दो बच्चों को लिफ्ट में, एक को पार्क में कुत्तों द्वारा काटने वाली नोएडा, ग़ाज़ियाबाद की घटनाएँ हृदयविदारक
कुत्ते और बिल्ली पालने वालों पर लागू होने चाहिए पशुपालन के सख़्त नियम
कहा जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। मगर इस संसार में ऐसे लोग भी हैं, जो बच्चों का शोषण करते हैं; उन्हें कष्ट पहुँचाने से भी नहीं झिझकते। भौजीपुरा निवासी अध्यापक नंदराम का कहना है कि जो किसी पर अत्याचार करके भी नहीं पसीजते उन्हें निर्दयी कहा जाता है। ऐसे लोग केवल अपने ही दु:ख से दु:खी होते हैं। कहावत है जिसके पैर न हुई बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। सच तो यह है कि लोगों को अभिमान और बिना परिश्रम के मिला पैसा निर्दयी बना देते हैं।
ग़ाज़ियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन की चार्म केसल सोसायटी में ऐसे ही पैसे वालों की कमी नहीं है। इन्हीं में से किसी एक महिला ने लिफ्ट में अपने कुत्ते से किसी स्कूल के एक मासूम बच्चे को कटवाकर ममता का गला घोंटते हुए कठोरता व निर्दयता का वीभत्स परिचय दिया है।
पूरी घटना एक लिफ्ट की है, जिसमें लगे कैमरे में घटना किसी डरावनी फ़िल्म की तरह दिखायी दे रही है। महिला अपने कुत्ते के साथ लिफ्ट में आती है। उसी लिफ्ट में पहले से स्कूल का बैग कन्धों पर टाँगे एक बच्चा पहले से खड़ा होता है। लिफ्ट के कैमरे में दिख रहा है कि महिला का कुत्ता लिफ्ट के बाहर खड़े लोगों पर भौंक रहा है। सम्भवत: वो लोग इसी डर से महिला के साथ लिफ्ट में नहीं चढ़ते हैं। मगर अन्दर खड़े मासूम की जाँघ में महिला का कुत्ता ज़ोर से काट लेता है और दोबारा काटने का प्रयास करता है। मगर निर्दयी महिला पीडि़त बच्चे के साथ ममता भरा व्यवहार करने की अपेक्षा मुस्कुराकर उस मासूम की उपेक्षा करती है। महिला की निर्दयता की हद इससे आँकी जा सकती है कि वह बेहयाई से दर्द से बिलबिलाते और तड़पते बच्चे को लिफ्ट में छोडक़र कुत्ते के साथ बाहर निकलकर चली जाती है।
महिला के इस व्यवहार की हर कोई निंदा कर रहा है। इस निंदनीय घटना के वीडियो पर तरह-तरह की टिप्पणियाँ करके लोगों ने उस निर्दयी महिला को कठोर से कठोरतम दण्ड देने की माँग की। इस मामले में कैसल चाम्र्स सोसाइटी की पूनम चंदोक पर ग़ाज़ियाबाद नगर निगम ने 5,000 रुपये का ज़ुर्माना लगाया है। इस घटना के एक सप्ताह के अन्दर ही दो कुत्तों द्वारा बच्चों को काटने की दो घटनाएँ और सामने आयीं।
एक ग़ाज़ियाबाद के संजय नगर इलाक़े में, जहाँ एक पार्क में खेल रहे बच्चे को पिटबुल कुत्ते ने काटा, जिसके चलते बच्चे को 150 टाँके लगाने पड़े। दूसरी ओर नोएडा के सेक्टर-75 की एपेक्स सोसायटी की लिफ्ट में एक युवक के कुत्ते ने लिफ्ट में खड़े किशोर को झपटकर काट लिया। यहाँ भी कुत्तेके मालिक ने निर्दयता का परिचय देते हुए झटपट निकलने में ही भलाई समझी। वहीं मुम्बई में भी लिफ्ट में ही एक पालतू जर्मन शेफर्ड कुत्ते ने जॅमेटो डिलीवरी ब्वॉय के गुप्तांग (प्राइवेट पार्ट) में काट लिया। लोगों का कहना है कि मनुष्यों से अधिक जानवरों से प्रेम करने का चलन हमारे समय की विडम्बना है। लोग कुत्ते-बिल्ली पालने में शान समझते हैं और ऐसे स्थानों पर भी अपने पालतू जानवरों को ले जाते हैं, जहाँ उन्हें नहीं जाना चाहिए।
पंजीकरण कराना हो ज़रूरी
लोगों द्वारा कुत्ता, बिल्ली इत्यादि पालना कोई नया चलन नहीं है। मगर इसके लिए मापदण्ड होने चाहिए, ताकि पशु प्रेमियों की मनमानी पर रोक लग सके। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वहां के नगर निगम के पशु चिकित्सा विभाग द्वारा ऐसा ही नियम बनाया हुआ है। दिल्ली नगर निगम के नियमानुसार पालतू कुत्तों का पंजीकरण करके लाइसेंस न लेने वालों चेतावनी दी गयी है कि यदि लाइसेंस पंजीकरण टोकन के बिना कोई व्यक्ति पालतू कुत्ते सार्वजनिक स्थानों पर घुमाता है, तो पशु को निगम अधिग्रहित करके मालिक पर दण्ड लगाएगा। नगर निगम ने यह निर्णय पालतू कुत्तों के पंजीकरण की कम होती संख्या को लेकर उठाया है। नगर निगम के बयान में कहा गया है कि कुत्ते पालने वालों ने पंजीकरण कराने बन्द कर दिये हैं एवं पुराने पंजीकरणों का नवीनीकरण नहीं कराया है। दिल्ली नगर निगम के पशु चिकित्सा विभाग में ऑनलाइन घोड़ा बग्गी पंजीकरण, दुग्ध पशु पंजीकरण, पालतू कुत्तों व पालतू बिल्लियों के पंजीकरण कराकर लाइसेंस प्राप्त किया जा सकता है।
कुत्तों के काटने के मामले बढ़े
सन् 2021 के अनुमानित आँकड़ों की मानें, तो देश में आवारा कुत्तों की संख्या 6.2 करोड़ एवं आवारा बिल्लियों की संख्या लगभग 2.1 करोड़ हो सकती है। पशुधन संगणना के अनुमान से पता चलता है कि सन् 2019 में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग 1.53 करोड़ एवं आवारा बिल्लियों की संख्या लगभग 91 लाख थी। इसके अतिरिक्त सन् 2018 में देश में 1.69 करोड़ से अधिक पालतू कुत्ते एवं लगभग 13.4 लाख पालतू बिल्लियाँ थीं। सन् 2014 में 1.18 करोड़ से अधिक पालतू कुत्ते एवं 11 लाख के लगभग पालतू बिल्लियाँ थीं। इसका तात्पर्य यह है कि आवारा पशुओं की संख्या के अतिरिक्त पालतू पशुओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
द स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस इंडेक्स डाटा फॉर इंडिया की रिपोर्ट की मानें, तो संसार के सभी देशों के लगभग 24 फ़ीसदी आवारा पशु हमारे देश में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे देश में कुत्ते व बिल्लियों की कुल संख्या में से 85 फ़ीसदी कुत्ते एवं बिल्लियाँ आवारा हैं।
पालतुओं को नहीं लगवाते टीके
पशुओं के डॉक्टर रूम सिंह कहते हैं कि पालतू कुत्ते व बिल्लियों को रेबीज का टीका लगवाना अनिवार्य है। सरकारी पशु विभागों का दायित्व बनता है कि वो कुत्ता व बिल्ली पालने वालों को रेबीज के टीकाकरण के लिए विवश करे, टीकाकरण न कराने वालों का चालान करे एवं आवारा कुत्ते व बिल्लयों का टीकाकरण भी करे। विदित हो कुत्तों के काटने से रेबीज नामक बीमारी हो जाता है। जिसे भी कुत्ता काट लेता है, अगर उसको रेबीज का टीका न लगे, तो वो पागल भी हो सकता है। बिल्ली के काटने से रेबीज, सार्कोमा एवं घातक ट्यूमर भी हो सकता है।
रेबीज से होने वाली मौतें
हमारे देश में प्रत्येक वर्ष रेबीज से लगभग 20,000 लोग मर जाते हैं। विश्व में हर वर्ष लगभग 59,000 लोग रेबीज से मरते हैं। रेबीज के प्रति जागरूकता की कमी एवं आवारा व पालतू कुत्ते व बिल्लियों को रेबीज का टीका न लगने के कारण लोग असमय मर रहे हैं। अगर लोगों को जागरूक किया जाए एवं कुत्ते व बिल्लियों को समय-समय पर रेबीज का टीका लगाया जाए, तो लाखों लोगों की जान बच सकती है। हमारे देश में कुत्तों के काटने से सबसे अधिक 97 फ़ीसदी लोग मरते हैं, जबकि तीन फ़ीसदी लोग बिल्लियों व अन्य विषैले स्तनधारियों के काटने से मरते हैं। आज सरकार के लिए आवारा कुत्ते व बिल्ली एक चुनौती बने हुए हैं, मगर इस ओर न के बराबर ध्यान दिया जा रहा है। कुत्ते व बिल्लियों के काटने से रोग होने का कारण इन पशुओं का गंदी एवं सड़े-गले मांस को भोजन बनाना है।
शून्य रेबीज मामलों का प्रयास
केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि सन् 2030 तक रेबीज के मामले शून्य हो जाएँ। मगर समस्या यह है कि रेबीज के वार्षिक आँकड़े और देश में कुत्ते व बिल्लियों की सही संख्या के सही आँकड़े आज तक उपलब्ध नहीं हैं। केंद्र सरकार के पास भी इसका सटीक विवरण नहीं है। केंद्र सरकार ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सितंबर, 2021 में रेबीज उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीआरई) की घोषणा की थी। मगर केंद्र सरकार के लिए रेबीज के शून्य लक्ष्य को प्राप्त करना भी आसान नहीं है। इसका कारण स्वास्थ्य मंत्रालय व स्वाथ्य विभागों की उदासीनता है।
डॉक्टर रूम सिंह का कहना है कि इस बड़े व आवश्यक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को रेबीज व कुत्ते व बिल्लियों का सर्वे कराकर उस पर काम करना चाहिए। इसके बाद कुत्ता और बिल्ली पालने वालों पर पशुपालन के सख़्त नियम लागू होने चाहिए, ताकि उनके पालतू पशु किसी और के लिए प्राणघातक साबित न हो सकें।
सख़्ती आवश्यक
ग़ाज़ियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन में घटना से सरकारों के अतिरिक्त पशु विभागों व पुलिस विभाग को सीख लेने की आवश्यकता है। इन सभी को चाहिए कि कुत्ते व बिल्ली पालने वालों के प्रति नरम रवैया न बरतें। अगर किसी का कुत्ता अथवा बिल्ली किसी को काट लेता है, तो उस मालिक को दण्डित किया जाना अति आवश्यक होना चाहिए। इस सख़्ती से सम्भव है कि कुत्ते व बिल्ली पालने वाले सतर्क रहें और दण्डित होने के डर से अपने पशुओं को दूसरे लोगों के सम्पर्क से दूर रखें।
धारणा यह है कि जिस घर में कुत्ता या बिल्ली होते हैं, उस घर में कोई अनजान व्यक्ति किसी अपराध की नीयत से प्रवेश नहीं करता। मगर सच्चाई यह है कि पालतू कुत्ते व बिल्लियाँ उन लोगों को भी काट लेते हैं, जो इन पशुओं के पालने वालों के जानकार होते हैं। कई बार तो घर के सदस्यों को भी ये पशु काट लेते हैं। पशुओं से लोगों का प्यार होना उचित है, मगर इन पशुओं को अति से अधिक प्यार और छूट देना भी ठीक नहीं है। अगर सरकारी प्रयासों को कुत्ते व बिल्ली पालने वाले पशु प्रेमी भी इस बात का ध्यान रखें, तो इन पशुओं के काटने के मामले कम होने लगेंगे एवं वर्ष 2030 के रेबीज शून्य के केंद्र सरकार के लक्ष्य को छूने में मददगार साबित होंगे।