राजस्थान में पिछले एक साल से चल रहा सियासी ड्रामा 24 नवम्बर को तब चरम पर पहुँच गया, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को पूरी बेबाक़ी से ग़द्दार बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि प्रदेश का अध्यक्ष रहते हुए, जिसने बग़ावत का बिगुल फूँका, उसे कैसे मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है? टकराव को आग देने वाला यह हमला गहलोत ने उस वक़्त बोला, जब सचिन राहुल की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल थे।
प्रियंका गाँधी भी उसी दौरान यात्रा में शिरकत कर रही थीं। अब तक की ख़बरों के मुताबिक, एक साक्षात्कार में गहलोत ने सचिन पायलट के प्रति काफ़ी आक्रामक नज़र आये। गहलोत ने आक्रामक तेवर ख़बरिया चैनल के उस सवाल पर उठाये, जब सितंबर की घटना कुरेदते हुए रिपोर्टर ने कहा कि विधायकों ने भी तो आपके कहने पर बग़ावत की? सचिन की वजह से कड़वे अनुभवों से गुज़र चुके गहलोत ने करारा जवाब देते हुए कहा कि यह कहना बिलकुल बकवास है। मुझे क्या ज़रूरत थी, ऐसा करने की? उन्होंने चुनौतीपूर्ण लहज़े में कहा कि ऐसा एक भी विधायक कह दे, तो मैं राजनीति छोड़ दूँ? उन्होंने तल्ख़ लहज़े में कहा कि पूरा हिन्दुस्तान मेरी प्रकृति और सियासी अंदाज़ से वाक़िफ़ है। इस सवाल पर कि पायलट को मुख्यमंत्री बनाने में क्या दिक़्क़त थी? गहलोत का तीखा प्रतिप्रश्न था कि क्या इतिहास में ऐसा कभी हुआ कि पार्टी का अध्यक्ष ख़ुद अपनी सरकार गिराने के लिए विपक्ष की झोली में जा गिरे? विधायकों के बिफरने की यही बड़ी वजह थी। गहलोत ने कहा कि सचिन पायलट चाह कर भी इस सच्चाई से मुँह नहीं चुरा सकते कि पूरा खेल ही उनका था। मेरे पास इस बात के साक्ष्य हैं कि पायलट समर्थकों को 10-10 करोड़ रुपये बाँटे गये। सभी ने दिल्ली स्थित भाजपा के कार्यालय से रक़म उठायी। इसके बाद कहने को क्या रह जाता है? गहलोत ने कहा कि मेरे राजनीतिक जीवन की यह पहली घटना है, जब किसी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बर्ख़ास्त किया। मैंने उन्हें नायब मुख्यमंत्री पद से भी बर्ख़ास्त किया। पायलट अगर माफ़ी माँग लेते, तो यह नौबत नहीं आती। पायलट को हाईकमान और प्रदेशवासियों से माँगनी चाहिए थी। विधायक दल से भी ख़ुद को बख़्शवाने की अपील करनी चाहिए थी। लेकिन कहा किया ऐसा? गहलोत ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि अगर पायलट माफ़ी माँग लेते, तो मुझे आलाकमान से माफ़ी माँगने की नौबत नहीं आती।
उधर सचिन यह कहते हुए अपनी ढिठाई पर अड़े रहे कि गहलोत जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता को इस तरह की बयानबाज़ी शोभा नहीं देती। मुझे नहीं पता उन्हें इस तरह की सलाह कौन दे रहा है? उन्होंने पहले भी मुझे नाकारा, निकम्मा और ग़द्दार कहा है। सचिन ने माफ़ीनामे से उलट गहलोत को नसीहत देने की हिमाक़त करते हुए कहा कि इतना असुरक्षित महसूस करने की ज़रूरत नहीं है। राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि दबी हुई चिंगारी को हवा सचिन ने दी। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मानगढ़ यात्रा के दौरान कहा कि गहलोत सबसे सीनियर मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्रित्व के दौरान हम साथ-साथ काम करते रहे हैं। मोदी ने अपने भाषण में सबसे पहले मुख्यमंत्री गहलोत का ही नाम लिया। लेकिन गहलोत की प्रशंसा सचिन को इस क़दर अखरी कि अपच से बोखलाकर कह बैठे कि मोदी जब भी किसी की प्रसंशा करते हैं, वह पार्टी छोडक़र बग़ावत पर उतर आता है। अब गहलोत भी ग़ुलाम नबी आज़ाद की राह पर चल पड़े हैं। कहने की ज़रूरत नहीं सचिन की इतनी ओछी बयानबाज़ी ने गहलोत को कितना मर्माहत किया। ख़बरिया चैनल के रिपोर्टर के इस प्रश्न पर कि सम्भवत: हाईकमान भी पायलट के हक़ में विधायकों का समर्थन चाहता था।
गहलोत ने दो-टूक कहा कि जिस आदमी के पास 10 विधायक नहीं, जिसने बग़ावत की पार्टी से ग़द्दारी की उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? वरिष्ठ पत्रकार अशोक शर्मा की मानें, तो गहलोत ने जिस तरह पहली बार सचिन को खुलेआम निशाने पर लिया है, उससे सचिन की बची-खुची साख भी मटियामेट हुई है। इसके साथ ही जिस तरह प्रतिपक्षी नेता राजेन्द्र राठौड़ सचिन के बचाव में उठ खड़े हुए, इस बात की तस्दीक़ करने को काफ़ी है कि सचिन और भाजपा के बीच कुछ तो खिचड़ी पकी है। गहलोत ने जिस तरह आत्मविश्वास के साथ सचिन पर तंज किया है, इसका सीधा मतलब है कि खडग़े, सोनिया और राहुल की नज़रों से सचिन का पत्ता साफ़ हो चुका है। विश्लेशकों का कहना है कि गहलोत जब भी कोई बड़ी बात करते हैं, तो उसके पीछे ठोस साक्ष्य होते हैं। अवश्य ऐसी कोई बड़ी बात है, जो सिर्फ़ गहलोत जानते हैं और अब उसके सार्वजनिक करने में देर नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार अशोक शर्मा सवाल करते हैं कि अगर सचिन सही हैं, तो सन् 2020 में मानेसर क्यों गये थे? क्यों अमित शाह से मिलने उनके घर गये? क्यों बार-बार गहलोत से तकरार होने पर भाजपा नेता उसके रक्षक बनकर बयान देने लगते हैं? कहीं-न-कहीं, तो दाल में काला है। मौज़ूदा वक़्त में सचिन की मिट्टी पलीद करने में सबसे बड़ा हाथ गुर्जर संघर्ष समिति का है। गुर्जर संघर्ष समिति का सचिन को मुख्यमंत्री बनाने का दुराग्रह और राहुल की यात्रा को राजस्थान में प्रवेश नहीं करने की धमकी देना सीधे-सीधे आलाकमान को चेतावनी और मुख्यमंत्री को धमकी देना हुआ। ऐसे में गहलोत कहते हैं कि तो ग़लत नहीं कहते कि सोनिया, राहुल, प्रियंका तथा खडग़े ने सचिन को नकार दिया है। विश्लेषकों की मानें, तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सचिन पर सीधा-सीधा हमला कर बवंडर खड़ा कर दिया है। इससे साफ़ लगता है कि पायलट के बाद गहलोत भी अब आलाकमान से सीधा निर्णय चाहते हैं। अब तक गहलोत नज़दीकी नेता ही पायलट पर हमलावर करे रहे हैं। इस बार गहलोत का सचिन पर सीधा हमला आला कमान को सन्देश देने की कोशिश है। उधर गहलोत के बयान पर हैरानी जताते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि उन्होंने ऐसे शब्द इस्तेमाल किये, जो ख़ुद मुझे अप्रत्याशित लगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को गहलोत और सचिन पायलट दोनों की ज़रूरत है। मुझे भरोसा है कि हमारा नेतृत्व मुनासिब हल निकालेगा, जो संगठन को प्राथमिकता देते हुए गहलोत और पायलट दोनों का सही इस्तेमाल करेगा। इस बीच सूत्रों का कहना है कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर कांग्रेस के महासचिव सी. वेणुगोपाल ने 29 नवंबर को जयपुर में समन्वय समिति की बैठक में भाग लिया। बैठक में गहलोत और पायलट के बीच चल रही तकरार का हल निकालने की कोशिश की गयी। हालाँकि पहले भी गहलोत और पायलट को बयानबाज़ी से बचने के कहा गया था। लेकिन हालात तब और तल्ख़ हुए, जब बुधवार 2 नवंबर को सचिन पायलट ने ऐसे बयान दिये, जिससे साफ़ लगा था कि बासी कढ़ी में उबाल आने लगा है। पायलट ने जब कहा कि राजस्थान में चुनाव होने में 13 महीने बाक़ी हैं, अभी तक निर्णय क्यों नहीं लिया जा रहा? तो लगता था कि उनका सब्र टूट रहा है। उन्होंने हाईकमान को भी यह कहते हुए निशाने पर लिया कि अनुशासनहीनता करने वालों पर अभी तक कार्र्यवाही क्यों नहीं हुई?
पायलट के बयान पर पलटवार करते हुए गहलोत $खेमे के माने जाने वाले जलदायमंत्री महेश जोशी ने दो-टूक शब्दों में कहा कि पहले पायलट अपने गिरहबान में तो झाँक लें, और अपना इतिहास पढ़ लें, इसके बाद उन्हें सवाल उठाने चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार अनंत मिश्रा गहलोत और पायलट के बीच छत्तीस के आँकड़े की गिरह खोलते हुए कहते हैं कि सचिन पायलट ने गहलोत को अपना नेता नहीं माना, बल्कि अपना सहयोगी माना। यह शब्द गहलोत को इतना नागवार गुज़रा कि चुभी हुई फाँस निकलने का नाम ही नहीं ले रही। कोढ़ में खाज तब हुई, जब पायलट ने बग़ावत कर अपनी ग़द्दारी का ठीकरा ख़ुद अपने ही सिर पर फोड़ लिया। सवाल यह है कि 3 दिसंबर को भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश करेगी। देखना होगा कि इस दौरान गहलोत और पायलट के बीच इस दौरान कैसे सम्बन्ध रहते हैं? क्या इस यात्रा को दोनों नेता मिलकर आगे बढ़ाएँगे?