है दूर तलक यूँ तो अँधेरा मेरे आगे
1 है दूर तलक यूँ तो अँधेरा मेरे आगे
है मुझको यकीं होगा उजाला मेरे आगे
बिटिया तू रसोई से ज़रा दाने तो ले आ
इक आस में बैठा है परिन्दा मेरे आगे
बेटे मैं तेरी माँ हूँ ज़रा बोल अदब से
अच्छा नहीं है ये तेरा लहज़ा मेरे आगे
लगता है मेरी हार पे वो खुश तो बहुत है
करता है मगर दुख का दिखावा मेरे आगे
सजदे में उसी सूर्य के झुकता है मेरा सर
रखता है जो हर रोज़ उजाला मेरे आगे
2 वो अपने सिवा औरों की सोचा नहीं करते
कुछ ऐसे शजर भी हैं जो साया नहीं करते
कायम रहें रिश्ते तो सुकूँ होता है हासिल
पंछी को कभी बाँध के रक्खा नहीं करते
सावन में कभी डाले थे जिन पेड़ों पे झूले
उन पेड़ों को बेदर्दी से काटा नहीं करते
हम परदानशीनों के तरफदार हैं फिर भी
आँखों में हया रखते हैं, परदा नहीं करते
खुशबू तो बिखरने से कभी रुक नहीं सकती
हर वक्त हवाओं का ही शिकवा नहीं करते
गिरने दो, सँभलने दो उन्हें खुद ही तो अच्छा
बच्चों को हर इक बात में टोका नहीं करते
माँ-बाप का साया जो उठा सर से हमारे
अब कौन दिलासा दे कि चिन्ता नहीं करते
तकरीर में ही जोश दिखाते हैं ये नेता
सरहद पे तो बेटों को ये भेजा नहीं करते
चलो अपना हिन्दोस्ताँ अब तलाशें
1 वही खूबसूरत जहाँ अब तलाशें
चलो अपना हिन्दोस्ताँ अब तलाशें
तआस्सुब, बगावत, न फतवों की बातें
मुहब्बत की बानी-अज़ाँ अब तलाशें
शगुफ्ता कली, सुर्ख गुल शाख पर हों
वो बाद-ए-सबा गुलसिताँ अब तलाशें
बहुत हो गयी तीरगी की हिमायत
सितारों भरी कहकशाँ अब तलाशें
जहाँ सूर, तुलसी हों, मीरा, कबीरा,
हम ऐसा कोई कारवाँ अब तलाशें
2 तुम्हारी नज़र राजधानी गज़ल की
तुम्हें लोग कहते हैं रानी गज़ल की
सज़ाकर इसे अपनी पलकों पे रखना
जो मैं दे रहा हूँ निशानी गज़ल की
तुम्हारे ही दरिया-ए-दिल में उतरकर
मुझे देखनी है रवानी गज़ल की
तग•ज़ुल का जिसमें सलीका, हुनर है
उसी पर हुई मेहरबानी गज़ल की
मेरा इश्क जब तक अधूरा रहेगा
अधूरी रहेगी कहानी गज़ल की
खिज़ाओं से कह दो चमन में न आएँ
अभी रुत है छायी सुहानी गज़ल की
तुम्हीं आबरू, आरज़ू, जुस्तजू हो
तुम्हीं से है शोहरत पुरानी गज़ल की
तसव्वुर में ‘सागर’ के आयी है जबसे
सँवरने लगी ज़िन्दगानी गज़ल की