राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जम्मू-कश्मीर सरकार से रामनगर क्षेत्र में 11 बच्चों की मौत पर कड़ा संज्ञान लिया है। आदेश में मृतक बच्चों के करीबी परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये रिपोर्ट देने को कहा है। आयोग ने इसे घोर लापरवाही बताते हुए कहा कि सरकार की ओर से पहली घटना के बाद गम्भीर प्रयास करती तो इतने बच्चों की मौत नहीं होती। इस मुहिम की शुरुआत सुकेश खजूरिया ने की थी जिसे वे शुरुआत बता रहे हैं। दोषियों को सलाखों के पीछे पहुँचाने के लिए उनके पास पुख्ता सुबूत है और वे सज़ा से बच नहीं सकेंगे।
शिक्षक अशोक कुमार कहते हैं कि उनके दो साल के बच्चे अनिरुद्ध की मौत की वजह यही बेस्ट कोल्ड सीरप रही। इस ज़हरीली दवा ने मेरा बच्चा मुझसे छीन लिया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुआवज़े का आदेश आर्थिक संबल देगा; लेकिन दवा निर्माता कम्पनी के मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। वे रसूखदार और पैसे वाले हैं; लेकिन बचने नहीं चाहिए। उन्हें कड़ी सज़ा मिले, जो नज़ीर बन सके; ताकि फिर कोई अनिरुद्ध या पंकू जैसे नौनिहालों को मौत न मिले। राष्ट्रीय मीडिया को चाहिए कि वह इस मुद्दे को शिद््दत से उठाये, ताकि हम लोगों को इंसाफ मिल सके। बता दें कि ‘तहलका’ ने शुरू से ही इस मामले को गम्भीरता से उठाया, ताकि पीडि़तों को न्याय मिल सके।
गोविंदराम, निम्मो देवी, अनिल कुमार और भोली देवी के नौनिहालों की मौत इसी दवा से हुई। प्रभावित परिजनों के मुताबिक, रामनगर में 11 बच्चों की मौत तो सरकारी आँकड़ों में है, पर यह संख्या ज़्यादा है। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी निश्चित तौर पर बच्चों की मौतें हुई होंगी, जो बच्चे दवा से किसी तरह बच गये, उनमें कई तरह के विकार पैदा हो गये हैं। जम्मू के ऊधमपुर ज़िले के रामनगर क्षेत्र में दिसंबर, 2019 से जनवरी, 2020 के दौरान एक के बाद एक करके 11 बच्चों की मौत हुई। जाँच के बाद मौत की वजह बेस्ट कोल्ड सीरप का सेवन पाया गया। रीजनल ड्रग टेस्टिंग लैब (आरडीटीएल) में जाँच के दौरान यह मानकों पर खरी नहीं उतरी। हिमाचल के बद्दी में डिजिटल विजन नामक कम्पनी ने यह दवा खाँसी-जुकाम ठीक होने के लिए निर्मित की; लेकिन यह जानलेवा साबित हुई और कम्पनी को पता भी नहीं चला और न जाने कितना उत्पाद अन्य राज्यों में भेज दिया? किस राज्य में कितने बच्चे इस दवा के सेवन से मरे? इसका पता भी नहीं है। जाँच के बाद कम्पनी का लाइसेंस रद्द करके उसे सील किया गया।
25 दिसंबर, 2019 को श्रेयांस ने दम तोड़ दिया। अपने घर पहुँचे तो रामनगर क्षेत्र में दो दिन बाद 27 दिसंबर को तीन साल के बच्चे कनिष्क की मौत की खबर मिली। उसकी मौत की वजह भी हमारे श्रेयांस जैसी रही। उसे भी खाँसी-जुकाम की शिकायत थी। दो दिन बाद 29 दिसंबर को लगभग एक साल की बच्ची जाह्नवी और अगले दिन डेढ़ साल की बच्ची लक्ष्मी को मौत ने निगल लिया। छ: दिन में तीन मौतें! बीमारी एक, दवा भी एक और मौत की वजह भी एक। लेकिन उस समय किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। स्वास्थ्य विभाग इसे अज्ञात बीमारी से होने वाली मौत मानता रहा। बच्चों की मौत का सिलसिला रुका नहीं, तीन दिन बाद नये साल में 2 दिसंबर को चार साल के अमित को भी नहीं बचाया जा सका। अगले दिन तीन साल की सुरभि, दो साल के अनिरुद्ध, एक साल का पंकू, डेढ़ साल के अक्षु, एक वर्षीय नीजू और दो वर्षीय जानू; सब खाँसी-जुकाम जैसी बीमारी के आगे हार गये।
करीब एक माह में 11 मौतों से रामनगर के लोगों में दहशत का माहौल पैदा हो गया। स्वास्थ्य विभाग के अलावा शासन-प्रशासन में हड़कंप मच गया। मौत की एक ही वजह सामने आने पर दवा का पता लगाया गया। सभी बच्चों को उसी डिजिटल विजन नामक कम्पनी की दवा दी गयी थी। उसे देने के बाद ही बच्चों की तबीयत बिगड़ी। फिर दवा को जाँच के लिए चंडीगढ़ की रीजनल ड्रग टेस्टिंग लेबोरेटरी भेजा गया। जाँच में खुलासा हुआ कि कोल्ड बेस्ट पीसी सीरप मानक पर खरी नहीं उतरी और सेंपल फेल हो गया। दवा में डाई एथिलीन ग्लायकोल की मात्रा 34.5 फीसदी पायी गयी, जो तय मात्रा से ज़्यादा थी। इससे यह ज़हर का काम कर रही थी।
ऊमधपुर ज़िले के रामनगर क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खस्ता है। दूरदराज़ के गाँवों में तो सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएँ न के बराबर हैं। यहाँ के कई गाँव तो सड़कों से भी नहीं जुड़े हैं; जबकि कई गाँव आज के दौर में बिजली से भी वंचित है। रामनगर के अस्पताल में उनकी पहुँच इतनी आसान नहीं दिखती। हालत यह कि कई बार मरीज़ों को परिजन चारपाई पर ही लाने पर विवश हैं। रामनगर के अस्पताल में कई डॉक्टर विशेषज्ञ नहीं है। ऐसे में मरीज़ों को ज़िला अस्पताल ऊधमपुर स्थानांतरित करना पड़ता है। यहाँ से आवागमन के भरपूर साधन नहीं हैं, बावजूद इसके लोग किसी तरह पहुँचने पर मजबूर हैं। कहा जा सकता है कि जम्मू संभाग का यह इलाका स्वास्थ्य सेवाओं में बेहद पिछड़ा हुआ है।
बेस्ट कोल्ड सीरप के सेवन से जिन बच्चों की मौत हुई उनमें, जाह्नवी केवल 11 माह की और सबसे बड़ा अमित चार साल का था। ज़्यादातर बच्चों के परिजन आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर है। मज़दूरी आदि कर किसी तरह घर का काम चलाते हैं। बच्चों के उपचार पर हज़ारों रुपये खर्च किये। बहुत से परिजनों पर उधारी हो गयी, बावजूद इसके बच्चे भी नहीं बचे। उनके मुताबिक, मुआवज़े के आदेश के बाद उन्हें लगता है कि बच्चों को इंसाफ मिलेगा।
इंसाफ की डगर
रामनगर इलाके में 11 बच्चों की मौत और पीडि़त परिवारों को इंसाफ दिलाने की मुहिम में सामाजिक कार्यकर्ता सुकेश चंद्र खजूरिया का विशेष योगदान है। खजूरिया राज्य सरकार की अधिकृत सिटीजन एडवाइजरी समिति के सदस्य भी रह चुके हैं। देशहित से जुड़े मुद्दों और आम लोगों के इंसाफ के लिए वे आवाज़ बुलंद करते रहे हैं। रामनगर के इस मामले वे हर पीडि़त परिवार को जानते हैं, उनके गाँवों तक पहुँच चुके हैं। हर पीडि़त सदस्य उन्हें जानता है, उन पर भरोसा जताता है।
जाँच रिपोर्ट से लेकर अन्य दस्तावेज़ उनके पास है। राष्ट्रीय मानवाधिकार और राष्ट्रीय बाल सुरक्षा आयोग तक वे पहुँच गये हैं। उनकी पहल पर ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मृतक बच्चों के करीबी परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये मुआवज़े का आदेश दिया है। जम्मू के अलावा यह मामला हरियाणा और हिमाचल से जुड़ा है। इसके लिए उन्हें काफी भागदौड़ भी करनी पड़ती है। वह कहते हैं कि थककर बैठने वालों में वह नहीं है। जिनके बच्चे ज़हरीली दवा की वजह से मौत के शिकार हो गये, वह उनके साथ पहले दिन से खड़े हैं। अभी तो आयोग ने जम्मू-कश्मीर सरकार की लापरवाही को मद्देनजर रखते हुए मुआवज़े के आदेश दिये हैं। बच्चों की मौत के दोषी तो दवा निर्माता कम्पनी के मालिक है। उनके खिलाफ संगीन आरोप है। पुख्ता सुबूत हैं, उन्हें सलाखों के पीछे जाना ही होगा। इससे बच्चे तो वापस नहीं आ सकेंगे, लेकिन उनके परिजनों को लगेगा कि हाँ, कुछ इंसाफ ज़रूर हुआ है।
विधानसभा में उठा मुद्दा
हिमाचल प्रदेश राज्य विधानसभा में भी यह मामला उठ चुका है। दवा कम्पनी राज्य में है लिहाज़ा सरकार की कड़ी कार्रवाई की दरकार है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर विधानसभा में कह चुके हैं कि आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई होगी। उन्होंने बेस्ट कोल्ड सीरप दवा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह दवा जाँच में मानकों पर खरी नहीं उतरी है। यह कम्पनी की बहुत बड़ी खामी है। इस प्रकरण में कड़ी कार्रवाई होगी। यह राज्य की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला है लिहाज़ा किसी तरह की ढील नहीं बरती जाएगी। जाँच रिपोर्ट आते ही शीर्ष अफसरों को तुरन्त प्रभाव से कार्रवाई के निर्देश दिये गये।
निर्माता कम्पनी डिजिटल विजन
हिमाचल प्रदेश के ज़िला सिरमौर के कालाअंब स्थित दवा कम्पनी डिजिटल विजन का कारोबार देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में है। सन् 2009 में स्थापित कम्पनी का टर्नओवर 45 करोड़ के आसपास है। यहाँ 250 से ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं। कम्पनी का स्वामित्व पुरुषोत्तम गोयल और कोनिक गोयल का है। कम्पनी अफगानिस्तान, श्रीलंका, नाइजीरिया, सूडान, घाना, कांगो, म्यांमार, नेपाल, कंबोडिया, वियतनाम, आयरलैंड और स्पेन तक फैला है। आयरलैंड में तो कम्पनी का पंजीकृत दफ्तर भी है। कुल 165 से ज़्यादा दवाइयों का उत्पादन यहाँ होता है। टेबलेट-केप्सूल से लेकर इंजेक्शन तक यहाँ तैयार होते हैं। रामनगर में बच्चों की मौत के लिए डिजिटल विजन कम्पनी ही प्रमुख तौर पर ज़िम्मेदार है। हिमाचल के बद्दी, बरोटीवाल और कालाअंब क्षेत्र दवा उद्योग का गढ़ है। यहाँ साढ़े चार सौ से ज़्यादा इकाइयाँ हैं। दवा कम्पनियों को सरकार की ओर के विशेष छूट दी जाती है।