साढ़े चार साल तक जनता से मुंह छिपाए रखिए, मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति से पीछे हटते रह कर शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं का निजीकरण करते रहिए, औद्योगिक क्षेत्रों को मंदी की गिरफ्त से निकालने की जहमत मत फरमाइए, योजनाएं ठिठकती है तो बेपरवाह रहिए और मासूम बच्चियों से दरिन्दगी सरीखे कंपाने वाले अपराधों का ग्राफ बढ़ते रहने दीजिए यहां तक कि भ्रष्टाचार के बगूले भी धुंआधार तरीके से उठने दीजिए और जब जनता के मोहभंग की तपिश महसूस करने लगे और लुंज-पुंज सरकार चुनावी सियासत की दहलीज पर पहुंच जाए तो कुशासन पर सुशासन का ठप्पा लगाकर जनता से नजरें मिलाने के लिए भव्य यात्रा निकाल लीजिए। चुनावी चौसर पर खड़े मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारें ऐसा कर चुकी है और अब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इसी लीक पर चलते हुए ‘सुराज गौरव यात्रा’ निकाल रही है। वसुंधरा राजे को ‘सत्ता विरोधी रूझान’ को लेकर कोई ग्लानि नहीं है, क्योंकि वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अमृत वचनों में आकंठ डूबी है कि, ‘सत्ता’ विरोधी रुझान बेपेंदे की बातें हैं और बातों का क्या? ऐसे सौ रुझानों को घोंटकर पी जाना चाहिए? अमित शाह ने राजनीति में एक नया मुहावरा गढ़ कर उस लीक को मिटा दिया कि,’सरकारें जनता से तब डरती है, जब जवाबदेही का मौका आता है?’’ अब जब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह वसुंधरा राजे को इस शंका से ही मुक्त कर चुके हैं तो कैसा डर और कैसी हताशा? वसुंधरा को कोई डर अगर है तो यह कि,’जनता कहीं’ इस बात को समझ ना जाए जो उन्हें नहीं समझनी चाहिए, नतीजतन चालीस दिन की यह यात्रा मदारी के स्वांग सरीखी निकाली जा रही है ताकि नौटंकी देखने की उत्सुक गांव-ढाणियों की जनता उन्हें सुनने नहीं देखने को उमड़ती रहे और यह सब स्वफूर्त कहीं नहीं हो रहा बल्कि सरपंचों से लेकर जिला कलेक्टरों तक को यही काम सौंप दिया गया है कि सिर्फ भीड़ जुटाने के एक सूत्री काम में जुट जाएं। इस यात्रा के नाटकीय दृश्य हर कदम पर इसकी पोल खोलते नजर आते है…. वरिष्ठ पत्रकार श्री नंद झा की आंखन देखी को समझें तो, ‘वसुंधरा एक कठोर अनुशासनप्रिय प्रिंसिपल के स्वांग के साथ जब गौरव यात्रा के दौरान जनसमूह को संबोधित करते हुए सवालों की बौछार करती है तो उनके जवाब जिला कलेक्टर विधायक या अधिकारियों को ‘हां या ना’ में देना होता है लेकिन जवाब हां में ही हेाता। मसलन- क्या सिंचाई योजना की डीपी को अंतिम रूप दिया जा चुका है? क्या गांवों में सीमेंट की सड़कें बन चुकी हैं? इसके बाद राज्य सरकार की योजनाओं के चिन्हित लाभार्थियों को मंच पर बुलाया जाता है। आदिवासी क्षेत्र बांसवाड़ा जिले के घाटोल में मुख्यमंत्री ने कन्हैयालाल नामक व्यक्ति से ताबड़तोड़ सवाल पूछे, ‘क्या प्रधानमंत्री आवास योजना से आपको धनराशि मिली? क्या उज्जवला योजना से आपको गैस कनेक्शन मिला? क्या भामाशाह कार्ड मिला? जैसा कि पहले से तय होता है, वसुंधरा राजे को सारे जवाब हां में मिलते हैं।
इस यात्रा की प्रबंधन टीम पूरे मशीनी ढंग से काम कर रही है। पत्रकार श्री नंद झा कहते हैं, उस यात्रा के आलेख और विवरण बड़ी चतुराई से गढ़े गए हैं। लेकिन राजे के भाषणों में रचनात्मकता और मानवीय तत्वों का अभाव यात्रा की पोल खोल देते हैं। भले ही प्रदेश के ग्रामीण इलाके भाजपा के पोस्टर बैनर और झंडियों से अटे हुए हैं लेकिन लोग खेती-किसानी की विपदा, अभावों के दुख, गरीबी और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के नकारापन की शिकायतों को लेकर गहरी पीड़ा में डूबे हुए हैं। भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि,’ये लोग आखिर कैसे इस तमाशाबाजी को वोट देंगे?’’ यात्रा के दौरान नीरस भाषणों से ऊबे लोग अगर थोड़ा बहुत रीझे भी तो वो आध्यात्मिक मुद्दे थे, जब राजे ने भावजी महाराज,कालीबाई क्या गोविंदगुरू सरीखे स्थानीय शूरवीरों को याद किया। इस व्यक्ति केन्द्रित यात्रा में भाजपा के नए अध्यक्ष मदनलाल सैनी तो कहीं नजर ही नहीं आते? और यात्रा के संयोजक गुलाब चंद कटारिया भी उपेक्षित ही रहे? राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि, ‘इस सुराज गौरव यात्रा में सुराज की छाया तो कहीं भी नजर नहीं आती? क्या महाराणा प्रताप, पन्नाधाय और गोरा बादल सरीखे शूरवीरों के बलिदान को याद करने भर से जनता के दुख-दर्द का समाधान हो जाएगा?
अलबत्ता इस यात्रा को खरोंचने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के चालीस सवालों की लड़ी सुराज का सांचा उधेड़ती नजर आती हैं। उदाहरण के लिए, ‘भाजपा सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन के कारण पिछले चार सालों में प्रदेश 2 लाख 29 हजार करोड़ के कजऱ्े में डूब गया? प्रदेश का राजकोषीय घाटा भी नियंत्रण से बाहर हो गया? नतीजतन सरकार का वित्तीय संतुलन बुरी तरह गड़बड़ा चुका है। ऐसे में प्रदेश में निजी निवेश तो खटाई में पड़ ही गया? मुख्यमंत्री ने उद्योग धंधों को चौपट होने दिया और कोई भी सुधारात्मक कदम नहीं उठाए? पायलट का इस सवाल का उनके पास क्या जवाब है कि,’महिला अपराधों में देश में चौथे स्थान पर रहने के बाद भी क्या प्रदेश की महिला मंत्री को गौरव महसूस होता है?
चुनाव पूर्व अपनी प्रदेशव्यापी यात्रा के दौरान वसुंधरा राजे ने जहां भी भाषण दिए, कुल मिलाकर एक ही बिन्दु पर केन्द्रित रहे कि, ‘अगर राज्य के मतदाता किस भी सरकार को उसका एक कार्यकाल समाप्त होने के बाद अस्वीकार कर देंगे तो नए राजस्थान के निर्माण का काम थम जाएगा।’ उनके इन भाषणों के पीछे अंदेशा साफ झलक रहा था कि,’चुनावी माहौल में सत्ता विरोधी रुझान का डर उन पर पूरी तरह हावी है।’’ विश्लेषकों का प्रति प्रश्न है कि,’अगर सरकारें अपने पूरे कार्यकाल में जनता की उम्मीदों की कसौटी पर खरी उतरे तो, ऐसी नौबत ही क्यों आए? विश्लेषकों का कहना है कि, ‘वसुंधरा के पास इस बात का क्या जवाब है कि, कार्यकाल के साढ़े चार साल बाद ही उनको जनता की सुध क्यों आई? इतना अर्सा बीत जाने के बाद योजनाओं की प्रगति जानने की याद क्यों आई? अब जिस तरह इस यात्रा में प्रशासनिक मशीनरी का दुरूपयोग हो रहा है-क्या जनता में उसका अच्छा संदेश जाएगा? विश्लेषक तो यहां तक कहते है। कि ‘गौरव यात्रा एक तरह की हाई प्रोफाइल इवेंट मैनेजमेंट है। इस यात्रा के लिए की जा रही भारी भरकम फंडिग क्या लोगों को नज़र नहीं आ रही? भाजपा की इस गौरव यात्रा के दौरान हो रहे सरकारी खर्चों के खिलाफ
राजस्थान हाई कोर्ट में दायर की गई जनहित याचिका ने तो वसुंधरा के लिए एक नई दुविधा खड़ी कर दी है।