पाकिस्तान की इमरान खान सरकार का गिलगित, बाल्टिस्तान में चुनाव कराने का फैसला भले जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और अनुच्छेद-370 को निरस्त करने से जुड़ा हो, लेकिन खुद पाकिस्तान सरकार की ही एक एजेंसी को आशंका है कि इससे पाकिस्तान का भारत के हिस्से वाले कश्मीर पर दावा कमज़ोर हो जाएगा। यही नहीं, गिलगित, बाल्टिस्तान में चुनाव का विरोध करने वाले मज़बूत संगठन वहाँ अब पाकिस्तान के खिलाफ नये सिरे से एकजुट हो सकते हैं। चीन जिस तरह गिलगित, बाल्टिस्तान में अपने प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है और अब पाकिस्तान ने वहाँ चुनाव करवाये हैं, उससे निश्चित ही इन चुनावों का सख्त विरोध कर रहे भारत की चिन्ता बड़ी है।
विरोधी दलों ने पाकिस्तान सरकार और प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर धाँधली करके चुनाव जीतने का आरोप लगाकर इन नतीजों को मानने से इन्कार कर दिया है। इस चुनाव के ज़रिये इमरान खान सरकार ने गिलगित, बाल्टिस्तान को अपना पाँचवाँ सूबा बनाने की चाल चली है। इस चुनाव में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने 23 में से 10 सीटों पर जीत हासिल की और सबसे बड़ा दल बन गयी; जबकि छ:-सात निर्दलीय उम्मीदवारों को भी जीत मिली, जिनकी मदद से पीटीआई सरकार बना रही है। बिलाबल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को पाँच, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) को दो, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल और मजलिस वाहदतुल मुस्लिमीन को एक-एक सीट मिली है।
गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों की कहानियाँ यदा-कदा बाहर आती रही हैं। ज़मीन पर पाकिस्तान का काफी विरोध है। वहाँ आज़ादी की माँग करने वाली एक स्थानीय पार्टी के संस्थापक नेता नवाज़ खान नाजी का कहना है कि अभी जानते हैं कि इमरान खान की पार्टी को सेना का समर्थन है। पाकिस्तान सरकार ने इस इलाके का कोई विकास नहीं किया, उलटे यहाँ के संसाधनों को लूटा है। उधर, गिलगिट-बाल्टिस्तान इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष सेंगे सेरिंग तो कहते हैं कि यह इलाका कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं हो सकता; क्योंकि यह जम्मू और कश्मीर का क्षेत्र है। वहाँ लोग बलूचिस्तान का उदाहरण देखते हैं और कहते हैं कि वहाँ के लोगों को कभी सुकून से जीने का अधिकार नहीं मिला।
आरोप यह भी रहे हैं कि पाकिस्तान और चीन मिलकर गिलगिट, बाल्टिस्तान को उपनिवेश बनाना चाहते हैं। वहाँ चुनाव करवाने की इमरान खान की चाल को इसकी तरफ एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। भारत इमरान खान की सरकार को कड़ी चेतावनी दे चुका है कि वह उन इलाकों से बाहर निकल जाए, जिन पर उसने अवैध कब्ज़ा किया हुआ है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव कह चुके हैं कि भारत अपने किसी भी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति बदलने की पाकिस्तानी सरकार की कोशिशों का सख्त विरोध करता है। पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा है, और रहेगा। गिलगित, बाल्टिस्तान में पाकिस्तान का एक तरह से सैन्य कब्ज़ा रहा है। पाकिस्तान के सेना पर स्थानीय संगठन ज़ोर-ज़ुल्म का आरोप लगाते हैं। यही हालत पीओके की है, जहाँ 2021 में चुनाव होने हैं। गिलगित बाल्टिस्तान चुनाव से पहले ही पाकिस्तान के विपक्षी नेता पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के प्रमुख मौलाना फज़लुर्रहमान इमरान सरकार पर आरोप लगाया था कि नतीजे पहले से ही तय कर लिये गये थे और बड़ी संख्या में वहाँ ट्रकों से गेहूँ का वितरण किया गया; ताकि चुनाव में हेराफेरी की जा सके। उनके मुताबिक, इन ट्रकों पर प्रधानमंत्री इमरान खान के चित्रों के साथ बैनर लगे हुए थे। यही नहीं, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ की उपाध्यक्ष मरयम नवाज़ ने भी इस मसले पर इमरान सरकार पर करारा हमला करते हुए कहा था कि इमरान सरकार वोट नहीं, बूट (जूते) के लायक है। वैसे गिलगित-बाल्टिस्तान के चुनाव को लेकर पाकिस्तान की भीतर मत-विभाजन है।
पाकिस्तान के पीएमओ के तहत काम करने वाली नेशनल सिक्योरिटी डिवीज़न (एनएसडी) के हाल में अपने एक आंतरिक आकलन में कहा था कि इसका फायदा उठाकर भारत जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 की अनुच्छेद-370 निरस्त करने की अपनी कार्रवाई को जायज़ ठहरा सकता है। एनएसडी ने कहा था कि इमरान सरकार को पीओके में इसके लिए राजनीतिक विरोध सहना पड़ सकता है। यह बात काफी हद तक सही भी लगती है; क्योंकि जम्मू-कश्मीर के ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी की पीओके ब्रांच के प्रमुख सैयद अब्दुल्लाह गिलानी गिलगित, बाल्टिस्तान में चुनाव को विनाशकारी नतीजे वाला फैसला बता चुके हैं।
यह तय है कि इमरान खान के गिलगित बाल्टिस्तान पर जबरन कब्ज़े से वहाँ राजनीतिक विरोध अब और मुखर होगा। अभी तक यह एक स्वायत्त क्षेत्र था और प्रादेशिक विधासभा के साथ वहाँ बाकायदा चुना हुआ मुख्यमंत्री था। वहाँ के लोगों और संगठनों की माँग आज़ादी की रही है और इसके लिए वे भारत से मदद की उम्मीद भी करते रहे हैं। अब चुनाव के बाद वहाँ की स्थिति देखना निश्चित ही दिलचस्प होगा।