महामारी में बढ़ी गुरु जी की शिक्षाओं की प्रासंगिकता
‘हिन्द दी चादर’ के नाम से मशहूर और सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का 400वाँ प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु तेग बहादुर जी ने हँसते-हँसते अपनी ज़िन्दगी इंसानियत के लिए कर्बान कर दी थी। उन्होंने कहा- ‘सुखु दु:खु दोनों सम करि जानै अउरु मानु अपमाना। हरख सोग ते रहै अतीता तिनि जगि ततु पछाना।।’ यानी सुख-दु:ख और आदर-निरादर को समान समझने वाला, ख़ुशी और ग़म से विरक्त मनुष्य ही जीवन का रहस्य समझ सकता है। वर्तमान में जब हम महामारी का सामना कर रहे हैं, तो गुरु जी के सन्देश कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गये हैं। आने वाले व$क्त में यह प्रासंगिकता और बढ़ जाएगी। भारत हितैषी की रिपोर्ट :-
गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने जीवन का मक़सद बताया कि कैसे हम समानता, सद्भाव और त्याग का रास्ता अख्तियार करें। नौवें गुरु तेग बहादुर को सभी धर्मों की आज़ादी के अधिकारों का समर्थन करने के तौर पर जाना जाता है। उनके प्रभाव के बिना पिछली चार सदी की कल्पना नहीं की जा सकती। हालाँकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति (एसजीपीसी) ने भाई गुरदास जी नगर में होने वाले भव्य कार्यक्रम रद्द कर दिये और कोरोना वायरस के मरीज़ो के इलाज के लिए अपने गुरु राम दास चैरिटेबल अस्पताल को समर्पित कर दिया है। यह समारोह अब स्वर्ण मंदिर में गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब के दीवान हॉल में आयोजित किया जाएगा। अमृतसर में नौवें गुरु के जन्म-स्थान गुरुद्वारा गुरु के महल में कई कार्यक्रम आयोजित किये गये।
400वें प्रकाश पर्व पर पूरे वर्ष डिजिटल माध्यम से गुरु तेग बहादुर जी के शबद, उनकी शिक्षाएँ लोगों तक पहुचायी जा रही हैं। इससे नयी पीढ़ी की पहुँच उन तक आसानी से होगी और वह प्रेरणा ले सकेगी। गुरु नानक देव जी के साथ गुरु तेग बहादुर जी और सिख धर्म के अन्तिम गुरु ‘गुरु गोविंद सिंह जी’ के साथ शुरू होने वाली सिख गुरु परम्परा अपने आप में जीवन का एक पूर्ण दर्शन है। इससे पहले राष्ट्र ने गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व, गुरु तेग बहादुर जी की 400वीं जयंती और गुरु गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाश पर्व के रूप में उत्सव मनाया और देशवासियों को उनके जीवन-दर्शन की शिक्षाओं से अवगत कराया। गुरुओं के जीवन के बाद-उनके जीवन में सर्वोच्च बलिदान के साथ-साथ उनमें सब्र भी था। इससे उनके जीवन में ज्ञान के प्रकाश हुआ और उन्हें आध्यात्मिक क़द भी हासिल हुआ।
अब समय आ गया है कि गुरु तेग बहादुर जी के जीवन और शिक्षाओं के साथ-साथ मानवता को प्रेरित करने के लिए दुनिया भर में गुरु परम्परा को अपनाया जाए। परम्पराओं को समझकर अगर हम सिख समुदाय और हमारे गुरुओं के लाखों अनुयायियों के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हैं, तो हम पाएँगे कि कैसे सिख समुदाय समाज-सेवा कर रहा है और गुरुद्वारे मानव-सेवा का केंद्र बने हुए हैं। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये श्री गुरु तेग बहादुर जी की 400वीं जयंती (प्रकाश पर्व) मनाने के लिए उच्च स्तरीय समिति की बैठक की अध्यक्षता की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस विशेष कार्यक्रम की रूपरेखा पर चर्चा करने के लिए बैठक में शिरकत की थी। पंजाब के मुख्यमंत्री पहले ही गुरु तेग बहादुर जी के राज्य स्तरीय 400वीं जयंती समारोह के लोगो का अनावरण कर चुके हैं। 23 अप्रैल को ही अमृतसर में गुरु तेग बहादुर जी के जन्म स्थान ‘गुरु का महल’ पर नगर कीर्तन का आगारा हुआ और बाबा बकाला में समापन हुआ। आनंदपुर साहिब और कीरतपुर में अलग-अलग कार्यक्रम और कोष (फंड) बनाये गये हैं, जिसकी ज़िम्मेदारी मुख्य सचिव विनी महाजन को सौंपी गयी है; जो विकास परियोजनाओं का विभागीय समन्वय कर रहे हैं। गुरु तेग बहादुर को 17वीं शताब्दी के उस क़ानून के ख़िलाफ़ सिखों और हिन्दुओं को प्रदान की गयी सुरक्षा के लिए जाना जाता है, जिसमें लोगों को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने को मजबूर किया जाता था। वे गुरु नानक के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए देश में कश्मीर और असम जैसे राज्यों के लम्बे सफर के लिए भी मशहूर हैं। इस्लाम धर्म अपनाने से इन्कार करने पर मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली में उन्हें मृत्यु दण्ड दे दिया गया। उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह (सिखों के अन्तिम गुरु) ने मुगलों की ता$कत का मुक़ाबला करने के लिए समुदाय को एक मार्शल रेस में तब्दील कर दिया।
एसजीपीसी की अध्यक्ष बीबी जागीर कौर के अनुसार, चौथी शताब्दी समारोह के लिए संगतों में बहुत उत्साह था; लेकिन कोविड-19 के कारण बड़ा आयोजन नहीं हो पा रहा है। अमृतसर में नौवें गुरु के जन्मस्थान गुरुद्वारा गुरु के महल से विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से लाइव टेलीकास्ट के ज़रिये कई कार्यक्रम किये जा रहे हैं। इस दौरान कई कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण किया गया, ताकि देश और दुनिया के संगतों को ऐतिहासिक उत्सव के साथ जोड़ा जा सके। शताब्दी समारोह के दौरान चैनलों को घटनाओं के लाइव कवरेज के लिए लिंक प्रदान किये गये। उन्होंने कहा कि कोविड-19 नेपूरी दुनिया को प्रभावित किया है और हमेशा की तरह एसजीपीसी इस संकट के समय में भी मानवता की भलाई के लिए काम कर रही है।
बता दें कि एसजीपीसी अपने स्वास्थ्य संस्थानों में पहले से ही कोरोना के मरीज़ो को बेहतर उपचार प्रदान कर रही है। अब हालात गम्भीर होने पर चटविंद गेट स्थित श्री गुरु राम दास चैरिटेबल अस्पताल पूरी तरह से कोरोना रोगियों के लिए समर्पित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि यहाँ कुल 100 बेड उपलब्ध कराये गये हैं और कोरोना-टीकाकरण की सुविधा भी मुफ्त में दी जा रही है। एसजीपीसी ने श्री गुरु राम दास मेडिकल कॉलेज वल्लाह, श्री गुरु राम दास चैरिटेबल अस्पताल अमृतसर, बाबा बुद्ध जी अस्पताल बीर साहिब और फुहारा चौक, अमृतसर में भी टीकाकरण की व्यवस्था की है। गुरु तेग बहादुर जी का सर्वोच्च बलिदान यह महत्त्वपूर्ण सन्देश देता है कि सार्वभौमिक रूप से मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता, उपासना, शिक्षा और जीने की ज़रूरतों आदि जीवन मूल्यों का अधिकार हर इंसान को है।
नौवें गुरु से जुड़े कुछ तथ्य :-
गुरु तेग बहादुर का पैदाइशी नाम त्याग मल था। गुरु तेग बहादुर नाम उन्हें गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने दिया था।
गुरु तेग बहादुर को भाई बुद्ध ने धनुर्विद्या और घुड़सवारी में महारत हासिल करायी और भाई गुरदास ने पौराणिक ज्ञान से अवगत कराया।
बकाला में गुरु तेग बहादुर ने $करीब 26 साल 9 महीने 13 दिन तक ध्यान लगाया। उन्होंने अपना अधिकांश समय ध्यान में ही बिताया।
उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब में श्लोकों और दोहों सहित कई भजनों का योगदान दिया।
उनकी रचनाओं में 116 शबद और 15 राग हैं, जो दुनिया भर के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
उनकी रचनाओं को गुरु ग्रन्थ के अलावा कई अन्य ग्रन्थों में शामिल किया गया है।
गुरु तेग बहादुर को नानक के उपदेश फैलाने के लिए लम्बी यात्राएँ करने के लिए जाना जाता है।
सन् 1675 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर ग़ैर-धर्म न अपनाने पर दिल्ली में गुरु तेग बहादुर का बलिदान विश्वविख्यात है।
गुरु तेग बहादुर जी ने इंसानियत का पाठ पढ़ाया कि जो दु:ख के समय दु:खी नहीं होता और सुख में बहकता नहीं और जो भय और मोह से मुक्त है, उसके लिए सोना और धूल समान है। जिसने स्तुति और दोषारोपण (चापलूसी और अपशब्द) दोनों का त्याग किया है; और लालच, सांसारिक आसक्ति व अभिमान से अपने आपको बचा लिया, तो समझो सभी दयालु गुरु अपने ऐसे शिष्य को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ऐसा शिष्य धन्य आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करता है और ईश्वर में उसी तरह लीन हो जाता है, जैसे दो गिलासों का पानी एक में मिला दिया जाए।
गुरु तेग बहादुर जी ने उपदेश दिया कि यह दु:ख और सुख क्षणिक होते हैं। चापलूसी और दोषों से निजात पाकर ही दूसरे संसार का सुख हासिल किया जा सकता है। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है, जब काई शख़्स आत्म-नियंत्रण की कला में महारत हासिल कर ले; यानी अध्यात्म की दुनिया में डूब जाए। हे संत! अहंकार का त्याग करो; और हमेशा वासना, क्रोध व बुरे लोगों से दूर रहो। किसी के ख़ुशी और $गम में बराबर शिरकत करनी चाहिए। सम्मान और अपमान के साथ प्रशंसा और दोषारोपण से मुक्त होना चाहिए; भले ही आप मोक्ष की तलाश में हों। यह एक बेहद कठिन रास्ता है। इसके लिए दुर्लभ रास्ता गुरुमुख में है, जिसमें बताया गया है कि कैसे इसे हासिल किया जा सकता है?