राजनीतिक यात्रा की मुहर लगाते हुए अब जबकि हाईकोर्ट ने भी ‘गौरव यात्रा’ को सवालों से मुक्त कर दिया है लेकिन ये सवाल तो सार्वजनिक निर्माण विभाग के अफसरों के चेहरों की रंगत उड़ा रहे हैं जो ‘यात्रा’ पर खर्च की गई रकम का हिसाब देने के लिए गलियां तलाश कर रहे हैं कि नई सरकार को क्या कह कर बचेंगे? फिलहाल यह भी कहना सच है कि कमोबेश रूप से ‘गौरव यात्रा’ तकरीबन हर मुकाम पर पथराव और विरोध का शिकार हो रही है। इसकी बड़ी वजह है, ‘वसुंधरा राजे के शक्कर में लिपटे झूठ और उन्हें खरोचते हुए तर्क? वसुंधरा सरकार ने मनरेगा के तहत लाखों को रोजगार देने की बात हर कदम पर दोहराई, लेकिन कैग की रिपोर्ट इन दावों की बखिया उधेड़ते नजर आती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘पांच साल में मनरेगा के तहत सिर्फ एक व्यक्ति को बेरोज़गारी भत्ता दिया गया है। नियम-कायदों की बात करें तो प्रत्येक परिवार को एक वर्ष में न्यूनतम सौ दिवस का रोज़गार उपलब्ध कराना चाहिए किन्तु वर्ष 2013 से 2017 तक सौ दिन रोज़गार उपलब्ध कराने का प्रतिशत मात्र 9.91 ही रहा। वहीं आंकड़ों की मानें तो पांच साल में प्रदेश में मात्र एक व्यक्ति को बेरोजगार माना गया है जबकि मनरेगा में प्रावधान है कि रोजगार चाहने वालों की पहचान के लिए डोर-टू-डोर सर्वे होना चाहिए और रोजगार के लिए जारी जॉब कार्ड का नवीनीकरण होना चाहिए लेकिन कैग रिपोर्ट कहती है कि, ‘मनरेगा के तहत दोनों ही नियमों की पालना की कोशिश ही नहीं हुई? रिपोर्ट में तो यहां तक खुलासा हुआ है कि, ‘रोजगार मांगने पर रोजगार देने की कोई व्यवस्था ही नहीं है…।’ ऐसे में मुख्यमंत्री के दावों का क्या कहें जो पांच साल में 15 लाख को रोजगार देने की मुनादी करती फिर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, ‘गौरव यात्रा’ के मायने हैं, सरकार के ऐसे कार्यों का प्रचार-प्रसार जिन पर गौरव किया जा सके। क्या शहरों की स्वच्छता पर गौरव किया जा सकता है? पिछले दिनों मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ‘गौरव यात्रा’ में अपनी पूरी ताकत को बुलावा देते, वक्त और उर्जा झोंकते हुए देखते हैं तो लाजमी तौर पर यह सवाल उठता है कि, ‘अपने कार्यकाल के साढ़े चाल साल बीत जाने के बाद ही उन्हें जनता की सुध क्यों आई?’ दरअसल वसुंधरा की यह बेताबी बगदाद के सुल्तान हारून अलरशीद की तरह नहीं है बल्कि बेजान हाथों से फिसलती सत्ता को थामने की नाकाम कोशिश है। 40 दिन की गौरव यात्रा एक झूठ को सच में तब्दील करने के लिए हर पड़ाव पर इस बात को दोहराती है कि, ‘हमने 16 लाख युवाओं को रोजगार दिया है, लिहाजा हमारी वापसी तय है।’ लेकिन जब भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने रोजगार दिए जाने वाले लोगों के नाम बताने को कहा, उन्होंने इस सवाल से ही मुंह चुरा लिया। पायलट के सवालों का तकाजा तेज हुआ तो राजे जुदा जवाब देते हुए ‘गौरव यात्रा’ का मकसद बताने लगी कि, ‘जनता को पांच साल के काम-काज का हिसाब देने की खातिर ‘गौरव यात्रा’ निकाली जा रही है। फिलहाल वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री की हैसियत में पूरे लवाजमें और लाव लश्कर के साथ अपनी यात्रा निकाल रही है, लिहाजा लोग कितने उनके साथ है, कारिन्दों और अफसरों की भीड़ में यह सवाल ही गुम हो जाता है। कांग्रेस के नेता सचिन पायलट इस झूठ को यह कहते हुए बेनकाब करते हैं कि मुख्यमंत्री और भाजपा आचार संहिता लगने के बाद यात्रा या सभा निकाल कर दिखाएं? पता चल जाएगा जनता किसके साथ है? ‘गौरव यात्रा पर स्वच्छ भारत मिशन के ब्रांड एम्बेसेडर डी.पी. शर्मा ने यह कहते हुए सरकार के दावों के धुर्रे उड़ा दिए कि, ‘शहर की सड़कों की हालत देखकर लगा जैसे मैं किसी गोशाला में आ गया? दिलचस्प बात है कि कोटा नगर निगम शहर की सफाई पर 50 से 60 करोड रुपए खर्च कर रहा है, बावजूद इसके सफाई सर्वे में पिछले साल 341वीं पायदान पर रहा और इस बार 101वीं पायदान पर है। डा. शर्मा का कथन गौरव यात्रा को बुरी तरह लज्जित करता है कि, ‘कोटा में एक तरफ सड़कें खंदके बनी हुई है, कीचड़ गोबर और गड्ढे हैं तो दूसरी तरफ गायें अैर सांड बेखौफ बैठे हुए हैं।
‘गौरव यात्रा’ में विकास की दुहाई देने वाली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सत्ता मे वापसी के दावों की तो इंडिया टुडे टीवी और एक्सिस द्वारा किए गए चुनावी सर्वेक्षण के आंकड़े ही धुर्रे उड़ा देते हैं कि, ‘राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में स्थिति बेहद खराब है। राजस्थान जिन प्रमुख समस्याओं का सामना कर रहा है, उनमें जल विकास
व्यवस्था, स्वच्छता और कृषि समस्याओं के अलावा बेरोजगारी, महंगाई और पेयजल बंदोबस्त मुख्य है। विश्लेषक कहते हैं कि, ‘क्या ऐसे हालात पर ‘गौरव’ किया जाना चाहिए? पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत कहते हैं कि, ‘वसुंधरा राजे को गौरव यात्रा निकालने की बजाय क्षमा यात्रा निकालकर जनता से माफी मांगनी चाहिए। बावजूद इसके वसुंधरा राजे का यह कथन चौंकाता है कि, ‘सभी मिलकर साथ देंगे तो आने वाले पांच सालों में ऐसा राजस्थान बनाएंगे जिस पर सभी को गर्व होगा। लेकिन विश्लेषक कहते हैं कि, ‘….तो पिछले पांच साल में उन्हें ऐसा राजस्थान बनाने से किसने रोका था?’
चुनावी बेला में आत्मनिरीक्षण के लिए वसुंधरा सरकार ने भी एक खुफिया एजेंसी से सर्वेक्षण करवाया है। इस सर्वेक्षण में वसुंधरा राजे को आईना तो दिखाया, लेकिन आधा अधूरा! दरअसल यह आईना ज़्यादातर विधानसभा क्षेत्रों पर ही केन्द्रित रहा। एजेंसी के सूत्र सिर्फ इतना ही बता पाए है कि, ‘सर्वेक्षण में अधिकांश क्षेत्रों में जन प्रतिनिधियों का निगेटिव फीडबैक सामने आया है कुछ विधायकों से तो क्षेत्र की जनता ही बुरी तरह खफा है। ऐसे में कितने सिटिंग विधायकों और मंत्रियों के टिकट कटेंगे? फिलहाल कहना इसलिए मुहाल है कि, ‘अगर जातिगत समीकरण हावी होते है तो फिर सर्वेक्षण ढाक के तीन पात ही रह जाएगा। अलबत्ता चौंकाने वाली बात है कि वसुंधरा सरकार के आठ मंत्री पूरी शिद्दत के साथ इस बार सीट बदलने की तैयारी में हैं। इनमें बीकानेर,जयपुर, जोधपुर और कोटा के मंत्री प्रमुख है। सवाल फिर अपनी जगह कायम है कि, ‘सरकार ने अगर गौरव का कोई काम किया होता तो सीट बदलने की नौबत क्यों आती? बहरहाल विश्लेषकों का साफ कहना है कि, ‘वसुंधरा राजे का राजनीतिक भविष्य पूरी तरह खतरे में है।
चालीस दिन की ‘गौरव यात्रा’ पर सचिन पायलट के चालीस सवाल भी वसुंधरा चालीसा की तरह पढ़े जा रहे हैं। मसलन पायलट का यह सवाल है, ‘क्या चिकित्सा और शिक्षा का व्यावसायीकरण गौरव की बात है? पायलट पूछते हैं, ‘जनता के धन से बनाए गए सरकारी मेडिकल कॉलेजों की आधी सीटों पर 35 लाख रुपए फीस तय कर प्रतिभाशाली छात्रों को चिकित्सक बनने से वंचित करना कौन से गौरव का काम है?