गोरक्षा के नाम पर लोगों को मारने-पीटने का सिलसिला भले ही थम-सा गया हो, लेकिन गोपालक किसानों की दुर्दशा हो चुकी है, जिस पर कोई भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है। दरअसल, जबसे गोतस्करों और गोपालकों को यह अहसास हो गया है कि अगर वे गाय या गोवंश को लेकर कहीं जाएँगे, उन पर हमला हो सकता है; चाहे उनका मकसद अच्छा ही क्यों न हो, तबसे उन्होंने गायों को खरीदकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बन्द कर दिया है। यही कारण है कि गायों और गोवंश का बाज़ार बिल्कुल ठंडा पड़ चुका है। स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है कि जिस गाय की कीमत 40 से 50 हज़ार रुपये होती थी, वह वह चार-पाँच हज़ार की भी कोई लेने को तैयार नहीं होता। जबकि इसके विपरीत गोमांस का निर्यात भारत से कम नहीं हुआ है। इस मामले में तहलका संवाददाता ने कुछ किसानों तथा कसाइयों से बातचीत की, तो बड़ी दयनीय स्थिति सामने आयी।
साहब, डर से छोड़ दिया गाय पालना
सुलेमान बरेली के एक छोटे से गाँव में रहते हैं। सुलेमान बताते हैं कि उनकी तीन बीघा ज़मीन है, यही ज़मीन उनके परिवार का सहारा है। इस छोटी सी ज़मीन पर खेती से उनकी इतनी आय नहीं होती कि वे अपना परिवार चला सकें, इसी के लिए वे करीब पिछले पाँच साल से गाय पालते थे, लेकिन पिछले साल से उन्होंने गाय पालना बन्द कर दिया है। सुलेमान कहते हैं- ‘साहब, गाय को तो हम भी माता की तरह मानते हैं और कई साल हमने गाय का घी-दूध खाया-पीया और बेचा है। भैंस पालने की अपनी औकात नहीं है। गाय सस्ते में पल जाती थी। हम गरीब आदमी हैं, आय का कोई संसाधन नहीं है। पहली बार हम एक बछिया (गाय का मादा बच्चा) लाये थे। जब वह बड़ी हो गयी, तो उसका दूध भी खाया और उसके बच्चों को भी बड़ा होते देखा। उसी गाय के वंश से हमारे घर में बरकत आयी थी। हमने दूध देती और हरी (गाबिन) गायों को 20 से 25 हज़ार तक में बेचा और खरीदा था। लेकिन कुछ साल पहले गाय ले जाने वालों की पिटाई होती देखकर, पढक़र अपने घर की गायों को पानी के भाव (बहुत सस्ते में) बेच दिया। अब हमने डर से गाय पालना छोड़ दिया है।’ पहले यह डर नहीं था कि कहीं से गाय खरीदकर लाएँगे या गाय को बेचने जाएँगे, तो कोई बिना कुछ पूछे मारने लगेगा। यह पूछने पर कि आपको किसी ने कभी मारा या धमकाया? सुलेमान बताते हैं कि नहीं, हमें तो किसी ने न मारा और न धमकाया; पर आततायियों का क्या भरोसा कि कब किसी पर भी हमला कर दें? यही नहीं तहलका संवाददाता ने पड़ताल में पाया कि कई हिन्दू परिवार भी गाय पालना बन्द कर चुके हैं। वहीं आबिद नाम के एक छोटे से किसान के घर में आज भी कई गाय हैं। वे कहते हैं कि हम तो घी-दूध खाने के लिए गाय पालते हैं। थोड़ा-बहुत दूध बेच भी देते हैं। यह पूछने पर कि क्या गायों की कीमत कम हुई है? आबिद कहते हैं कि कीमत तो बहुत कम हो गयी है। लेकिन क्या करें, घी-दूध के लिए पशु तो पालने ही पड़ते हैं।
25 हज़ार की गाय बेची 5,000 में
हरिओम नाम के एक किसान के पास इन दिनों तीन-चार गायें हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पैदाइश से पहले से ही उनके खानदान में सिर्फ गायों को पाला जाता है। आज भी वे गायों को पालते हैं। हरिओम ने बताया कि गायों की कीमत इतनी गिर गयी है कि अब उनका भी मन ऊब सा गया है। लेकिन वे सोचते हैं कि क्या पता इन गायों की वजह से ही उनके घर में बरकत रहती हो। हरिओम ने बताया कि वे 2013 में पहलोठा छुटिया (नयी गाय) 25 हज़ार रुपये की लाये थे, पिछले साल जब वह 20-22 लीटर दूध दे रही थी, उनके घर में बीमारी के चलते कुछ पैसे की ज़रूरत पड़ गयी। उन्होंने कई पशु-बाज़ारों में उसे बेचने की कोशिश की, पर किसी ने उसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखायी। आिखरकार परेशान होकर उन्हें एक पड़ोसी गाँव के किसान के हाथों उस गाय को केवल 5000 रुपये में बेचना पड़ा। हरिओम कहते हैं कि अगर पहले के हिसाब से भी उनकी गाय बिकती, तो भी वह 20-22 हज़ार से बिल्कुल कम की नहीं बिकती।
खेती का भी हो रहा नुकसान
किसानों को सिर्फ गायों की कीमत गिरने से ही नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि उनकी खेती भी नष्ट हो रही है। गायों की कीमत गिर जाने से किसान दुर्बल और बूढ़ी गायों और गोवंश यानी बैलों को जंगल में छोड़ रहे हैं। ऐसे में साँडों की संख्या बढ़ रही है, जो कि खेतों में खड़ी फसल को नुकसान पहुँचा रहे हैं। हमारे देश में किसानों की फसलें नष्ट करने के लिए पहले से ही नील गायें कम नहीं थीं, अब पालतू गायों और गोवंश को मजबूरन छोडऩे से साँडों और गायों ने भी खेती को नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया है। बलदेव नाम के एक किसान बताते हैं कि उनकी सात बीघा गन्ने की फसल के अंदर रात को पशु आकर बैठने लगे, जिसका उन्हें पता तक नहीं चला। जब वे गन्ना छीलने (गन्ने की फसल काटने) लगे, तो खेत के बीचोंबीच (अन्दर) दो से तीन बीघा गन्ना उन्हें पूरी तरह नष्ट मिला। बलदेव ने बताया कि इतने खेत का गन्ना कम-से-कम 40-50 हज़ार का होता।
गायों के नाम पर खूब हुई है मॉब लिंचिंग
सभी जानते हैं कि 2014 से 2018 तक गायों के नाम पर पूरे देश में जमकर मॉब लिंचिंग के मामले सामने आये हैं। तथाकथित गोरक्षकों ने गाय की रक्षा के नाम पर उन लोगों को जमकर पीटा, जो गायों को ले जाते दिखे। इनमें कइयों की जान भी चली गयी। गायों की तस्करी के नाम पर तथाकथित गोरक्षकों ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोगों को पीटा। मॉब लिंचिंग पर यहाँ तक हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी। मॉब लिंचिंग के मामले गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और दूसरे कुछ राज्यों में खूब सामने आये। यह मामला संसद में भी खूब गूँजा और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार को गोरक्षकों के िखलाफ कार्रवाई की चेतावनी देनी पड़ी।
गोशालाओं में भी गायों की दुर्दशा
जिस समय देश भर में गोरक्षा का शोर ज़ोर-शोर से चल रहा था, उस समय गोशालाओं का भी एक दृश्य सामने आ रहा था। बहुत-सी गोशालाओं की दशा पर अखबारों में खबरें आने लगीं थीं, जिसमें पाया गया कि गोशालाओं में न केवल गायों की दुर्दशा हो रही है, बल्कि कई गोशालाओं में गायें और गोवंश भूख से मर रहे हैं। यहाँ तक कि कई गोशालाओं में तो एक साथ दर्जनों गायों के मरने की खबरें भी अखबारों की सुर्खियाँ बनीं। दु:खद बात यह है कि उन गोशालाओं में भी गायों और गोवंश की दुर्दशा देखी गयी, जो तथाकथित गोरक्षक हिन्दू संगठनों या मठाधीशों की निगरानी में चल रही हैं। इसके कुछ उदाहरण भी दिये जा सकते हैं। जैसे प्रयागराज के कांदी गाँव की गोशाला में कुछ ही साल पहले बरसात के दिनों में दलदल में फँसकर 35 से अधिक गायों की मौत हो गयी थी, जिन्हें जेसीबी मशीन की मदद से गोशाला के आसपास ही आनन-फानन में दफना दिया गया। लेकिन यह खबर किसी तरह मीडिया तक पहुँच गयी और गोरक्षकों की भत्र्सना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन पर उँगलियाँ उठीं। बाद में गायों की मौत की उच्च स्तरीय जाँच के सरकार को आदेश जारी करने पड़े।
करोड़ों के बजट से भी नहीं आये गायों के अच्छे दिन
वर्तमान का राज्य सरकारें हों या फिर केंद्र सरकार, गोरक्षा के नाम पर न तो गायों की दशा सुधरी और न ही गोमांस के निर्यात में कोई कमी आयी। केंद्र और राज्यों में गोरक्षा के वादे के साथ सरकारों ने चुनाव में बढ़त भले ही हासिल की थी, लेकिन इससे किसानों को बड़ा नुकसान हुआ है। इतना ही नहीं, गायों की दशा सुधारने के नाम पर केंद्र और राज्यों में करोड़ों रुपये के बजट पास हुए फिर भी गायों के अच्छे दिन नहीं आये। मौज़ूदा दौर में भी गायों की असमय मौत, दर्दनाक मौत और गोशालाओं में गायों और गोवंश की दुर्दशा आम बात है। दु:ख इस बात का है कि इस मूक पशु को धार्मिकता के नाम पर माता कहकर वोट बैंक के लिए भले ही इस्तेमाल किया जा रहा हो, मगर इसकी दशा पहले से भी बदतर हुई है। अफसोस इस बात का है कि आज के दौर में जब गाय का मूत्र तक महँगे दामों में बिक रहा है, तब गाय की यह दुर्दशा उस देश में हो रही है, जहाँ उसे माता का दर्जा दिया जाता है।
गाय पालन को देना चाहिए था बढ़ावा
पशुओं के डॉक्टर रूमसिंह कहते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को गाय पालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए था। इससे न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक होती, बल्कि गायों की दशा भी अच्छी होती। रूमसिंह कहते हैं कि गाय तो फायदे का पशु है, उसकी रक्षा के नाम पर देश भर में की गयी मारपीट ठीक नहीं थी। अगर सरकार को गाय से इतना ही प्यार है, तो गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। रूम सिंह कहते हैं कि गाय का गोबर, गोमूत्र, दूध, घी, मट्ठा (छाछ), दही सब बड़े काम के होते हैं। सरकार को चाहिए कि गाय पालन को बढ़ावा दे, ताकि किसानों की दशा में सुधार हो सके।
योगी सरकार के वादे का इंतज़ार
जुलाई, 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की थी कि प्रदेश में निराश्रित गायों को पालने वालों को प्रति गाय 900 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से सरकार देगी। इस मामले में किसानों से फार्म भी भरवा लिये गये हैं, लेकिन किसी को एक पैसा भी नहीं दिया गया है। तहलका संवाददाता ने कई ऐसे गोपालकों से बातचीत की, जिनसे एक गाय के पालन-पोषण के लिए 900 रुपये प्रति माह मिलने के वादे के साथ फार्म भरवा लिये गये हैं। सभी ने यही बताया कि उन्हें कोई पैसा अभी तक नहीं मिला है। इस मामले में प्रेमपाल नाम के एक गोपालक कहते हैं कि उनके पास पाँच गायें हैं और तीन गायों के बच्चे। वह कहते हैं कि अभी तक तो उन्हें कोई पैसा मिला नहीं है। यह पैसा अगर अगर सरकार की तरफ से मिलता भी है, तो भी 900 रुपये महीने में एक गाय नहीं पल सकती, यह पैसा बहुत कम होगा। हालाँकि यह किसानों की अपनी सोच और आस है कि उन्हें एक गाय या एक गोवंश के पालन पर 900 रुपये प्रति माह मिलेंगे या मिल सकते हैं या मिलने चाहिए। यहाँ बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने निराश्रित गायों या गोवंश के पालन पर 900 रुपये प्रति पशु प्रति माह देने को कहा था। यह अलग बात है कि यह राशि अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति को भी नहीं मिली है, जो निराश्रित गायों या गोवंश को पालते हैं अथवा पाल रहे हैं।