गोवा की 40 विधानसभा सीटों, उत्तराखंड की 70 विधानसभा की सीटों पर आज पहले चरण का मतदान जारी है। तो वहीं उत्तर प्रदेश के दूसरे चरण का 55 विधानसभा सीटों पर मतदान जारी है।
बताते चलें, उत्तरखंड और गोवा दोनों छोटे राज्य है। इस वजह से एक ही दिन में दोनों राज्यों में मतदान हो रहे है। जबकि उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है। इसलिये यहां पर 7 चरणों में चुनाव हो रहे है। इन तीनों राज्यों की सियासत पर गौर करें तो चुनावी समीकरण अलग है।
उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है। तो उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। जबकि गोवा में भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय संघर्ष है। सियासत के जानकार वेद प्रकाश का कहना है कि इस बार का चुनाव कई मुद्दों के साथ लड़ा जा रहा है। तीनों राज्यों की अपनी–अपनी मांगे है। जिसमें उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में धर्म और जातिवाद को लेकर चुनाव लड़ा जा रहा है।
भले ही यहां पर विकास और महगांई को लेकर कोई कितने भी दावे कर लें। लेकिन मतदान केन्द्र तक पहुंचते–पहुंचते मतदाता जाति और धर्म के आधार पर वोट करता है। वहीं गोवा की सियासत को लेकर राजनीति दलों का मानना रहा है। कि छोटा राज्य है। इस लिये 20-22 सीटों पर चुनाव जीतकर सरकार बनाई जा सकती है। इसलिये बड़े-बड़े नेताओं का अपना सियासी गुणा–भाग इस बात पर गौर करता है। कि अगर जोड़-तोड़ कर भी सरकार बनानी पड़ी तो बना ली जायेगी। जैसा कि पूर्व में होता रहा है।
वेद प्रकाश का कहना है कि उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में भाजपा की ही सरकारे है। इसलिये भाजपा को इन राज्यों में जीत को कायम रखने के लिये बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। वहीं विरोधी दल जो चुनाव मैदान में उनकी सियासत तो बस इस बात पर ही बल दें रही है। कि भाजपा को हराना है। और तो ओर कुछ दल इस बात पर विश्वास कर रहे है। और अपने ही सियासी दांव से चुनाव लड़ रहे है। कि अगर किसी भी दल को चुनाव में पूर्ण समर्थन नहीं मिलता है। तो वे सांझी दारी कर सरकार का हिस्सा बन सकते है। इसलिये कुछ दलों का किसी दल के साथ चुनाव के पहले का गठबंधन है। तो कुछ का चुनाव के बाद गठबंधन हो सकता है। यानि कि छोटे दल भी सरकार में भागी दारी के हिसाब से संतुलित राजनीति कर रहे है।