सरकार किसी भी संस्था का नाम बदलकर ना जानें किस बात का गर्व महसूस करती है । ये तो जनमानस को पता नहीं । मानव संशाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। इससे भी देश वासियों को कोई आपत्ति नहीं है पर देश की शिक्षा प्रणाली दिन व दिन ध्वस्त होती जा रही है । उस पर सरकार अगर गौर करती तो निश्चित तौर पर देश की शिक्षा प्रणाली से सकारात्मक बदलाव आता उससे जरूर पढने वाले छात्रों को काफी लाभ होता और उनका भविष्य सुधरता । भले ही सरकार के नाम बदलने की कार्यप्रणाली को लेकर जो भी सियायत हो रही है। उस देश के शिक्षकों का कहना है कि शिक्षा के नाम पर गांव से लेकर शहरों तक कार्पोरेट स्कूल खोले जा रहे है । उसमें गरीब के बच्चों को एडमिशन मिलना काफी मुश्किल होता है।सरकारी स्कूलों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। देश में नर्सरी से लेकर काँलेज, यूनिवर्सिटी, लाँ काँलेज सहित तमाम संस्थान ऐसे है जहां पर पैसे के ही दम पर एडमिशन मिलता है। महानगर में नर्सरी में एसमिशन अभिभावकों के लिये तो एक समस्या होती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व शिक्षक प्रो जगदीश शर्मा का कहना है कि आज देश कोरोना काल से जूझ रहा है। कोरोना के कारण जो आर्थिक व्यवस्था लडखडायी है उससे भी देश में बेरोजगारी बढी है। ऐसे में सरकार का ये भी दायित्व बनता है कि इन पर काबू पाते । शिक्षक सुरेन्द्र सिंह का कहना है कि सरकार से उम्मीद करते है कि कोरोना काल में जो स्कूलों के बंद होने के कारण स्कूलों बच्चों को जो दिक्कत आयी है उसको दूर करने का प्रयास करें। देश में सरकारी स्कूल जो है उनमें व्यापक सुधार करें ताकि गरीब का बच्चा आसानी से बेहत्तर शिक्षा ग्रहण कर सकें अन्यथा गां का बच्चा बेहत्तर शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह जायेगा।क्योंकि यू पी , बिहार और राजस्थान और उडीसा की पिछडती शिक्षा प्रणाली किसी से छिपी नहीं है।ऐसे में सरकार को शिक्षा मंत्रालय के तहत सरकारी स्कूलों को बेहत्तर बनाने का प्रयास करना चाहिये ताकि गांव –गांव का बच्चा पढ सकें। क्योंकि आज भी देश के सरकारी स्कूलों में पंखे तक नहीं लगे है।कई में तो बिजली के कनेक्शन नहीं है । स्कूली बच्चों को पीने का पानी तक स्वच्छ नहीं मिलता है। ऐसे में संशाधनों के अभाव में पढनें वाले बच्चों को बुनियादी जरूरतों से दो-चार होना पडता है।