गुजरात में एक बार फिर नक़ली शराब ने चार दर्ज़न से ज़्यादा लोगों की जान ले ली। अहमदाबाद से लेकर बोटाद ज़िले तक शराब माफिया की ज़हरीली शराब ने पूरे गुजरात में हाहाकार मचा दिया है। गम्भीर हालत में इलाज करा रहे लोगों में कई की हालत बेहद नाज़ुक है। इससे राजनीतिक हवा तेज़ चलने लगी है। क्योंकि गुजरात में यह हादसा ऐसे समय में हुआ है, जब कुछ ही महीनों में वहाँ विधानसभा चुनाव होने हैं और आम आदमी पार्टी को मिल रहे जनसमर्थन ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की नाक में दम करके रखा हुआ है। लम्बे समय से गुजरात में वापसी की आस लगाये बैठी कांग्रेस भी इस मौक़े को हाथ से नहीं जाने देना चाहती। वहीं गुजरात में लोग कह रहे हैं कि शराबबंदी का मक़सद ही बाहरी शराब और नक़ली शराब की तस्करी को बढ़ावा देना है। ज़हरीली शराब के इस कांड से पहले सन् 2016 में सूरत के वडोदरा इलाक़े में क़रीब दो दर्ज़न से ज़्यादा लोग मर गये थे। उस समय पुलिस और सरकार ने लोगों की मौत की वजह शराब में मेथेनॉल अल्कोहल नाम के केमिकल के शराब में प्रयोग को माना था। इस बार भी सरकार और पुलिस का यही कहना है कि शराब में मेथेनॉल अल्कोहल नाम का केमिकल इस्तेमाल किया गया था, जिसके चलते इतने लोगों की मौत हो गयी।
फ़िलहाल गुजरात के अहमदाबाद और बोटाद में हुए ज़हरीली शराब कांड से दो बातें साफ़ होती हैं कि शराबबंदी के बावजूद अवैध ज़हरीली शराब इन दो जगहों पर एक ही जगह से किसी एक बड़े माफिया के इशारे पर बिकती है और शराबबंदी का फ़ायदा माफिया उठा रहे हैं। राज्य के डीजी आशीष भाटिया ने संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि इस कांड का मुख्य आरोपी जयेश है। उससे पूछताछ में ख़ुलासा हुआ है कि उसने हाल ही में 40,000 रुपये का मेथेनॉल केमिकल बेचा था। मरने वालों और बीमार लोगों ने इसी केमिकल और पानी का मिश्रण पिया था। डीजी ने दावा किया कि आरोपी जयेश ने अहमदाबाद स्थित अमोस केमिकल कम्पनी से यह केमिकल चुराया था, जिसके सीसीटीवी फुटेज भी मिले हैं। उसने इस चुराये गये मेथेनॉल अल्कोहल में एक फ़ीसदी पानी मिलाकर कुल 600 लीटर नक़ली शराब का पेय तैयार किया था, जिसमें से बचा हुआ 460 लीटर मेथेनॉल पुलिस ने उसके पास से ज़ब्त कर लिया है। वहीं जयेश के अपनों का कहना हैं कि जयेश ने अमोस कम्पनी से केमिकल चुराया नहीं था, बल्कि ख़रीदा था। इसलिए अमोस कम्पनी के मालिकों को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए। एटीएस की टीम ने इस मामले में जयेश समेत क़रीब 14 लोगों को गिरफ़्तार किया है।
सरकार ने बनायी जाँच समिति
इस शराब कांड से भाजपा सरकार की पूरे राज्य में निंदा हो रही है। भाजपा को मालूम है कि अगर इस समय इस मामले में सख़्ती नहीं बरती गयी, तो यह उसके लिए नुक़सान का सौदा हो सकता है। क्योंकि आने वाले कुछ ही महीनों में गुजरात में चुनाव होने है, जिसमें इस मुद्दे को विपक्षी दल भुनाने से पीछे नहीं रहेंगे। इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों की निगरानी वाली एक जाँच समिति बनायी है, जिसे 24 घंटे में रिपोर्ट देने का आदेश भी था। फ़िलहाल पुलिस पूरे राज्य में शराब तस्करी रोकने के लिए सख़्ती से काम कर रही है, ताकि अहमदाबाद और बोटाद जैसी कोई और घटना न हो।
पुलिस पर गिरी गाज, माफिया आज़ाद
गुजरात एक ऐसा राज्य है, जहाँ बड़े-बड़े शराब माफिया सक्रिय हैं। इस बात की पुष्टि इसी से होती है कि गुजरात के अन्दर शराबबंदी के बावजूद क़रीब 40 फ़ीसदी लोग शराब पीते हैं। सब्ज़ी और परचून की दुकानों तक पर खंबा के नाम से शराब मिल जाती है। कुछ लोगों का कहना है कि गुजरात में शराब की कमी नहीं है; लेकिन चोरी से ही मिल पाती है। इससे तो अच्छा होता कि सरकार शराब के ठेके खोल देती। फ़िलहाल राज्य सरकार ने बोटाद और अहमदाबाद ज़िलों के पुलिस अधीक्षकों का ट्रांसफर करने के साथ-साथ छ: पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है। गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राजकुमार ने इसके लिए पुलिस की भूमिका को ज़िम्मेदार मानते हए यह क़दम उठाया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे अवैध शराब की तस्करी रुकेगी? क्योंकि छोटे-मोटे अवैध शराब माफिया को गिरफ़्तार करने और चंद पुलिस वालों को सस्पेंड करने से हर रोज़ माफिया और उनको शह देने वाले अफ़सरों को लाखों कमाकर देने वाला यह धंधा किसी बड़ी मछली की शह के बग़ैर राज्य में पनप ही नहीं सकता। इसलिए जब तक बड़े माफिया को जेल नहीं भेजा जाएगा, तब तक गुजरात में शराब की अवैध बिक्री पर रोक लगाना नामुमकिन है।
विपक्षी दलों को मिला मौक़ा
इस शराब कांड से विपक्षी दलों, ख़ासकर कांग्रेस और अभी पैर जमाने में लगी आम आदमी पार्टी को सरकार को घेरने का मुद्दा दे दिया है। कांग्रेस का कहना है कि राज्य की भाजपा सरकार इस मामले की जाँच उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश से कराये। गुजरात की इस मुख्य विपक्षी पार्टी ने भाजपा सरकार पर अपने संरक्षण में नशे का अवैध कारोबार कराने का आरोप लगाते हुए लोगों से सरकार के बहिष्कार की अपील की है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ट्वीट करके सरकार को घेरा है। उन्होंने लिखा है- ‘ड्राई स्टेट गुजरात में ज़हरीली शराब पीने से कई घर उजड़ गये। वहाँ लगातार अरबों रुपये के मादक पदार्थ भी बरामद हो रहे हैं। यह चिंता की बात है। बापू और सरदार पटेल की धरती पर, ये कौन लोग हैं, जो धड़ल्ले से नशे का कारोबार कर रहे हैं? इन माफिया को कौन-सी ताक़तें संरक्षण दे रही हैं?’
वहीं आम आदमी पार्टी के नेता भी इस मामले में भाजपा सरकार को घेर रहे हैं। उनका कहना है कि उस पार्टी को सत्ता में रहने का कोई हक़ नहीं है, जो लोगों के जीवन से खिलवाड़ करे। आम आदमी पार्टी इस बार चुनाव की तैयारियों में जिस शिद्दत से लगी है, उससे लोगों में उसकी चर्चा चल रही है। इसकी एक वजह इस पार्टी द्वारा लोगों के हित के मुद्दों की बात करना है।
संसद में नहीं हुई चर्चा
कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि भाजपा की सरकार गुजरात में भी है और केंद्र में भी, बावजूद इसके संसद में केंद्र सरकार ने न तो इस शराब कांड पर शर्मिंदगी जतायी और न ही चर्चा की। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा ऐसा जानबूझकर कर रही है, ताकि देश में लोगों को उसकी करतूत का पता न चल सके। कांग्रेस नेता इस मामले में मीडिया के सामने लगातार बयान देकर भाजपा और उसकी सरकार को घेरने में लगे हैं। संसद में विपक्ष द्वारा इस शराब कांड और उस पर हंगामे की चर्चा भी अख़बारों की सुर्ख़ी बनी हुई है।
शराबबंदी से नहीं रुकी बिक्री
किसी राज्य में शराबबंदी इसीलिए की जाती है, ताकि लोगों की नशे की लत छूट सके और वे बर्बादी से बच सकें। लेकिन शराब पीने वालों को इस लत छुटकारा दिलाना इतना आसान नहीं होता। इसकी सबसे बड़ी वजह शराबबंदी वाले राज्यों में शराब की अवैध बिक्री पर रोक नहीं लग पाना है। भारत में फैशन बन चुका नशा अब युवाओं को ज़्यादा बर्बाद कर रहा है। सन् 2019 में मुम्बई, दिल्ली, पुणे, कोलकाता, राजस्थान, पंजाब समेत कई शहरों में नशाख़ोरी के एक सर्वे से पता चलता है कि देश में क़रीब 80 फ़ीसदी से ज़्यादा युवा 16 से 18 वर्ष की उम्र में ही कोई-न-कोई नशा कर चुके होते हैं। क़रीब 75 फ़ीसदी युवा 21 साल की उम्र से पहले ही शराब पीकर देख चुके होते हैं। वहीं 47 फ़ीसदी युवा सिगरेट और 20 फ़ीसदी युवा ड्रग्स आदि का इस्तेमाल कर चुके होते हैं। गुजरात में शराबबंदी लागू होने के बावजूद बड़ी संख्या में यहाँ के युवा, युवतियों से लेकर उम्रदराज़ लोग तक तंबाकू, शराब, सिगरेट और अन्य तरह के नशे में लिप्त हैं। यही वजह है कि गुजरात नशे का कारोबार $खूब फलफूल रहा है। शराब पीने वालों का हाल यह है कि राज्य में अब तक ज़हरीली शराब पीने से 3,000 से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। साल 2008 में अहमदाबाद में ही ज़हरीली शराब से 150 लोगों की मौत हुई थी।
बता दें कि गुजरात में यदि किसी का स्वास्थ्य ख़राब है और उसे शराब पीने से राहत मिलती है, तो वह स्वास्थ्य ख़राब होने की डॉक्टर की रिपोर्ट दिखाकर शराब पीने का परमिट हासिल कर सकता है। इसे हेल्थ परमिट कहा जाता है। पूरे राज्य की आबादी क़रीब छ: करोड़ है, जिसमें में फ़िलहाल राज्य के क़रीब 31 हज़ार से ज़्यादा लोगों के पास हेल्थ परमिट हैं। शराब की वैध बिक्री के लिए गुजरात उच्च न्यायालय में भी मामला चल रहा है। फ़िलहाल सरकार को अवैध शराब माफिया के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करने की ज़रूरत है।