प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के भरूच से लोकसभा सदस्य मनसुख भाई वसावा ने आदिवासी गांव को इको सेंसेटिव जोन में शामिल करने के विरोध में भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। अपने इस्तीफे में वसावा ने कहा कि आदिवासियों से जुड़े कुछ मुद्दों को लेकर वे अब भाजपा के साथ नहीं रह सकते। यह भी जानकारी मिली है कि भाजपा से इस्तीफा देने के बाद अज्ञात कारणों के चलते वासवा भूमिगत हो गए हैं।
वसावा ने साथ ही अगले बजट सत्र में लोकसभा से इस्तीफा देने का भी ऐलान किया है। पहले भी वसावा कई बार भाजपा और रुपानी सरकार के रवैया के खिलाफ नाराजगी जता चुके थे लेकिन उनकी न सुने जाने से वे नाराज थे। बता दें रुपानी सरकार के आदिवासी बहुल नर्मदा जिले के 121 गाँवों को इको सेंसेटिव जोन के रूप में घोषित करने के बाद से ही सांसद मनसुख धनजी भाई वसावा नाराज थे और इस फैसले का सख्त विरोध कर रहे थे।
वासवा अक्सर गुजरात में शराबबंदी और आदिवासियों से जुड़े जल, जंगल और जमीन जैसे मामलों के अलावा इको सेंसेटिव जोन को लेकर मुखर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार के सामने इस संबंध में वे विरोध दर्ज करवा रहे थे लेकिन इसपर कोई कार्रवाई न होने से उनके मन में भाजपा के प्रति नाराज बढ़ रही थी। अब मंगलवार को गुजरात प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल को एक पत्र में वसावा ने कहा कि वे सामान्य व्यक्ति हैं और आदिवासियों से जुड़े कुछ मुद्दों को लेकर भाजपा के साथ रहना उनके लिए संभव नहीं है।
उधर इस्तीफा दिए जाने के बाद से सांसद वसावा भूमिगत हैं। इसके कारण अभी पता उनके समर्थक उनके घर पर जमा हैं। समर्थकों का मानना है कि इको सेंसेटिव जोन का मुद्दा काफी गंभीर है किस से किसानों की निजी जमीन के उपयोग में भी परेशानी होगी और जलवा जंगल की संपदा के उपयोग करने पर भी रोक लग जाएगी।
याद रहे, नर्मदा के जिन सवा सौ गांवों को इको सेंसेटिव जोन के भीतर घोषित किया गया है यह सभी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैचू ऑफ यूनिटी के आसपास के हैं। क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण भी हाल में बदले हैं क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के बीच गठबंधन हुआ है जिसमें उनके मुद्दों को साथ मिलकर लड़ने की बात कही गयी है। इस गठबंधन के बाद भाजपा में भी उथल-पुथल मची है।