गुजरात विधानसभा के चुनाव दो चरणों यानी नौ और चौदह दिसंबर को हैं। भाजपा ने इस चुनाव में विजयी होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। पार्टी के कई केंद्रीय मंत्री वहां अर्से से लगातार जमे हुए हैं। संघ परिवारों के कार्यकर्ता भी घर-घर प्रचार में जुटे हैं। उधर विपक्ष में कांग्रेस ने इस बार चुनौती स्वीकार की है। अशोक गहलोत के निर्देशन में पार्टी ने अपना आधार मज़बूत किया है। गुजरात सरकार के खिलाफ राज्य में विभिन्न समुदायों में आंदोलन चला रहे युवा नेता हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी के समर्थन पर अब भी ऊहापोह है। उधर भाजपा की अपनी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने गुजरात में पचास से पचहत्तर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया है। इस पूरे मामले पर मनमोहन सिंह नौला ने अच्छी जानकारी बटोरी है।
केंद्र और महाराष्ट्र में सरकार की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना का रवैया हमेशा विपक्ष की भूमिका जैसा रहा है। शिवसेना ने लगभग सारे पैंतरे इस्तेमाल कर लिए हैं जिनके चलते उसे उम्मीद थी कि बीजेपी उसे ‘बड़े भाईÓ के तौर पर स्वीकार करे, लेकिन केन्द्र और महाराष्ट्र में अपने आपको मज़बूत कर चुकी बीजेपी के लिए शिवसेना की कोई विशेष औकात नहीं रही है। हालांकि बीजेपी को महाराष्ट्र में जमीन तैयार करने में मदद शिवसेना ने ही की थी। और बीजेपी ने खुद को छोटा भाई मानते हुए अपनी जड़ों को मजबूत बनाने की कोशिश शुरू की थी। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के कद को बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी,अटल बिहारी वाजपेई और प्रमोद महाजन जैसे तेज़ तर्रार युवा नेता समझते थे। बदलती स्थितियों में शिवसेना का कद घट कर रह गया है हालांकि वह अपने आपको मजबूत बनाने लगी है फिर भी सरकार में रहते हुए भी विशेष दर्जा नहीं मिल पाने का दर्द और फ्रस्ट्रेशन की उपज है यह क़दम।Ó कहना है वरिष्ठ पत्रकार डीके जोशी का। बीजेपी को सबक सिखाने के लिए शिवसेना गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनी खास रणनीति के साथ चुनावी अखाड़े में उतरी है। सरकार की आलोचना करने वाली शिवसेना अब मोदी सरकार को उनके ही गढ़ में टक्कर देने की तैयारी कर रही है।
शिवसेना के साथ शरद पवार की पार्टी एनसीपी भी गुजरात चुनाव में बीजेपी को घेरने की रणनीति बना चुकी है। गुजरात विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां बीजेपी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेंगी। शिवसेना ने ऐलान कर दिया है कि वह गुजरात विधानसभा चुनाव में 50 से 75 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है, वहीं एनसीपी चीफ शरद पवार ने कहा कि वे गुजरात में बीजेपी का नहीं, कांग्रेस का साथ देंगे।
गुजरात में जहां एक तरफ बीजेपी कांग्रेस के साथ-साथ पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवानी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर से चुनौती का सामना कर रही है, वहीं, अब इस महायुद्ध में बीजेपी को टक्कर देने के लिए शिवसेना भी शामिल होने जा रही है। अगर शिवसेना बीजेपी के वोट काटने में कामयाब रही तो बीजेपी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
शिवसेना के गुजरात प्रभारी राजुल पटेल का कहना है, ‘शिवसेना ने सूरत और राजकोट की सीटों पर प्रत्याशियों को उतारने का फैसला लिया है। इसके अलावा सूरत और अमदाबाद के बीच के क्षेत्रों में जहां बड़ी तादाद में मराठी मूल के लोगों का दबदबा है, उन इलाकों में शिवसेना अपने उम्मीदवार खड़े करेगी।Ó
राजुल पटेल के मुताबिक चुनाव में शिवसेना का एजेंडा हिंदुत्व ही रहेगा। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि ‘शिवसेना किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी, लेकिन फिर भी अगर कोई ऐसी स्थिति आती है तो उस पर आखिरी फैसला पार्टी सुप्रीमो उद्धव ठाकरे लेंगे।Ó
गुजरात में बीजेपी की गले की हड्डी बन चुके पाटीदार नेता हार्दिक पटेल शिवसेना के साथ लंबे समय से संपर्क में हैं और मातोश्री में उद्धव ठाकरे से मिल चुके हैं। कयास लगाए जा रहे हैं हार्दिक पटेल से शिवसेना की ‘दोस्तीÓ बीजेपी को भारी नुकसान भी पहुंचा सकती है। हालांकि हार्दिक का कहना है कि इस बार कांटे टक्कर की है और यह सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना का लडऩा कोई ज्य़ादा मायने नहीं रखेगा।
ऐसा नहीं कि शिवसेना पहली बार गुजरात में चुनाव लडऩे जा रही है। शिवसेना ने 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में करीब 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन राज्य में अपना खाता नहीं खोल पाई थी। इसे गुजरी बात कहते हुए शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस बार गुजरात की तस्वीर बदल गई है बीजेपी से मोहभंग होने लगा है। ‘सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ शिवसेना की भूमिका अहम रही है हम वही कर रहे हैं।बीजेपी को यहां सत्ता में काबिज़ हुए दो दशक से ज्य़ादा का वक्त हो गया है लोग बदलाव चाहते हैं।Ó
गुजरात में विधानसभा की 182 सीटों पर नौ और 14 दिसंबर को वोटिंग होगी और नतीजे 18 दिसंबर को घोषित किये जायेंगे। बीजेपी के लिए गुजरात चुनावों के नतीजे कितने महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है। महाराष्ट्र सरकार की कैबिनेट में किए जाने वाले फेरबदल की तस्वीर गुजरात चुनावी नतीजों पर निर्भर करेगी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दीपावली के अवसर पर कैबिनेट फेरबदल और कांग्रेस छोड़ कर आए नारायण राणे के कैबिनेट में शामिल होने की बात कही थी लेकिन अब यह गुजरात के नतीजों तक टल गया है। सूत्रों के मुताबिक यदि बीजेपी अच्छे मार्जिन से जीतकर आती है तो कैबिनेट फेरबदल में ज्यादा बदलाव नहीं किया जाएगा लेकिन यदि नतीजे बेहतर नहीं आए तो व्यापक स्तर पर बदलाव किए जाएंगे। शिवसेना नारायण राणे को बीजेपी में शामिल करने का विरोध कर रही थी। राणे एक जमाने में शिवसेना के खास नेता हुआ करते थे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उद्धव ठाकरे को मुखिया बनाए जाने के खिलाफ शिवसेना से बगावत कर वे कांग्रेस में शामिल हुए थे। मज़ेदार बात यह है कि राणे को हरी झंडी दिखाकर ज़हां बीजेपी शिवसेना को ‘जलाÓ रही है वहीं शिवसेना नोटबंदी, किसानों की कर्ज माफी में विफलता व जीएसटी के मुद्दे पर बीजेपी को अपने मुखपत्र ‘सामनाÓ में पानी पी पी कर कोस रही है और राहुल गांधी के कसीदे पढ़ रही है।
यही वजह है कि मुंबई से बीजेपी के सांसद किरीट सोमैया को लग रहा है कि गुजरात में शिवसेना और कांग्रेस के बीच गुप्त समझौता हो गया है और कांग्रेस के कहने पर ही शिवसेना अपने उम्मीदवार उतार रही है, क्योंकि इससे पहले उद्धव ठाकरे के बाएं हाथ माने जाने वाले शिवसेना सांसद संजय राउत गुजरात में शिवसेना के चुनाव न लडऩे की बात कह चुके थे।
सांसद सोमैया के बयान को कांग्रेस नेता भाई जगताप ने हास्यास्पद करार दिया है, परन्तु शिवसेना रहस्यमय ढंग से चुप्पी साधे है। उल्टे उसने गुजरात चुनाव से पहले जीएसटी की दरों में किए गए बदलाव को लेकर बीजेपी पर ‘बिलो द बेल्टÓ टिप्पणी करते हुए पार्टी के मुखपत्र में लिखा है ‘गुजरात में $फटी, तो जीएसटी घटी।Ó यह इस बात का संकेत है कि महाराष्ट्र में चुनाव चाहे समय पर हों या समय से पहले शिवसेना भाजपा को हर कीमत पर गुजरात में कमजोर देखना चाहती है, ताकि राज्य में जब भी चुनाव हो वह भाजपा के खिलाफ मराठी अस्मिता को उकसा सके।
अगर गुजरात में भाजपा कमजोर रही तो उसका बड़ा असर महाराष्ट्र में पडऩा स्वाभाविक है, क्योंकि महाराष्ट्र में भी भाजपा की जीत में गुजराती वोटरों की बड़ी भूमिका रही है। महाराष्ट्र में जो ताजा कोशिश भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने की है। शिवसेना इसका प्रत्यक्ष हिस्सा होगी या नहीं यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना परस्पर एक दूसरे के प्रभाव वाली सीटों पर कमजोर उम्मीदवार देकर मदद का ब्लूप्रिंट तैयार कर रहे हों तो आश्चर्य नहीं होगा। बहरहाल सभी की प्राथमिकता गुजरात के नतीजों को मनमाफिक प्रभावित करने की है।