प्रदेश में राजयसभा की चार सीटों के लिए हुए चुनाव में तीन पर जीत हासिल कर राजनीति के चाणक्य तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और ज़्यादा मज़बूत होकर उभरे हैं। कांग्रेस आलाकमान सोनिया गाँधी और अन्य दूसरे नेताओं की नज़र में गहलोत का क़द और बढ़ गया है। चुनावों को लेकर भले ही सियासत पैंतरे बदलती रही। लेकिन गहलोत को जीत को सहेजना था और साधना था, इसलिए उन्होंने हर चुनौती का सामना करते हुए सियासी शतरंज पर फ़तेह का परचम लहरा दिया। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पूरा भरोसा था कि चुनौतियों की कसौटी पर गहलोत ही खरे साबित हो सकते हैं। विश्लेषक कहते हैं कि यह अशोक गहलोत के शानदार उदय की अदभुत शुरुआत है। उन्होंने अपने आपको नयी भूमिका में स्थापित कर लिया है और राजस्थान में एक सुनहरे युग का सूत्रपात करने की डगर पर दमदार सफ़र शुरू कर दिया है। गहलोत के मिज़ाज और सियासी सूझबूझ का फ़लसफ़ा समझने की कोशिश करें, तो वे स्वभाव से विनम्र और अच्छे जन-सम्पर्क वाले राजनेता माने जाते हैं। उनकी सियासी सूझबूझ और गणित को समझना आसान नहीं है। फ़िलहाल तो बेचैनियाँ पायलट ख़ेमे में ही दिखायी देती हैं। क्योंकि सियासत के बाज़ीगर गहलोत की सियासी दानिशमंदी पर पकड़ बेमिसाल है।
यही नहीं, जादूगर के नाम से विख्यात गहलोत ने विरोधियों को एक बार फिर अपना लोहा मनवा दिया। अब विरोधियों के मुँह स्वत: ही बन्द हो गये। चुनाव से ठीक पहले तक भाजपा समर्थित उम्मीदवार सुभाष चंद्रा ने दावा किया था कि कांग्रेस ख़ेमे से आठ विधायक उसके पक्ष में मतदान करेंगे। लेकिन गहलोत ने अपनी जादुई कला से सभी 13 निर्दलीयों, बीटीपी के दो सीपीआईएम के दो और आरएलडी का एक मत लेने के साथ ही उलटा भाजपा में क्रॉस वोटिंग तक करवा दी। गहलोत ने चुनावों से पहले कई बार दावे किये थे कि उनके पास 126 मत हैं, जो अन्त तक रहेंगे। कांग्रेस के समर्थित सभी विधायक न तो बिके और न ही झुके। राज्यसभा के इस चुनाव की कमान ख़ुद अशोक गहलोत के अपने हाथों में रखी थी। कुछ विधायकों में जो नाराज़गी थी, उनको भी सुना और उसे दूर भी किया। उदयपुर में की गयी बाड़ेबंदी में भी अपने साथियों के बीच रहे और एक-एक विधायक से कई बार सम्पर्क भी किया। यहाँ तक कि मतदान के दौरान भी ख़ुद गहलोत एक एजेंट के रूप में बैठे और एक-एक मत पर नज़र भी रखी। राज्यसभा में प्रदेश की सभी 10 सीटों पर भाजपा का क़ब्ज़ा था; लेकिन अब गहलोत चाणक्य नीति से तीन पर कांग्रेस का क़ब्ज़ा हो गया। इस चुनाव अभियान में गहलोत ने न केवल बीमार विधायकों के घर या अस्पताल में जाकर मुलाक़ात की, बल्कि रोज़ाना उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा। जब गहलोत को पता लगा कि कांग्रेस के तीसरे प्रत्याशी प्रमोद कुमार तिवारी संकट में आ सकते हैं, तो उन्होंने अपने अनुभव और जादुई कला से भाजपा के वोटों में सेंध भी मारी और उसमें सफल भी हुए। भाजपा की विधायक शोभारानी का वोट कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद कुमार को जीता कर पिछले दो साल में ही मुख्यमंत्री अषोक गहलोत तीसरी बार हॉर्स ट्रेडिंग को मात दे दी। राजनीतिक हलक़ों में इसे गहलोत की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
प्रदेश में राज्यसभा में 10 सांसद थे, जिसमें सात भाजपा एवं तीन कांग्रेस से है। चार सांसद ओम माथुर, हर्षवर्धन सिंह, के.जे. अल्फांस एवं राजकुमार वर्मा का कार्यकाल 4 जुलाई को पूरा हो रहा था। ख़ाली हो रही इन्हीं चार सीटों पर 10 जून को चुनाव हुए थे। कांग्रेस के तीन और भाजपा के एक सीट जीतने से भी राज्यसभा में कांग्रेस सदस्यों की संख्या बढ़ गयी। यानी राज्यसभा में कांग्रेस का पलड़ा फिर से थोड़ा भारी हो गया है।
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी को और भाजपा ने घनश्याम तिवाड़ी को मैदान में उतारा था। इसके अलावा भाजपा ने निर्दलीय उम्मीदवार सुभाश चन्द्रा को समर्थन दिया था। चन्द्रा के चुनाव मैदान में आने से मुक़ाबला का$फी रोचक हो गया था। इसे बाद कांग्रेस-भाजपा ने ख़रीद-फरोख़्त के चलते क्रॉस वोटिंग के डर से अपने विधायकों की बाड़ेबंदी में ले लिया था। इसके बावजूद भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा ने क्रॉस वोटिंग की। बताया जा रहा है कि कांग्रेस विधायक परसराम मोरदिया का वोट ख़ारिज हो गया। कांग्रेस ने माकपा, बीटीपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से तीनों सीटों पर बाज़ी मार ली।
मुख्यमंत्री के कंधे पर इस चुनाव की ज़िम्मेदारी थी। नाराज़गी के चलते चुनाव की घोषणा के साथ ही उन्होंने विधायकों को साधना शुरू कर दिया था। कुछ विधायकों की अपने ख़िलाफ़ बयानबाज़ी के बावजूद एक जादूगर की तरह उन्होंने सभी को साथ ले लिया। कांग्रेस के पास मात्र 108 वोट थे। ऐसे में 15 वोटों की और ज़रूरत थी। गहलोत ने बहुमत से भी अधिक 18 वोट जुटा लिये।
इस जीत के बाद अब वे प्रदेश में सरकार को और मज़बूती के साथ चलाएँगे। भाजपा में चुनाव की कमान किसी एक नेता के हाथ में नहीं थी। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ मिलकर सँभाल रहे थे। ये तीनों नेता अपने ख़ेमें से वोट क्रॉस होने से भी नहीं रोक सके। वहीं भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के लिए भी वोट नहीं जुटा सके।
भाजपा कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ख़ास मानी जाती है। पूर्व मुख्यमंत्री राजे ने सन् 2017 में उप चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा प्रत्याशी बनाकर जीत दर्ज की थी। उसे बाद सन् 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुँची। वर्ष 2020 में विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री राजे के समर्थक चार विधायक विधानसभा की वोटिंग से ग़ायब रहे। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में कई तरह की अटकलें लगायी जाती रही है।
आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस केे लिए ये नतीजे बूस्टर डोज माने जा रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस देश भर में बिखरी-बिखरी सी नज़र आ रही थी; लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में न केवल एका रखा, बल्कि दूसरी पार्टियों और निर्दलियों को भी जोड़े रखा और नाराज़गी दूर की। इन नतीजों से कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं में जोश देखने को मिलेगा।
चंद्रा के दावे बेकार
राज्यसभा चुनाव हारे निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा ने वोटिंग से तीन दिन पहले यहाँ प्रेसवार्ता कर दावा किया था कि उनके पास भाजपा के तीस कांग्रेस के आठ और आरएलपी, अन्य दलों-निर्दलीयों के नौ विधायकों का समर्थन है; लेकिन चंद्रा के दावे फेल हो गये। भाजपा के पूरे 30 वोट तक उनको नहीं मिल पाये। कांग्रेस और अन्य दलों निर्दलीयों के वोट तो दूर की कौड़ी साबित हुए। सिर्फ़ आरएलपी के तीन वोट चंद्रा को मिल सके। आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने तीनों विधायकों के वोट देने के बाद कहा कि उन्होंने अपना वादा निभा दिया है।
कांग्रेस नेताओं ने दावा किया था कि उनके पास 126 विधायकों का समर्थन है। कांग्रेस प्रत्याशियों को उम्मीद से ज़्यादा वोट मिले। तीनों प्रत्याशियों को कुल 127 वोट मिले। हालाँकि एक वोट ख़ारिज हो गया। इस वजह से वोट का आँकड़ा वापस 126 पहुँच गया। वहीं भाजपा और भाजपा समर्थित प्रत्याशी को 74 वोट मिलने के दावे थे; लेकिन 73 वोट ही मिल सके।
घनश्याम तिवाड़ी इस जीत से लम्बे समय बाद फिर से सियासत की मुख्यधारा में शामिल हो गये। तिवाड़ी 2020 में वापस पार्टी में तो आ गये थे; लेकिन उन्हें कोई बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी। अब तिवाड़ी को और भी ज़िम्मेदारियाँ मिल सकती हैं।
भाजपा ने अपने 71 विधायकों के वोट देने के लिए एक दिन पहले ही रणनीति तैयार कर ली थी। इसके तहत 41 वोट घनश्याम तिवाड़ी और तीस वोट निर्दलीय प्रत्याशी सुभाश चंद्रा को दिलवाने का निर्णय हुआ था। लेकिन क्रॉस वोटिंग को देखते हुए पार्टी ने वोट देने के दौरान ही अपनी रणनीति बदल दी। भाजपा प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी को 41 वोट की जगह 43 भाजपा विधायकों के वोट डलवाये गये। सुभाश चंद्रा को 28 वोट डाले जाने थे; लेकिन शोभा रानी कुशवाहा का वोट कांग्रेस प्रत्याशी को चला गया। इस वजह से सुभाष चंद्रा को 27 वोट ही मिल सके। आरएलपी के तीन विधायकों ने ज़रूर चंद्रा को दिये, जिस वजह से उन्हें कुल 30 वोट मिले।
शोभा कुशवाहा के सवाल
कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद तिवाड़ी के समर्थन में मतदान करने पर पार्टी की ओर से कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करने पर धौलपुर की भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा ने एक लिखित प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने भाजपा नेतृत्व से सवाल किये हैं।
उन्होंने इसमें कहा है कि वर्ष 2012 में धौलपुर उपचुनाव के लिए मैं और मेरा कुशवाहा समाज भाजपा के पास नहीं गये थे, बल्कि ये लोग ख़ुद चलकर के आये थे, और इन लोगों ने हमारे समाज के प्रदेश अध्यक्ष एवं ज़िम्मेदार 20 बुज़ुर्ग और युवाओं सामने कुछ कमिटमेंट किये थे, उनमें से एक कमिटमेंट पूरा नहीं हुआ। इसके अलावा धौलपुर नगर परिषद् चेयरमैन चुनाव में मेरे समर्थक और बीजेपी के जन्मजात कार्यकर्ता एवं अग्रवाल समाज के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश गर्ग की बहू नगर परिषद् चेयरमैन का प्रत्याशी बनाया गया था। हमारे पास में जीतने के लिए संख्या भरपूर थी; लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने हमारे जीते हुए भाजपा पार्षदों को कांग्रेस को देकर कांग्रेस का चेयरमैन बनवा दिया, जिसकी जानकारी जयपुर से लेकर दिल्ली तक दी गयी; लेकिन उन बड़े नेताओं को बर्ख़ास्त करना तो दूर की बात है, उनके सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनको नोटिस भी दे सके।
उनका कहना है कि इसके अतिरिक्त हाल ही में सम्पन्न हुए पंचायत समिति चुनाव में मैंने धौलपुर पंचायत समिति से पंचायत समिति प्रधान के लिए लोधा समाज के नवल लोधा को भाजपा प्रधान प्रत्याशी बनाया था। लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने जानबूझकर अपने ही कार्यकताओं से उसको हरवा दिया। उनका कहना है कि भाजपा की तरफ़ से राज्यसभा चुनाव में केवल एक उम्मीदवार थे घनश्याम तिवाड़ी और हमको विश्वास पात्रों में न रखते हुए यह कहा गया कि आप लोगों को निर्दलीय उम्मीदवार को वोट करना है और वह भी उस व्यक्ति के लिए, जिसने 2014 में हमारे ख़िलाफ़ पूरे देश में अपने चैनल पर झूठी अफ़वाह फैलायी थी और वह व्यक्ति पैसे के दम पर पूरे नंबर न होने के बावजूद भी खुलेआम क्रॉस वोटिंग की चर्चा कर रहा था। ऐसे व्यक्ति को हमारे समर्थकों ने स्वीकार नहीं किया।