राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने फरवरी के दूसरे पखवाड़े में एक ऐसा फ़ैसला कर लिया, जिसने देश भर की राज्य सरकारों को भी इस पर अमल करने को मजबूर कर दिया है। दरअसल गहलोत सरकार ने एक बड़े फ़ैसले में कर्मचारियों के लिए नयी पेंशन स्कीम की जगह पुरानी पेंशन बहाल करके देश के दूसरे हिस्सों में भी कर्मचारियों के लिए बड़ी उम्मीद जगा दी है। अब केंद्र सरकार पर भी इसका दबाव बनेगा।
देश भर के कर्मचारी संगठनों की यह बड़ी माँग थी कि पुरानी पेंशन बहाल की जाए। राजनीति के लिहाज़ से यह बड़ा फ़ैसला है और देश में अगर दूसरे राज्य भी इसे लागू करते हैं, तो करोड़ों कर्मचारी इससे लाभान्वित होंगे। निश्चित ही गहलोत सरकार के पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने के ऐलान के बाद देश के बाक़ी राज्यों में भी ये बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। उन्होंने निश्चित ही बड़ा दाँव चल दिया है।
अब मोदी सरकार पर भी केंद्रीय कर्मचारी संगठनों की इन राज्यों में भी सरकारी कर्मचारी संगठन सरकारों के सामने ये माँगें पहले से रखते रहे हैं और अब गहलोत सरकार के फ़ैसले के बाद उन्हें कहने का अवसर मिल गया है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के घोषणा-पत्र में समाजवादी पार्टी ऐसा ही वादा कर चुकी है। देश के कई राज्यों में सरकारी कर्मचारी संगठन फिर से पुरानी पेंशन योजना बहाल करने के लिए लगातार सरकार पर दबाव बनाते रहे हैं। इसके लिए वे सडक़ों पर आन्दोलन भी कर रहे हैं। निश्चित ही गहलोत सरकार ने कर्मचारियों की वाहवाही लूट ली है। राजनीतिक दलों में पुरानी पेंशन योजना की चर्चा रही है। कांग्रेस इसका समर्थन करती रही है। अब करोड़ों कर्मचारी आस लगाये हैं कि पुरानी पेंशन योजना फिर से बहाल हो जाएगी।
वैसे केंद्र सरकार ने जब नयी पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की थी; लेकिन राज्यों पर इसे लागू करने की अनिवार्यता नहीं थी। हालाँकि धीरे-धीरे कमोबेश सभी राज्यों ने इसे अपना लिया। लेकिन जल्दी ही नयी पेंशन योजना का विरोध भी शुरू हो गया, जो आज तक जारी है।
गहलोत ने क्या कहा?
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक ट्वीट में कहा- ‘हम सभी जानते हैं कि सरकारी सेवाओं से जुड़े कर्मचारी भविष्य के प्रति सुरक्षित महसूस करें, तभी वे सेवाकाल में सुशासन के लिए अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं। अत: पहली जनवरी, 2004 और उसके पश्चात् नियुक्त हुए समस्त कर्मचारियों के लिए मैं आगामी वर्ष से पूर्व पेंशन योजना लागू करने की घोषणा करता हूँ।’
पुरानी पेंशन बहाली के लिए लड़ाई लड़ रहे कर्मचारी संगठनों ने राजस्थान सरकार के फ़ैसले का स्वागत करने के साथ ही अब राज्यों और केंद्रीय स्तर पर इस लड़ाई को और तेज़ करने का आह्वान भी किया है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े नेताओं का कहना है कि राजस्थान सरकार के फ़ैसले से कर्मचारी देश भर में बेहद ख़ुश हैं। उन्होंने कहा कि गहलोत का इस फ़ैसले के लिए संगठन आभार करते हैं; क्योंकि उन्होंने कर्मचारियों की भावनाओं को समझा। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.पी. सिंह रावत का कहना है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एनपीएस कार्मिकों के लिए जो फ़ैसला लिया है, वह ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि देश के लाखों एनपीएस कर्मचारियों में राजस्थान सरकार के इस फ़ैसले से उत्साह है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए दिन रात मेहनत करके एनपीएस कार्मिकों ने अपने संघर्ष से पुरानी पेंशन बहाली की आवाज़ को लगातार सडक़ से सदन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। राजस्थान सरकार के सराहनीय क़दम से अन्य राज्यों में भी उम्मीद जगी है। अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पुरानी पेंशन बहाली को गम्भीरता से लें; क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनने वाला है।
राजस्थान के सरकारी कर्मचारियों को अब सेवानिवृत्त होने पर पहले के सरकारी कर्मचारियों की तरह ही पूरी पेंशन मिलेगी। बता दें कि सन् 2004 में पुरानी पेंशन योजना को ख़त्म कर दिया गया था। सन् 2004 से पहले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम के तहत सेवानिवृत्ति के बाद एक निश्चित पेंशन मिलती थी। यह पेंशन सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी के वेतन पर आधारित होती थी।
इस योजना के तहत सेवानिवृत्त कर्मचारी की मौत के बाद उसके परिजनों को भी पेंशन का प्रावधान था। अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने अप्रैल, 2005 के बाद नियुक्त होने वाले कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बन्द कर दिया था और नयी पेंशन योजना लागू की गयी थी। इसके बाद राज्यों ने भी नयी पेंशन योजना को अपना लिया। बता दें कि पिछले कई वर्षों से सरकारी कर्मचारी फिर पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की माँग के साथ विरोध-प्रदर्शन करते रहे हैं। केंद्रीय कर्मचारियों को भी इसका इंतज़ार है। कहा जा रहा है कि राजस्थान सरकार कुछ केंद्रीय कर्मचारियों को भी एनपीएस से ओपीएस में ला सकती है। इनमें वो कर्मचारी शामिल होंगे, जिनकी भर्ती के लिए विज्ञापन 31 दिसंबर, 2003 को या उससे पहले जारी किये गये थे। सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद इसकी सुगबुगाहट शुरू हुई है।
पुरानी और नयी पेंशन में अन्तर
पुरानी पेंशन योजना यानी ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) और नयी पेंशन योजना यानी न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) में बड़ा अन्तर है। ओपीएस में कर्मी की पेंशन के लिए वेतन से कटौती नहीं होती, जबकि एनपीएस में उसके वेतन से 10 फ़ीसदी (बेसिक+डीए (महँगाई भत्ता) की कटौती होती है। पुरानी पेंशन योजना में जीपीएफ सुविधा है; लेकिन एनपीएस में यह नहीं है। ओपीएस एक सुरक्षित पेंशन योजना है और इसका भुगतान सरकारी ख़ज़ाने से होता है। लेकिन एनपीएस शेयर बाज़ार पर आधारित है और बाज़ार के मिजाज़ पर इसका भुगतान निर्भर है। ज़ाहिर है बाज़ार से मिलने वाले रिटर्न की कोई गारंटी नहीं मिलती। ओपीएस में सेवानिवृत्ति के समय अन्तिम बेसिक वेतन की 50 फ़ीसदी तक निश्चित पेंशन मिलती है, जबकि एनपीएस में निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं। ओपीएस में छ: महीने के बाद मिलने वाला महँगाई भत्ता लागू होता है; लेकिन एनपीएस में यह नहीं होता। ओपीएस सेवानिवृत्ति के बाद 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी मिलती है, एनपीएस में इसका अस्थायी प्रावधान ही है। ओपीएस में सर्विस के दौरान मौत होने की स्थिति में फैमिली पेंशन मिलती है, जबकि एनपीएस ऐसा होने पर फैमिली पेंशन तो मिलती है; लेकिन योजना में जमा पैसा सरकार ज़ब्त कर लेती है। ओपीएस में सेवानिवृत्ति पर जीपीएफ के ब्याज पर किसी प्रकार का आयकर नहीं लगता; लेकिन एनपीएस में शेयर बाज़ार के आधार पर जो पैसा मिलेगा, उस पर कर (टैक्स) देना पड़ेगा। ओपीएस में रिटायरमेंट के समय पेंशन प्राप्ति के लिए जीपीएफ से कोई निवेश नहीं होता; लेकिन एनपीएस में सेवानिवृत्ति पर पेंशन प्राप्ति के लिए एनपीएस फंड से 40 फ़ीसदी पैसा इन्वेस्ट करना ज़रूरी है। ओपीएस में 40 फ़ीसदी पेंशन कम्यूटेशन का प्रावधान है, एनपीएस में यह प्रावधान नहीं है। ओपीएस में मेडिकल सुविधा है; लेकिन एनपीएस में इसका कोई निश्चित प्रावधान नहीं है।