेलंगाना से भाजपा विधायक हैं। राजा पर पहले भी भड़काऊ बयानबाज़ी के आरोप लगते रहे हैं।
सब कुछ साफ होने पर भी फेसबुक प्रवक्ता ने कहा है कि हेट स्पीच और उग्र कंटेंट पर प्रतिबन्ध नीति का प्रयोग हम वैश्विक तौर पर बिना किसी भेदभाव के करते हैं। हम जानते हैं कि अभी इस दिशा में और काम किया जाना है, इसलिए हम इसे लेकर रेगुलर ऑडिट करवाने की सोच रहे हैं; ताकि फेयरनेस बनी रहे। हम पार्टियों की राजनीतिक हैसियत नहीं देखते।
हालाँकि कांग्रेस का आरोप है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सोशल मीडिया के दिग्गज प्लेटफॉर्म फेसबुक के बीच साठगाँठ है। पार्टी का कहना है कि सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और सांसदों के साथ फेसबुक एजीक्यूटिव अंखी दास का कनेक्शन उजागर हुआ है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मीडिया से बातचीत में जुलाई, 2012 के एक मेमो का हवाला दिया है। उनके मुताबिक, यह एक बन्द दरवाज़े की बैठक में मध्यस्थ नियमों के सन्दर्भ में फेसबुक में तत्कालीन पब्लिक पॉलिसी ग्लोबल वाइस प्रेसिडेंट मार्ने लेविने का लिखा था। इसमें कहा गया है कि तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और संसद के विपक्षी सदस्यों को इन नियमों पर चर्चा करनी थी।
खेड़ा का आरोप है कि आंतरिक ईमेल से पता चलता है कि जब संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) सत्ता में थी, तब भाजपा और फेसबुक के बीच एक सम्बन्ध था। उन्होंने कहा कि इसी मेमो में गोपनीयता कानून का उल्लेख किया गया था, जिसे सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति ए.पी. शाह की अध्यक्षता में ग्रुप ऑफ एक्सपट्र्स ऑन प्राइवेसी द्वारा तैयार किया गया था। कांग्रेस नेता ने मेमो के हवाले से कहा कि अंखी दास सरकार द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों के साथ सम्पर्क में थीं। समिति के सदस्य डीपीए की संरचनाओं और शक्तियों के बारे में बहुत स्पष्ट नहीं थे। खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस को यूपीए सरकार पर गर्व है, जिसने लॉबिस्टों (संगठन बनाने वालों) के साथ सम्बन्ध नहीं रखे, जैसा कि ईमेल में कहा गया है।
कांग्रेस नेता खेड़ा ने कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट के पास था, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने मीडिया में इसे जीवित रखा और भाजपा के राजीव चंद्रशेखर सहित कुछ लोगों द्वारा जनहित याचिका दायर की गयी। उन्होंने कहा कि फेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी प्रमुख अंखी दास ने 2014 के लोकसभा परिणाम घोषित होने के एक दिन बाद 17 मई, 2014 को एक लेख लिखा था।
खेड़ा ने अंखी दास के लेख के हवाले से कहा कि भारत के 2014 के चुनावों को कई कारणों से याद किया जाएगा; लेकिन विशेष रूप से यह सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स के कारण याद किया जाएगा। जो कि 2011 से सरकारी सेंसरशिप के साथ जुड़े हैं और महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अभियान उपकरण के साथ ही राजनीतिक अभिव्यक्ति और आयोजन के लिए मुफ्त में एक माध्यम बन गये। हमने 4 मार्च को इलेक्शन ट्रैकर लॉन्च किया और इसमें भाजपा लगातार पूरे अभियान में नम्बर एक पार्टी रही और नरेंद्र मोदी पूरे अभियान में नम्बर एक नेता रहे। भाजपा इन सब आरोपों को कांग्रेस की भड़ास बताकर खारिज कर रही है। उसका कहना है कि जनता ने कांग्रेस को ज़मीन दिखा दी, इसलिए वह भाजपा पर गलत आरोपबाज़ी कर रही है। भाजपा ने इस पूरे मामले में कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी के साथ ही विजयामूर्ति और कविता के.के. जैसे अन्य लोगों के अलावा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के फेसबुक से कथित पिछले जुड़ाव का हवाला दिया है। भाजपा के सूचना प्रौद्योगिकी सेल के प्रमुख अमित मालवीय के मुताबिक, फेसबुक की सार्वजनिक नीति टीम में शामिल विजया मूर्ति ने पिछले दिनों कांग्रेस के लिए काम किया था। मालवीय का दावा है कि मूर्ति ने युवा कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी चुनावी परियोजना में काम किया था। जनवरी, 2012 और अप्रैल, 2015 के बीच उनकी लिंक्ड इन प्रोफाइल के अनुसार, वह एक सामाजिक-राजनीतिक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) से भी जुड़ी रहीं।
मालवीय का यह भी आरोप है कि कविता के.के., जिनकी लिंक्ड इन प्रोफाइल से पता चलता है कि वह सोशल मीडिया की दिग्गज कम्पनी के लिए काम कर रही हैं और वह अतीत में तृणमूल कांग्रेस के सांसद के लिए भी काम कर चुकी हैं। कविता के लिंक्ड इन प्रोफाइल में सन् 2015 से सन् 2017 के बीच टीएमसी नेता डेरेक ओ. ब्रॉयन के लिए प्रिंसिपल पॉलिसी एसोसिएट के रूप में काम करने का उल्लेख है। मनीष तिवारी इन आरोपों को गलत बता चुके हैं। हालाँकि मालवीय का दावा है कि उन्होंने अतीत में अटलांटिक काउंसिल के लिए काम किया था।
भाजपा के आईटी सेल प्रमुख का यह भी आरोप है कि तिवारी को अटलांटिक काउंसिल का एक प्रतिष्ठत सीनियर फेलो नियुक्त किया गया था, जिसे बदले में फेसबुक से राजनीतिक प्रचार करने का काम सौंपा गया था। आप इसे पसन्द कीजिए या मत कीजिए; मगर यह एक तथ्य (फैक्ट) है। उनका दावा है कि 2019 के आम चुनाव में भाजपा की मूल विचारधारा वाले 700 फेसबुक पेज हटा दिये गये थे। उन्होंने कहा कि इन पेजों पर लाखों समर्थक भी जुड़े थे; लेकिन उन्हें हटा दिया गया।
कांग्रेस फेसबुक पर घृणा सामग्री मामले की संसदीय जाँच की माँग कर रही है। पार्टी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल फेसबुक के सीईओ मार्क एलिअॅट जुकरबर्ग को ईमेल पत्र भेजकर आग्रह किया है कि इस पूरे मामले की फेसबुक मुख्यालय की तरफ से उच्चस्तरीय जाँच करायी जाए। ईमेल में कांग्रेस ने कहा है कि इस पूरे मामले की फेसबुक मुख्यालय की तरफ से उच्चस्तरीय जाँच करायी जाए और जाँच पूरी होने तक उसकी भारतीय शाखा के संचालन की ज़िम्मेदारी नयी टीम को सौपीं जाए, ताकि जाँच प्रक्रिया प्रभावित न हो सके।
बता दें कि सोशल मीडिया पर पोस्ट इन फेक और नफरत भरे संदेशों पर अभी भी देश की बड़ी आबादी सहज ही भरोसा कर लेती है; कुछ तो अज्ञानतावश और कुछ भावनाओं में बह जाने के कारण। एक सर्वे में बताया गया था कि भारत में व्हाट्स एप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किये गये धार्मिक व राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों वाले अधिकतर संदेश झूठे होते हैं और उनका मकसद लोगों में नफरत फैलाना होता है। देश में कई ऐसे मामले हो चुके हैं, जिनमें सोशल मीडिया पोस्ट्स के आधार पर ही किसी की हत्या कर दी गयी। यह देश के सियासतदानों के आचरण और प्रशासकों की रणनीति पर भी गम्भीर सवाल उठाता है। आम आदमी के हित को ताक पर रखकर इस तरह का झूठा प्रचार देश को कहाँ ले जाएगा? इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
यह हैरानी की बात है कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में साइबर कानून होने के बावजूद फर्ज़ी खबरों को लेकर कुछ होता नहीं है। साइबर कानून जानकारों का कहना है कि भारत में आईटी एक्ट है, जिसके तहत इस तरह के प्रावधान हैं, लेकिन यह कानून बहुत स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा ज़्यादातर राज्यों की पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों को आईटी एक्ट के बारे में बहुत कम जानकारी है। यही वजह है कि देश में अब भी साइबर क्राइम के ज़्यादातर मामले आईटी एक्ट की जगह आईपीसी के तहत दर्ज किये जाते हैं।
पुलिस के अलावा भारत में ज़्यादातर सोशल मीडिया यूजर्स को भी आईटी एक्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में लोग बिना सोचे-समझे किसी भी वायरल पोस्ट को फारवर्ड कर देते हैं। इसके अलावा फेसबुक, व्हाट्स एप और गूगल जैसे ज़्यादातर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व सर्च इंजन का भारत में न तो सर्वर है और न ही कोई ऑफिस। इस वजह से ये सेवा प्रदाता न तो भारतीय कानूनों को मानने के लिए बाध्य हैं और न ही सरकार के निर्देशों का गम्भीरता से पालन करते हैं। ऐसे बहुत से मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स ने पुलिस समेत अन्य जाँच एजेंसियों को गम्भीर अपराध के मामलों में भी जानकारी देने से इन्कार कर दिया है।
सर्वोच न्यायालय सरकार को फर्ज़ी खबरों को लेकर निर्देश देते हुए सख्त टिप्पणी कर चुका है। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ऐसी गाइड लाइन की ज़रूरत है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को ट्रैक किया जा सके। सरकार यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि उसके पास सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की कोई तकनीक नहीं है। मामले में जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और यूजर्स के लिए सख्त दिशा-निर्देशों की ज़रूरत है। हाल यह है कि हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं है। लोग सोशल मीडिया पर एके 47 तक खरीद सकते हैं। ऐसे में कई बार लगता है कि हमें स्मार्टफोन छोड़, फिर से फीचर फोन का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए।
सोशल मीडिया कम्पनियों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाज़ार है। ऐसे में इस बाज़ार का दुरुपयोग भी हो सकता है और इनका किसी राजनीतिक दल के पक्ष में या खिलाफ इस्तेमाल देश के हितों को नुकसान कर सकता है। देखा जाए तो द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने जो आरोप लगाये हैं, यदि उनमें सच्चाई है, तो इसे देश के लोकतंत्र के लिए एक गम्भीर खतरा माना जाएगा। निश्चित ही इन आरोपों का सच सामने आना ज़रूरी है। देश के राजनीतिक दलों ही नहीं, जनता को भी इन सवालों को गम्भीरता से लेना होगा।
इन कम्पनियों के लिए यह कमाई का बड़ा ज़रिया है। लेकिन हमें यह देखना कि कहीं यह कम्पनियाँ हमारे देश के लोकतंत्र की कीमत पर तो यह कमायी नहीं कर रहीं। सरकार के भी सभी सम्बन्धित विभागों को इस मामले में पूरी तत्परता से सक्रिय होकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सोशल मीडिया कम्पनियाँ भारत में सामाजिक टकराव को अपनी आमदनी का ज़रिया न बनायेँ और कोई भी राजनीतिक दल जनमत को तोडऩे-मरोडऩे में औज़ार न बने।
जवाब माँगने पर गर्माया मामला
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट सामने के बाद वरिष्ठ कांग्रेस नेता और लोकसभा की सूचना प्रौद्योगिकी मामले की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने समिति इस सोशल मीडिया कम्पनी (फेसबुक) से इस विषय पर 2 सितंबर तक जवाब माँगा है। इसके बाद भाजपा उन पर हमलावर हो गयी। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को ईमेल लिखकर उन्हें समिति के अध्यक्ष पद से हटाने की माँग की है। बिरला को लिखे पत्र में नियमों का हवाला देते हुए दुबे ने उनसे आग्रह किया है कि वे थरूर के स्थान पर किसी दूसरे सदस्य को समिति का अध्यक्ष नियुक्त करें। भाजपा के कुछ नेताओं के नफरत वाले बयानों को कथित तौर पर नज़रअंदाज़ करने के आरोपों का सामना कर रहे फेसबुक को सूचना प्रौद्योगिकी सम्बन्धी संसद की स्थायी समिति ने उसके मंच के कथित दुरुपयोग के मुद्दे पर चर्चा के लिए आगामी 2 सितंबर को तलब किया है। बैठक के एजेंडे के मुताबिक, उपरोक्त विषय पर फेसबुक के प्रतिनिधियों की राय माँगी जाएगी। समिति के तलब किये जाने के मुद्दे पर फेसबुक की ओर से यह रिपोर्ट फाइल किये जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी थी।
देश में यह मसला अब गम्भीर राजनीतिक जंग में तब्दील हो गया है। थरूर के फैसले के बाद भाजपा उनके पीछे पड़ गयी है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का आरोप है कि जब से थरूर समिति के अध्यक्ष बने हैं, तबसे वह इसके कामकाज को गैर-पेशेवर तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं और अफवाह फैलाने का अपना राजनीतिक कार्यक्रम चला रहे हैं और भाजपा को बदनाम कर रहे हैं। बिरला को जो पत्र दुबे ने लिखा है, उसमें नियमों का हवाला देते हुए उनसे आग्रह किया है कि वह थरूर के स्थान पर किसी दूसरे सदस्य को समिति का अध्यक्ष नियुक्त करें। दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को सौंपे गये नोटिस में अपने इस रुख को दोहराया है कि समिति के सदस्यों के साथ विचार-विमर्श किये बिना किसी इकाई या संगठन को तलब करने का थरूर को कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने दावा किया कि थरूर ने समिति की किसी बैठक में इस विषय से जुड़े एजेंडे के बारे में सदस्यों को सूचित नहीं किया तथा ऐसे में यह स्पष्ट रूप से विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है।
उधर शशि थरूर ने लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में दुबे की ओर से ट्विटर पर की गयी उस टिप्पणी पर आपत्ति जतायी है, जिसमें भाजपा सांसद ने कहा था कि स्थायी समिति के प्रमुख के पास इसके सदस्यों के साथ एजेंडे के बारे में विचार-विमर्श किये बिना कुछ करने का अधिकार नहीं है। थरूर का कहना है कि निशिकांत दुबे की अपमानजनक टिप्पणी से न सिर्फ सांसद और समिति के प्रमुख के तौर पर मेरे पद और उस संस्था का अपमान हुआ है, जो हमारे देश की जनता की आकांक्षा का प्रतिबिंब है। थरूर ने बिरला से आग्रह किया कि दुबे के खिलाफ कार्यवाही आरम्भ करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये जाएँ। थरूर का कहना है कि वह इस मामले में सख्त कार्रवाई की उम्मीद करते हैं, ताकि आगे से ऐसी घटना नहीं हो।
भारत में इंटरनेट यूजर्स
भारत दुनिया भर में इंटरनेट यूजर्स ऊपर की संख्या के मामले में बहुत ऊपर है। भारत की करीब एक अरब 38 करोड़ 74 लाख की आबादी का बड़ा वर्ग इंटरनेट इस्तेमाल करता है। ऐसे में किसी भी तरह के संदेश बड़ी आबादी तक पहुँचते हैं। दुर्भाग्य से नकारात्मक और धार्मिक उन्माद वाले संदेशों को फैलने में देर नहीं लगती।
आँकड़ों के मुताबिक, भारत में जनवरी, 2020 में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की कुल संख्या 687.6 मिलियन (68.76 करोड़) थी। पिछले एक साल, यानी 2019 की तुलना में भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या में 128 मिलियन (23 फीसदी) की वृद्धि हुई। जनवरी, 2020 में यह आँकड़ा कुल आबादी का 50 फीसदी था। भारत का बहुत बड़ा तबका सोशल मीडिया पर एक्टिव है। भारत में जनवरी, 2020 में 1.06 बिलियन (106 करोड़) मोबाइल कनेक्शन थे, जो यहाँ लोगों के सोशल मीडिया तक पहुँच का सबसे बड़ा ज़रिया हैं। भारत में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में कम फेसबुक इस्तेमाल करती हैं।
भारत में कानून का प्रावधान
ऐसा नहीं है कि भारत में घृणा फैलाने या फर्ज़ी वाले संदेशों को लेकर कानून नहीं हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सभी नागरिकों को जहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी है, वहीं इस आज़ादी के दुरुपयोग करने पर सख्त कानून भी हैं। भारत की संसद में साइबर क्राइम को रोकने के लिए सन् 2000 में इनफॉर्मेशन एक्ट यानी आईटी एक्ट बनाया गया था। इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी यानी आईटी एक्ट-2000 की धारा-67 में प्रावधान किया गया है कि अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक पोस्ट करता है या फिर शेयर करता है, तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके समाज में नफरत फैलाने या किसी की भावना आहत करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईटी की धारा-67 के तहत कार्रवाई की जाती है। इस धारा-67 में कहा गया है कि अगर कोई पहली बार सोशल मीडिया पर ऐसा करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल की जेल हो सकती है। साथ ही 5 लाख रुपये का ज़ुर्माना भी देना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, अगर ऐसा अपराध फिर दोहराया जाता है, तो मामले के दोषी को 5 साल की जेल हो सकती है और 10 लाख रुपये तक का ज़ुर्माना देना पड़ सकता है। वैसे इसके बावजूद सोशल मीडिया में घृणा भरे मैसेज भरे रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इस तरह के संदेशों फैलाव में बड़ा रोल निभाया है। अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा किसी कानून का उल्लंघन नहीं करने और दूसरे को आहत या नुकसान नहीं पहुँचाने की शर्त के साथ है; लेकिन इसके बावजूद काफी कुछ गलत हो रहा है। कानून कहता है कि अगर आप फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर किसी भी तरह का आपत्तिजनक, भड़काऊ या नफरत पैदा करने वाली पोस्ट या वीडियो या फिर तस्वीर शेयर करते हैं, तो आपको जेल के साथ-साथ ज़ुर्माना भी भरना पड़ सकता है। कानून के मुताबिक, जो धर्म, नस्ल, भाषा, निवास स्थान या फिर जन्म स्थान के आधार पर समाज में नफरत फैलाने और सौहार्द बिगाडऩे की कोशिश करते हैं, उनके खिलाफ आईपीसी की धारा-153(ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है। कानून के कुछ जानकार कहते हैं कि आज देश में राजनीतिक दल भी नफरत फैलाने वाले संदेशों को बढ़ावा देते हैं।
विदेशों में है सख्त कानून
भारत में सोशल मीडिया पर फर्ज़ी खबरों, घृणास्पद संदेशों पर लगाम कसने के लिए भारत में कवायद तो खूब हुई है, लेकिन इसका ज़्यादा असर हुआ नहीं है। जबकि दूसरे देशों में इसके लिए सख्त कानून हैं। रूस में मार्च, 2019 से कानून बन चुका है कि अगर वहाँ किसी प्रकाशन (समाचार पत्र) / व्यक्ति / संस्था / कम्पनी द्वारा देश की या किसी की छवि खराब करने वाली कोई भी फर्ज़ी खबर या सूचना फैलायी जाती है, तो ऐसा करने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और सज़ा तथा ज़ुर्माना दोनों लागू होंगे। इसी तरह जर्मनी में नेटवर्क इफोर्समेंट एक्ट या नेट्जडीजी कानून सभी कम्पनियों और दो लाख से ज़्यादा रजिस्टर्ड सोशल मीडिया यूजर्स पर लागू होता है। इसके तहत कम्पनियों को कंटेंट सम्बन्धी शिकायतों का रिव्यू करना आवश्यक है। रिव्यू में कंटेंट गलत या गैर-कानूनी होने पर उसे 24 घंटे के भीतर हटाना होगा अन्यथा दोषी व्यक्ति पर 50 लाख यूरो (38.83 करोड़ रुपये) और किसी निगम अथवा संगठन पर 5 करोड़ यूरो (388.37 करोड़ रुपये) तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। यह कानून उन लोगों पर भी लागू होता है, जो इंटरनेट पर नफरत भरे भाषण वायरल करते हैं। अप्रैल, 2019 में यूरोपीयन संघ की परिषद् ने भी सोशल मीडिया, इंटरनेट सेवा प्रदाता कम्पनियों और सर्च इंजनों पर लगाम कसने के लिए कॉपीराइट कानून में बदलाव करके ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को उसके यूजर्स द्वारा किये जा रहे पोस्ट के प्रति ज़िम्मेदार बनाने वाले कानून को मंज़ूरी प्रदान की थी। ऑस्ट्रेलिया ने फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए एंटी-फेक न्यूज लॉ बनाया है, जिसके तहत फर्ज़ी खबरें फैलाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से उसके सालाना टर्न ओवर का 10 फीसदी ज़ुर्माना वसूले जाने के साथ-साथ उसे तीन साल की सज़ा हो सकती है। सोशल मीडिया कम्पनी के आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले, हत्या, दुष्कर्म और अन्य गम्भीर प्रकृति के अपराधों से सम्बन्धित पोस्ट हटाने में असफल होती है, तब उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। और पोस्ट डालने वाले व्यक्ति पर 1,68,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (80.58 लाख रुपये) और किसी निगम या संगठन पर 8,40,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (4.029 करोड़ रुपये) तक का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। सन् 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस के दखल का आरोप लगने के बाद फ्रांस में अक्टूबर, 2018 में दो एंटी-फेक न्यूज कानून बनाये गये, जिनके तहत उम्मीदवारों और राजनीतिक पार्टियों को फर्ज़ी खबरों के खिलाफ कोर्ट की शरण में जाने की अनुमति है। चीन ने फर्ज़ी खबरों को रोकने के लिए पहले से ही कई सोशल मीडिया साइट और इंटरनेट सेवाओं जैसे ट्वीटर, गूगल और व्हाट्स एप आदि को प्रतिबन्धित कर रखा है। चीन के पास हज़ारों की संख्या में साइबर पुलिस कर्मी हैं, जो सोशल मीडिया पोस्ट पर नज़र रखते हैं। मलेशिया में फर्ज़ी खबरें रोकने के लिए सबसे सख्त कानून है। मलेशिया में फर्ज़ी खबरें फैलाने पर 5,00,000 मलेशियन रिंगित (84.57 लाख रुपये) का ज़ुर्माना या छ: साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है। सिंगापुर में जनता में भय फैलाने, माहौल खराब करने वाले या किसी भी तरह की फर्ज़ी खबरें फैलाने वाले के लिए 10 साल जेल की सज़ा का प्रावधान है। फर्ज़ी खबरें रोकने में नाकाम रहने वाली सोशल मीडिया साइट्स पर 10 लाख सिंगापुर डॉलर (5.13 करोड़ रुपये) का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।
पक्षपात, झूठी खबरों और नफरत-भरी बातों को हम कठिन संघर्ष से हासिल हुए लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खुलासा किया है कि फेसबुक इस तरह के झूठ और नफरत फैलाने का काम करती आयी है और उस पर सभी भारतीयों को सवाल उठाना चाहिए। भारत में फेसबुक और वॉट्स एप पर भाजपा और आरएसएस का नियंत्रण है।
राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता
द वॉल स्ट्रीट जर्नल में जो खबर छपी है, वह फेसबुक का विषय है। फेसबुक अपना तय करे, उनकी अपनी पॉलिसी है; उनका अपना सिस्टम है। भाजपा के समर्थन में लिखे गये 700 से अधिक पोस्ट फेसबुक ने हटा दिये। अगर पब्लिक प्लेटफॉर्म है, तो लोगों को अपनी बात रखने का अधिकार है। इस कड़ुवे सच को हमें समझना चाहिए। कुछ लोग समझते हैं कि पब्लिक प्लेटफॉर्म पर उनकी मोनोपॉली होनी चाहिए, भले ही उनका राजनीतिक वजूद खत्म हो गया है। सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ‘आर-पार की लड़ाई होगी, देशवासी प्रधानमंत्री को डण्डे मारेंगे’ जैसे घृणा भरे भाषण याद रखें। इसके बारे में क्या कहा जाए? देश की जनता उसका जवाब देगी।
रविशंकर प्रसाद कानून मंत्री, भारत
फेसबुक हमेशा से एक खुला, पारदर्शी और गैर-पक्षपातपूर्ण मंच रहा है, जहाँ लोग खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त कर सकते हैं। हमारे ऊपर पूर्वाग्रह का आरोप लगाया गया है कि हम अपनी नीतियों को पक्षपातपूर्ण तरीके से लागू करते हैं। हम पूर्वाग्रह के आरोपों को गम्भीरता से लेते हैं और घृणा व कट्टरता की निंदा करते हैं। फेसबुक के पास सामग्रियों को लेकर एक निष्पक्ष दृष्टिकोण है और वह अपने सामुदायिक मानकों पर दृढ़ता से अमल करती है। हम किसी की राजनीतिक स्थिति, पार्टी सम्बद्धता या धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वास की परवाह किये बिना विश्व स्तर पर इन नीतियों को लागू करते हैं।
अजीत मोहन
फेसबुक इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट/
मैनेजिंग डायरेक्टर
पोस्ट की जा रही सामग्री में यहाँ तक कि मेरी तस्वीरें भी शामिल हैं और मुझे जान से मारने की और शारीरिक नुकसान पहुँचाने की धमकी दी जा रही है और मुझे अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा का डर है। एक खबर के आधार पर सामग्री में मेरी छवि भी धूमिल की गयी है और मुझे अपशब्द कहे जा रहे हैं, साइबर धौंस दी जा रही है और मुझ पर ऑनलाइन फब्तियाँ कसी जा रही हैं। कई लोग मुझे धमकी दे रहे हैं, अश्लील टिप्पणी कर रहे हैं और ऑनलाइन पोस्ट के ज़रिये बदनाम कर रहे हैं। खबर आने के बाद से मुझे धमकियाँ दे रहे हैं।
अंखी दास
फेसबुक की पब्लिक पॉलिसी, भारत,
दक्षिण और मध्य एशिया निदेशक