अगर किसी भी शख्स में जज़्बा, जोश, जुनून और अपने काम के प्रति ईमानदारी से निभाने का कर्तव्य हो, तो दुनिया की कोई ताकत उसे कामयाब होने या मंज़िल तक पहुँचने या पहुँचाने से नहीं रोक सकती। बच्चे से लगाव और गुमशुदा होने के बाद उसकी कमी को एक माँ से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं आठ साल के बच्चे की माँ और दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल सीमा ढाका की। इनकी तैनाती गुमशुदा बच्चों को तलाशने की टीम में लगायी गयी। इन्होंने अपने कर्तव्य का बेहद संजीदगी और ईमानदारी से निर्वहन किया और कोरोना-काल में भी कई गुमशुदा बच्चों को तलाशकर उनके परिवारों को सौंपकर जो खुशी प्रदान की, उसके आगे प्रमोशन से कहीं ज़्यादा कीमती दिल को मिलने वाला सुकून है। सीमा ने कोरोना संक्रमण के बीच बीते करीब तीन महीनों में 76 लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाया है। इनमें से 56 बच्चों की उम्र 14 साल से कम है।
दरअसल परिवार में महिलाओं के लिए टीचर को सबसे अच्छी नौकरी की सोच रखने वाले उत्तर प्रदेश के बड़ौत की 34 साल की सीमा भी अध्यापिका बनना चाहती थीं। इस बीच दिल्ली पुलिस में भर्ती निकली और उन्होंने फॉर्म भर दिया। इसके बाद सन् 2006 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के तौर पर उनका चयन हो गया। सन् 2014 में वह पुलिस की आंतरिक परीक्षा पास करके हेड कांस्टेबल बन गयीं। सीमा के पति अनिक ढाका भी दिल्ली पुलिस में ही हैं। अनिक उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले से हैं। हालाँकि सीमा को भी नौकरी करने से पहले पढ़ाई के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। बड़ौत से कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्हें करीब छ: किलोमीटर का सफर साइकिल से पूरा करना होता था। पढ़ाई पूरी करने के बाद अन्य परिजनों की तरह वह भी अध्यापन के क्षेत्र में जाना चाहती थीं। पर िकस्मत या कुदरत को शायद कुछ और ही कराना था, इसलिए उन्हें खाकी वर्दी मिली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुडक़र नहीं देखा। सीमा बताती हैं कि उनको अपने परिवार और साथी पुलिसकर्मियों का पूरा सहयोग मिला है। बिना उनके सहयोग के अकेले इतने बड़े काम को अंजाम देना शायद सम्भव नहीं होता। जब कोई लापता बच्चा अपने परिवार से मिलता है, तो उसके माँ-बाप लाखों दुआएँ देते हैं। परिजनों को शायद पता भी नहीं होता कि मैं किस पद पर काम कर रही हँू। सीमा मुस्कुराते हुए बताती हैं कि परिजन दुआएँ देते हैं कि बेटा तुम और बड़ी अफसर बन जाओ।
सीमा बताती हैं कि गुमशुदा होने वाले ज़्यादातर बच्चे आठ साल से अधिक उम्र के होते हैं। कई बच्चियाँ होती हैं, जिन्हें बहला-फुसलाकर तस्कर या गलत लोग ले जाते हैं, तो कुछ बच्चे घर से नाराज़ होकर भी निकल जाते हैं और फिर लौट नहीं पाते। सीमा पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों की भी जाँच करती हैं। देश भर में कोरोना वायरस फैलने के खौफ के दौर में दिल्ली से बाहर जाकर बच्चों को खोजना चुनौती भरा काम था। दिल्ली-एनसीआर के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार और पंजाब में भी बच्चों को तलाशने के लिए दौरे किये। आँकड़ों पर नज़र डालें, तो अकेले राजधानी दिल्ली में साल 2019 में 5,412 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी। इनमें से दिल्ली पुलिस 3,336 बच्चों को खोजने में कामयाब रही। इस साल (2020 में) अब तक लापता हुए 3,507 बच्चों में से 2,629 को दिल्ली पुलिस ने खोज लिया है।
लापता बच्चों को खोजने में पहला आउट ऑफ टर्न प्रोमोशन (ओटीपी) सीमा को मिला है। दिल्ली पुलिस ने इसी साल अगस्त में लापता बच्चों को खोजने के लिए ओटीपी देने की योजना शुरू की है। इस योजना के तहत 14 साल से कम उम्र के 50 लापता बच्चे खोज लेने पर प्रोमोशन दिया जाना है। सीमा ढाका दिल्ली पुलिस की ऐसी पहली अधिकारी बन गयी हैं, जिन्हें इस स्कीम के तहत प्रमोशन मिला है। सीमा की तैनाती समयपुर बादली में है। दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने उनको बैज पहनाया और इसकी जानकारी ट्विटर पर शेयर करके सीमा ढाका को बधाई दी। सीमा को बच्चों को परिजनों से मिलवाने में खुशी तो मिलती ही है, कमिश्नर का ट्वीट पढक़र उनकी खुशी और बढ़ गयी।
दु:खी माँओं को लौटायी खुशी
गुमशुदा बच्चों को खोजने में सबसे अहम भूमिका मोबाइल फोन की होती है। कई बार लापता बच्चे किसी तरह घर वालों को फोन करके इत्तला देते हैं। इसके बाद पुलिस को मोबाइल की पूरी जानकारी निकालकर जल्द-से-जल्द बच्चों को तलाशने में मदद मिलती है। ज़्यादातर लापता बच्चे ऐसे परिवारों के होते हैं, जो किराये पर रहते हैं या जिनके माता-पिता काम के सिलसिले में जगह बदलते रहते हैं। लापता बच्चों के परिजनों को अपना फोन नंबर नहीं बदलना चाहिए और अगर पता बदलते हैं, तो इसकी जानकारी पुलिस को दी जानी चाहिए। सीमा ढाका जैसी निडर पुलिसकर्मी की कामयाबी दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों को और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करेगी। ऐसे लोगों के लिए सबसे बड़ा उत्साह वो खुशी है, जो एक माँ या अभिभावक को अपना लम्बे समय से लापता बच्चे को देखकर मिलती है। उस खुशी की तुलना किसी दूसरी खुशी से नहीं की जा सकती। सीमा ढाका ने अब तक कई माँओं को यह खुशी लौटायी है।
सीमा के हल किए दो चर्चित मामले
दो बच्चों की माँ को खोजा
पुलिस की वर्दी में जब सीमा ढाका उत्तर प्रदेश के तिगरी इलाके के एक गाँव पहुँचीं, तो सपना (बदला हुआ नाम) अपने घर के बाहर दो बच्चों को गोद में लिये बैठी थी। पुलिस को देखते ही उसके आँसू निकल आये और रुँधे गले से कहने लगी कि मुझे यहाँ से ले चलिए। सीमा अपनी टीम की मदद से सपना को बचाकर वापस दिल्ली ले आयीं। दरअसल यह अगस्त, 2020 की बात है। सपना दिल्ली के अलीपुर की रहने गयी थी और उसका विवाह एक महिला ने अपने देवर के साथ करवा दिया था। उस समय सपना की उम्र महज 15 साल की थी और आठवीं क्लास में पढ़ रही थी। सपना के मज़दूर पिता ने एफआईआर दर्ज करायी, काफी तलाशने के बावजूद सपना का कहीं कुछ पता नहीं लगा। जब यह मामला सीमा के पास आया, तो उन्होंने परिजनों की तलाश शुरू की। काफी खोजबीन करने पर सपना के पिता सीमा ढाका को मिले, जो रंगाई-पुताई का काम कर रहे थे। जब सीमा ने उनसे उनकी बेटी सपना के बारे में पूछताछ की, तो वह रोने लगे। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही उसका फोन आया था। वह बहुत परेशान थी और खुद को बचानेे की गुहार लगा रही थी।
सपना के मज़दूर पिता ने गिड़गिड़ाते हुए सीमा ढाका से कहा कि मैं आपका अहसान मेहनत-मज़दूरी करके चुका दूँगा, पर आप मेरी बेटी को किसी तरह खोज दीजिए। सीमा उस फोन नम्बर के ज़रिये सपना तक पहुँच गयीं, जिस फोन नम्बर से उसने सम्पर्क किया था। अब सपना परिवार वालों के साथ है।
पश्चिम बंगाल से नाबालिग को छुड़ाया
सीमा ढाका ने बताया कि उनके लिए सबसे चुनौतीपूर्ण मामलों में से एक इस साल अक्टूबर में पश्चिम बंगाल से एक नाबालिग को छुड़ाना था। पुलिस टीम ने नावों में यात्रा की और बच्चे को खोजने के लिए बाढ़ के दौरान दो नदियों को पार किया। लडक़े की माँ ने दो साल पहले शिकायत दर्ज की थी; लेकिन बाद में अपना पता और मोबाइल नम्बर बदल लिया था। इसके बाद परिजनों को भी ट्रैस करने में दिक्कत हो रही थी; लेकिन इतना पता था कि वे पश्चिम बंगाल से हैं। तलाशी अभियान शुरू किया गया। इसके लिए पुलिस दल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बच्चे को तलाशने के लिए बाढ़ के दौरान दो नदियों को पार करने की नौबत आयी। लेकिन आखिर में बच्चे को तलाशने और उसकी ज़िन्दगी में मुस्कान लाने में कामयाबी मिली।