दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अगर गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले वहां के छोटे दलों से समझौता करते है तो, उन्हें तमाम सियासी सवालों का सामना करना पड़ सकता है।क्योंकि जब अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया था। तब उन्होंने कहा था कि वे किसी भी अन्य राजनीतिक दलों के साथ न तो मिलकर चुनाव लड़ेंगे और न ही किसी के साथ गठबंधन करेगे।
लेकिन 2013 में जब केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। तभी भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों ने केजरीवाल की कथनी और करनी में बड़ा अंतर समझ कर उनकी सियासी मजाक उड़ाया था। लेकिन सियासत में सब चलता ये सोचकर उसकी राजनीति चलती रही है।
लेकिन मौजूदा समय में जिस अंदाज में सियासी मिजाज बदला है उससे तो लगता है कि आने वाले दिनों में अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही आप पार्टी भी अन्य दलों के साथ चुनावी तालमेल कर अपनी पार्टी का विस्तार कर सकती है।ऐसे में आप पार्टी पर ये जरूर सवाल उठेगे कि जिस दल के साथ वे तालमेल कर रहे है कि वे ईमानदार राजनीतिक दल है। गुजरात राजनीति के जानकार सूरज यादव का कहना है कि माना कि प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस से जनता नाराज है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि चुनाव परिणाम भी बदल सकते है।
उनका कहना है कि आप पार्टी जो फ्री की राजनीति कर गुजरात में अपनी सरकार बनाने का सपना देख रही है।उससे गुजरात की जनता कितना महत्व देती है। ये तो आने वाला समय ही बताएगा।उनका कहना है कि बिजली , पानी और बसों में फ्री की सुविधा को यहां की जनता के आप पार्टी का चुनावी मुद्दा कितना कारगर होगा। ये तो चुनाव परिणाम बतलाएगे। वैसे कांग्रेस और भाजपा भी चुनाव समीकरण साधने में लगी है।उनका कहना है कि भाजपा चुनाव के पहले कोई ऐसा घोषणा कर सकती है जिससे चुनाव का माहौल ही बदल सकता है।