जो ज़िन्दादिल हैं जीने का सलीका उनको आता है
1 चलो दुनिया में ऐसी भी मिसालें छोड़ देते हैं
किसी के वास्ते हम अपनी आँखें छोड़ देते हैं
कहीं शाम-ओ-सहर चेहरों पे खुशहाली चमकती है
कहीं हालात चेहरों पर लकीरें छोड़ देते हैं
जो ज़िन्दादिल हैं जीने का सलीका उनको आता है
जो बुज़दिल हैं, वो जीने की उम्मीदें छोड़ देते हैं
मुझे हैरत है तुम उनसे वफा की बात करते हो
सगे भाई को भी जो दुश्मनों में छोड़ देते हैं
हमीं से शोहरतें पायीं हमारे रहनुमाओं ने
हमीं को रास्तों में दायें-बायें छोड़ देते हैं
‘खलील’ अक्सर हमारे रहनुमा ओहदों की चाहत में
हमारे दिल में नफरत की दरारें छोड़ देते हैं
2 तुम अपनी हर जगह पहचान रखना
बुज़ुर्गों का मगर सम्मान रखना
भला है दोस्तों के काम आना
बुरा है बाद में अहसान रखना
वतन पर जब भी कोई आँच आये
हथेली पर तुम अपनी जान रखना
खुशी का जश्न तुम बेशक मनाना
पड़ोसी का भी लेकिन ध्यान रखना
मदद तो गैब से होगी तुम्हारी
तुम अपने दिल में बस ईमान रखना
वतन से दूर भी रहना पड़े तो
नज़र में, दिल में हिन्दुस्तान रखना
उजाला ऐ ‘खलील’ आयेगा लेकिन
तुम अपने घर में रौशनदान रखना
या यूँ कहिए ठोकर खाकर जीने का शऊर आ जाता है
1 मैं जब भी तन्हा होता हूँ, तू मेरे हुज़ूर आ जाता है
कोई पास नहीं आता लेकिन गम तेरा ज़ुरूर आ जाता है
दुख-दर्द भूलकर भी इन्साँ दुनिया में सीखे है जीना
या यूँ कहिए ठोकर खाकर जीने का शऊर आ जाता है
शक-सुब्हा पर ऐ दोस्त सुनो रिश्तों के धागे मत तोड़ो
शक अगर यकीं में बदले तो रिश्तों में फितूर आ जाता है
चेहरे पे उदासी छायी हो, गम हो, दु:ख हो, तन्हाई हो
ऐसे में अगर तू याद आये आँखों में भी नूर आ जाता है
जब दर्द बढ़े हद पार करे, बर्दाश्त के बाहर हो जाए
दिल को बहलाने ख्वाब तेरा मस्ती में चूर आ जाता है
जो दिल को प्यारे होते हैं आँखों के तारे होते हैं
कभी-कभी उनमें भी तो ऐ ‘बाबा’ गुरूर आ जाता है
2 बुत के आगे झुके बन्दगी हो गयी
अपनी पत्थर से यूँ दोस्ती हो गयी
वादा सुब्हो का था शाम भी हो गयी
गुफ्तगू इश्क की मुल्तवी हो गयी
उसने भी देखकर यूँ चुरा ली नज़र
तल्ख तेवर लिये सादगी हो गयी
रील उलटी चली ज़िन्दगानी की भी
जब शुरू होना था आिखरी हो गयी
इतनी नफरत दिलों में है क्यूँ आपके
चीज़ हर इक यहाँ मज़हबी हो गयी
उसने हमको सदा गमज़दा ही किया
हमसे ऐसी खता कौन-सी हो गयी
डर का माहौल ‘बाबा’ ये कम कैसे हो
बात अब यह बहुत लाज़िमी हो गयी