दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश अपनी जनसंख्या बढ़ाने के तरीके अपनाने में लगा है। इसके बावजूद वहां के लोग ज्यादा बच्चे पैदा करने से परहेज कर रहे हैं। वहीं, भारत में कम आय वर्ग की बड़ी आबादी में जनसंख्या दर अधिक होने से आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है, जिससे कई तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं। यानी कहीं ज्यादा आबादी तो कहीं घटती आबादी से भी देश परेशान हैं।
आखिर चीन क्यों तीन बच्चे पैदा करने की पॉलिसी लाने को मजबूर हुआ है। इसको इस तरह समझा जा सकता है कि 36 साल तक एक बच्चे की नीति को अपनाने के बाद अब वहां पर बुजुर्गों की तादाद बढ़ गई है और कामगारों के तौर पर युवाओं की कमी हो गई है। इससे उत्पादकता पर असर हो रहा है साथ ही बढ़ती महंगाई और लोगों की जीवनशैली ने भी ज्यादा बच्चे न पैदा करने के लिए प्रेरित किया है।
चीनी युवा दंपति किसी भी हालत में एक से ज्यादा बच्चा पैदा करने के लिए खुद ही तैयार नहीं दिख रहे हैं। पिछले दिनों कराए गए एक सर्वे में भी इसी तरह की बात सामने आई थी।
अब चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार की ओर से तीन बच्चों की नीति का शुक्रवार को औपचारिक रूप से समर्थन किया है। यह नीति दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश में तेजी से कम होती जन्म दर को रोकने के मकसद से लाई गई है। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति ने संशोधित जनसंख्या एवं परिवार नियोजन कानून को पारित कर दिया जिसमें चीनी दंपत्तियों को तीन बच्चे तक पैदा करने की अनुमति दी गयी है।
चीन में 1980 से लेकर 2015 तक राष्ट्रपति डेंग शाओपिंग के शासन में एक-बच्चे की नीति सख्ती से लागू की गई थी। इसके तहत माता-पिता सिर्फ एक बच्चा ही पैदा कर सकते थे। इन नियमों को तोड़ने वाले जोड़ों और उनके बच्चों से सरकारी सुविधाएं छीन ली जाती थीं। साथ ही उन्हें सरकारी नौकरियों और योजनाओं से भी दूर कर दिया जाता था।
देश में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और जन्मदर कम होने के बाद इस नीति को बदलकर दो बच्चों की नीति कर दिया गया। पिछले साल चीन का जो सर्वे सामने आया, उसके मुताबिक 2020 में चीन में महज 1.2 करोड़ बच्चे ही पैदा हुए, जो कि 2019 के 1.46 करोड़ बच्चों के आंकड़े से भी कम थे। चीन में प्रजनन दर भी 1.3 फीसदी पर ठहर गई, जिसने चीन को सबसे कम प्रजनन दर वाले देशों में शामिल किया गया।