रविवार 01 नवंबर की कुहासे में डूबी सर्द सुबह थी। तकरीबन 6 बज रहे होंगे। ठंडी हवा चल रही थी। टोंक •िाले के खेडली गाँव के पोखर में उठती-गिरती लहरें बार-बार किनारे पर फैली हुई झाडिय़ों के झुरमुटों से टकरा रही थी। फरागत के लिए आने वाले लोग इन झाडिय़ों की ओट का ही सहारा लेते थे। रोज़मर्रा की तरह गाँव के बाबूलाल ने जैसे ही झुरमुटों की तरफ कदम बढ़ाये, वो ठिठककर रह गया। सामने हैवानियत का नज़ारा था। उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। एक बच्ची का लहूलुहान नग्न शव पड़ा था। उसके गले में कसी हुई बेल्ट से बच्ची की आँखें बाहर निकली पड़ी थीं। पास में ही बीयर की बोतल, कचोरी के टुकड़े और टॉफी के रैपर बिखरे पड़े थे……! सब कुछ इतना डरावना था कि बाबूलाल कुछ और देखने की ताब नहीं ला सका। उसके शरीर ने झुरझुरी ली और वो हाथ का लोटा वहीं फेंककर चीखता-पुकारता उलटे पाँव गाँव की तरफ दौड़ा…।
दुष्कर्मों की घटनाओं से अटे रेगिस्तानी सूबे में यह एक और वारदात थी। इस त्रासदी से पहले भी इससे मिलते-जुलते कई मामले हुए। पुलिस की फाइलों से पता चलता है कि पिछले छ: महीनों में 1992 मामले दर्ज हो चुके हैं। ताज़ातरीन मामला टोंक •िाले के खेडली गाँव का है। मध्य प्रदेश के श्योपुर •िाले के थाना मानपुर के एक गाँव की छ: वर्षीय बालिका को उसके माता-पिता ने उसकी दादी के पीहर खेडली में पढऩे-लिखने के लिए छोड़ रखा था। रोज़ाना की तरह वह शनिवार, 30 नवंबर को भी पढऩे के लिए गयी थी; लेकिन देर शाम तक नहीं लौटी। परिलोगों ने उसकी तलाश की; लेकिन कहीं पता नहीं चला। अगले दिन उसका शव लहूलुहान हालत में गाँव के पोखर के झुरमुटों में मिला। वारदात सोच समझकर अंजाम दी गयी थी? पुलिस का मानना था कि मौका-ए-वारदात पर बिखरे टॉफी के रैपर इस बात की तस्दीक करते हैं कि आरोपी जानता था कि बच्ची कब स्कूल से लौटती है? और अकेली घर जाती है? आरोपी टॉफी कचोरी खिलाने का लालच देकर उसे जंगल में ले गया…।
अगले दिन सोमवार, 2 दिसंबर को आरोपी पकड़ा गया। महेन्द्र उर्फ धोल्या नामक हैवान गाँव का ही निकला। पेशे से ट्रक ड्राइवर है। आदतन शराबी, यह दरिन्दा शनिवार की दोपहर स्कूल से लोटती मासूम को टॉफी का लालच देकर जंगल में ले गया और फिर हैवानियत को अंजाम दिया। इसके बाद पहचाने जाने के डर से हत्या को अंजाम दिया। बच्चों और महिलाओं के साथ यौन हिंसा में राजस्थान पहले स्थान पर है। 18 साल से •यादा उम्र की युवतियों और महिलाओं के साथ राजस्थान में सबसे •यादा दुष्कर्म की घटनाएँ हुईं। इस घटना पर डॉ. आशिमा विजय की मार्मिक टिप्पणी शिराओं में खून का दौरा बढ़ा देती है कि ‘अँधेरे कोनों से एक साया आया। नन्हीं परी को आगोश में दबाया। न कोई रोया, न कोई चिल्लाया। कली उगी ही नहीं कि उसे मसल और रौंद ही डाला…।’
आशिमा कहती है- ‘एक छोटी-सी बच्ची, जिसने अभी माँ का आँचल छोडक़र चलना सीखा था। उसने पूरी दुनिया देख ली उस रात… क्या बीती होगी उस पर? शायद उसे अचेत अवस्था और दर्द की हद में पता भी न चला हो?
यौन हिंसा के मामलों में अगर कोई दोहरा चरित्र उभरता है, तो वो है पुलिस का पाखण्ड। पुलिस के सामने जब भी कोई मामला आया? अधिकारियों ने पड़ताल और पीडि़ता को सुरक्षा मुहैया कराने के सवाल को गोटियों की तरह अपनी सुविधानुसार आगे-पीछे करने की कोशिश की। यह एक ऐसी रक्तरंजित लकीर है, जो निर्भया कांड से लेकर टोंक •िाले के खेडली गाँव की मासूम के साथ हुई दरिन्दगी तक खिंची चली आयी। पुलिस की संवेदनहीनता की ऐसी कई कहानियाँ मिल जाएँगी जब गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने वाले को फौरी कार्रवाई की बजाय दो-टूक जवाब मिल गया होगा कि ‘भाग गयी होगी किसी के साथ। दो दिन इंतज़ार करो, फिर आना…!’ अबोध बच्चियाँ स्कूल परिसर में ही छेड़छाड़ की शिकार हो जाती हैं, तब फौरी कार्रवाई के नाम पर पुलिस ठिठकती नज़र आती है। कोई पाँच महीने पहले एक मासूम को वहशी ने शिकार बनाया था। हँसती-खेलती बच्ची अब घर में सिमट गयी है। किसी पुलिस अधिकारी ने आकर उसकी बाबत पूछा तक नहीं। हादसे के बाद जख्म अभी तक भरे नहीं है। हर महीने अस्पताल जाना पड़ता है। डॉक्टर ने परिवार को यह तो बताया कि ‘इसे कोई गम्भीर बीमारी हो गयी है। •िान्दगी-भर दवाइयाँ चलेगी। लेकिन क्या बीमारी हुई? कतई नहीं बताया। मीडियाकर्मियों ने मेडिकल रिपोर्ट देखी, तो माथा ठनके बिना नहीं रहा। रिपोर्ट में एचआईवी पॉजिटिव था, साफ लिखा था। सवाल है कि पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट पर नज़र तक क्यों नहीं डाली? बेिफक्र पुलिस तो तब हरकत में आयी जब यह बात अखबारी सुॢखयों में ढली। नतीजतन पुलिस आयी और रिपोर्ट की कॉपी लेकर चली गयी। इसे पुलिस की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि चार महीने तक इस घटना का फॉलोअप ही नहीं किया। किया होता, तो क्या पता नहीं चलता? सूत्र मासूम को ‘एड्स’ जीवाणु उर्फ सिकंदर की देन बता रहे हैं। सवाल है कि जब उसने 25 बच्चियों समेत किन्नरों को अपना शिकार बनाया था, तो किस किसको बीमारी का दंश दिया होगा? बच्चियों से लेकर प्रौढ़ महिलाएँ तक दरिन्दों के निशाने पर है। लेकिन पुलिस का दायित्व उसके निशाने पर क्यों नहीं है? सवाल है कि पुलिस ने इतनी बड़ी बात को नज़रअंदाज़ कैसे कर दिया?
राजस्थान में दरिन्दों को कितनी आज़ादी है? और पुलिस ने किस तरह आँखे मूंद रखी हैं? इसे समझने के लिए यह तथ्य काफी है कि पिछले छ: महीनों में दुष्कर्म के 1992 मामले दर्ज हुए और कार्रवाई सिर्फ पाँच मामलों में हुई। बीते बरस 165 मामलों पर तो पुलिस ने ‘एफआर’ ही लगा दी। सवाल है कि लम्पटों पर लगाम कब कसी जाएगी? जो किसी को छेडऩे और बलात्कार की मानसिकता में सिर से पैर तक डूबे हुए हैं। सवाल उठता है कि वीडियो पर महिलाओं को मुसीबत में देखना और चटखारे लेना कुछ लोगों के लिए ऐसी सनसनी है, जिसका आनन्द वह तो ले ही रहे हैं। कई और लोगों को दिखाने के लिए उसको वायरल भी कर रहे हैं। महिलाओं की गरिमा, अस्मिता और आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने वाले वीडियो का देखना-दिखाना नैतिकता के पहरुओं को क्या शर्मिन्दा नहीं करता?
भरतपुर के नदबई में ईंट भट्टे पर काम करने वाली दिव्यांग महिला से भट्टे के चार मालिकों ने दुष्कर्म का प्रयास किया। माँ की चीखें सुनकर पास में सो रहा आठ साल का बच्चा जाग गया, तो दरिन्दों ने गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। समाज और सभ्यता को शर्मसार करने वाली घटना चुरू में भी हुई। अत्याचारी ससुरालियों ने घर की बहू के साथ मारपीट की और कपड़े फाडक़र बाहर निकाल दिया। निर्वस्त्र महिला बिलखती हुई तीन किलोमीटर पैदल चलकर थाने पहुँची। संवेदनहीनता की हद तब हो गयी, जब लोग तमाशबीन बने रहकर उसका वीडियो बनाते रहे। यह लम्पट सोच समाज को कहाँ ले जाएगी? वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी कहते हैं- ‘क्या 24 घंटे साथ रहने वाले मोबाइल ने लोगों को पर पीड़ा में आनन्द लेने वाला बना दिया। महिलाओं को जलील होते देखना भी कुछ लोगों के लिए ऐसी सनसनी है, जिसका वह तो आनन्द ले ही रहे हैं। अपने जैसे कई लोगों को दिखाने के लिए उसका वीडियो वायरल भी कर रहे हैं।
इस सवाल पर बूँदी के दुगारी गाँव की घटना का उदाहरण देना पर्याप्त होगा। घटना के मुताबिक, दो युवकों ने एक युवती को नशीला जूस पिलाकर बलात्कार की शिकार बना डाला। हुआ क्या था रविवार, 22 जून को? पीडि़ता अपनी बुआ के यहाँ जाने के लिए बस स्टैंड से बस में बैठी थी। गाँव के ही दो युवक भी उसी बस में सवार हुए। युवती नैनवां बस स्टेण्ड पर उतरी, तो दोनों युवक भी उतर गये। लडक़ी ने उनसे बुआ के गाँव जाने वाली बस में बिठाने को कहा। बस की प्रतीक्षा के दौरान युवक उसके लिए जूस लाये, जिसे युवती ने पी लिया। जूस ने युवती को निढाल कर दिया। युवकों ने तब मनमानी करनी ही थी। लेकिन सवाल है कि,‘युवती ने क्यों कर उनका विश्वास किया? उसके बाद वीडियो बनाकर वायरल कर दिया।
समाज शास्त्रियों का कहना है कि बेशक वासना की आग में भडक़ा हुआ मर्द शिकार की टोह में ही रहता है। पोर्नोग्राफी, शराब और उत्तेजक िफल्में इस आग में घी का काम करती है। लिहाज़ा अपराधों की जड़ को उखाडऩे की कोशिश क्यों नहीं होती? सांस्कृतिक वालंटियरों को असली मुद्दे क्यों नज़र नहीं आते? बहरहाल, कितना खौफनाक सच है कि राजस्थान में बच्चियाँ बुरी तरह असुरक्षित हैं। जून 2019 तक छोटी बच्चियों से पोक्सों के कुल 1250 मामले सामने आये। इनमें 545 मासूम बच्चियाँ बलात्कार का शिकार बनी। लडक़ी अपनी आबरू और अस्मिता के लिए किस पर सबसे •यादा भरोसा कर सकती है? पिता पर? लेकिन कोटा में तो एक पिता ही वहशी निकला।
पिछले दिनों जयपुर के शास्त्री नगर इलाके में सात और चाल साल की मासूम बच्ची को 9 दिन के अंतराल में अगुवा कर दुष्कर्म करने वाला सिकंदर उर्फ जीवाणु कितना बड़ा दरिन्दा निकला? उसका खुद का कुबूलनामा ही चौंकाता है। उसने कहा- ‘अब तक 25 बच्चियों और किन्नरों से यौनाचार कर चुका हूँ। मैं पिस्तोल रखता हूँ; उसके बूते पर लोगों को डरा-धमकाकर खामोश कर देता हूँ। शराब मेरी वासना भडक़ाने का काम करती है। मैंने आज तक जो भी किया, शराब पीकर किया।’ 34 साल का यह सिरफिरा सनकी बदमाश खानाबदोश है। जिस वक्त उसे कोटा से पकड़ा गया, वो जमानत पर जेल से बाहर था। जीवाणु सीरियल बलात्कारी निकला। गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में उसने न सिर्फ एक अन्य 7 साल की बालिका से बलात्कार की बात स्वीकार की, बल्कि उसके घर में पुलिस को एक कॉपी मिली, जिसमें लिखा था- ‘सिकंदर उर्फ मौत का कहर!’
कॉपी के पहले पेज पर एक महिला का स्केच बना रखा था, जिस पर लिखा था- ‘शहनाज।’ उसी कॉपी के आिखरी पेज पर सिकंदर ने खुद का स्केच बना रखा था। उसके िखलाफ एक दर्जन केस दर्ज है और वह छ: बार जेल जा चुका है। वर्ष 2004 में जयपुर के मुरलीपुरा से एक बच्ची को ब्रेड दिलाने अपने साथ ले गया। फिर दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या करके शव पानी की टंकी में डाल दिया। इस मामले में उसे उम्र कैद की सज़ा हुई थी; लेकिन वर्ष 2015 से वो जमानत पर जेल के बाहर था। जीवाणु सीरियल बलात्कारी निकला। डॉ. नीता जिंदल कहती है- ‘जीवाणु वाला केस परवर्टेड माडेऊड वाला केस है, जो शख्स शर्त लगाकर दुष्कर्म करता होगा, उसका मनोविकार कितना गलीज होगा? ऐसे लोग समाज का नासूर बन गये हैं। इनका जल्दी ही समाज से अलगाव ज़रूरी है।