जम्मू कश्मीर में 25 लाख नए मतदाता बनने के संभावना वाले मामले ने तूल पकड़ लिया है। दरअसल मतदाता सूची में एक संशोधन के प्रावधान के चलते इतनी बड़ी संख्या में एक ही प्रदेश में मतदाता बढ़ने की संभावना बन गयी है क्योंकि इसमें गैर-स्थानीय निवासियों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करने की मंजूरी मिल जाएगी। राज्य की पार्टियों नैशनल कांफ्रेंस (एनसी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने इसका कड़ा विरोध करते हुए खतरनाक कदम बताते हुए इसे राज्य के चुनाव में नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश बताया है।
मतदाता सूची का एक विशेष संशोधन गैर-स्थानीय लोगों को पहली बार जम्मू और कश्मीर में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का रास्ता साफ़ कर देगा जिससे बाहर के लोगों को यहाँ वोटर के रूप में मतदान का अधिकार मिल जाएगा।
दरअसल केंद्र ने 2019 में अनुच्छेद-370 के तहत कश्मीर के विशेष दर्जे को 5 अगस्त, 2019 को संसद में एक क़ानून लाकर खत्म कर दिया था। इसके बाद
सूबे में गैर-कश्मीरियों को वोट देने और जमीन खरीदने की अनुमति देने के लिए संविधान में बदलाव किया गया था। अब इसके चलते इस क्षेत्र में 20 लाख से अधिक नए मतदाताओं के पंजीकृत होने की संभावना है।
यदि ऐसा होता है तो इससे वोटर्स की संख्या एक तिहाई से ज्यादा बढ़ जाएगी। जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी हिरदेश कुमार ने पिछले कल कहा था कि ‘हम अंतिम सूची में (20-25 लाख) नए मतदाताओं (गैर-कश्मीरियों सहित) के जुड़ने की उम्मीद कर रहे हैं।’
इसे लेकर नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा – ‘यह फैसला भाजपा के क्षेत्र में समर्थन नहीं मिलने के डर को दर्शाता है। क्या भाजपा जम्मू-कश्मीर के असली वोटरों के समर्थन को लेकर इतनी असुरक्षित है कि उसे सीटें जीतने के लिए अस्थायी वोटरों को आयात करने की जरूरत है? इनमें से कोई भी चीज भाजपा की मदद नहीं करेगी जब जम्मू-कश्मीर के लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का मौका दिया जाएगा।’
इसी तरह जम्मू कश्मीर सरकार में तीन साल तक भाजपा की सहयोगी रही पीडीपी की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने एक ट्वीट में कहा – ‘गैर-स्थानीय लोगों को वोट देने की अनुमति देना स्पष्ट रूप से चुनाव परिणामों को प्रभावित करना है। असली उद्देश्य स्थानीय लोगों को शक्तिहीन करने के लिए जम्मू-कश्मीर पर सख्ती से शासन करना जारी रखना है।’