उत्तराखंड के भाजपा शासित मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भले ही बजट सत्र में यह ऐलान कर दिया है कि सूबे की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण होगी, पर इससे स्थानीय लोग खुश नहीं हैं। उनकी लंबे समय से मांग रही है कि प्रदेश की स्थायी राजधानी गैरसैंण ही बनाई जाए।
उत्तराखंड के लिए यह मांग उठाने वाले पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली थे। उत्तराखंड क्रांति दल ने 1992 में गैरसैंण को राज्य की औपचारिक राजधानी तक घोषित कर दिया था। इस पर 1994 मेें अनशन भी किया गया था, जिसके बाद मुलायम सरकार झुक गई थी और अलग राज्य बनाए जाने की बात कही गई थी।
9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना था, तब ही गैरसैंण राजधानी बनाई गई थी, देहरादून को अस्थायी राजधानी बनी थी। गैरसैंण को राजधानी बनाए जाने को लेकर फिर से आंदोलन शुरू हुए और राज्य आंदोलनकारियों ने ‘पहाड़ी प्रदेश की राजधानी पहाड़ हो’ का नारा बुलंद किया।
इसलिए गैरसैण को जनभावनाओं की राजधानी भी कहा जाने लगा। अब भी महज ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा दिए जाने से अधिकतर पहाड़ी लोग खुश नहीं हैं। वे चाहते हैं कि स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाई जाए।
इसे मुुद्दा बनाकर राजनीतिक दल अपनी जीत की राह तो बनाते रहे, यहां तक कि कांग्रेस की विजय बहुगुणा सरकार के शासनकाल में गैरसैंण राजधानी की उम्मीदें तब ज्यादा प्रबल हुई थीं जब उन्होंने यहां विधानसभा भवन, सचिवालय, ट्रांजिट हॉस्टल और विधायक आवास का शिलान्यास किया। इसके बाद पूर्व सीएम हरीश रावत के कार्यकाल के दौरान ये बनकर तैयार भी हो गए। अब तक यहां पर विधानसभा छह सत्र भी आयोजित हो चुके हैं।
बता दें कि उत्तराखंड के बजट सत्र के दौरान लंबे समय से कयासों के बीच सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। इस घोषणा के साथ ही प्रदेश में अब दो राजधानियां हो जाएंगी, लेकिन स्थायी राजधानी की पहेली कायम है। भाजपा ने अपने चुनाव संकल्प पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था।