ऐसे मामलों से सबक न लेने वाले उन्हें दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं
यह सचमुच हिला देने वाली घटना थी. देश ने न्यूज चैनलों के पर्दे पर देखा कि असम की राजधानी गुवाहाटी की एक मुख्य सड़क पर रात के करीब साढ़े नौ बजे के आस-पास एक युवा लड़की को कोई 15-20 लंपटों-गुंडों की भीड़ ने घेर लिया, उसे सरेआम बेइज्जत किया, बुरी तरह पीटा-घसीटा, उसके कपड़े फाड़ने और नंगा करने की कोशिश की. मदद के लिए गुहार करती उस लड़की की किसी ने कोई मदद नहीं की. न राहगीर रुके, न आस-पास खड़े लोग आगे आए और न पुलिस नजर आई. हालांकि उस चैनल के रिपोर्टर और कैमरामैन की भूमिका पर भी सवाल उठे कि उन्होंने भी उस लड़की की कोई मदद नहीं की और उल्टे पूरी घटना को फिल्माने में जुटे रहे.
सनसनीखेज खबर और दृश्यों की बेसब्र तलाश न्यूज चैनलों को यहां तक ले आई है, जहां उनके रिपोर्टर और संपादक अब ‘खबरें गढ़ने’ लगे हैं
कुछ चैनलों ने यह बहस उठाई कि उस परिस्थिति में जब कोई संकट या मुश्किल में हो, एक रिपोर्टर की भूमिका क्या होनी चाहिए. क्या उसे पहले पीड़ित को बचाने की कोशिश करनी चाहिए या उसे पहले रिपोर्ट करने और इसके लिए घटना फिल्माने को प्राथमिकता देनी चाहिए? यह एक क्लासिक नैतिक दुविधा है जिसका उत्तर आसान नहीं है और वह बहुत हद तक मौके की नजाकत और उसमें हस्तक्षेप करने की पत्रकार की सामर्थ्य और उसके तरीके पर निर्भर करता है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब विषम परिस्थितियों में पत्रकारों ने घटना को रिपोर्ट भी किया है और पीड़ित को बचाने की भी कोशिश की है. लेकिन ऐसे भी उदाहरण हैं जब पत्रकारों ने पीड़ित को बचाने के बजाय उसे रिपोर्ट करने को प्राथमिकता दी है और उसकी कीमत चुकाई है. इस आलोचना के बावजूद काफी लोगों ने माना कि यह शर्मनाक वाकया सामने लाकर और अपराधियों की पहचान करने में मदद करके चैनल ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों और पुलिस के नाकारेपन का पर्दाफाश करके अपना पेशेवर फर्ज निभाया है.
लेकिन जल्दी ही एक ऐसी भयावह सच्चाई सामने आई जिसने टीवी पत्रकारिता को शर्मसार कर दिया. पता चला कि इस शर्मनाक हादसे के लिए एक असमिया चैनल का रिपोर्टर भी उतना ही जिम्मेदार है जिसने अपराधियों को न सिर्फ उस लड़की को बेइज्जत करने को उकसाया बल्कि संभवतः इसकी पूर्व योजना भी बनाई. लेकिन क्या इसके लिए वह अकेला रिपोर्टर जिम्मेदार है? चैनल के संपादकों ने रॉ फुटेज में रिपोर्टर की उकसावे वाली भूमिका को क्यों अनदेखा किया? हालांकि इस बीच रिपोर्टर की गिरफ्तारी हो चुकी है और संपादक को इस्तीफा देने पड़ा है, लेकिन असल सवाल यह है कि एक रिपोर्टर को इस तरह एक खबर ‘बनाने’ यानी मैन्युफैक्चर करने की जरूरत क्यों पड़ी या उसकी प्रेरणा कहां से मिली.
दरअसल, कुछ अलग, सबसे पहले, ड्रामैटिक और सनसनीखेज खबर और दृश्यों की बेसब्र तलाश न्यूज चैनलों को यहां तक ले आई है, जहां उनके रिपोर्टर और संपादक अब ‘खबरें गढ़ने’ लगे हैं. यहां तक कि इसके लिए वे एक युवा लड़की को सरेआम बेइज्जत और नंगा करने की हद तक पहुंच गए. यह घटना सभी छोटे-बड़े न्यूज चैनलों के लिए एक बड़ा सबक है. इसके बावजूद अधिकांश राष्ट्रीय चैनल ऐसा जताने की कोशिश कर रहे हैं कि यह घटना एक अपवाद है और सिर्फ क्षेत्रीय चैनलों तक सीमित और उनके बीच की अनैतिक होड़ का नतीजा है. गोया वे खुद दूध के धुले हैं और उनका इस गंदगी से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. क्या वे दिल्ली की शिक्षिका उमा खुराना के फर्जी स्टिंग या जालंधर से लेकर बनारस तक लोगों को उकसा कर आत्मदाह करने या जहर पीने के लिए प्रेरित करने जैसे मामले भूल गए? गुवाहाटी की शर्म एक चेतावनी और सबक दोनों है. चैनलों को याद रखना चाहिए कि ऐसे शर्मनाक मामलों से सबक नहीं लेने वाले उन्हें दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं.