राजस्थान के लोकजीवन की मुकम्मल जानकारी लेनी हो और समाज की विडंबनाओं तथा विद्रूपताओं को निकट से देखना हो, तो सोप ओपेरा की तर्ज पर निर्मित धारावाहिक ‘बालिका वधू’ ज़रूर देखना चाहिए। बालिका वधू राजस्थान के आंचलिक क्षेत्रों के सामाजिक जीवन में रची-बसी बाल विवाह की त्रासद परम्परा का सशक्त दस्तावेज़ है। एक सच्चे वाकये पर बने इस धारावाहिक में चुभन पैदा करने वाले अनेक ऐसे दृश्य हैं, जो आँख में किरच की तरह अटक जाते हैं। सवाल है कि यह धारावाहिक फितरती रूढ़ परम्पराओं को धिक्कारने के बावजूद समाज को नयी दिशा देने का वाहक क्यों नहीं बन पा रहा है? सदी के शुरुआती दशक में टीवी पर दो हज़ार एपीसोड्स के प्रदर्शन के साथ धमाल मचा चुका यह धारावाहिक एक बार फिर दर्शकों की ज़बरदस्त भीड़ जुटा रहा है। लेकिन इस बार इस धारावाहिक ने सिने उद्योग का काला पक्ष भी उजागर कर दिया कि शोमैनशिप के लिए प्रख्यात यह उद्योग संवेदना के नाम पर तो बिल्कुल रीत चुका है। ग्लैमर के पीछे के दर्द की नमी देखनी है, तो इस लोकप्रिय धारावाहिक के निर्देशक रामवृक्ष गौर की आँखों में ज़रूर दिख जाएगी; जो इन दिनों फाकाकशी की हालत में है और अपने गृह क्षेत्र आजमगढ़ में सब्ज़ियाँ बेचकर दिन गुज़ार रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि रामवृक्ष गौर होली के दौरान अपने गाँव पहँुचे थे। फिर कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के कारण वहीं अटक गये। क्योंकि आर्थिक तंगी के चलते उनका वापस मुम्बई लौटना तो दूभर हुआ ही, घर-परिवार का गुज़ारा करना भी मुश्किल हो गया। नतीजतन सब्ज़ी का ठेला लगाना पड़ रहा है।
रामवृक्ष सन् 2002 में मुम्बई पहुँचे थे। उन्होंने विभिन्न धारावाहिकों का निर्देशन किया। यहाँ तक कि यूनिट डायरेक्टर तक बनकर अनेक सीरियलों का सफल निर्देशन किया। हालाँकि रामवृक्ष अपनी बेबसी पर आँखों की कोर भीगने से बचा लेते हैं। रामवृक्ष कहते हैं- ‘मेरी नज़रों में कोई भी काम छोटा नहीं होता। मुम्बई जाने से पहले भी मैं सब्ज़ी बेचा करता था। हालात सुधरेंगे तो वापस मुम्बई जाऊँगा।’ उधर अनूप सोनी ने सोशल मीडिया पर कमेंट लिखा है और उनकी मदद भी करना चाह रहे हैं। सोनी ने मीडिया रिपोर्ट को शेयर करते हुए लिखा है-‘हमारी बालिका वधू की टीम को पता चला है। उनकी मदद के लिए उनसे सम्पर्क कर रहे हैं।’
बालिका वधू का कथानक मुख्य रूप से आनंदी और जगिया के इर्द-गिर्द घूमता है, जो बाल विवाह के साथ बड़े होते हैं। बालिका वधू का पहला भाग कच्ची उमर के पक्के रिश्तों पर आधारित है। इसका दूसरा भाग लम्हे प्यार के पर केंद्रित है। इसका केंद्र है- आनंदी की बेटी नंदिनी। इस धारावाहिक के मुख्य पात्रों में प्रत्यूशा बनर्जी, तोरल रासपुत्रा, शशांक व्यास, अविका गौर, अविनाश मुखर्जी, अनूप सोनी तथा सिद्धार्थ शुक्ला हैं। लेकिन इस धारावाहिक का सबसे सशक्त पात्र हैं- ‘दादी सा’। सुरेखा सीकरी ने इस केंद्रीय पात्र में ज़बरदस्त जान फूँक दी है। ब्रेन स्ट्रोक (पक्षाघात) की वजह से वह भी इन दिनों चर्चा में हैं। दादी सा यानी सीकरी कहती हैं- ‘मैंने सन् 1965 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ज्वाइन किया, तभी से अभिनय में सक्रिय हूँ। पिछले साल ब्रेन स्ट्रोक के कारण शरीर का आधा हिस्सा आंशिक रूप से पेरालाइज्ड (लकवाग्रस्त) हो गया। इसके बावजूद सक्रिय हूँ.., अच्छा अभिनय अभी आना बाकी है।’
निजी जीवन की वेदना
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि धारावहिक बालिका वधू के केंद्रीय िकरदार में आनंदी की भूमिका का निर्वाह करते हुए प्रत्यूशा बनर्जी ने जैसी वेदना भोगी, उनकी निजी ज़िन्दगी भी वैसी ही त्रासद रही। 01 अप्रैल, 2016 को उनकी रहस्यमय मौत पूरे संवेदन तंत्र को झकझोर देती है। उसकी हत्या के आरोप में पुलिस ने उसके बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह को हिरासत में लिया था। लेकिन बाद में जमानत पर छोड़ दिया। प्रत्यूशा 01 अप्रैल, 2016 को गुडग़ाँव स्थित अपने फ्लैट में मृत पायी गयी थीं। उनकी मौत की चौथी बरसी पर उसके पिता शंकर बनर्जी यह कहते हुए फफक पड़े कि ‘कोराना वायरस के कारण बेटी की तस्वीर पर चढ़ाने के लिए फूल तक नहीं ला सका। बनर्जी की आँखेंयह कहते हुए भीग जाती है कि मामले की पड़ताल को चलते हुए चार बरस बीत गये, लेकिन मामला आज भी जस-का-तस है। धारावाहिक बालिका वधू में जगिया की भूमिका का निर्वाह करने वाले शशांक व्यास ने इंस्टाग्राम पर लिखा है कि हम जिन लोगों को प्यार करते हैं, वे हमसे दूर नहीं जाते…, वे हमेशा हमारे आस-पास रहते हैं। बेशक वे दिखायी नहीं देते, उनकी आवाज़ सुनायी नहीं देती; लेकिन इससे उनके प्रति हमारा प्यार कम नहीं हो जाता।’ प्रत्यूशा के पिता बनर्जी कहते हैं- ‘मुम्बई आने के बाद मेरी बेटी राहुल के साथ रिलेशनशिप में नहीं थी। राहुल हमारे साथ ही रहता था। अलबत्ता उसने अफवाहों को हवा देने की कोशिश की थी कि प्रत्यूशा उसके साथ लिव-इन रिलेशन में है। उसने षड्यंत्र रचकर मेरी बेटी पर दबाव बनाया और बाद में उसकी हत्या कर दी।’
शशांक व्यास कहते हैं- ‘राहुल राज सिंह के साथ रिलेशनशिप में जाने के बाद प्रत्यूशा अपने दोस्तों से दूर हो गयी थीं। उनकी मौत का समाचार 01 अप्रैल को मिला, तो मैंने इसे अप्रैल फूल वाली खबर समझा। लेकिन बाद में तस्दीक हुई, तो हतप्रभ रह गया। जिस समय मुझे यह दु:खद खबर मिली, मैं जिम में था। मेरी उससे आखरी मुलाकात मार्च, 2016 में हुई थी। असल में दोस्तों से मेल-मिलाप से तो उसी ने किनारा कर लिया था। लेकिन बावजूद इसके उसका शिकायती लहज़ा था कि तू तो भूल गया है। अपनी ज़िन्दगी में मस्त है…, ऐसा क्या हो गया है भाई?’ दरअसल धारावाहिक की तरह यहाँ भी तीसरा कोण थी- सलोनी शर्मा। सूत्रों का कहना है कि प्रत्यूशा मृत्यु के दौरान गर्भवती थी।